कोकसीडियोसिस: यह मुख्यत: छोटे बच्चों में पायी जाती हैं। यह बीमारी कोकसीडिया परजीवी के कारण होती है। इसके लक्षण हैं डायरिया, डीहाइड्रेशन, तेजी से भार कम होना और बुखार।
इलाज: कोकसीडियोसिस से बचाव के लिए लगभग 5-7 दिनों में लिए एक दिन में बायोसिल दवाई दी जाती है। इसका इलाज कोर या सुल्मेट या डेकोक्स के साथ भी किया जा सकता है।
एंटरोटॉक्सीमिया: इसे अत्याधिक खाने से होने वाली बीमारी के रूप में भी जाना जाता है इसके लक्षण हैं- तनाव, भूख ना लगनी, उच्च तापमान और बेहोशी या मौत है।
इलाज: एंटरोटॉक्सीमिया को रोकने के लिए वार्षिक रोग प्रतिरोधक टीकाकरण दिया जाता है। इस बीमारी के इलाज के लिए सी और डी के एंटीटॉक्सिन भी दिये जाते हैं।
अफारा: यह मुख्य रूप से पोषक तत्व ज्यादा मात्रा में खाने के कारण होता है। इससे बकरियों का तनाव में रहना, दांत पीसना, मांसपेशियों को हिलाना और सोजिश होना है।
इलाज: जानवर को ज्यादा खाने को ना दें और इस बीमारी के इलाज के लिए सोडा बाइकार्बोनेट (2-3 मात्रा) दें।
गर्भ के समय ज़हरवाद: यह चयापचयी (मेटाबॉलिक) बीमारी है। इससे जानवर की भूख में कमी, सांस में मीठी महक और जानवर सुस्त हो जाता है।
इलाज: प्रोपीलेन ग्लाइकोल को पानी के साथ दिन में दो बार दिया जाता है और सोडियम बाइकार्बोनेट भी इसके इलाज में मदद करती है।
कीटोसिस: यह कीटोन्स के कारण होता है जिससे शरीर में ऊर्जा की कमी हो जाती है। दूध के उत्पादन में कमी होना, भोजन से दूर रहना ओर सांस में मीठी महक इसके लक्षण हैं।
इलाज: ग्लूकोस का छिड़काव करने से कीटोसिस से बचाव करने में मदद मिलती है
जोहनी बीमारी: इस बीमारी से बकरी का भार कम हो जाता है लगातार दस्त लगते हैं, कमज़ोरी आ जाती है। यह बीमारी बकरी को मुख्यत: 1-2 वर्ष की उम्र में लगती है।
इलाज: प्रारंभिक चरण में जोहनी की बीमारी का पता लगाने के लिए कोई उपयुक्त जांच नहीं की जाती। बकरी की स्वास्थ्य जांच के लिए पशु चिकित्सक से परामर्श करें।
टैटनस: यह क्लोसट्रीडायम टेटानी के कारण होता है। इससे मांसपेशियां कठोर हो जाती हैं। सांस लेने में समस्या होती है, जिसके कारण जानवर की मृत्यु हो जाती है।
इलाज: इस बीमारी से बचाव के लिए पैंसीलिन एंटीबायोटिक दें और जख्म को हाइड्रोजन परऑक्साइड से धोयें।
पैर गलन : इस बीमारी के लक्षण लंगड़ापन है।
इलाज : इससे बचाव के लिए उन्हें कॉपर सल्फेट के घोल से नहलाएं।
लेमीनिटिस: यह उच्च पोषक तत्वों को ज्यादा मात्रा में लेने के कारण होता है। इसके कारण जानवर लंगड़ा हो जाता है, दस्त लग जाते हैं, टोक्सीमिया हो जाता है।
इलाज: दर्द को दूर करने के लिए फिनाइलबुटाज़ोन दें और कम मात्रा युक्त प्रोटीन और ऊर्जा वाला भोजन लेमीनीटिस के इलाज के लिए दें।
निमोनिया: यह फेफड़ों में संक्रमण के कारण होता है। इसके कारण जानवर को सांस लेने में समस्या आती है, नाक बहती रहती है और शरीर का तापमान अधिक हो जाता है।
इलाज: इस बीमारी से बचाव के लिए एंटीबायोटिक दें।
सी ए ई: यह एक विषाणु रोग है इसके कारण जानवर में लंगड़ापन, निमोनिया, स्थायी खांसी और भार का कम होना है।
इलाज: प्रभावित बकरी को अन्य बकरियों से दूर रखें ताकि यह बीमारी अन्य जानवरों में ना फैले।
दाद: यह मुख्यत: फंगस के कारण होने वाली बीमारी है। इससे जानवर की त्वचा मोटी, बाल पतले, सलेटी या सफेद परतदार त्वचा दिखती है।
इलाज: इस बीमारी को दूर करने के लिए निम्न में से एक फंगसनाशी का प्रयोग करें।
- 1:10 ब्लीच
- 0:5 प्रतिशत सल्फर
- 1:300 कप्तान
- 1 प्रतिशत बेटाडीन
यह दवाई रोज़ 5 दिन लगाएं उसके बाद सप्ताह में एक बार लगाएं।
गुलाबी आंखें: यह मुख्यत: मक्खियों के माध्यम से फैलती है और अत्याधिक संक्रामक होती है।
इलाज: आंखों को पेंसीलिन से धोयें या इस बीमारी को ऑक्सीटेटरासाइक्लिन से दूर किया जा सकता है।
डब्लयु एम डी: यह मुख्यत: 1 सप्ताह से 3 महीने की उम्र के बच्चों को होती है। इससे जानवर को सांस लेने में समस्या, कमज़ोर, शरीर का अकड़ना आदि होता है। यह मुख्यत: विटामिन ई की कमी के कारण और सेलेनियम में कमी के कारण होता है।
इलाज: डब्लयु एम डी से बचाव के लिए विटामिन डी और सेलेनियम दें।
लिस्टीरीयोसिस: यह लिस्ट्रिया मोनोकीटोजीन्स के कारण मौसम बदलने के दौरान और गाभिन की शुरू की अवस्था में होता है। इसके लक्षण तनाव, बुखार, पैरालिसिस, गर्भपात आदि होना है।
इलाज: शुरू के 3-5 दिनों में पेंसीलिन प्रत्येक 6 घंटे में और फिर 7 दिनों में एक बार दें।
थनैला रोग: इसके लक्षण लेवे का गर्म और सख्त होना और भूख में कमी आदि होना है।
इलाज: विभिन्न तरह के एंटीबायोटिक जैसे सी डी एंटीऑक्सिन, पेंसीलिन, नुफ्लोर, बेनामाइन आदि इस बीमारी को दूर करने के लिए दें।
बॉटल जॉ: यह खून चूसने वाले कीड़ों के कारण होता है। इसके कारण जबड़े में सोजिश हो जाती है और जबड़े का रंग असामान्य हो जाता है।