sp35036.jpg

आम जानकारी

टिंडे को round melon, round gourd, Indian squash भी कहा जाता है| यह उत्तरी भारत की सबसे महत्तवपूर्ण गर्मियों की सब्जी है। टिंडे का मूल स्थान भारत है। यह कुकरबिटेसी प्रजाति से संबंधित है। इसके कच्चे फल सब्जी बनाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। 100 ग्राम अन-पके फलों में 1.4% प्रोटीन, वसा 0.4%, कार्बोहाइड्रेट 3.4%, कैरोटीन 13 मि.ग्रा. और 18 मि.ग्रा. विटामिन होते हैं। इसके फल की औषधीय विशेषताएं भी हैं, सूखी खांसी और रक्त संचार सुधारने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। 

जलवायु

  • Season

    Temperature

    10-28°C
  • Season

    Rainfall

    200-300mm
  • Season

    Sowing Temperature

    10-20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-28°C
  • Season

    Temperature

    10-28°C
  • Season

    Rainfall

    200-300mm
  • Season

    Sowing Temperature

    10-20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-28°C
  • Season

    Temperature

    10-28°C
  • Season

    Rainfall

    200-300mm
  • Season

    Sowing Temperature

    10-20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-28°C
  • Season

    Temperature

    10-28°C
  • Season

    Rainfall

    200-300mm
  • Season

    Sowing Temperature

    10-20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-28°C

मिट्टी

बढ़िया विकास और पैदावार के लिए अच्छे निकास वाली, उच्च जैविक तत्वों वाली रेतली दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। बढ़िया विकास के लिए मिट्टी का pH 6 से 7 होनी चाहिए। पानी के ऊंचे स्तर वाली मिट्टी में यह बढ़िया पैदावार देती है| 

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Tinda 48: इसकी बेल 75 से 100 सैं.मी. लम्बी होती है| इसके पत्ते हल्के हरे रंग और फल सामान्य आकार के होते है| इसके फल गोल चमकीले हल्के हरे रंग के होते है| इसकी औसतन पैदावार 25 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
 
Tinda Ludhiana: इसके फल हल्के हरे रंग, सामान्य और समतल गोल आकार में होते है| हरेक बेल पर 8-10 फल लगते है| इसका गुद्दा नर्म और सफेद रंग का होता है| कम बीजों वाले फलों को पकाने की गुणवत्ता बढ़िया होती है| बिजाई के बाद यह 60 दिनों में कटाई के लिए तैयार होती है| इसकी औसतन पैदावार 18-24 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
 
Patty Pan: यह किस्म 75-80 दिनों में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके फल सफेद रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 22 टन प्रति एकड़ होती है।
 
Early Yellow Prolifilic: यह अगेती किस्म है। इसके फल मध्यम आकार के होते हैं और पकने पर इस किस्म का रंग पीले रंग में बदल जाता है।
 
Australian Green: यह अगेती और झाड़ीदार किस्म है। इसके फल हरे सफेद रंग के होते हैं। यह किस्म पिछेती बिजाई के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 60 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa Alankar: यह बहुत जल्दी और अधिक उपज देने वाली किस्म है। इसके फल गहरे हरे रंग के होते हैं। इसका गुद्दा नर्म और अच्छे स्वाद वाला होता है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Arka Tinda: यह इण्डियन इंस्टीट्यूट हॉर्टिकल्चर रीसर्च, बैंगलोर द्वारा विकसित की गई है|  
 
Anamalai Tinda

Mahyco Tinda
 
Swati: इसके फल गहरे हरे रंग के होते हैं। यह दो महीने में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। 
 

ज़मीन की तैयारी

मिट्टी के भुरभुरा होने तक ज़मीन की जोताई करें। गाय का गला हुआ गोबर 8-10 टन प्रतिकिलो खेत की तैयारी के समय प्रति एकड़ में डालें। खेती के लिए बैड तैयार करें। बीजों को गड्ढों या खालियों में बोया जा सकता है। 

बिजाई

बिजाई का समय
उत्तर भारत में, इसकी खेती फरवरी-मार्च में की जा सकती है।
 
फासला
दो बैडों के बीच 1-1.5 मीटर का फासला रखें। बीजों को बैड के दोनों ओर बोयें और 60-75 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
बीजों को 2-3 सैं.मी. की गहराई में बोयें।
 
बिजाई का ढंग
बीजों को सीधे बैड पर या मेंड़ पर बोया जाता है।
 

बीज

बीज की मात्रा
प्रत्येक स्थान पर दो बीज बोयें। एक एकड़ खेत के लिए 2.0 से 2.5 किलो बीज पर्याप्त होते हैं।
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
70 150 40

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
32 24 24

 

टिंडे की पूरी फसल को 8-10 टन गाय का गला हुआ गोबर, नाइट्रोजन 32 किलो (यूरिया 70 किलो), फासफोरस 24 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 150 किलो), और पोटाश 24 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 40 किलो) प्रति एकड़ में डालें। नाइट्रोजन की 1/3 मात्रा, फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बिजाई के दो से तीन सप्ताह पहले डालें। बाकी बची नाइट्रोजन को दो भागों में बांटे। पहले भाग को बिजाई के 25-30 दिन बाद डालें और दूसरे भाग को बिजाई के 40-50 दिन बाद डालें।

 

 

सिंचाई

इसे लगातार सिंचाई की जरूरत होती है क्योंकि यह कम समय की फसल है। बीजों को सिंचाई से पहले खालियों में बोया जाये, तो पहली सिंचाई बिजाई के बाद दूसरे या तीसरे दिन करें। गर्मियों के मौसम में, 4-5 दिन के फासले पर जलवायु, मिट्टी की किस्म, के अनुसार सिंचाई करें। बारिश के मौसम में बारिश की आवृति के आधार पर सिंचाई करें। टिंडे की फसल को ड्रिप सिंचाई देने पर अच्छा परिणाम मिलता  है और 28% पैदावार बढ़ाता है।

खरपतवार नियंत्रण

काले पॉलीथीन मल्च का प्रयोग करने से नदीनों की रोकथाम होगी और मिट्टी में भी नमी बनी रहेगी। खेत को नदीनों से मुक्त करने के लिए, हाथों से गोडाई करें और नदीनों की जांच करते रहें। बिजाई के बाद 15-20 दिनों के बाद हाथों से गोडाई करें। नदीनों की तीव्रता के आधार पर बाकी की गोडाई करें।

पौधे की देखभाल

2033idea99squash_aphids.jpg
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
चेपा और थ्रिप्स: यह पत्तों का रस चूसते हैं, जिससे पत्ते पीले पड़ जाते हैं और मुरझा जाते हैं। तेले के कारण पत्ते मुड़ जाते हैं, जिससे पत्तों का आकार मुड़ कर कप की तरह हो जाता है| 
 
अगर खेत में इसका हमला दिखाई दें तो, थाइमैथोक्सम 5 ग्राम को 15 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
310idea99squash_powdery_mildew.jpg
  • बीमारियां और रोकथाम
पत्तों पर सफेद धब्बे: इस रोग से पत्तों के ऊपरी सतह पर सफेद रंग के पाउडर के धब्बे पड़ जाते हैं, इससे पौधे का तना भी प्रभावित होता है। ये पत्तों को खाद्य स्त्रोत के रूप में प्रयोग करते हैं। इसके हमले के कारण पत्ते और फल पकने से पहले ही गिर जाते है|
 
इसका हमला दिखाई दें तो, पानी में घुलनशील सलफर 20 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर 10 दिनों के अंतराल पर 2-3 बार स्प्रे करें।
 
878idea99squash_anthracnose.jpg
एंथ्राक्नोस: एंथ्राक्नोस से प्रभावित पत्ते झुलसे हुए दिखाई देते हैं।
इसकी रोकथाम के लिए, कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें। अगर इसका हमला खेत में दिखाई दें तो, मैनकोजेब 2 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 0.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 

पौधे की देखभाल

किस्म के आधार पर बिजाई के 60 दिनों में फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। जब फल पक जाएं और मध्यम आकार के हो जायें तब तुड़ाई कर लें। 4-5 दिनों के फासले पर तुड़ाई करें।

बीज उत्पादन

चप्पन कद्दू की अन्य किस्मों से 800 मीटर का फासला रखें। प्रभावित पौधों को खेत में से बाहर निकाल दें| जब फल परिपक्व हो जाएं तब वे हल्के रंग के हो जाते हैं| फिर उन्हें ताज़े पानी में डालकर हाथों से मसला जाता है और बीजों को गुद्दे से अलग किया जाता हैं। जो बीज पानी की निचली सतह पर बैठ जाते है, उन्हें बीज उत्पादन के लिए प्रयोग किया जाता है|