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आम जानकारी

लहसुन एक दक्षिण यूरोप में उगाई जाने वाली प्रसिद्ध फसल है। इसे कईं पकवानों में मसाले के तौर पर प्रयोग किया जाता है। इसके इलावा इसमें कईं दवाइयों में प्रयोग किए जाने वाले तत्व हैं। इसमें प्रोटीन, फासफोरस और पोटाश्यिम जैसे स्त्रोत पाए जाते हैं। यह पाचन क्रिया में मदद करता है और मानव रक्त में कोलेस्ट्रोल की मात्रा को कम करता है। बड़े स्तर पर लहसुन की खेती मध्य प्रदेश, गुजरात, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, महांराष्ट्र, पंजाब और हरियाणा में की जाती है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    10-30°C
  • Season

    Rainfall

    600-700mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    10-15°C
  • Season

    Temperature

    10-30°C
  • Season

    Rainfall

    600-700mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    10-15°C
  • Season

    Temperature

    10-30°C
  • Season

    Rainfall

    600-700mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    10-15°C
  • Season

    Temperature

    10-30°C
  • Season

    Rainfall

    600-700mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    10-15°C

मिट्टी

इसे किसी भी तरह की हल्की से भारी ज़मीनों में उगाया जा सकता है। गहरी मैरा, अच्छी जल निकास वाली, पानी को बांध कर रखने वाली और अच्छी जैविक खनिजों वाली ज़मीन सब से अच्छी रहती है। नर्म और रेतली ज़मीनें इसके लिए अच्छी नहीं होती क्योंकि इसमें बनी गांठे जल्दी खराब हो जाती हैं। ज़मीन का पी एच 6-7 होना चाहिए।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Yamuna Safed (G-1): इसकी गांठे सख्त और सफेद होती हैं और कलियां द्राती के आकार की होती हैं और प्रत्येक गांठ में 25-30 कलियां होती हैं।
 
Yamuna Safed 2(G-50): इसकी गांठे भी सख्त और सफेद होती हैं और 35-40 कलियां प्रति गांठ होती हैं।
 
Yamuna Safed 3 (G 282): गांठे सफेद और आकार में बड़ी होती हैं और 15-16 कलियां प्रति गांठ होती हैं।
 
G 40: इसकी गांठे ताजी, सफेद रंग की होती हैं और इसकी औसतन पैदावार 50-60 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Agrifound White (G-41): यह किस्म 150-190 दिनों में पुटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 52-56 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Agrifound Parvati (G 313): यह किस्म 250-270 दिनों में पुटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 70-80 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Yamuna Safed 4 (G 323): गांठे सफेद और 20-25 कलियां प्रति गांठ होती हैं।
 
Godavari (Selection 2) : यह किस्म 140-145 दिनों में पुटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 40-42 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Sweta (Selection 10): इसकी गांठे गहरे सिल्वर सफेद रंग की होती हैं। यह किस्म 130-135 दिनों में पुटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 40-42 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
T 56-4: इसकी औसतन पैदावार 32 से 40 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Bhima Omkar: यह किस्म 120-135 दिनों में पुटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह सफेद रंग की मध्यम गांठों का उत्पादन करती है। इसकी औसतन पैदावार 32-56 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Yamuna Safed 5: यह फसल पककर कटाई के लिए 150-160 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 68-72 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
Bhima Purple: यह फसल 120-135 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं। इसकी ऊपरी सतह जामुनी रंग की हो जाती हैं। इसकी औसतन पैदावार 24-28 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
Solan Selection:  इसकी कलियां छोटी और प्रत्येक गांठ में 12-15 कलियां होती हैं। इसकी औसतन पैदावार 62.5-80 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Selection-1:  इसकी मध्यम सफेद रंग की कलियां, छोटा आकार और अन्य किस्मों से ज्यादा आकर्षित होती है। यह किस्म कम और दरमियानी पहाड़ी क्षेत्रों में बिजाई के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 80-105 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
G.H.C-1: यह अन्य किस्मों से अधिक उपज वाली और सुगंधित किस्म है। इसकी कलियां बड़े आकार की होती हैं जिनका छिल्का आसानी से उतारा जा सकता है। इसकी औसतन पैदावार 84-105 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 

ज़मीन की तैयारी

खेत को 3-4 बार जोतकर नर्म करें और जैविक खनिजों को बढ़ाने के लिए रूड़ी की खाद डालें। खेत को समतल करके क्यारियों और खालियों में बांट दें।

बिजाई

बिजाई का समय
उत्तर प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में बिजाई के लिए अक्तूबर से नवंबर का महीना उपयुक्त होता है।
 
फासला
बिजाई के लिए, कतार से कतार में 15 सैं.मी. और पौधे से पौधे में 10 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
लहसुन की गांठों को 3-5 सैं.मी. गहरा और उसका उगने वाला हिस्सा ऊपर की तरफ रखें।
 
बिजाई का ढंग
लहसुन की बिजाई के लिए डिबलिंग और ड्रिलिंग विधि का प्रयोग किया जाता है।
 

बीज

बीज की मात्रा
एक एकड़ खेत में बिजाई के लिए लगभग 8-10 अर्द्ध व्यास की लहसुन की 200-250 किलो गांठों का प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
बीज को थीरम 2 ग्राम प्रति किलो + बैनोमाईल 50 डब्लयु पी 1 ग्राम प्रति लीटर पानी से उपचार कर उखेड़ा रोग और कांगियारी से बचाया जा सकता है। रासायण प्रयोग करने के बाद, बीज को टराइकोडरमा विराइड 2 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचार कर इसे मिट्टी की बीमारियों से बचाया जा सकता है।
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
90 125 35

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
40 20 20

 

खेत की तैयारी के समय रूड़ी की खाद या गाय का गला हुआ गोबर 20 टन प्रति एकड़ में डालें। नाइट्रोजन 40 किलो (यूरिया 90 किलो), फासफोरस 20 किलो (एस एस पी 125 किलो) और पोटाश 20 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 35 किलो) प्रति एकड़ में डालें। फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा लहसुन की बिजाई के 2 दिन पहले डालें। बाकी बची नाइट्रोजन को बिजाई के एक महीना बाद डालें।
 
WSF: फसल को खेत में लगाने के 10-15 दिन बाद 19:19:19 और सूक्ष्म तत्व 2.5-3 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 

 

 

खरपतवार नियंत्रण

शुरूआत में लहसुन की वृद्धि धीरे होती है। इसलिए रासायनिक नदीननाशकों का  प्रयोग करना बेहतर है। हाथों से गोडाई ना करें। नदीनों को रोकने के लिए नदीनों के अंकुरण से पहले पैंडीमैथालीन 900 मि.ली. या ऑक्सीफ्लोरफेन 425 मि.ली. को बिजाई के 72 घंटों के अंदर अंदर प्रति एकड़ में डालें। नदीनों के नियंत्रण के लिए दो से तीन गोडाई की सिफारिश की जाती है। पहली गोडाई बिजाई के एक महीने बाद और दूसरी गोडाई पहली गोडाई के एक महीना बाद करें।

सिंचाई

मिट्टी की किस्म और जलवायु के आधार पर सिंचाई की आवृति और मात्रा का फैसला करें। पहली सिंचाई बिजाई के तुरंत बाद करें। बानस्पतिक वृद्धि के समय 7-8 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें जबकि प्रजनन की अवस्था में 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। गांठों बनने की अवस्था सिंचाई के लिए गंभीर अवस्थाएं होती हैं। फसल के पक जाने पर सिंचाई पूरी तरह बंद कर दें। 

पौधे की देखभाल

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  • हानिकारक कीट और रोकथाम
थ्रिप्स: यदि इस कीड़े को ना रोका जाये तो लगभग 50 प्रतिशत तक पैदावार कम हो जाती है और यह शुष्क वातावरण में आमतौर पर आता है। यह पत्ते का रस चूसकर उसे ठूठी के आकार का बना देता है।
 
इसे रोकने  के लिए नीले चिपकने वाले कार्ड 6-8 प्रति एकड़ लगाएं। यदि खेत में इसका नुकसान ज्यादा हो तो फिप्रोनिल 30 मि.ली. को प्रति 15 लीटर पानी या प्रोफेनोफॉस 10 मि.ली. या कार्बोसल्फान 10 मि.ली. + मैनकोजेब 25 ग्राम को प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर 8-10 दिनों के अंतराल पर स्प्रे करें।
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सफेद सुंडी: इस सुंडी का हमला जनवरी-फरवरी के महीने में होता है और यह जड़ों को खाती है और पत्तों को सुखा देती है।
 
इसे रोकने के लिए कार्बरील 4 किलाग्राम या फोरेट 4 किलोग्राम मिट्टी में डालकर हल्की सिंचाई करें या क्लोरपाइरीफॉस 1 लीटर को प्रति एकड़ में पानी और रेत में मिलाकर डालें।
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  • बीमारियां और रोकथाम
जामुनी धब्बे और तने का फाइलियम झुलस रोग : ज्यादा हमले की सूरत में उपज का लगभग 70 प्रतिशत तक नुकसान हो जाता है। पत्तों के ऊपर गहरे जामुनी धब्बे दिखाई देते हैं। पीली धारियां भूरे रंग की होकर पत्तों के शिखरों तक पहुंच जाती हैं।
 
इसे रोकने के लिए प्रोपीनेब 70 प्रतिशत डब्लयु पी 350 ग्राम को प्रति 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। 10 दिनों के फासले पर दो बार करें।

फसल की कटाई

यह फसल बिजाई के 135-150 दिनों के बाद या जब 50 प्रतिशत पत्ते पीले हो जायें और सूख जायें तब कटाई की जा सकती है। कटाई से 15 दिन पहले सिंचाई बंद कर दें। पौधों को उखाड़ कर छोटे गुच्छों में बांधे और 2-3 दिनों के लिए खेत में सूखने के लिए रख दें। पूरी तरह सूखने के बाद सूखे हुए तने काट दें और गांठों को साफ करें।

 

 

कटाई के बाद

पुटाई करने और सूखाने के बाद, गांठों को आकार के अनुसार बांटें। लहसुन को अंधेरे, हवादार, साफ और सूखी जगह पर रखें। कोल्ड स्टोरेज में, लहसुन को 3-4 महीने के लिए 0-2 डिगरी सैल्सियस और 65-70 प्रतिशत नमी में रखा जा सकता है।