तोरिया की फसल के बारे में जानकारी

आम जानकारी

इसे तिलहनी तोरिया, तोरिया, रापा और रप्पी के नाम से भी जाना जाता है। तोरिया जल्दी पकने वाली फसल है और इसे सभी रबी फसलों में पहले उगाया जाता है। इसके पौधे का कद 100 सैं.मी. होता है। इसके पौधे के चमकीले पीले रंग के फूल होते हैं। इस फसल को मुख्य रूप से उगाया जाता है क्योंकि इसमें तेल की उच्च विशेषताएं होती हैं। यह भारत में वानस्पतिक तेल का तीसरा सबसे बड़ा स्त्रोत है।
 
राजस्थान और मध्य प्रदेश के बाद उत्तर प्रदेश तोरिया सरसों का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
 

मिट्टी

तोरिया की खेती के लिए रेतली, दोमट और हल्की मिट्टी अच्छी होती है। खारी  मिट्टी में इसकी खेती ना करें।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

T-9 (1978): यह किस्म सिंचित क्षेत्रों में अच्छे जल निकास वाली प्रणाली में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 85-100 दिनों में पक जाती है और 5-6 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देती है। इसके भूरे रंग के बीज होते हैं जिनमें तेल की मात्रा 44 प्रतिशत होती है।
 
Bhvaani: इस किस्म का पौधा छोटा होता है। इसकी फलियां लंबी और बीज चमकदार भूरे रंग के होते हैं। यह जल्दी पकने वाली किस्म है इसलिए यह किस्म थ्रिप्स के प्रतिरोधक है। यह किस्म 70-80 दिनों में तैयार हो जाती है और इसकी औसतन पैदावार 3-3.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
P.T 303: यह किस्म 90-95 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 7.2 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
P.T 30: यह किस्म 90-95 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 5.6-6.4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
DK-1: यह जल्दी पकने वाली और जल्दी उपज देने वाली किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 2.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Sangam (1974): यह किस्म सिंचित क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 105 दिनों में पक जाती है और 6 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देती है। इसके बीजों में तेल की मात्रा 42-44 प्रतिशत होती है।
 
TL 15 (1982): यह किस्म 85-90 दिनों में पक जाती है और औसतन 4.5 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देती है।
 

ज़मीन की तैयारी

मिट्टी के भुरभुरा होने तक खेत की अच्छी तरह से जोताई करें। मिट्टी को समतल करने के लिए हल से या देसी हल से या कल्टीवेटर या हैरो से 2-3 बार जोताई करें। आखिरी जोताई के समय अच्छी तरह से गला हुआ गाय का गोबर 16 क्विंटल प्रति एकड़ में डालें। 

बिजाई

बिजाई का समय
तोरिया की बिजाई के लिए सितंबर का पहले पखवाड़े का समय उपयुक्त होता है। Bhavani किस्म के लिए, बिजाई सितंबर के दूसरे पखवाड़े में पूरी कर लें। 
 
फासला
कतारों में 30 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
बीज को 3-4 सैं.मी. की गहराई में बोयें। 
 
बिजाई का ढंग
बिजाई के लिए सीड ड्रिल विधि का प्रयोग किया जाता है।
 

बीज

बीज की मात्रा
1.6 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
बीजों को मिट्टी से होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए बिजाई से पहले बीज को मैनकोजेब 2.5 ग्राम या कप्तान 3 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। फसल को पत्तों पर धब्बे रोगों से बचाने के लिए मैटालैक्सिल 1.5 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें।
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
Unirrigated 45 75 20
Irrigated 65-90 125 35

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

  NITROGEN PHOSPHORUS POTASSIUM
Unirrigated 20 12 12
Irrigated 30-40 16 20

 

असिंचित क्षेत्रों के लिए नाइट्रोजन 20 किलो (यूरिया 45 किलो), फासफोरस 12 किलो (एस एस पी 75 किलो) और पोटाश 12 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 20 किलो) प्रति एकड़ में डालें।
 
जबकि सिंचित क्षेत्रों के लिए नाइट्रोजन 30-40 किलो (यूरिया 65-90 किलो), फासफोरस 20 किलो (एस एस पी 100 किलो) और पोटाश 20 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 35 किलो) प्रति एकड़ में डालें।
 
आखिरी जोताई के समय नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा डालें। बाकी बची नाइट्रोजन को पहली सिंचाई के समय या बिजाई के 25-30 दिनों के बाद डालें।
 

 

 

खरपतवार नियंत्रण

यदि नदीनों की तीव्रता ज्यादा हो तो बिजाई के 20-25 दिनों के बाद गोडाई करें। नदीनों के अंकुरण से पहले पैंडीमैथालीन 30 ई सी 1 लीटर को 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

पौधे की देखभाल

सूखा
  • बीमारियां और रोकथाम
सूखा : यदि सूखे का हमला देखा जाए तो सल्फर पाउडर की 8 किलो प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
आल्टरनेरिया झुलस रोग
आल्टरनेरिया  झुलस रोग : इससे पत्तियां बेरंग हो जाती हैं और पौधे से निकलती हैं। छोटे पौधे और पुराने पत्ते इस बीमारी के प्रति काफी संवेदनशील होते हैं।
 
इन्हें रोकने के लिए फसली चक्र अपनायें। सोए की फसल समान खेत में लगातार ना उगायें। साफ बीजों को प्रयोग करें। बिजाई से पहले बीजों को गर्म पानी में 50 डिगरी सैल्सियस पर 25-30 मिनट के लिए भिगोयें। यदि इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब 3 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर फोलियर स्प्रे करें।
चितकबरी भुंडी
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
चितकबरी भुंडी : यह मुख्य रूप से बिजाई के 7-10 दिनों के बाद हमला करती है। इस कीट की रोकथाम के लिए मिथाइल पैराथियॉन 2 प्रतिशत या मैलाथियोन 5 प्रतिशत 8-10 किलोग्राम की प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
चमकीली पीठ वाला पतंगा

चमकीली पीठ वाला पतंगा : इस कीट की रोकथाम के लिए क्विनलफॉस 25 ई सी 300 मि.ली. को 100 लीटर पानी से प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

सफेद मक्खी

सफेद मक्खी : यदि सफेद मक्खी का हमला दिखे तो मिथाइल पैराथियॉन 5 प्रतिशत 10 किलो की प्रति एकड़ में स्प्रे करें और सिंचित क्षेत्रों में डाइमैथोएट 30 ई सी 350 मि.ली. को 100 लीटर पानी से प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

सफ़ेद कीढ़े

सफेद बग : यदि इसका हमला दिखे तो एक्टारा 80 ग्राम 100 लीटर पानी से प्रति एकड़ में स्प्रे करें। जरूरत पड़ने पर यह स्प्रे 20 दिनों के अंतराल पर करें।

फसल की कटाई

कटाई अंत दिसंबर से जनवरी के पहले सप्ताह में की जाती है। पत्तों के गिरने और फलियों के पीले रंग के होने पर कटाई की जाती है। इसकी औसतन पैदावार 4-6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।