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आम जानकारी

सनई एक तेजी से उगने वाली फलीदार फसल है जो रेशे और हरी खाद के लिए उगाई जाती है। जब इसे मिट्टी में मिलाया जाता है तो यह खारेपन और खनिजों के नुकसान को रोकता है और मिट्टी में नमी बनाई रखता है। सनई का मूल स्थान भारत है। इसे मौसम की स्थितियों जैसे  सूखा, लवणता, खारापन आदि में भी उगाया जा सकता है। इसे रस्सी, चटाई, मछलियों का जाल आदि बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। 
 
फाइबर उद्देश्य के लिए इसे पूरे भारत में उगाया जाता है। उत्तर प्रदेश मुख्य राज्य है जहां सनई की खेती हरी खाद लेने के लिए की जाती है और दूसरे राज्य जैसे आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, तामिलनाडू, मध्य प्रदेश और राजस्थान में इसकी खेती की जाती है। चारे के उद्देश्य से इसे आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और पंजाब के कुछ क्षेत्रों में उगाया जाता है। 
 
यू पी के वाराणसी, प्रतापगढ़, आज़मगढ़, जौनपुर, अलाहबाद, फतेहपुर, हमीरपुर, पीलीभीत और मोरादाबाद मुख्य सनई उगाने वाले राज्य हैं।
 

जलवायु

  • Season

    Temperature

    20-25°C
  • Season

    Rainfall

    400-1000mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    22-30°C
  • Season

    Temperature

    20-25°C
  • Season

    Rainfall

    400-1000mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    22-30°C
  • Season

    Temperature

    20-25°C
  • Season

    Rainfall

    400-1000mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    22-30°C
  • Season

    Temperature

    20-25°C
  • Season

    Rainfall

    400-1000mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    22-30°C

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Narendra sanai 1: यह किस्म 152 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके पत्ते चौड़े, हरे होते हैं, पीले रंग के फूल होते हैं और बीज मोटे और काले रंग के होते हैं। बिजाई के 45-60 दिनों के बाद हरी खाद लेने के लिए फसल को मिट्टी में दबा दें और बायोमास 3.8-6.2 टन प्रति एकड़ मिट्टी में मिला दें। इसकी औसतन पैदावार 3.9 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Jabalpur: इस किस्म की पूरे मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में खेती करने के लिए सिफारिश की गई है।
 
K 12 (Black): यह काले बीजों वाली किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 4-4.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म 100-120 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
 
K 12 (Yellow): यह किस्म सूखे के प्रतिरोधक है। इसकी औसतन पैदावार 4-6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
SUN 037: यह जल्दी पकने वाली किस्म है। यह किस्म सूखे और चितकबरे रोग के प्रतिरोधक है। इसकी औसतन पैदावार 4-4.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
SS 11: यह K 12 (Yellow) किस्म से अधिक फाइबर की उपज देने वाली किस्म है।
 
SH 4: यह स्थानीय किस्मों से तैयार की गई किस्म है। यह K 12 (Yellow) किस्म से अधिक फाइबर की उपज देने वाली किस्म है।
 
SUN 053: इसकी औसतन पैदावार 4.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
JRJ 610: यह सिंचित के साथ साथ बारानी क्षेत्रों में भी बोने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Ankur: इसकी औसतन पैदावार 4.4-4.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Swastik: इसकी औसतन पैदावार 4-4.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Shailesh: इसकी औसतन पैदावार 4-4.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
T 6: यह किस्म हरी खाद लेने के लिए उपयुक्त है।
 
M-18: यह जल्दी पकने वाली किस्म है। यह किस्म सूखे के प्रतिरोधक है।
 
PAU 1691: यह किस्म 136 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके पत्ते मध्यम आकार के , हरे रंग के होते हैं। फूल पीले रंग के और बीज मोटे और काले रंग के होते हैं। बिजाई के 45-60 दिनों के बाद हरी खाद लेने के लिए फसल को मिट्टी में दबा दें और बायोमास 4-6.5 टन प्रति एकड़ मिट्टी में मिला दें। इसकी औसतन पैदावार 4.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 

 

ज़मीन की तैयारी

मिट्टी के भुरभुरा होने तक खेत की अच्छी तरह से जोताई करें। बिजाई से पहले सुनिश्चित करें कि मिट्टी में 35 प्रतिशत तक पर्याप्त नमी हो। मिट्टी में उचित नमी बीजों के अच्छे अंकुरण में मदद करती है।

बिजाई

बिजाई का समय
सिंचित क्षेत्रों के लिए अप्रैल के दूसरे सप्ताह से अंत मई का समय बिजाई के लिए उपयुक्त होता है। बारानी क्षेत्रों में मॉनसून के शुरू होने पर बिजाई पूरी कर लें।
 
फासला
हरी खाद लेने के लिए कतार से कतार में 20 सैं.मी. और पौधे से पौधे में 4 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
फाइबर लेने के लिए 30 सैं.मी. x 10 सैं.मी. जबकि बीज लेने के लिए 45 सैं.मी. x 12.5 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
बीज को 3-4 सैं.मी. की गहराई पर बोयें।
 
बिजाई का ढंग
हरी खाद लेने के लिए बुरकाव विधि का प्रयोग किया जाता है और बीज लेने के लिए सीड ड्रिल ढंग द्वाराबिजाई की जाती है।
 

बीज

बीज की मात्रा
हरी खाद के लिए एक एकड़ में 20-25 किलो बीज पर्याप्त होते हैं और बीज लेने के लिए 10-12 किलो बीज प्रति एकड़ में पर्याप्त होते हैं। 
फाइबर के लिए 24 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
बिजाई से पहले बीजों को पूरी रात पानी में भिगोकर रखें। यह बीजों के अच्छे अंकुरण में मदद करेगा। बीजों को कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए कार्बेनडाज़िम 3 ग्राम प्रति किलो बीज का उपचार करें।
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
15-20 100-150 -

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
6-9 16-24

-

 

बीज लेने के साथ साथ हरी खाद के लिए फासफोरस 16-24 किलो (एस एस पी 100-150 किलो) प्रति एकड़ में डालें। फलीदार फसल होने के तौर पर इसमें नाइट्रोजन खाद नहीं दी जाती। लेकिन कई बार फसल की वृद्धि के लिए नाइट्रोजन 6-8 किलो (यूरिया 15-20 किलो) प्रति एकड़ में डाला जाता है।

 

 

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों की जांच के लिए बिजाई के एक महीने बाद एक गोडाई करें।
 
बिजाई से पहले खेत में फ्लूक्लोरालिन 45 ई सी 800 मि.ली. को 130-150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में डालें। नदीनों की प्रभावी रोकथाम के लिए नदीनों के अंकुरण से पहले पैंडीमैथालीन 800 मि.ली. प्रति एकड़ में डालें।
 

सिंचाई

बिजाई के 25 दिन बाद पहली सिंचाई करें। उसके बाद आवश्यकता के आधार पर 25-30 दिनों के अंदर अंदरदो से तीन सिंचाई करें। जब फसल को हरी खाद लेने के लिए उगाया जाता है। तो इसे मौसम की स्थितियों के आधार पर दो से तीन सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। फूल निकलने और दानों के विकसित होने की अवस्थाएं सिंचाई के लिए गंभीर होती हैं। जब फसल को दाने लेने के उद्देश्य से उगाया जाये तो इन अवस्थाओं में पानी की कमी ना होने दें।

पौधे की देखभाल

  • बीमारियां और रोकथाम
सूखा : इसकी प्रतिरोधक किस्मों का चयन करें। कार्बेनडाज़िम 3 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। यदि खेत में इसका हमला दिखे तो कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 

एंथ्राक्नोस : इसकी प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। बिजाई से पहले बीज का उपचार करें। कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर नए पौधे बनने की अवस्था में स्प्रे करें

  • हानिकारक कीट और रोकथाम
शाख का कीट : इसकी प्रभावी रोकथाम के लिए क्विनलफॉस 300 मि.ली. को प्रति 150 लीटर पानी में मिलाकर दो बार स्प्रे करें।
 

सनई की सुंडी : यदि इसका हमला दिखे तो क्विनलफॉस 30 मि.ली. को प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

फसल की कटाई

बीज उत्पादन के लिए फसल को बीजने के 150 दिनों के बाद मध्य अक्तूबर के नवंबर के शुरू में काट लें और हरी खाद वाली फसल को बीजने के 45-60 दिनों के बाद मिट्टी में मिला दें।