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आम जानकारी

इस फल को सभी फलों का राजा कहा जाता है और इसकी खेती भारत में पुराने समय से की जाती है। आम से हमें विटामिन ए और सी काफी मात्रा में मिलते हैं और इसके पत्ते चारे की कमी होने पर चारे के तौर पर और इसकी लकड़ी फर्नीचर बनाने के लिए प्रयोग की जाती है। कच्चे फल चटनी, आचार बनाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं और पक्के फल जूस, जैम और जैली आदि बनाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। 
उत्तर प्रदेश, आम का मुख्य उत्पादक राज्य है। महाराजगंज, कबीर नगर, गोरखपुर, बिजनौर, मोरादाबाद, दिओरिया, बस्ती, कुशी नगर, मेरठ, मुज्जफरनगर, बुलंदशहर, लखनऊ, सुल्तानपुर, सीतापुर, फैज़ाबाद, सहारनपुर, उन्नाओ, हरदोई, बाराबांकी यू पी के मुख्य आम उगाने वाले जिले हैं। आम उगाने वाले अन्य राज्य हैं - आंध्रा प्रदेश, कर्नाटक, केरला, महाराष्ट्र और गुजरात।
 

जलवायु

  • Season

    Temperature

    22-27°C
  • Season

    Rainfall

    50-80mm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-22°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    28-30°C
  • Season

    Temperature

    22-27°C
  • Season

    Rainfall

    50-80mm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-22°C
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    Harvesting Temperature

    28-30°C
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    Temperature

    22-27°C
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    50-80mm
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    20-22°C
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    Harvesting Temperature

    28-30°C
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    Temperature

    22-27°C
  • Season

    Rainfall

    50-80mm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-22°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    28-30°C

मिट्टी

आम की खेती कईं तरह की मिट्टी में की जा सकती है। इसकी खेती के लिए घनी ज़मीन, जो 4 फुट की गहराई तक सख्त ना हो, की जरूरत होती है। मिट्टी की पी एच 8.5 प्रतिशत से कम होनी चाहिए।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Dusheri: यह बहुत ज्यादा क्षेत्रों में उगाया जाता है। इसके फल जुलाई के पहले सप्ताह में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इस किस्म के फलों का आकार छोटे से दरमियाना, रंग पीला, चिकना और गुठली छोटी होती है। यह फल ज्यादा देर तक स्टोर किए जा सकते हैं। ये फल सदाबहार लगते रहते हैं। इसकी औसतन पैदावार 150 क्विंटल प्रति वृक्ष होती है।
 
Langra: इस किस्म के फलों का आकार दरमियाने से बड़ा, रंग निंबू जैसा पीला और चिकना होता है। यह फल रेशे रहित और स्वाद में बढ़िया होते हैं। इसके फल का छिल्का दरमियाना मोटा होता है। इसके फल जुलाई के दूसरे सप्ताह में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इसकी औसतन पैदावार 100 किलो प्रति वृक्ष होती है।
 
Chausa: यह पिछेते मौसम की किस्म है। इसके फल बड़े और अंडाकार आकार के और हल्के पीले रंग के होते हैं।
 
Ambika: इसके फल मध्यम आकार के, नर्म और मजबूत छिल्का होता है। इसके फल गहरे पीले रंग के होते हैं और गहरी लाल रंग की लालिमा देते हैं। यह देरी से पकने वाली किस्म है और लगातार फल देती है।
 
Arunika: यह किस्म  Amrapali और Vanraj किस्म से तैयार की गई है। इस किस्म के फल आकर्षित हल्के लाल रंग के होते हैं।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Hybrids: Mallika, Amrapali, Ratna, Arka Arjun, Arka Puneet, Arka Anmol, Sindhu, Manjeera
 
Varieties: Alphonso, Bombay Green, Dashahari, Himsagar, Kesar, Neelum, Chausa, lucknow safeda
 

ज़मीन की तैयारी

ज़मीन की अच्छी तरह जोताई करें और फिर समतल करें। ज़मीन को इस तरह तैयार करें ताकि खेत में पानी ना खड़ा हो। ज़मीन को समतल करने के बाद एक बार फिर गहरी जोताई करके ज़मीन को अलग अलग भागों में बांट दें। फासला जगह के हिसाब से अलग-अलग होना चाहिए।

बिजाई

बिजाई का समय
पौधे अगस्त से सितंबर और फरवरी मार्च के महीने में बोये जाते हैं। पौधे हमेशा शाम को ठंडे समय में बोयें। फसल को तेज हवा से बचाएं।
 
फासला
कलमी किस्मों के लिए 10 मीटर x 10 मीटर फासले का प्रयोग करें और मध्यम घनता की रोपाई के लिए 5 x 5 मीटर फासले का प्रयोग करें। रोपाई के लिए वर्गाकार प्रणाली का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
बिजाई से एक महीना पहले 1x1x1 मीटर के आकार के गड्ढे 10x10 मीटर के फासले पर खोदें। गड्ढों को सूर्य की रोशनी में खुला छोड़ दें। फिर इन्हें मिट्टी में 30-40 किलो रूड़ी की खाद और 1 किलो सिंगल सुपर फासफेट मिलाकर भर दें।
 
बिजाई का ढंग
बिजाई वर्गाकार और 6 भुजाओं वाले तरीके से की जा सकती है। 6 भुजाओं वाले तरीके से बिजाई करने से 15 प्रतिशत वृक्ष ज्यादा लगाए जा सकते हैं।
 

अंतर-फसलें

पौधे लगाने के बाद फूले हुए फलों को 4-5 वर्ष तक हटाते रहें, ताकि पौधे के भाग अच्छा विकास कर सकें। फलों के बनने तक यह क्रिया जारी रखें। इस क्रिया के समय अंतर फसलों को अधिक आमदन और नदीनों की रोकथाम के लिए अपनाया जा सकता है। प्याज, टमाटर, फलियां, मूली , बंद गोभी, फूल गोभी और दालों में मूंग, मसूर, छोले आदि को अंतर फसलों के तौर पर प्रयोग किया जा सकता है। आड़ू, आलू बुखारा और पपीता भी मिश्रित खेती के लिए अपनाये जा सकते हैं।

बीज

बीज की मात्रा 
10 मीटरx 10 मीटर के फासले पर प्रति एकड़ में 40 पौधे लगाए जाते हैं। जबकि मध्यम घनता की रोपाई में 160 पौधे प्रति एकड़ में लगाए जाते हैं।
 
बीज का उपचार
पौधे लगाने से पहले आम की गुठली को डाइमैथोएट के घोल में कुछ मिनट के लिए डुबोयें। यह आम की फसल को सुंडी से बचाता है। बीजों को फंगस के बुरे प्रभावों से बचाने के लिए कप्तान फंगसनाशी से उपचार करें।
 

खाद

फासफोरस को वर्ष में दो बार डालें। दूसरे शब्दों में मॉनसून के शुरू होने पर जून जुलाई के महीने में डालें और उसके बाद सितंबर अक्तूबर महीने में डालें।
 
नाइट्रोजन और पोटाश को जून - जुलाई, सितंबर - अक्तूबर, जनवरी - फरवरी और मार्च - अप्रैल में बराबर भागों में बांटकर डालें।
 
कईं बार मौसम के बदलने पर फल गिरने लगते हैं। यदि फलों को गिरना देखा जाए तो 13:00:45 10 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। मलचिंग का प्रयोग तापमान के प्रभाव को कम करता है। अच्छे फूल और उपज के लिए 00:52:34 150 ग्राम को 15 लीटर पानी में मिलाकर फूल निकलने के शुरू में 8 दिनों के अंतराल पर दो बार स्प्रे करें। यह फूल के गिरने को रोकेगा।
 

सिंचाई

सिंचाई की मात्रा और फासला मिट्टी, जलवायु और सिंचाई के स्त्रोत पर निर्भर करते हैं। नए पौधों को हल्की और बार-बार सिंचाई करें। हल्की सिंचाई हमेशा दूसरी सिंचाई से अच्छी सिद्ध होती है। गर्मियों में 5-6 दिनों के फासले पर सिंचाई करें और सर्दियों में धीरे-धीरे फासला बढ़ा कर 25-30 दिनों के फासले पर सिंचाई करें। वर्षा वाले मौसम में सिंचाई वर्षा मुताबिक करें। फल बनने के समय, पौधे के विकास के लिए 10-12 दिनों के फासले पर सिंचाई की जरूरत होती है। फरवरी के महीने में खादें डालने के बाद हल्की सिंचाई करें।

खरपतवार नियंत्रण

नयी फसल के आस-पास गोडाई करें और जड़ों में मिट्टी लगाएं। नदीनों की वृद्धि को रोकने के लिए काले रंग की प्लास्टिक की मलच का प्रयोग किया जाता है। प्रौढ़ फसल के लिए 1 मीटर x 1 मीटर आकार की काली पॉलीथीन मलच की आवश्यकता होती है जबकि 8 वर्ष या उससे ज्यादा वर्षों के लिए 2.5 मीटर x2.5 मीटर आकार के मलच की आवश्यकता होती है।

अनियमित आम का प्रबंधन
आम की नियमित फसल लेने के लिए आंखे बनने से पहलें 3 महीने पहले पैकलोबुट्राज़ोल 5-10 ग्राम प्रति मीटर कैनोपी में छिड़काव करें।
 

पौधे की देखभाल

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  • हानिकारक कीट ओर रोकथाम
मिली बग : यह फल, पत्ते, शाखाओं और तने का रस चूसकर फसल को नुकसान पहुंचाता है। इसका हमला आमतौर पर जनवरी से अप्रैल के महीने में देखा जाता है। प्रभावित हिस्से सूखे और फफूंदी से भरे दिखते हैं।
 
इसे रोकने के लिए, 25 सैं.मी. चौड़ी पॉलीथीन (400 गेज) शीट तने के आस पास लपेट दें ताकि नवंबर और दिसंबर के महीने में मिली बग के नए बच्चों को अंडों में से बाहर निकलने से रोका जा सके। यदि इसका हमला दिखे तो एसीफेट 2 ग्राम प्रति लीटर और स्पाइरोटैटरामैट 3 मि.ली. को प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
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आम का टिड्डा : इसका हमला ज्यादातर फरवरी-मार्च के महीने में, जब फूल निकलने शुरू हो जायें , तब होता है। यह फलों और पत्तों का रस चूसते हैं। प्रभावित फूल चिपचिपे हो जाते हैं और प्रभावित हिस्सों पर काले रंग की फफूंदी दिखाई देती है।
 
यदि इसका हमला दिखे तो साइपरमैथरिन 25 ई सी 3 मि.ली. या डैलटामैथरिन 28 ई सी 9 मि.ली. या फैनवैलारेट 20 ई सी 5 मि.ली. या नींबीसाइडिन 1000 पी पी एम 20 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिलाकर पूरे वृक्ष पर स्प्रे करें।
 
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फल की मक्खी : यह आम की एक गंभीर मक्खी है। मादा मक्खियां फल के ऊपरले छिल्के पर अंडे देती हैं। बाद में यह कीड़े फलों के गुद्दे को खाते हैं जिससे फल सड़ना शुरू हो जाता है और झड़ जाता है।
 
प्रभावित फलों को खेत से दूर ले जाकर नष्ट कर दें। फल बनने के बाद, मिथाइल इंजेनोल 0.1 प्रतिशत के 100 मि.ली. के रासायनिक घोल के जाल लटका दें। मई महीने में क्लोरपाइरीफॉस 20 ई सी 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे 20 दिनों के फासले पर तीन बार करें।
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तना छेदक : यह आम का एक गंभीर कीड़ा है। यह वृक्ष की छाल के नीचे सुरंग बनाकर इसके टिशू खाता है, जिस कारण वृक्ष नष्ट हो जाता है। लार्वे का मल सुरंग के बाहर की ओर देखा जा सकता है।
 
 इसका हमला दिखे तो सुरंग को सख्त तार से साफ करें। फिर रूई को 50:50 के अनुपात में मिट्टी के तेल और क्लोरपाइरीफॉस में भिगोकर इसमें डालें। फिर इसे गारे से बंद कर दें।
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  • बीमारियां और रोकथाम
धब्बा रोग : फलों और फूलों के भागों पर सफेद पाउडर जैसे धब्बों का हमला देखा जा सकता है। ज्यादा गंभीर हालातों में फल या फूल झड़ने शुरू हो जाते हैं। इसके साथ साथ फल, शाखाओं और फूल के भाग शिखर से सूखने के लक्षण भी नज़र आने लगते हैं।
 
फूल निकलने से पहले, फूल निकलने के समय और फलों के गुच्छे बनने के बाद, 1.25 किलो घुलनशील सल्फर को 500 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। जरूरत पड़ने पर 10-15 दिनों के बाद दोबारा स्प्रे करें। यदि खेत में इसका हमला दिखे तो 178 प्रतिशत इमीडाक्लोप्रिड 3 मि.ली. को हैक्साकोनाज़ोल 10 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर या ट्राइमॉर्फ 5 मि.ली. या कार्बेनडाज़िम 20 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
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एंथ्राक्नोस :  शाखाओं पर गहरे-भूरे या काले धब्बे नज़र आते हैं। फलों पर भी छोटे, उभरे हुए, गहरे दाग दिखाई देते हैं।
 
इसकी रोकथाम के लिए प्रभावित हिस्सों को काट दें और कटे हिस्से पर बोर्डो पेस्ट लगाएं। बोर्डिऑक्स मिश्रण 10 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। यदि खेत में इसका हमला दिखे तो कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 30 ग्राम प्रति 10 लीटर की स्प्रे प्रभावित वृक्ष पर करें। यदि नए फूल पर एंथ्राक्नोस का हमला दिखे तो थायोफोनेट मिथाइल 10 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 10 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी की स्प्रे करें।
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ब्लैक टिप : फल पकने से पहले असाधारण तरीके से शिखरों पर से लंबे हो जाते हैं।
 
फूल निकलने से पहले और निकलने के समय, बोरैक्स 6 ग्राम प्रति लीटर पानी + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे तीन बार 10-15 दिनों के फासले पर करें।

फसल की कटाई

फल का रंग बदलना फल पकने की निशानी है। फल का गुच्छा पकने के लिए आमतौर पर 15-16 सप्ताह का समय लेता है। सीढ़ी या बांस (जिस पर तीखा चाकू लगा हो) की मदद से पके हुए फल तोड़े और पके फलों को इक्ट्ठा करने के लिए एक जाल भी लगाएं। पके फलों को आकार  और रंग के आधार पर छांटे और बक्सों में पैक करें। तुड़ाई के बाद पॉलीनैट पर फलों के ऊपरी  भाग को नीचे की तरफ करके रखें।

कटाई के बाद

कटाई के बाद फलों को पानी में डुबोयें। कच्चे फल, जो पानी के ऊपर तैरते दिखाई दें, को हटा  दें। इसके बाद 25 ग्राम नमक को प्रति लीटर पानी में मिलाकर फलों को डुबोदें। जो फल पानी पर तैरते हैं, उन्हें निर्यात के लिए प्रयोग करें। फूड एडल्ट्रेशन एक्ट (1954) के अनुसार, यदि कोई फलों को कार्बाइड गैस का प्रयोग करके पकाता है, तो इसे जुर्म माना जाता है। फलों को सही ढंग से पकाने के लिए 100 किलो फलों को 100 लीटर पानी,जिसमें (62.5मि.ली.-187.5मि.ली.) एथ्रेल 52+ 2 डिगरी सैल्सियस में 5 मिनट के लिए तुड़ाई के बाद 4-8 दिनों के बीच-बीच डुबोयें। फल की मक्खी की होंद को चैक करने के लिए भी एच टी (वेपर हीट ट्रीटमैंट) जरूरी है। इस क्रिया के लिए 3 दिन पहले तोड़े फलों का प्रयोग करें।