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आम जानकारी

लूसर्न को उत्तर भारत में अल्फालफा और रिजिका के नाम से भी जाना जाता है। यह हरे चारे की प्रोटीन युक्त फसल है। इसे चारे की रानी भी कहा जाता है। यह एक सदाबहार किस्म है जो कि 3-4 वर्ष तक लगातार हरे चारे की पूर्ति करती है। प्रोटीन के साथ साथ इसमें कैल्शियम और तत्व उच्च मात्रा में होते हैं। इस हरे चारे की फसल में 16-25 प्रतिशत प्रोटीन और 20-30 प्रतिशत रेशा होता है। लूसर्न का मूल स्थान दक्षिण पश्चिम एशिया है। यह एक लैग्यूमिअंस प्रजाति की फसल है जो कि सूखे को सहनेयोग्य है। इसे पशुओं के चारे और सूखी घास के लिए आसानी से तैयार किया जा सकता है। यह सर्द ऋतु की फसल है और मुख्य रूप से गुजरात, मध्य प्रदेश, महांराष्ट्र और राज्यस्थान में उगाई जाती है। एक ऋतु में इसकी 7-8 बार कटाई की जा सकती है। इसकी हरे चारे की औसतन पैदावार 28 से 32 टन प्रति एकड़ होती है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    15-32°C
  • Season

    Rainfall

    350-400mm
    400-500mm
  • Season

    Sowing Temperature

    28-32°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20°C
  • Season

    Temperature

    15-32°C
  • Season

    Rainfall

    350-400mm
    400-500mm
  • Season

    Sowing Temperature

    28-32°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20°C
  • Season

    Temperature

    15-32°C
  • Season

    Rainfall

    350-400mm
    400-500mm
  • Season

    Sowing Temperature

    28-32°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20°C
  • Season

    Temperature

    15-32°C
  • Season

    Rainfall

    350-400mm
    400-500mm
  • Season

    Sowing Temperature

    28-32°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20°C

मिट्टी

इसे विभिन्न प्रकार की मिट्टी की किस्मों में उगाया जा सकता है पर यह गहरी और अच्छे जल निकास वाली दोमट मिट्टी में अच्छी पैदावार देती है। जल जमाव, खारी और भारी मिट्टी में इसकी खेती करने से परहेज़ करें।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

LL composite 5: यह एक तेजी से उगने वाली लंबी वार्षिक किस्म है जिसके गहरे, चौड़े हरे रंग के पत्ते होते हैं और जामुनी फूल होते हैं। इस किस्म के बीज मोटे होते हैं यह पत्तों के धब्बे रोग की प्रतिरोधक है। इसकी औसतन पैदावार 280 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Sirsa 8: यह हरे चारे की किस्म सिरसा (हरियाणा) रिसर्च स्टेशन द्वारा विकसित की गई है। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश राज्य इसकी खेती के लिए अनुकूल हैं। इसकी औसतन पैदावार 140-160 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Lucerne No 9L: यह किस्म पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, लुधियाणा द्वारा विकसित की गई हैं यह हरे चारे की जल्दी बढ़ने वाली किस्म है। इस किस्म की एक बार में 5-7 बार कटाई की जा सकती है। इसकी हरे चारे की औसतन पैदावार 300 क्विंटल प्रति एकड वार्षिक़ होती है।
 
Chetak S 244: यह किस्म पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और गुजरात राज्यों में खेती करने के लिए अनुकूल है। इसकी औसतन पैदावार 560 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
T9: यह किस्म पूरे देश में खेती करने के लिए अनुकूल है। इसकी औसतन पैदावर 320-360 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Rambler: यह किस्म पहाड़ी इलाकों में उगाने के अनुकूल है। इसकी औसतन पैदावार 240-360 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
LL composit 3: यह किस्म पूरे देश में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह पत्तों के धब्बा रोग और तना टूटने की प्रतिरोधक किस्म है। इस किस्म की औसतन पैदावार 156 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
IGFRI S 54, IGFRI S 244, Moopa, IGFRI S 112
 

बिजाई

बिजाई का समय
लूसर्न उगाने के लिए मध्य अक्तूबर से शुरूआती नवंबर का समय उपयुक्त होता है। शीतोष्ण क्षेत्रों में बिजाई मार्च महीने में पूरी कर लें।
 
फासला
बिजाई के समय कतार से कतार में 30 सैं.मी. का फासला रखें। 
 
बीज की गहराई
बीज को 2-4 सैं.मी. की गहराई पर बोयें।
 
बिजाई का ढंग
बिजाई के लिए सीड ड्रिल का प्रयोग करें। लूसर्न की बिजाई से पहले 15 किलो जई का प्रति एकड़ में बुरकाव करें और इसे कल्टीवेटर की सहायता से मिट्टी में अच्छी तरह मिलायें।
 

बीज

बीज का मात्रा
यदि बुरकाव विधि का प्रयोग करते हैं तो एक एकड़ खेत के लिए 8 से 10 किलो बीज की आवश्यकता होती है। बीजों को जब कतारों में बोया जाता है, तो 5 से 6 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
18-22 200-250 Apply if deficiency observed

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
8-10 32-40

-

 

बिजाई के समय नाइट्रोजन 8-10 किलो (यूरिया 18-22 किलो), फासफोरस 32-40 किलो (एस एस पी 200-250 किलो) प्रति एकड़ डालें।

 

 

खरपतवार नियंत्रण

खेत को नदीन मुक्त रखने के लिए बिजाई के एक महीने बाद पहली गोडाई करें। बारिश के मौसम में नदीनों की संख्या ज्यादा होती है। उस समय नदीनों की तीव्रता के आधार पर गोडाई करें। नदीनों की रासायनिक रोकथाम के लिए ट्राइफ्लुरालिन 1 लीटर को बिजाई से पहले प्रति एकड़ में डालें।

सिंचाई

बीजों के अच्छे अंकुरण के लिए बिजाई से पहले सिंचाई करें। शुरूआती अवस्था में सप्ताह के अंतराल पर लगातार सिंचाई करें। पौधे के व्यवस्थित होने के बाद मिट्टी की किस्म और जलवायु के आधार पर, सर्दियों में 15-30 दिनों के अंतराल पर और गर्मियों में 10-12 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। बारिश के मौसम के दौरान सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। बारिश के मौसम में पानी के निकास का उचित प्रबंध करें। मिट्टी में जल जमाव की स्थिति ना होने दें।

पौधे की देखभाल

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  • हानिकारक कीट और रोकथाम
चेपा : यह लूसर्न की फसल का गंभीर कीड़ा है यदि इसका हमला दिखे तो मैलाथियॉन  50 ई सी 250 मि.ली को 100 लीटर पानी में डालकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 
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सुंडी, तेला और कीट : यदि इसका हमला दिखे तो हैक्साविन 50 डब्लयु पी 450 ग्राम और मैलाथियॉन 50 ई सी 400 मि.ली. को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ स्प्रे में करें।
 
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  • बीमारियां और रोकथाम
कुंगी : इस रोग को यदि समय पर ना रोका जाए तो यह पैदावार का बहुत नुकसान कर सकती है। इससे पत्तों पर छोटे भूरे रंग के धब्बे और मध्य में काले और भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। यदि इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब (डाइथेन एम 45) 25 ग्राम को 10 लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।
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पत्तों पर धब्बे : यह ज्यादातर उत्तर और केंद्रीय भारत में पाया जाता है। इससे प्रभावित पौधे पीले पड़ जाते हैं और पत्ते गिर जाते हैं।

यदि इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब (डाइथेन एम 45) या क्लोरोथैलोनिल 10 ग्राम को 10 लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।

फसल की कटाई

बिजाई के 75 दिनों के बाद फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है और बाकी की कटाई 30-40 दिनों के अंतराल पर करें।

कटाई के बाद

बीज उत्पादन के लिए फसल की कटाई मार्च के मध्य में करनी चाहिए। जब फूल पूरी तरह विकसित हो जाएं तो सिंचाई बंद कर देनी चाहिए इससे अच्छी उपज में सहायता मिलती है। जब फली पूरी तरह सूख जाये तो तुरंत कटाई करें ताकि फलियों को झड़ने से रोका जा सके। एक एकड़ में 75-100 किलोग्राम बीज प्राप्त किए जा सकते हैं।