जूट की फसल के बारे में जानकारी

आम जानकारी

जूट भारत की, विशेषकर पूर्वी भारत की महत्तवपूर्ण नकदी फसल है। इसका कच्चे फाइबर के साथ-साथ उत्पादों के रूप में भी निर्यात किया जाता है। विश्व में भारत और बांग्लादेश मुख्य जूट उत्पादक देश हैं। पश्चिम बंगाल, आसाम, उत्तरी बिहार, दक्षिण पूर्वी उड़ीसा, त्रिपुरा और पूर्वी उत्तर प्रदेश मुख्य जूट उगाने वाले क्षेत्र हैं। जूट फाइबर का उपयोग टाट, बोरी और कालीन निर्माण के लिए किया जाता है। इसे चटाई, तिरपाल, रस्सी और डोरी आदि बनाने के लिए भी किया जाता है। जूट के पत्तों को पकाया जाता है और सब्जी के तौर पर खाया जाता है।
उत्तर प्रदेश में, तराई क्षेत्र की जलोढ़ मिट्टी में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जाती है।
 

जलवायु

  • Season

    Temperature

    34°C (max)
    15°C (min)
  • Season

    Rainfall

    2500mm
  • Season

    Temperature

    34°C (max)
    15°C (min)
  • Season

    Rainfall

    2500mm

मिट्टी

जूट की खेती, मिट्टी की सभी किस्मों- चिकनी से दोमट मिट्टी में की जा सकती है, पर यह दोमट जलोढ़ मिट्टी में उगाने पर अच्छे परिणाम देती है। लेटेराइट और बजरी वाली मिट्टी इसकी फसल के लिए उपयुक्त नहीं होती। यह मिट्टी की पी एच 5.0-7.4 को सहन कर सकती है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Capsularis: इसे सफेद जूट के रूप में भी जाना जाता है। इसकी पत्तियों का स्वाद कड़वा होता है। बिजाई के लिए फरवरी मार्च का समय उपयुक्त होता है। इसमें निम्नलिखित किस्में निहित होती हैं।
 
J.R.C 321: यह जल्दी पकने वाली किस्म है और निचले क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी बिजाई के लिए फरवरी से मार्च का समय उपयुक्त होता है।
 
J.R.C 212: यह किस्म मध्यम से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है। इसकी बिजाई के लिए मार्च से अप्रैल का महीना उपयुक्त होता है। यह किस्म पिछेती बिजाई के लिए उपयुक्त है।
 
U.P.C 94 (Reshma): यह किस्म निचले क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी बिजाई के लिए फरवरी के तीसरे सप्ताह से 15 मार्च का समय उपयुक्त होता है।
 
J.R.C 698: यह किस्म निचले क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी बिजाई मार्च के अंत में की जा सकती है।
 
N.D.C (Ankit): यह किस्म निचले क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी बिजाई के लिए 15 फरवरी से 15 मार्च का समय उपयुक्त होता है। यह किस्म पूरे भारत में खेती के लिए उपयुक्त है।
 
N.D.C 9102: यह किस्म पूर्वी उत्तर प्रदेश में खेती के लिए उपयुक्त है।
 
Olitorius: इसे Tossa जूट भी कहा जाता है। यह किस्म जल जमाव की स्थिति में खड़ी नहीं रह सकती है। इसका फाइबर उच्च गुणवत्ता का होता है और Capsularis से अच्छा होता है।
 
J.R.O 632: यह किस्म पिछेती बिजाई के लिए और उच्च भूमि क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। यह अधिक उपज देती है और इसका फाइबर उच्च गुणवत्ता वाला होता है। इसकी बिजाई के लिए अप्रैल का महीना और मई का आखिरी
सप्ताह उपयुक्त होता है।
 
J.R.O 878: इस किस्म की खेती हर तरह की मिट्टी में की जा सकती है। इसकी बिजाई के लिए मध्य मार्च से अंत मई का समय उपयुक्त होता है।
 
J.R.O 7835: यह अधिक उपज वाली किस्म है।
 
J.R.O 524 : यह किस्म 120-140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
 
J.R.O 66: इस किस्म की बिजाई के लिए मई जून का महीना उपयुक्त होता है। यह अधिक उपज वाली किस्म है और 100 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
RC 7447, D 154, JRC 1108, JRO 620, and C.G
 

 

ज़मीन की तैयारी

ज़मीन की अच्छे से और मिट्टी के भुरभुरा होने तक जोताई करें। जोताई के बाद मिट्टी को नदीन और रोड़ियों रहित बनाएं। उसके बाद मिट्टी को अच्छे से समतल करें। खेत की तैयारी के समय 2-4 टन गाय का गला हुआ गोबर प्रति एकड़ में डालें।

बिजाई

बिजाई का समय
Capsularis किस्मों के लिए बिजाई फरवरी से मार्च में पूरी कर लें। जबकि Olitorius किस्मों के लिए अंत अप्रैल से अंत मई का समय जूट की बिजाई के लिए उपयुक्त होता है।
 
फासला
कतार से कतार में 30 सैं.मी. और पौधे से पौधे में 5-7 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें। 
 
बीज की गहराई
बीजों को ज्यादा गहराई में ना बोयें। 2-3 सैं.मी. की गहराई पर बीजों को बोयें।
 
बिजाई का ढंग
बिजाई के लिए बुरकाव विधि का प्रयोग करें या गड्ढा खोदकर बिजाई करें।
 

बीज

बीज की मात्रा
Capsularis किस्मों के लिए 3-4 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें और Olitorius किस्मों के लिए 2-3 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें। जब बिजाई बुरकाव विधि द्वारा की जाये तो एक एकड़ में 3.5-4 किलो बीजों की आवश्यकता होती है।
 
बीज का उपचार
बीजों को मिट्टी से पैदा होने वाले कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए थीरम 3 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें।
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

  UREA SSP MOP
Capsularis 
53 75 20
Olitorius
36 50 14

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

  NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
Capsularis 24 12 12
Olitorius 16 8 8

 

Capsularis किस्मों के लिए नाइट्रोजन 24 किलो (यूरिया 53 किलो), फासफोरसम 12 किलो (एस एस पी 75 किलो) और पोटाश 12 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 20 किलो) प्रति एकड़ में डालें।
 
Olitorius किस्मों के लिए नाइट्रोजन 16 किलो (यूरिया 36 किलो), फासफोरसम 8 किलो (एस एस पी 50 किलो) और पोटाश 8 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 14 किलो) प्रति एकड़ में डालें।
 
नाइट्रोजन, फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बिजाई से पहले डालें।
 

 

 

खरपतवार नियंत्रण

खेत को साफ और नदीन रहित करने के लिए गोडाई और छंटाई की प्रक्रिया करें। बिजाई के 20-25 दिन बाद गोडाई करें। इसके साथ ही छंटाई की प्रक्रिया (कमज़ोर पौधों को निकालना) भी पूरी कर दें और पौधे से पौधे में 5-7 सैं.मी. का फासला बनायें, रासायनिक तरीके से नदीनों की रोकथाम के लिए फ्लूक्लोरालिन 1-1.5 किलो या पैंडीमैथालीन 1.3 लीटर को बिजाई के दो तीन दिन बाद प्रति एकड़ में डालें।
खड़ी हुई फसल में नदीनों को रोकने के लिए बिजाई के 20-25 दिनों के बाद क्विज़लोफॉप इथाइल 0.4 किलो की प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 

सिंचाई

बीजों के अच्छे अंकुरण के लिए मिट्टी में पर्याप्त नमी की आवश्यकता होती है। यदि मिट्टी में नमी मौजूद ना हो तो बिजाई से पहले सिंचाई करें। बिजाई के बाद 20 दिनों के अंतराल पर दो से तीन सिंचाई करें। अंकुरण और फसल का घुटने के कद के होने की अवस्थाएं सिंचाई के लिए गंभीर होती हैं। इन अवस्थाओं पर पर्याप्त सिंचाई करें। यह फसल जल जमाव और सूखे की स्थितियों के प्रति संवेदनशील होती हैं। बारिश के मौसम में खेत में पानी ना खड़ा होने दें। खेत में पानी के निकास का उचित प्रबंध करें।

पौधे की देखभाल

  • हानिकारक कीट और रोकथाम
जूट की सुंडी : इस कीट से पिछेती बिजाई की फसलें ज्यादा प्रभावित होती हैं।
यदि इसका हमला दिखे तो कार्बरील 500-800 ग्राम या क्लोरपाइरीफॉस 200 मि.ली. या साइपरमैथरीन 25 प्रतिशत ई सी 80 मि.ली. या फैनवेलरेट 20 प्रतिशत ई सी 100 मि.ली. को प्रति 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यदि जरूरत पड़े तो 15 दिनों के अंतराल पर दूसरी स्प्रे करें।
 

तने की भुंडी या पीली जूं या बालों वाली सुंडी : यदि इनका हमला दिखे तो क्लोरपाइरीफॉस 200 मि.ली. या साइपरमैथरीन 25 प्रतिशत ई सी 80 मि.ली. या फैनवेलरेट 20 प्रतिशत ई सी 100 मि.ली. को प्रति 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यदि जरूरत पड़े तो  15 दिनों के अंतराल पर दूसरी स्प्रे करें।

  • बीमारियां और रोकथाम
तना गलन या जड़ गलन : इसकी प्रभावित रोकथाम के लिए कार्बेनडाज़िम 3 ग्राम या मैनकोजेब 5 ग्राम या टी विराइड 10 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। 
यदि इसका हमला खेत में दिखे तो कार्बेनडाज़िम 300 ग्राम को 100 लीटर पानी में मिलाकर खड़ी फसल पर स्प्रे करें।
 

 

पत्तों पर सफेद धब्बे : यदि इसका हमला दिखे तो सल्फर पाउडर 6 किलो का प्रति एकड़ में छिड़काव करें।

फसल की कटाई

अच्छी गुणवत्ता वाला फाइबर प्राप्त करने के लिए फसल की कटाई बिजाई के 100-120 दिनों के बाद करें। कटाई का उचित समय होना आवश्यक है। ज्यादा जल्दी और ज्यादा देरी से कटाई फाइबर की गुणवत्ता को प्रभावित करेगी। पौधे को ज़मीन स्तर से काटें जबकि बाढ़ वाले क्षेत्रों में, फसल को खेत में से उखाड़ लें। कटाई के बाद पौधों को दो से तीन दिनों के लिए खेत में ही रखें ताकि पत्ते सूख जाएं। उसके बाद पौधों को बंडलों में बांध लें।

कटाई के बाद

अच्छी गुणवत्ता वाला फाइबर प्राप्त करने के लिए रैट्टिंग की प्रक्रिया महत्तवपूर्ण होती है। जूट के बंडलों को 60 सैं.मी. पानी में रखें। उसके बाद इन्हें पानी वाले नदीनों से ढक दें और इसके ऊपर भारी पत्थर रखें। ध्यान रखें कि यह तालाब के निचले भाग को ना छुएं। रैट्टिंग के लिए 15-20 दिन लगते हैं और उसके बाद जूट, फाइबर निकालने के लिए तैयार हो जाता है। रैट्टिंग की तेजी को बढ़ाने के लिए बैक्टीरियल घोल का प्रयोग किया जाता है। इससे अच्छी गुणवत्ता वाला फाइबर प्राप्त होता है।