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आम जानकारी

चुकंदर को गार्डन बीट के रूप में भी जाना जाता है। यह स्वाद में मीठा होता है और इसमें एंटीऑक्सीडेंट होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए अच्छे होते हैं। इसके औषधीय विशेषताएं भी हैं जैसे इसका उपयोग कैंसर और दिल की बीमारियों के उपचार के लिए किया जाता है। इसे आसानी से उगाया जा सकता है और यह भारत में सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली पहली 10 सब्जियों में से एक है।

मिट्टी

चुकंदर के लिए दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है। मिट्टी की पी एच 9.5 होनी चाहिए। इस फसल को सामान्य मिट्टी में भी उगाया जा सकता है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Detroit Dark Red: यह किस्म छोटी होती है। इसके पत्ते चमकदार होते हैं। जड़ें गोल और छिल्का गहरे लाल रंग का होता है। यह किस्म 80-100 दिनों में पुटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 60-80 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Crimson Globe: यह किस्म मध्यम आकार की होती है। इसके पत्ते चमकदार हरे रंग के होते हैं। इसकी जड़ें मध्यम और छिल्का लाल रंग का होता है। इसकी औसतन पैदावार 80 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Shubhra: यह किस्म स्वीडन देश में विकसित की गई है। इसमें सुक्रॉस की मात्रा 18 प्रतिशत होती है और अशुद्धा गुणांक 330 होता है। इसकी औसतन पैदावार 56-62 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इस किस्म में पत्तों के धब्बा रोग होने की संभावना काफी कम होती है।
 
Magna Poly: यह किस्म डेनमार्क देश में विकसित की गई है जो कि 56-62 क्विंटल प्रति एकड़ औसतन पैदावार देती है। इसमें सुक्रॉस की मात्रा 14-16 प्रतिशत होती है और अशुद्धता गुणांक 880 होता है।
 
Tribal: यह चुकंदर की विदेशी किस्म है जो कि 40 क्विंटल प्रति एकड़ औसतन पैदावार देती है। इसमें सुक्रॉस की मात्रा 14-16 प्रतिशत होती है और इसमें अशुद्धता गुणांक 1178 होता है।
 
IISR Compost: यह किस्म लखनऊ केंद्र द्वारा जारी की गई है। इसकी औसतन पैदावार 37-40 क्विंटल प्रति एकड़ देती है। इसमें सुक्रॉस की मात्रा 14-18 प्रतिशत होती है और अशुद्धता गुणांक 790 होता है।
 
Romanskaya: यह किस्म रूस द्वारा जारी की गई है। यह किस्म 140-150 दिनों में तैयार हो जाती है और 60-76 क्विंटल प्रति एकड़ औसतन पैदावार देती है। इसमें 14-16 प्रतिशत सुक्रॉस की मात्रा होती है और अशुद्धता गुणांक 1180 होता है।
 

ज़मीन की तैयारी

खेत में 3-4 बार हैरो से जोताई करें। बीज के अच्छे उत्पादन के लिए, ज़मीन को अच्छे से तैयार करें और उसमें उपयुक्त नमी बनाये रखें। आखिरी जोताई से पहले, ज़मीन को कुतरा सुंडी, दीमक और अन्य कीटों से बचाने के लिए क्विनलफॉस 250 मि.ली. प्रति एकड़ से ज़मीन का उपचार करें।

बिजाई

बिजाई का समय
मैदानी क्षेत्रों में, बिजाई के लिए सितंबर से नवंबर का समय उपयुक्त होता है। पहाड़ी क्षेत्रों में, फरवरी से अप्रैल और जून से सितंबर का महीना चुकंदर की खेती के लिए उपयुक्त होता है।
 
फासला
जब बिजाई मेंड़ों पर की जाती है तो कतारों में 35-45 सैं.मी. और समतल बैड के लिए 30-40 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें। पौधे से पौधे में 10-15 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें। 
 
बीज की गहराई
बीज को 3 सैं.मी. की गहराई पर बोयें।
 
बिजाई का ढंग
बिजाई सीड ड्रिल से की जाती है।
 

बीज

बीज की मात्रा
3-3.5 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
बिजाई से पहले, कार्बेनडाज़िम 50 डब्लयू पी या थीरम 2 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। 
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
90 125 50

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
40 20 28

 

खेत की तैयारी के समय 40 क्विंटल प्रति एकड़  में गाय का गोबर प्रयोग करें। खादों की मात्रा नाइट्रोजन 40 किलो (यूरिया 90 किलो), फासफोरस 20 किलो (एस एस पी 125 किलो) और पोटाशियम 28 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 50 किलो) प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा बिजाई से पहले आखिरी जोताई के समय मिट्टी में मिलायें। इसी समय बोरैक्स पाउडर 2 किलो प्रति एकड़ में मिलायें। नाइट्रोजन की दूसरी और तीसरी मात्रा बिजाई के पांचवे और सातवें सप्ताह बाद डालें।
 

 

 

सिंचाई

चुकंदर को 6-7  सिंचाइयों द्वारा 80-100 सैं.मी. पानी की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बिजाई के 25 दिन बाद और अगली 4 सिंचाइयां 25 दिनों के अंतराल पर करें और बाकी की सिंचाइयां 20 दिनों के अंतराल पर करें।

खरपतवार नियंत्रण

अंकुरण के 25-30 दिनों के बाद पहली गोडाई करें। दूसरी गोडाई, पहली गोडाई के 15-20 दिनों के बाद करें। खरपतवार नियंत्रण के लिए, 2-3 गोडाइयों की आवश्यकता होती है।

पौधे की देखभाल

  • हानिकारक कीट और रोकथाम
सुंडी : यदि इसका हमला दिखे तो बचाव के लिए डाइमैथोएट 30 ई सी 200 मि.ली. को प्रति एकड़ में डालें।
 
भुंडी : यदि इसका हमला दिखे तो बचाव के लिए मिथाइल पैराथियॉन (2 प्रतिशत) 2.5 किलो को प्रति एकड़ में डालें।
 
चेपा और तेला : यदि इसका हमला दिखे तो बचाव के लिए क्लोरपाइरीफॉस 20 ई सी 300 मि.ली. को प्रति एकड़ में डालें।
 
  • बीमारियां और रोकथाम
आल्टरनेरिया और सरकोस्पोरा पत्तों के धब्बा रोग : यदि इसका हमला दिखे तो इस बीमारी को दूर करने के लिए मैनकोजेब 400 ग्राम को 100-130 लीटर में डालकर स्प्रे करें।
 

फसल की कटाई

इस फसल की पुटाई अंत अक्तूबर से नवंबर महीने में की जाती है। जब पत्तों की निचली सतह पीले रंग की हो जाये तब पुटाई की जाती है। पुटाई के 1-3 दिन पहले हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है।