मूंगफली फसल की जानकारी

आम जानकारी

मूंगफली विश्व की तीसरी और भारत में दूसरी सबसे महत्तवपूर्ण तेल बीज फसल है। इसे कईं ओर नामों से भी जाना जाता है जैसे इर्थनुट्स, ग्राउंडनट्स, गूबर पीस,  मौकीनट्स,  पिगमीनट्स और पिगनट्स। यह लैग्यूम परिवार से संबंधित है।  किस्म और कृषि स्थितियों के आधार पर बीजों में तेल की मात्रा 44-50 प्रतिशत होती है। इसके तेल का उपयोग खाना बनाने, कॉसमैटिक, साबुन बनाना आदि के लिए किया जाता है।
 
भारत में यह आम तौर पर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राज्यस्थान,  गुजरात,  महांराष्ट्र,  कर्नाटक,  आंध्रा प्रदेश और तामिलनाडू में उगाई जाती है। उत्तर प्रदेश में झांसी, हरदोई, सीतापुरी,खेड़ी, उन्नाव, बरेली, ईटा, मुरादाबाद और सहारनपुर मूंगफली उगाने वाले मुख्य राज्य हैं।
 

जलवायु

  • Season

    Temperature

    20°C - 30°C
  • Season

    Rainfall

    50-75 cm
  • Season

    Sowing temperature

    25°C - 35°C
  • Season

    Harvesting temperature

    18°C - 25°C
  • Season

    Temperature

    20°C - 30°C
  • Season

    Rainfall

    50-75 cm
  • Season

    Sowing temperature

    25°C - 35°C
  • Season

    Harvesting temperature

    18°C - 25°C
  • Season

    Temperature

    20°C - 30°C
  • Season

    Rainfall

    50-75 cm
  • Season

    Sowing temperature

    25°C - 35°C
  • Season

    Harvesting temperature

    18°C - 25°C
  • Season

    Temperature

    20°C - 30°C
  • Season

    Rainfall

    50-75 cm
  • Season

    Sowing temperature

    25°C - 35°C
  • Season

    Harvesting temperature

    18°C - 25°C

मिट्टी

अच्छे जल निकास और रेतली दोमट वाली ज़मीन में मूंगफली बीजी जाती है। अच्छे जल निकास वाली मिट्टी, जिसकी पी एच 6.5-7 और उपजाऊ ज़मीनों में इसकी फसल बहुत अच्छी होती है। भारी जमीनें मूंगफली के लिए अनुकूल नहीं हैं क्योंकि भारी ज़मीनों में फलियां कम भरती हैं।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Chitra: यह एक फैलने वाली किस्म है और यू पी के सभी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्म है। यह किस्म 125-130 दिनों में पुटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 10-12 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Kaushal: यह एक फैलने वाली किस्म है और यू पी के सभी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। असिंचित क्षेत्रों में यह किस्म 110-120 दिनों में पुटाई के लिए तैयार हो जाती है जबकि सिंचित क्षेत्रों में यह 115-120 दिनों में पुटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 6-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Prakash: यह एक फैलने वाली किस्म है और यू पी के सभी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 115-120 दिनों में पुटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 7-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Amber: यह एक फैलने वाली किस्म है और यू पी के सभी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 115-130 दिनों में पुटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 10-12 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
TG 37 A: यह यू पी के बुंदेलखंड क्षेत्र में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है। यह एक गुच्छे दार किस्म है। यह किस्म 100-110 दिनों में पुटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म हल्की के साथ साथ भारी मिट्टी में भी उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 7-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Utakarsh: यह एक फैलने वाली किस्म है और यू पी के सभी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 125-130 दिनों में पुटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 8-10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Divya: यह अर्द्ध फैलने वाली किस्म है, जो कि यू पी के सभी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 125-130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 10-11 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
RS 1: यह फैलने वाली किस्म है। इसके मध्यम आकार के दाने होते हैं। यह किस्म 135-140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 6-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
RSB 103-87: यह अर्द्ध फैलने वाली किस्म है, जिसकी औसतन पैदावार 7-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
RG 510 (Raj Mungphali): यह फैलने वाली किस्म है। यह 125-130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह सिंचित क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। मूंगफली मध्यम आकार और गुलाबी रंग की होती हैं। इसकी औसतन पैदावार 10-12.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
RG 425 (Raj Durga): यह अर्द्ध फैलने वाली किस्म है। यह किस्म 125-130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। मूंगफली गुलाबी और सफेद रंग की होती हैं। असिंचित हालातों में औसतन पैदावार 6-8 क्विंटल प्रति एकड़ और सिंचित क्षेत्रों में 12-14.4 क्विंटल प्रति एकड़ देती है। 
 
Girnar 2: यह अर्द्ध फैलने वाली किस्म है। यह किस्म 125-130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके बीज बड़े और हल्के भूरे रंग के होते हैं। सिंचित हालातों में इसकी औसतन पैदावार 10-12 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
TG 37 A: यह गुच्छेदार, जल्दी पकने वाली किस्म है। यह किस्म 100-110 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह हल्की के साथ साथ भारी मिट्टी में भी उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 7-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
RG 382 Durga: यह फैलने वाली किस्म है। यह 128-133 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह रेतली से दोमट मिट्टी में उगाने के लिए अनुकूल है। इसके दाने बड़े और गुलाबी रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 8.8-10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
RG 141: यह गुच्छेदार किस्म है। 125-130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके दाने बड़े होते हैं और औसतन पैदावार 4-6.4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
JL 24: यह गुच्छेदार, जल्दी पकने वाली किस्म है। यह 90 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह पानी की कमी वाले क्षेत्रों में भी जीवित रह सकती है। यह किस्म तना गलन रोग के प्रतिरोधक है। इसकी औसतन पैदावार 4-6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
RS 138: यह अर्द्ध फैलने वाली किस्म है। यह 110-116 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। दाने गहरे गुलाबी रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 6-7 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
RSV 87: यह अर्द्ध फैलने वाली किस्म है। यह 1120-130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह भारी मिट्टी में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है। इसके दाने गहरे गुलाबी रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 5.6-6.4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
GG 7: खरीफ मौसम में इस किस्म की खेती करने की सिफारिश की गई है। इसकी औसतन पैदावार 8.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
GG 21: इस किस्म के बीज गहरे और भूरे आकर्षक रंग के होते हैं। इसकी फलियों की उच्च उपज होती है। इसकी गिरियों की औसतन पैदावार 4.9 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 

ज़मीन की तैयारी

एक वर्ष के बाद उसी खेत में मूंगफली बीजने से परहेज़ करें। मूंगफली का अंतरफसली अनाज की फसलों के साथ करें।  बिजाई से पहले खेत को साफ करें और पिछली फसल के बचे कुचे को निकाल दें। 15-20 सैं.मी. की गहराई तक ज़मीन की  जोताई करें और मिट्टी को भुरभुरा बनाने के लिए अच्छी तरह जोताई करें। खेती करने के लिए हैरो और हल का प्रयोग करें। 

बिजाई

बिजाई का समय
मिट्टी से होने वाली बीमारियों से बचाव के लिए मूंगफली की बिजाई जुलाई महीने के दूसरे पखवाड़े में करें।
 
फासला
प्रयोग की जाने वाली किस्म के आधार पर फासले का प्रयोग करें। अर्द्ध फैलने वाली और फैलने वाली किस्मों के लिए कतारों में 30-45 सैं.मी. और पौधे से पौधे में 10-15 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें। ना फैलने वाली किस्मों के लिए कतारो में 30 सैं.मी. और पौधे से पौधे में 10 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
Amber, Chitra किस्मों के लिए 40 सैं.मी.x 15 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
सीड ड्रिल की सहायता से 5 सैं.मी. की गहराई में फलियों को बोयें।
 
बिजाई का ढंग
बीज को सीड ड्रिल की सहायता से बोया जाता है। मूंगफली की बिजाई के लिए इसकी बिजाई वाली मशीन भी उपलब्ध होती है।
 

बीज

बीज की मात्रा
28-30 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।  Amber and Chitra के लिए प्रति एकड़ मे 26-28 किलो बीजों की आवश्यकता होती है। जबकि Kaushal, TG 37 A, Prakash की बिजाई के लिए 35-40 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग किए जाते हैं। 
 
बीज का उपचार
बिजाई के लिए सेहतमंद और अच्छी तरह से विकसित गिरियों का प्रयोग करना चाहिए। सूखी छोटी और बीमारी वाली गिरियां बिजाई के लिए प्रयोग ना करें। मिट्टी से होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए गिरियों को 3 ग्राम थीरम या  3 ग्राम कप्तान या कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम प्रति किलो गिरियों का उपचार कर लें । रासायनिक उपचार करने के बाद बीज को 4 ग्राम टराईकोडरमा विराइड या स्यूडोमोनास फ्लूरोसैंस 10 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार कर लें । बीज उपचार जड़ गलन और तना बीमारियों से नए पौधों की सुरक्षा होती है।
 
फंगसनाशी/ कीटनाशी दवाई मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज)
Carbendazim  2 gm
Captan 3 gm
Thiram 3 gm
Mancozeb 4 gm
Chlorpyriphos 12.5 ml
 
 
 
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
18 7  

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
6 8 10

 

मिट्टी की जांच के आधार पर खादों की मात्रा डालें। मूंगफली की पूरी फसल को नाइट्रोजन 8 किलो (यूरिया 18 किलो), फासफोरस 12 किलो (एस एस पी 75 किलो) और पोटाश 18 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 30 किलो) प्रति एकड़ में डालें और जिप्सम 100 किलो और बोरेक्स 1.6 किलो प्रति एकड़ में डालें।
 
नाइट्रोजन, जिप्सम की आधी मात्रा और फासफोरस, पोटाश की पूरी मात्रा बिजाई के समय डालें। मिट्टी में 2-3 सैं.मी. की गहराई में खादें डालें।
 
नाइट्रेाजन, जिप्सम की बाकी बची मात्रा और बोरेक्स की पूरी मात्रा बिजाई के 3 सप्ताह बाद डालें।
 
सिंचित क्षेत्रों में, बिजाई से एक या दो सप्ताह पहले  जिप्सम 100 किलो प्रति एकड़ में डालें और फिर सिंचाई करें। जिप्सम से फलियों के बनने और अच्छी तरह भरने में मदद करती है।
 

 

 

फसली चक्र

जहां पर सिंचाई की सुविधाएं मौजूद हो वहां मूंगफली पिछेती खरीफ चारा/गोभी सरसों + तोरिया/आलू/मटर/तोरिया/रबी फसलों का फसली चक्र लिया जा सकता है। एक वर्ष के बाद एक ही क्षेत्र में मूंगफली की फसल ना बोयें। इसके परिणामस्वरूप मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारियां बढ़ती है।

खरपतवार नियंत्रण

अच्छी वृद्धि और अच्छी उपज के लिए पहले 45 दिनों के दौरान नदीनों की रोकथाम करनी जरूरी होती है। यदि नदीनों का नियंत्रण उचित तरीके से ना किया जाये तो उपज में लगभग 34 -60 प्रतिशत तक कमी आ सकती है। दो गोडाई करें, पहली बिजाई के तीन सप्ताह बाद और दूसरी पहली गोडाई के तीन सप्ताह बाद करें। फलियां बनने के बाद गोडाई ना करें।
 
बीज बोने से पहले फ्लूक्लोरालिन 600 मि.ली. की प्रति एकड़ में स्प्रे करें। इससे घास और चौड़े पत्तों की रोकथाम में मदद मिलेगी। नदीनों की अच्छी रोकथाम के लिए पैंडीमैथालीन 1 लीटर  की स्प्रे नदीनों के अंकुरण होने से पहले प्रति एकड़ में करें। 
 
यह एक जरूरी प्रक्रिया है, जो कि बीजने के 40-45 दिनों के बाद की जाती है। इसकी मदद से पौधे आसानी से मिट्टी में चले जाते हैं जिससे फलियों के विकास में वृद्धि होती है।
 

सिंचाई

फसल की अच्छी वृद्धि के लिए मौसमी वर्षा के आधार पर दो या तीन बार सिंचाई करनी आवश्यक है। फूल बनने, फली के विकास का समय सिंचाई के लिए नाज़ुक समय होता है। इन अवस्थाओं के समय पानी की कमी ना होने दें।

पौधे की देखभाल

चेपा
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
चेपा: इस कीड़े का हमला कम वर्षा पड़ने पर ज्यादा होता है। यह काले रंग के छोटे कीड़े पौधों का रस चूसते है, जिस कारण पौधों का विकास रुक जाता हैं और पौधा पीला दिखाई देता है| यह पौधे पर चिपचिपा पदार्थ छोड़ते हैं, जो बाद में फंगस लगने के कारण काला हो जाता है।
 
इसकी रोकथाम के लिए रोगोर 300 मि.ली. या इमीडाक्लोप्रिड 17.8% एस एल 80 मि.ली. या मिथाइल डेमेटान 25 प्रतिशत ई सी 300 मि.ली. को प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
सफेद सुंडी: इसकी भुंडी जून-जुलाई में पहले बारिश होने पर मिट्टी में से निकलती है। यह भुंडी आस पास के वृक्ष जैसे कि बेर, रूकमणजानी, अमरूद, अंगूर की बेल और बादाम आदि पर इकट्ठे होते हैं और रात को पत्तों को खाती है। यह मिट्टी में अंडे देती हैं और उनमें से निकली सफेद सुंडी मूंगफली की छोटी जड़ों या जड़ों के बालों को खा जाती हैं।
 
इसकी प्रभावशाली रोकथाम के लिए खेत की मई-जून में दो बार जोताई करें ताकि सारे कीट ज़मीन से बाहर आ जाएं। फसल की बिजाई में देरी ना करें। बिजाई से पहले क्लोरपाइरीफॉस 20 ई.सी. 12.5 मि.ली. से प्रति किलो बीजों का उपचार करें। भुंडीयों की रोकथाम के लिए कार्बरील 900 ग्राम को 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यह स्प्रे मध्य-जुलाई तक हर बारिश के बाद तक करते रहें| बिजाई के समय या उससे पहले 4 किलो फोरेट या 13 किलो कार्बोफिउरॉन प्रति एकड़ में डालें|
बालों वाली सुंडी
बालों वाली सुंडी: यह कीट ज्यादा गिनती में हमला करते हैं, जिससे पत्ते झड़ जाते हैं। इसका लार्वा लाल-भूरे रंग का होता है, जिसके शरीर पर काले रंग की धारियां और लाल रंग के बाल होते है| 
 
बारिश के तुरंत बाद 3 या 4 रोशनी कार्ड का प्रयोग करें। खेत में से अण्डों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें। सुंडियों को फैलने से रोकने के लिए प्रभावित खेत के पास 30 सैं.मी. गहरे और 25 सैं.मी. चौड़े गड्ढे खोदें। शाम के समय खेत में ज़हर की गोलियां रख दें। जहरीली गोलियां बनाने के लिए 10 किलो चावल का आटा, 1 किलो गुड़ और 1 लीटर क्विनलफॉस मिला दें। लार्वे की रोकथाम के लिए 300 मि.ली. कार्बरील या क्विनलफॉस प्रति एकड़ में डालें|  बड़ी सुंडियों की रोकथाम के लिए 200 मि.ली. डाइक्लोरवॉस 100 ई सी को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
मूंगफली के पत्तों का सुरंगी कीट

मूंगफली के पत्तों का सुरंगी कीट: इसका लार्वा पत्तों में सुराख कर के पत्तों में सुराख़ करके पत्तों पर जामुनी रंग के धब्बे बना देते हैं। कुछ समय बाद यह झुण्ड बनाकर पत्तों पर रहते हैं। यह मुड़े हुए पत्तों में रहती है। गंभीर हमले के कारण फसल झुलसी हुई दिखाई देती है| प्रति एकड़ में 5 रोशनी कार्ड का प्रयोग करें। डाइमैथोएट 30 ई.सी. 300 मि.ली. या मैलाथियॉन 50 ई.सी. 400 मि.ली. या मिथाइल  डेमेटान 25%  ई.सी. 200 मि.ली. प्रति एकड़ में डालें|

दीमक

दीमक: यह  कीट फसल की जड़ों और तने में जा कर पौधों को नष्ट करता है| यह फलियों और बीजों में सुराख़ करके नुकसान पहुंचाता है। इसके हमले से पौधा सूखना शुरू हो जाता है।

अच्छी तरह गली हुई रूड़ी की खाद का प्रयोग करें। फसल की पुटाई देर से ना करें। इसके बचाव के लिए बिजाई से पहले 6.5 मि.ली. क्लोरपाइरीफॉस से प्रति किलो बीज का उपचार करें | बिजाई से पहले विशेष खतरे वाले इलाकों में 2 लीटर क्लोरपाइरीफॉस का छिड़काव प्रति एकड़ में करें|

फली छेदक: यह छोटे पौधों में सुराख़ बना देते हैं और अपना मल छोड़ते है| इसके छोटे कीट  शुरू में सफेद रंग के होते  हैं और फिर भूरे रंग की के हो जाते हैं। 
 
प्रभावित इलाकों में मैलाथियोन 5 डी 10 किलो या कार्बोफियूरॉन 3 % सी जी 13 किलो प्रति एकड़ में मिट्टी में बिजाई से 40 दिन पहले डालें।
टीका और पत्तों के ऊपर धब्बा रोग
  • बीमारियां और रोकथाम
टीका और पत्तों के ऊपर धब्बा रोग: इसके कारण पत्तों के ऊपरी हिस्से पर गोल धब्बे पड़ जाते हैं, और आस पास हल्के पीले रंग के गोल धब्बे होते हैं।
 
इस बीमारी की रोकथाम के लिए सही बीज का चुनाव करें| सेहतमंद और बेदाग बीजों का ही प्रयोग करें। बिजाई से पहले 5 ग्राम थीरम(75%) या 3 ग्राम इंडोफिल एम-45(75%) से प्रति किलो बीज का उपचार करें। फसल के ऊपर घुलनशील सलफर 50 डब्लयू पी 500-750 ग्राम को 200-300 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। यह स्प्रे अगस्त के पहले सप्ताह में शुरू करें और 15 दिनों के फासले पर कुल 3-4 स्प्रे करें । सिंचित फसलों पर कार्बेनडाज़िम (बाविस्टिन, डीरोसोल, एग्रोज़िम) 50 डब्लयू पी 500 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिलकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। बिजाई से 40 दिन बाद 15 दिन के फासले पर 3 स्प्रे करें|
बीज गलन या जड़ गलन

बीज गलन या जड़ गलन: यह बीमारी एसपरगिलस नाइजर के कारण होती है। यह फल के निचली जड़ों वाले भाग पर हमला करती है| इससे पौधे सूख कर नष्ट हो जाते है| इसकी रोकथाम के लिए बीजों का उपचार बहुत जरूरी होता है। 3 ग्राम कप्तान या थीरम से प्रति किलो बीज का उपचार करें|

आल्टरनेरिया झुलस रोग
झुलस रोग: इससे पौधे के पत्तों पर हल्के से गहरे भूरे रंग धब्बे पड़ जाते हैं। बाद में प्रभावित पत्ते अंदर की तरफ मुड़ जाते है और भुरभुरे हो जाते है| ए. आलटरनेटा द्वारा पैदा हुए धब्बे, गोल और पानी वाले होते है, जो पत्ते की पूरी सतह पर फैल जाते है|
 
अगर इसका हमला दिखाई दें तो मैनकोजेब 3 ग्राम या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम और कार्बेन्डाज़िम 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर डालें|
कुंगी: इससे सबसे पहले पत्तों के निचली तरफ दाने बन जाते हैं। यह फूल और शिखर को छोड़कर पौधे के प्रत्येक हिस्से पर होती है। गंभीर हमले से प्रभावित पत्ते अकर्मक हो कर सूख जाते है, पर पौधे से जुड़े रहते हैं।
 
इस बीमारी का हमला दिखने पर 400 ग्राम मैनकोजेब या क्लोरोथैलोनिल 400 ग्राम या घुलनशील सल्फर 100 ग्राम प्रति एकड़ की स्प्रे करें। जरूरत पड़ने पर दूसरी स्प्रे 15 दिनों के बाद दोबारा करें।

कमी और इसका इलाज

पोटाशियम की कमी
इसकी कमी से पत्ते बढ़ते नहीं है और बे-ढंगे हो जाते है| पके हुए पत्ते पीले दिखाई देते है और नाड़ियां हरी रहती है| 
इसकी पूर्ति के लिए मिउरेट ऑफ पोटाश 16-20 किलो प्रति एकड़ में डालें।
 
कैल्शियम की कमी
यह कमी ज्यादातर हल्की या तेज़ाबी मिट्टी में पाई जाती है| इसकी कमी से पौधे पूरी तरह से नहीं विकास करते और मुड़े हुए नज़र आते है|
इसकी पूर्ति के लिए जिप्सम 200 किलो प्रति एकड़ में खूंटी बनने के समय डालें|
 
लोहे की कमी
इसकी कमी से पत्ते सफेद दिखाई देते है|
इसकी पूर्ति के लिए सल्फेट 5 ग्राम + सिटरिक एसिड 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर एक सप्ताह के फासले पर स्प्रे करें। स्प्रे तब तक जारी रखें जब तक कमी पूरी ना हो जाये।
 
जिंक की कमी
इसकी कमी से पौधे के पत्ते गुच्छों में दिखाई देते हैं, पत्तों का विकास रूक जाता है और छोटे नज़र आते हैं।
इसकी पूर्ति के लिए जिंक सल्फेट 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यह स्प्रे 7 दिनों के फासले पर 2-3 बार करें|
 
सल्फर की कमी
इसकी कमी से नए पौधों का विकास रूक जाता है और आकार में छोटे नज़र आते हैं छोटे पत्ते भी पीले हो जाते है| पौधे के पकने में देरी होती है।
इसकी पूर्ति के लिए जिप्सम 200 किलो प्रति एकड़ पर बिजाई और खूंटी बनने के समय डालें|

फसल की कटाई

खरीफ की ऋतु में बोयी फसल नवंबर महीने में पक जाती है, जब पौधे एक जैसे पीले हो जाते है और पुराने पत्ते झड़ने शुरू हो जाते है| अंत-अप्रैल से अंत-मई में बोई गयी फसल मानसून के बाद अंत-अगस्त और सितंबर में पक जाती है| सही पुटाई के लिए मिट्टी में नमी होनी चाहिए और फसल को ज्यादा पकने ना दें| जल्दी पुटाई के लिए पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी की तरफ से तैयार किये गए मूंगफली की पुटाई करने वाले यंत्र का प्रयोग करें| पुटाई की हुई फसल के छोटे-छोटे ढेरों को कुछ दिन के लिए धुप में पड़े रहने दें| इसके बाद 2-3 दिनों के लिए फसल को एक जगह पर इकट्ठा करके रोज़ाना 2-3 बार तरंगली से झाड़ते रहे, ताकि फलियों और पत्तों को पौधे से अलग किया जा सके| फलियों और पत्तों को इकट्ठा करके देर लगा दें| स्टोर करने से पहले फलियों को 4-5 दिनों के लिए धुप में सूखा लें|
 
बादलवाई वाले दिनों में फलियों को अलग करके ऐयर ड्राइयर में 27-38° सै. तापमान पर दो दिन के लिए या फलियों के गुच्छे को (6-8%) सूखने तक रहने दें|

 

कटाई के बाद

फलियों को साफ और छांटने के बाद बोरियों में भर दें और हवा के अच्छे बहाव के लिए प्रत्येक 10 बोरियों को चिनवा दें । बोरियों को गलने से बचाने के लिए बोरियों के नीचे लकड़ी के टुकड़े रख दें।
 
गिरियां तैयार करना: खानेयोग्य गिरियों को छिलके से अलग कर लें| भारत धुली हुई, भुनी हुई और सूखी हुई गिरियां तैयार करने के लिए भी जाना जाता है|