एसिडोसिस (ज्यादा अनाज खाने से) : गेहूं या जौ को ज्यादा खा जाने के कारण यह रोग होता है और यह रोग जानवर के पेट को नुकसान पहुंचाता है।
उपचार: यदि इस बीमारी के लक्षण हैं, तो इसके उपचार के लिए 10 ग्रा / भेड़ के हिसाब से सोडियम बाइकार्बोनेट की खुराक दी जाती है।
वार्षिक राइग्रास विषाक्तता (एआरजीटी) : यह बीमारी राइग्रास खाने के कारण होती है।(एआरजीटी विषैले पदार्थों के कारण होता है जो खपत करते समय जानवर के मस्तिष्क को गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं। विषाक्त पदार्थों को एक जीवाणु द्वारा उत्पादित किया जाता है जो नीमेटोड की एक प्रजाति है जो वार्षिक राइग्रास पौधों को संग्रह करता है)। संक्रमित बीज भेड़ द्वारा खाया जाता है जो कि उनके स्वास्थ्य के लिए विषैले होते हैं। इससे पशु की मृत्यु भी हो सकती है और यह मुख्य रूप से मध्य अक्तूबर से मध्य दिसंबर तक होती है।
उपचार: यदि राइग्रास आस-पास है तो, जानवरों को अलग-अलग स्थान पर ले जाएं।
पनीर ग्रंथि (चीजी ग्लैंड) : यह एक जीवाणु संक्रमण है जो फेफड़ों या लिम्फ गांठो में मवाद (पस) भरने के कारण होता है, जिससे ऊन उत्पादन घट जाता है।
उपचार: क्लोस्ट्रीडियल दवा का टीकाकरण इस रोग को ठीक करने के लिए दिया जाता है।
कोबाल्ट की कमी : भेड़ में बी12 की कमी के कारण यह रोग मुख्य रूप से होता है।
उपचार: जब इस बीमारी के लक्षण दिखाई दें तो जल्द से जल्द विटामिन बी12 का इंजेक्शन दें।
कुकड़िया रोग (क्योकिडीओसिस) : यह एक परजीवी बीमारी है, जो एक जानवर से दूसरे जानवर तक फैलती है। दस्त (डायरिया) इस रोग का मुख्य लक्षण है जिसके साथ खून भी आ सकता है)। यह परजीवी रोग है जो भेड़ की आंतों की दीवार को नुकसान पहुंचाता है। इससे भेड़ की मृत्यु भी हो सकती है।
उपचार: सल्फा दवाओं दो खुराक ड्रेंचिंग द्वारा 3 दिनों के अंतराल पर दी जाती हैं या इंजेक्शन दिया जाता है।
कॉपर की कमी : यह तांबे की कमी के कारण होता है और इससे भेड़ों में असमान्यतायें हो जाती हैं।
उपचार: इसका इलाज करने के लिए कॉपर ऑक्साइड या कॉपर ग्लाइसीनेट के इंजेक्शन या कैप्सूल दिए जाते हैं।
डर्माटोफिलोसिस (डर्मो या लुम्पी ऊन) : मुख्य रूप से मैरिनो भेड़ इस रोग से पीड़ित होती हैं। संक्रमण गैर-ऊनी क्षेत्रों पर देखा जा सकता है।
उपचार: एंटीबायोटिक से डर्माटोफिलोसिस रोग का इलाज किया जाता है।
एक्सपोजर लोस्स : यह मुख्य रूप से भेड़ों के बाल काटने के 2 सप्ताह के भीतर होता है क्योंकि भेड़ गर्मी के कारण सामान्य तापमान को बनाए रखने में असमर्थ होते हैं।
उपचार: भेड़ों को मौसम बदलाव से बचा कर रखें।
पैर पर फोड़ा होना : यह रोग मुख्य रूप से बरसात के मौसम में होता है। बैक्टीरिया का संक्रमण पैर के अंगों को संक्रमित करता है।
उपचार: फोड़े से छुटकारा पाने के लिए पैर को एंटीबायोटिक उपचार दिया जाता है|
लिस्टरियोसिस (सर्कलिंग रोग) : यह एक मस्तिष्क जीवाणु संक्रमण है जो जानवरों और मनुष्य दोनों को प्रभावित करता है। झुंड में खराब घास खाने के कारण यह रोग होता है।
उपचार: पशु चिकित्सक द्वारा एंटीबायोटिक उपचार करवाया जाता है।
गुलाबी आँख : यह मुख्य रूप से आसपास का वातावरण प्रदूषित होने के कारण होता है।
उपचार: गुलाबी आँख से छुटकारा पाने के लिए एंटीबायोटिक स्प्रे या पाउडर दिया जाता है।
थनो की बीमारी (मैस्टाइटिस) : इस बीमारी में पशु के थन बड़े हो जाते हैं और सूज जाते हैं, दूध पानी बन जाता है और दूध आना कम हो जाता है।