उत्तर प्रदेश में मक्का (रबी) फसल की जानकारी

आम जानकारी

मक्की को ‘अनाज की रानी’ के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि बाकी फसलों के मुकाबले इसकी पैदावार सब से ज्यादा है। इससे भोजन पदार्थ भी तैयार किए जाते हैं जैसे कि स्टार्च, कॉर्न फ्लैक्स और गुलूकोज़ आदि। इसे पोल्टरी में पशुओं के खुराक के तौर पर भी प्रयोग किया जाता है। मक्की की खेती किसी भी तरह की मिट्टी में की जा सकती है क्योंकि इसे कम उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है।
 
इस फसल को कच्चे माल के तौर पर उद्योगिक उत्पादों जैसे कि तेल, स्टार्च, शराब आदि में प्रयोग किया जाता है। मक्की की फसल उगाने वाले मुख्य राज्य उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और पंजाब हैं। दक्षिण में आंध्रा प्रदेश और कर्नाटक मुख्य मक्की उत्पादक राज्य हैं। उत्तर प्रदेश में मैनपुर, बहराइच, बुलंदशहर, मेरठ, गोंडा, फारूखाबाद, जौनपुर, और एटा मुख्य मक्का उत्पादक क्षेत्र हैं।
 

जलवायु

  • Season

    Temperature

    18°- 32°C
  • Season

    Rainfall

    50-100 cm
  • Season

    Sowing temperature

    12-15°C
  • Season

    Harvesting temperature

    21-27°C
  • Season

    Temperature

    18°- 32°C
  • Season

    Rainfall

    50-100 cm
  • Season

    Sowing temperature

    12-15°C
  • Season

    Harvesting temperature

    21-27°C
  • Season

    Temperature

    18°- 32°C
  • Season

    Rainfall

    50-100 cm
  • Season

    Sowing temperature

    12-15°C
  • Season

    Harvesting temperature

    21-27°C
  • Season

    Temperature

    18°- 32°C
  • Season

    Rainfall

    50-100 cm
  • Season

    Sowing temperature

    12-15°C
  • Season

    Harvesting temperature

    21-27°C

मिट्टी

इसे मिट्टी की व्यापक किस्मों जैसे दोमट रेतली से चिकनी दोमट मिट्टी में उगाया जा सकता है। मक्की की खेती के लिए अच्छे निकास वाली, उपजाऊ रेतली दोमट से गारी दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। अच्छी उपज के लिए उच्च जैविक पदार्थ युक्त मिट्टी, जिसमें पानी सोखने की क्षमता अच्छी हो, की आवश्यकता होती है। मिट्टी की पी एच 5.5-7.5 होनी चाहिए। भारी चिकनी मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती।

मिट्टी में किसी भी तत्व की कमी जानने के लिए मिट्टी की जांच जरूर करवायें।
 

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Ganga 2: यह हाइब्रिड किस्म 100-105 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह मैदानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 14-16 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके दाने सफेद रंग के होते हैं।
 
Ganga-II: यह हाइब्रिड किस्म 100-110 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह मैदानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 16 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके दाने पीले रंग के होते हैं।
 
Tarun: यह कंपोज़िट किस्म 80-85 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह पूरे उत्तर प्रदेश में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 14-16 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Naveen: यह कंपोज़िट किस्म 80-85 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह पूरे उत्तर प्रदेश में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 14-16 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Kanchan: यह कंपोज़िट किस्म 75-80 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह पूरे उत्तर प्रदेश में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 14-16 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Shweta: यह कंपोज़िट किस्म 80-85 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह पूरे उत्तर प्रदेश में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 14-16 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
D-765: यह कंपोज़िट किस्म 75 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह पूरे उत्तर प्रदेश में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 12-14 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Surya: यह कंपोज़िट किस्म 75 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह पूरे उत्तर प्रदेश में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 12-14 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Novjyoti: यह कंपोज़िट किस्म 75 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 16 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Mahi kanchan: यह कंपोज़िट किस्म 80-85 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह पूरे उत्तर प्रदेश में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 16-18 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Merut Yellow: यह स्थानीय किस्म 75-80 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह उत्तर प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 8-10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Jaunpuri: यह स्थानीय किस्म 70-75 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह उत्तर प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 8-10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Sartaj: यह स्थानीय किस्म 100-110 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह उत्तर प्रदेश के सभी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 18-20 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Prakash: यह स्थानीय किस्म 85-90 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह उत्तर प्रदेश के सभी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 18-20 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Deccan- 107: यह स्थानीय किस्म 85-90 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह उत्तर प्रदेश के सभी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 18-20 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Prabhat: यह स्थानीय किस्म 100-110 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह उत्तर प्रदेश के सभी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 16-18 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Gaurav: यह स्थानीय किस्म 80-85 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह उत्तर प्रदेश के केंद्रीय क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 16-18 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Madhuri and Priya: ये खरीफ मौसम के साथ साथ रबी के मौसम में उगाने के लिए उपयुक्त है। रबी के मौसम में ये किस्में 80-85 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
 
P3522, P1864, KMH-25K45 (Bumper), CoH 8, Bio 9544, KMH 3712.
 

ज़मीन की तैयारी

खेती के लिए नदीन रहित और पिछली फसल से मुक्त खेत का ही चयन करें। 10-15 सैं.मी. की गहराई पर जोताई करें। मिट्टी के भुरभुरा होने तक खेत की 6-7 बार जोताई करें। गाय का गला हुआ गोबर 4-6 टन प्रति एकड़ में डालें और खेत में 10 पैकेट एज़ोसपीरीलियम के डालें। 45 से 50 सैं.मी. के फासले पर खालियां और मेंड़ तैयार करें।

बिजाई

बिजाई का समय
सिंचित क्षेत्रों में बिजाई मॉनसून के शुरू होने से 10-15 दिन पहले करें। इससे उपज में 10-15 प्रतिशत वृद्धि होगी। बारानी क्षेत्रों में बिजाई मॉनसून के शुरू होने पर करें ताकि मिट्टी में उचित नमी विकसित हो सके। उचित अंकुरण के लिए मिट्टी में नमी होना आवश्यक है।
 
फासला
अच्छी वृद्धि और अच्छी उपज के लिए पौधों में सही मात्रा का होना जरूरी है। खरीफ की फसल के लिए कतार से कतार में 70 सैं.मी. और पौधे से पौधे में 22 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
आसानी से अंकुरण के लिए समतल मिट्टी पर बीजों को 3-5 सैं.मी. की गहराई पर बोयें।
 
बिजाई का ढंग
बिजाई हाथों से गड्ढा खोदकर या आधुनिक तरीके से ट्रैक्टर और सीड डरिल की सहायता से मेंड़ बनाकर की जा सकती है।
 

बीज

बीज की मात्रा
उद्देश्य, बीज का आकार, मौसम, पौधे की किस्म, बिजाई का तरीका आदि बीज की दर को प्रभावित करते हैं। खरीफ के मक्की के लिए 7-8 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
फसल को मिट्टी की बीमारियों और कीड़ों से बचाने के लिए बीज का उपचार जरूरी है। सफेद धब्बों से बीजों को बचाने के लिए कार्बेनडाज़िम या थीरम 2 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद बीज को एज़ोसपीरीलियम 600 ग्राम + धान के चूरे के साथ उपचार करें। उपचार के बाद बीज को 15-20 मिनटों के लिए छांव में सुखाएं। एज़ोसपीरीलियम मिट्टी में नाइट्रोजन को बांधकर रखने में मदद करता है।
 
निम्नलिखित में से किसी एक फंगसनाशी कीटनाशी का प्रयोग करें।
 
फंगसनाशी/ कीटनाशी दवाई मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज)
Imidachloprid 70WS 5 gm
Captan 2.5 gm
Carbendazim+Captan (1:1)    2 gm
 
 

 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
52-110 100-160 KG

27

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
24-50 16-25 16

 

अच्छी उपज के लिए नाइट्रोजन 24-50 किलो (यूरिया 52-110 किलो), फासफोरस 16-25 किलो (एस एस पी 100-160 किलो) और पोटाश 16 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 27 किलो) प्रति एकड़ में डालें।
 
फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा और 1/4 नाइट्रोजन बिजाई के समय डालें। खादों को 5-7 सैं.मी. की गहराई पर डालें। बाकी की नाइट्रोजन को दो भागों में, पहला फसल के घुटने तक आने की अवस्था में और दूसरा बालियां निकलने के समय डालें।
 
मक्की की फसल में जिंक और मैग्नीशियम की कमी होना सामान्य है। इसे पूरा करने के लिए 10 किलो शुरूआती खुराक के तौर पर डालें। जिंक और मैग्नीशियम के साथ ही आयरन की कमी भी देखी जा सकती है। इसके कारण पूरा पौधा पीले रंग का दिखाई देता है। इसे पूरा करने के लिए सूक्ष्म तत्व मिश्रण 25 किलो को 18 किलो रेत के साथ मक्की के बीज बोने के बाद डालें।
 

 

 

खरपतवार नियंत्रण

मक्की की फसल में हाथों से 1-2 गोडाई आवश्य करें। पहली गोडाई बिजाई के 20-25 दिनों के बाद और दूसरी बिजाई के 40-45 दिनों के बाद करें। नदीनों की जांच के लिए एट्राज़िन 500 ग्राम को 100 लीटर पानी में मिलाकर बिजाई के बाद और नदीनों के अंकुरण से पहले स्प्रे करें। गोडाई के बाद खादों को टॉप ड्रेसिंग के तौर पर डालें और उसके बाद मेंड़ो पर मिट्टी चढ़ाएं।
 
छंटाई और खाली जगह भरना : छंटाई का अर्थ अत्याधिक पौधे को निकालना और सिर्फ सेहतमंद पौधों को ही रखना और पौधे से पौधे में 20 सैं.मी. के फासले को बनाकर रखना। पहली गोडाई के समय छंटाई की प्रक्रिया की जाती है। पहली सिंचाई के समय जब पौधे मुख्य फसल से 4-6 दिन के हो जाये, उस समय खाली जगहों को भरें। 
 

सिंचाई

बारिश की तीव्रता, आवृत्ति और तापमान के आधार पर सिंचाई करें। नए पौधे, घुटने तक आने की अवस्था, फूल निकलना और दानें भरना सिंचाई के लिए बहुत गंभीर अवस्थाएं होती हैं। इन अवस्थाओं पर पानी की कमी उपज में बहुत नुकसान कर सकती है। पानी की कमी होने पर खालियां बनाकर सिंचाई करें यह पानी को भी बचाता है।

पौधे की देखभाल

तना छेदक
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
तना छेदक: चिलो पार्टीलस, यह कीट सारी मॉनसून ऋतु में मौजूद रहता है। यह कीट पूरे देश में खतरनाक माना जाता है। यह कीट पौधे उगने से 10-25 रातों के बाद पत्तों के नीचे की ओर अंडे देता है। कीट गोभ में दाखिल होकर पत्तों को नष्ट करता है और गोली के निशान बना देता है। यह कीट पीले भूरे रंग का होता है, जिसका सिर भूरे रंग का होता है। टराईकोग्रामा के साथ परजीवी क्रिया करके 1,00,000 अंडे प्रति एकड़ एक सप्ताह के फासले पर तीन बार छोड़ने से इस कीट को रोका जा सकता है। तीसरी बार कोटेशिया फलैवाईपस 2000 प्रति एकड़ से छोड़ें।
 
फोरेट 10 प्रतिशत सी जी 4 किलो या कार्बरिल 4 प्रतिशत जी 1 किलो को रेत में मिलाकर 10 किलो मात्रा में पत्ते की गोभ में बिजाई के 20 दिन बाद डालें या कीटनाशक कार्बरिल 50 डब्लयु पी 1 किलो प्रति एकड़ बिजाई के 20 दिन बाद या डाईमैथोएट 30 प्रतिशत ई सी 200 मि.ली. प्रति एकड़ की स्प्रे करें। कलोरपाइरीफॉस 1-1.5 मि.ली. प्रति लीटर की स्प्रे पौधे उगने के 10-12 दिनों के बाद स्प्रे करने से भी कीड़ों को रोका जा सकता है।
 

 

गुलाबी बेधक
गुलाबी छेदक: यह कीट भारत के प्रायद्विपीय क्षेत्र में सर्दी ऋतु में नुकसान करता है। यह कीट मक्की की जड़ों को छोड़कर बाकी सभी हिस्सों को प्रभावित करता है। यह पौधे के तने पर गोल और एस नाप की गोलियां बनाकर उन्हें मल से भर देता है और सतह पर छेद कर देता है। ज्यादा नुकसान होने पर तना टूट भी जाता है।
 
इसे रोकने के लिए कार्बोफ्यूरॉन 5 प्रतिशत डब्लयु/डब्लयु 2.5 ग्राम  से  प्रति किलो बीज का उपचार करें। इसके इलावा अंकुरन से 10 दिन बाद  4 टराइकोकार्ड प्रति एकड़ डालने से भी नुकसान से बचा जा सकता है। रोशनी और फीरोमोन कार्ड भी पतंगे को पकड़ने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।
 
कॉर्न वार्म
कॉर्न वार्म: यह सुंडी रेशों और दानों को खाती है। सुंडी का रंग हरे से भूरा हो सकता है। सुंडी के शरीर पर गहरी भूरे रंग की धारियां होती हैं, जो आगे चलकर सफेद हो जाती हैं।
 
एक एकड़ में 5 फीरोमोन पिंजरे लगाएं। इसे रोकने के लिए इसे रोकने के लिए कार्बरिल 10 डी 10 किलो या मैलाथियोन 5 डी 10 किलो प्रति एकड़ की स्प्रे छोटे गुच्छे निकलने से तीसरे और अठारवें दिन करें।
शाख का कीट
शाख का कीट: यह कीट पत्ते के अंदर अंडे देता है जो कि शाख् के साथ ढके हुए होते हैं। इससे पौधा  बीमार और पीला पड़ जाता है। पत्ते शिखर से नीचे की ओर सूखते हैं और बीच वाली नाड़ी अंडों के कारण लाल रंग की हो जाती है और सूख जाती है।
इसे रोकने के लिए डाईमैथोएट 2 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
शाख की मक्खी
शाख की मक्खी: यह दक्षिण भारत की मुख्य मक्खी है और कईं बार गर्मी और बसंत ऋतु में उत्तरी भारत में भी पाई जाती है। यह छोटे पौधों पर हमला करती है और उन्हें सूखा देती है।
 
इसे रोकने के लिए कटाई के बाद खेत की जोताई करें और पिछली फसल के बचे कुचे को साफ करें। बीज को इमीडाक्लोप्रिड 6  मि.ली. से प्रति किलो बीज का उपचार करें। इससे मक्खी पर आसानी से काबू पाया जा सकता है। बिजाई के समय मिट्टी में फोरेट 10 प्रतिशत सी जी 5 किलो प्रति एकड़ डालें। इसके इलावा डाईमैथोएट 30 प्रतिशत ई सी 300 मि.ली. या मिथाइल डेमेटान 25 प्रतिशत ई सी 450 मि.ली. को प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
टांडे सूखना
  • बीमारियां और रोकथाम
तने का गलना : इससे तना ज़मीन के साथ फूल कर भूरे रंग का जल्दी टूटने वाला और गंदी बास मारने वाला लगता है।
 
इसे रोकने के लिए पानी खड़ा ना होने दें और जल निकास की तरफ ध्यान दें। इसके इलावा फसल के फूल निकलने से पहले ब्लीचिंग पाउडर 33 प्रतिशत कलोरीन 2-3 किलो प्रति एकड़ मिट्टी में डालें।
दीमक
दीमक: यह कीट बहुत नुकसानदायक है और मक्की वाले सभी क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इसे रोकने के लिए फिप्रोनिल 8  किलो प्रति एकड़ डालें और हल्की सिंचाई करें।
 
यदि दीमक का हमला अलग अलग हिस्सों में हो तो फिप्रोनिल के 2-3 किलो दाने प्रति पौधा डालें, खेत को साफ सुथरा रखें।
टी एल बी
टी एल बी: यह बीमारी उत्तरी भारत, उत्तर पूर्वी पहाड़ियों और प्रायद्विपीय क्षेत्र में ज्यादा आती है और एक्सरोहाइलम टरसीकम द्वारा फैलती है। यदि यह बीमारी सूत कातने के समय आ जाए तो आर्थिक नुकसान भी हो सकता है। शुरू में पत्तों के ऊपर छोटे फूले हुए धब्बे दिखाई देते हैं और नीचे के पत्तों को पहले नुकसान होता है और बाद में सारा बूटा जला हुआ दिखाई देता है। यदि इसे सही समय पर ना रोका जाये तो यह 70  प्रतिशत तक पैदावार कम कर सकता है।
 
इसे रोकने के लिए बीमारी के शुरूआती समय में मैनकोज़ेब या ज़िनेब 2-4 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर 10 दिनों के अंतराल पर स्प्रे करें।
पत्ता झुलस रोग
पत्ता झुलस रोग: यह बीमारी गर्म ऊष्ण, उप ऊष्ण से लेकर ठंडे शीतवण वातावरण में आती है और बाइपोलैरिस मैडिस द्वारा की जाती है। शुरू में जख्म छोटे और हीरे के आकार के होते हैं और बाद में लंबे हो जाते हैं। जख्म आपस में मिलकर पूरे पत्ते को जला सकते हैं।
 
डाइथेन एम-45 या ज़िनेब 2.0-2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर 7-10 दिन के फासले पर 2-4 स्प्रे करने से इस बीमारी को शुरूआती समय में ही रोका जा सकता है।
भूरी जालेदार फफूंदी
पत्तों के नीचे भूरे रंग के धब्बे : इस बीमारी की धारियां नीचे के पत्तों से शुरू होती हैं। यह पीले रंग की और 3-7 मि.मी. चौड़ी होती हैं। जो पत्तों की नाड़ियों तक पहुंच जाती हैं। यह बाद में लाल और जामुनी रंग की हो जाती हैं। धारियों के और बढ़ने से पत्तों के ऊपर धब्बे पड़ जाते हैं।
 
इसे रोकने के लिए रोधक किस्मों का प्रयोग करें। बीज को मैटालैक्सिल 6 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। प्रभावित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें और मैटालैक्सिल 1 ग्राम  या  मैटालैक्सिल+मैनकोज़ेब 2.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
फूलों के बाद टांडों का गलना
फूलों के बाद टांडों का गलना: यह एक बहुत ही नुकसानदायक बीमारी है जो कि बहुत सारे रोगाणुओं के द्वारा इकट्ठे मिलकर की जाती है। यह जड़ों, शिखरों और तनों के उस हिस्से पर जहां दो गांठे मिलती हैं, पर नुकसान करती है।
 
इस बीमारी के ज्यादा आने की सूरत में पोटाशियम खाद का प्रयोग कम करें। फसलों को बदल बदल कर लगाएं और फूलों के खिलने के समय पानी की कमी ना होने दें। खालियों में टराइकोडरमा 10 ग्राम प्रति किलो रूड़ी की खाद में बिजाई के 10 दिन पहले डालें।
पाइथीयम तना गलन
पाइथीयम तना गलन : इससे पौधे की निचली गांठें नर्म और भूरी हो जाती हैं और पौधा गिर जाता है। प्रभावित हुई गांठे मुड़ जाती हैं।
 
बिजाई से पहले पिछली फसल के बचे कुचे को नष्ट करके खेत को साफ करें। पौधों की सही संख्या रखें और मिट्टी में कप्तान 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर गांठों के साथ डालें।

फसल की कटाई

छल्लियों के बाहरले पर्दे हरे से सफेद रंग के होने पर फसल की कटाई करें। तने के सूखने और दानों में पानी की मात्रा 17-20 प्रतिशत होने की सूरत में कटाई करना इसके लिए अनुकूल समय है। प्रयोग की जाने वाली जगह और यंत्र साफ, सूखे और रोगाणुओं से मुक्त होने चाहिए।

कटाई के बाद

स्वीट कॉर्न को जल्दी से जल्दी खेत में से पैकिंग वाली जगह पर लेके जायें ताकि उसे आकार के हिसाब से अलग, पैक और ठंडा किया जा सके इसे आमतौर पर लकड़ी के बक्सों में पैक किया जाता है, जिनमें 4-6 दर्जन छल्लियां बक्से और छल्लियों के आकार के आधार पर समा सकती हैं।