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आम जानकारी

बहेड़ा को संस्कृत में करशफल, कलीदरूमा और विभीताकी के नाम से जाना जाता है। इसका फल मुख्य तौर पर दवाइयां बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। बहेड़ा से तैयार दवाइयों का प्रयोग चमड़ी के रोग, सोजिश वाले हिस्सों, बालों का सफेद होना, कोलेस्ट्रोल और खून के दौरे को कम करने के लिए किया जाता है। यह पतझड़ वाला वृक्ष है और जिसकी औसतन ऊंचाई 30 मीटर होती है। इसकी छाल भूरे सलेटी रंग का होता है। इसके पत्ते अंडाकार और 10-12 सैं.मी. लंबे होते हैं। इसके फल अंडाकार और बीज स्वाद में मीठे होते हैं। भारत में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महांराष्ट्र और पंजाब मुख्य बहेरा उगाने वाले क्षेत्र हैं।
 

जलवायु

  • Season

    Temperature

    30-45°C
  • Season

    Rainfall

    900-3000mm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20°C
  • Season

    Temperature

    30-45°C
  • Season

    Rainfall

    900-3000mm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20°C
  • Season

    Temperature

    30-45°C
  • Season

    Rainfall

    900-3000mm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20°C
  • Season

    Temperature

    30-45°C
  • Season

    Rainfall

    900-3000mm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20°C

मिट्टी

इसके सख्तपन के कारण इस फसल को हर किस्म की मिट्टी में उगाया जा सकता है। मिट्टी में अच्छी नमी होनी चाहिए। जब इसे अच्छे जल निकास वाले नमी, गहरी, रेतली दोमट मिट्टी में उगाया जाता है, तब यह अच्छी पैदावार देती है। नए पौधों के शुरूआती विकास के समय यह छांव को सहन कर सकती है।

ज़मीन की तैयारी

बहेड़ा की खेती के लिए अच्छी तरह तैयार ज़मीन की जरूरत होती है। मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए ज़मीन की जोताई करें। जोताई के बाद  मॉनसून आने से पहले गड्ढे खोदें। निचले इलाकों में पौधे के अच्छे विकास के लिए बड़े आकार के गड्ढे खोदें।

बिजाई

बिजाई का समय
नर्सरी बैड जून-जुलाई महीने में तैयार किए जाते हैं। बिजाई जुलाई महीने में मॉनसून आने से पहले की जाती है।
 
फासला
अच्छे विकास के लिए नए पौधों में 3x3 मीटर का फासला रखें।
 
बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई पनीरी लगा कर की जाती है।

बीज

बीज का उपचार
अंकुरण शक्ति बढ़ाने के लिए बीजों को 24 घंटों के लिए पानी में भिगों कर रखें|
 

पनीरी की देख-रेख और रोपण

बहेड़ा के बीजों को 45x45x45 सैं.मी. के खोदे हुए गड्ढों में बोयें। बिजाई के बाद मिट्टी की नमी के लिए हल्की सिंचाई करें। बिजाई मॉनसून आने से पहले जुलाई महीने में की जाती है।
 
इसकी बिजाई सीधे ढंग से भी की जा सकती है, पर जून-जुलाई महीने में मॉनसून शुरू होने पर की जा सकती है। बीजों को 2 इंच गहराई से बोयें और कतार वाले ढंग का प्रयोग करें।
 
नए पौधे रोपण करने के लिए 10-40 दिन में तैयार हो जाते हैं। पौधे मुख्य तौर पर 3x3 मीटर के फासले पर बोये जाते हैं। पनीरी उखाड़ने से 24 घंटे पहले पानी लगाएं, ताकि पौधों की जड़ें आसानी से उखाड़ी जा सकें।

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
100 250 100

 

ज़मीन की तैयारी के समय प्रत्येक गड्ढे में रूड़ी की खाद 10 किलो डालें। प्रत्येक गड्ढे में खादों के तौर पर यूरिया 100 ग्राम, सुपर फासफेट 250 ग्राम और म्यूरेट ऑफ पोटाश 100 ग्राम डालें। खादों की मात्रा आने वाले समय में आवश्कतानुसार बढ़ाई जा सकती है।

 

खरपतवार नियंत्रण

खेत को नदीन मुक्त रखने के लिए लगातार गोडाई करते रहें। यदि नदीनों को ना रोका जाये तो यह फसल की पैदावार कम कर देता है। लगातार दो साल गोडाई करते रहें। बिजाई से 1 महीने बाद, 1 महीने के फासले पर गोडाई करें। मलचिंग भी मिट्टी का तापमान कम करने और नदीनों की रोकथाम के लिए एक प्रभावशाली तरीका है।

सिंचाई

गर्मियों में मार्च, अप्रैल और मई महीने में हर सप्ताह 3 बार सिंचाई करें।

पौधे की देखभाल

  • हानिकारक कीट और रोकथाम
सैमी लुपर सुंडी: यह हरे और ताजे पत्ते खाती है।

फसल की कटाई

जब फल हरे-सलेटी रंग के हो जायें तो तुड़ाई की जाती है। तुड़ाई आमतौर पर नवंबर-फरवरी महीने में की जाती है। फल पकने के तुरंत बाद तुड़ाई कर लेनी चाहिए।

कटाई के बाद

कटाई के बाद बीजों को सुखाया जाता है। बीजों को धूप में सुखाकर हवा मुक्त पैकट में मंडी ले जाने के लिए और इनकी उम्र बढ़ाने के लिए पैक कर दिया जाता है। इसके सूखे बीजों से बहुत सारे उत्पाद जैसे कि त्रिफला कुरना, बिभीताकी सुरा, बिभी टाका घड़ता और त्रिफला घरता आदि तैयार किए जाते हैं।