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आम जानकारी

यह विशेष तौर पर उष्ण और उपउष्ण क्षेत्रों में उगाई जाती है। भारत में भिंडी उगाने वाले मुख्य प्रांत उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल और उड़ीसा हैं। भिंडी की खेती विशेष तौर पर इसे लगने वाले हरे फल के कारण की जाती है। इसके सूखे फल और छिल्के को कागज़ उदयोग में और रेशा (फाइबर) निकालने के लिए प्रयोग किया जाता है। भिंडी विटामिन, प्रोटीन, कैल्शियम और अन्य खनिजों का मुख्य स्त्रोत है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    20-30°C
  • Season

    Rainfall

    1000mm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-29°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    25-35°C
  • Season

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    20-30°C
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    Rainfall

    1000mm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-29°C
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    25-35°C
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    20-30°C
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    25-35°C
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    20-30°C
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    Harvesting Temperature

    25-35°C

मिट्टी

भिंडी काफी तरह की मिट्टी में उगाई जा सकती है। भिंडी की फसल के लिए रेतली से चिकनी मिट्टी उचित होती है, जिसमें जैविक तत्व भरपूर मात्रा में हों और जिसकी निकास प्रणाली भी अच्छी ढंग की हो। यदि निकास अच्छे ढंग का हो तो यह भारी ज़मीनों में भी अच्छी उगती है। मिट्टी का पी एच 6.0 से 6.5 होना चाहिए। खारी, नमक वाली या घटिया निकास वाली मिट्टी में इसकी खेती ना करें।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

V.R.O 6: यह चितकबरे रोग और पत्ता मरोड़ रोग के प्रतिरोधक है। बसंत के मौसम में, इसकी औसतन उपज 54 क्विंटल और खरीफ के मौसम में, इसकी औसतन उपज 72 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
V.R.O 5: यह छोटे कद की और अधिक उपज वाली किस्म है। यह चितकबरे रोग और पत्ता मरोड़ रोग के प्रतिरोधक है। खरीफ के मौसम में, इसकी औसतन उपज 60 क्विंटल और बसंत के मौसम में, इसकी औसतन उपज 48 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Parbhani Kranti : यह MKV, परभानी द्वारा जारी की गई है। इसके फल मध्यम लंबे और नर्म होते हैं। इन्हें ज्यादा देर तक रखने की गुणवत्ता अच्छी होती है। यह किस्म पीले चितकबरे रोग को सहनेयोग्य है। इसकी औसतन पैदावार 35-45 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
I.I.V.R 10 : यह किस्म पीले चितकबरे रोग की प्रतिरोधक किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 60 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Kashi Vibhuti: यह किस्म बिजाई के बाद 38-40 दिनों में पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 68-72 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Kashi Bhairav: यह किस्म रोपाई के 43-45 दिनों के बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 76 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह पीले चितकबरे रोग की प्रतिरोधक किस्म है।
 
Kashi Mahima: यह किस्म रोपाई के 45 दिनों के बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। यह खरीफ के साथ साथ गर्मियों में भी बोने के लिए उपयुक्त किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 80 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Kashi Mohini: इस किस्म की औसतन पैदावार 56 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह पीले चितकबरे रोग की प्रतिरोधक किस्म है।
 
Kashi Mangali : यह किस्म रोपाई के 45-50 दिनों के बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इस किस्म की औसतन पैदावार 56 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Kashi Pragati: यह किस्म रोपाई के 45-46 दिनों के बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इस किस्म की औसतन पैदावार 64 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Kashi Satdhari: यह किस्म रोपाई के 50 दिनों के बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इस किस्म की औसतन पैदावार 50 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Kashi Kranti: इस किस्म की औसतन पैदावार 50 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म रोपाई के 45 दिनों के बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है।
 
Pusa Sawani: यह किस्म   IARI नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। यह किस्म गर्मियों के साथ साथ बारिश के मौसम में खेती करने के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 50 दिनों के अंदर अंदर तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके फल तुड़ाई के समय गहरे हरे रंग के और 10-12 सैं.मी. लंबे होते हैं। यह किस्म पीले चितकबरे रोग के प्रति संवेदनशील होती है। इसकी औसतन पैदावार 40-56 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Pusa Mahakali: यह किस्म आई. ए. आर. आई., नई दिल्ली द्वारा बनाई गई है। इसके फल हलके हरे रंग के होते हैं।
 
Arka Anamika: यह किस्म  IIHR, बैंगलोर द्वारा विकसित की गई है। यह किस्म पीले चितकबरे रोग के प्रतिरोधक है। इसकी औसतन पैदावार 80 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Arka Abhay: यह किस्म IIHR बैंगलोर द्वारा जारी की गई है। इसके फल पीले चितकबरे रोग के प्रतिरोधी होते हैं।
 
Pusa A 4: यह किस्म पीले चितकबरे रोग और चेपे के प्रतिरोधक है। यह 45 दिनों में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 56 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Perkins Long green: यह पहाड़ी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है। 
 
Aruna: यह किस्म KAU द्वारा जारी की गई है। इस किस्म की फलियां लाल रंग की होती हैं। यह पीले चितकबरे रोग के प्रतिरोधक है। इसकी औसतन पैदावार 64 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
CO 1: यह अधिक उपज वाली किस्म है, TNAU द्वारा जारी की गई है। इस किस्म की फलियां लाल रंग की होती हैं।
 
Harbhajan: यह किस्म गर्मियों और बारिश के मौसम में  बोने के लिए उपयुक्त है। यह जल्दी फल देने वाली किस्म है जो कि गहरे हरे रंग के और नर्म होते हैं। यह किस्म पीले चितकबरे रोग के प्रतिरोधक है। इसकी औसतन पैदावार 36-40 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
P-8: यह नई किस्म है। इसके पौधे का कद मध्यम (53-71 सैं.मी. लंबा) होता है और यह 12-15 सैं.मी. लंबा फल होता है। प्रति पौधे पर लगभग 10 फल होते हैं। यह किस्म पीले चितकबरे रोग के प्रतिरोधक होती है। इसकी औसतन पैदावार 42 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 

ज़मीन की तैयारी

मिट्टी  के भुरभुरा होने तक खेत की जोताई करें। जोताई के बाद मिट्टी को समतल करने के लिए सुहागा फेरें। आखिरी जोताई के समय गाय का गला हुआ गोबर 40 क्विंटल प्रति एकड़ में डालें।

बिजाई

बिजाई का समय
उत्तर में यह वर्षा और बसंत के मौसम में उगाई जाती है। खरीफ के मौसम में, इसकी बिजाई जून-जुलाई के महीने और बसंत ऋतु में फरवरी-मार्च के महीने में की जाती है।
 
फासला
गर्मियों में समय पर बिजाई के लिए कतार से कतार में 45 सैं.मी. और पौधे से पौधे में 30 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें। गर्मियों में अगेती बिजाई के लिए 30 सैं.मी. x 20 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें। बारिश के मौसम में कतार से कतार में 60 सैं.मी. और पौधे से पौधे में 20-30 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
बीज 2.5 सैं.मी. की गहराई में बोयें।
 
बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई गड्ढा खोदकर की जाती है।
 

बीज

बीज की मात्रा
खरीफ के मौसम में 4-6 किलो बीज और गर्मियों के मौसम में 8-10 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग किए जाते हैं। 
 
बीज का उपचार
बिजाई से पहले बीज को 24 घंटे के लिए पानी में भिगोकर रखने से बीज की अंकुरन शक्ति बढ़ जाती है। ज़मीन से पैदा होने वाली फफूंदी से बचाने के लिए बीज को कार्बेनडाज़िम से उपचार करें। उपचार करने के लिए बीज को 2 ग्राम कार्बेनडाज़िम घोल प्रति लीटर पानी में मिलाकर 6 घंटे के लिए डुबो दें और फिर छांव में सुखाएं। फिर तुरंत बिजाई कर दें। बीज के अच्छे अंकुरन के लिए और मिट्टी में पैदा होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए बीज को इमीडाक्लोप्रिड 5 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। और बाद में ट्राइकोडरमा विराइड 4 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें।
 
फंगसनाशी/ कीटनाशी दवाई  मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज)
Carbendazim

2gm

Imidacloprid     5gm
 
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
90 100 35

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
40 16 20

 

खेत की तैयारी के समय 8-10 टन गाय का गला हुआ गोबर डालें। भिंडी की फसल के लिए नाइट्रोजन 40 किलो (90 किलो यूरिया) फासफोरस 16 किलो (एस एस पी 100 किलो) और पोटाश 20 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 35 किलो) प्रति एकड़ में डालें। नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा, फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय डालें। नाइट्रोजन की  बाकी बची मात्रा बिजाई के बाद 30वें और 50 वें दिन टॉप ड्रेसिंग के तौर पर डालें।
बिजाई से पहले बसालीन 1 लीटर को प्रति एकड़ में डालें और बिजाई के तुरंत बाद लासो 1.6 मि.ली. को प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 

 

 

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों के विकास को रोकने के लिए गोडाई करनी चाहिए। बारिश के मौसम में मेंड़ों पर मिट्टी ज़रूर चढ़ानी चाहिए। पहली गोडाई 20-25 दिन बाद और दूसरी गोडाई बिजाई के 40-45 दिन बाद करें। नदीनों के अंकुरन से पहले नदीन नाशक डालने से नदीनों को आसानी से रोका जा सकता है। इसके लिए फलूक्लोरालिन (48 प्रतिशत) 1 लीटर या पैंडीमैथालीन 1 लीटर या एलाक्लोर 1.6 लीटर प्रति एकड़ डालें।

सिंचाई

यदि मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में नमी मौजूद ना हो तो गर्मियों में फसल के अच्छे अंकुरण के लिए बिजाई से पहले सिंचाई जरूर करनी चाहिए। बीज अंकुरण के बाद अगली सिंचाई करें। उसके बाद गर्मियों में 4-5 दिन के बाद खेतों को सिंचित करें और बारिश के मौसम में 10 से 12 बाद खेतों को सिंचित करें।

पौधे की देखभाल

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  • हानिकारक कीट और रोकथाम
शाख और फल का कीट : यह कीट पौधे के विकास के समय शाख में पैदा होता है। इसके हमले से प्रभावित शाखा सूखकर झड़ जाती है। बाद में यह फलों में जा कर इन्हें अपने मल से भर देता है।
 
प्रभावित भागों को नष्ट कर दें। यदि इनकी संख्या ज्यादा हो तो स्पाइनोसैड 1 मि.ली. प्रति क्लोरॅट्रीनिलीप्रोल 18.5 प्रतिशत एस सी 7 मि.ली. प्रति 15 लीटर पानी या फलूबैंडीअमाइड 50 मि.ली. प्रति एकड़ को 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
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ब्लिस्टर बीटल: यह पौधे के बूर, पत्तों और फूलों की गोभ को खाता है।
यदि इसका हमला दिखे तो, बड़े कीड़े इकट्ठे होकर नष्ट कर दें। कार्बरिल 1 ग्राम या मैलाथियॉन 400 मि.ली. प्रति 200 लीटर पानी या साइपरमैथरिन 80 मि.ली. प्रति 150 लीटर पानी की स्प्रे करें।
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चेपा: चेपे का हमला नए पत्तों और फलों पर देखा जा सकता है। यह पौधे का रस चूसकर उसे कमज़ोर कर देता है। गंभीर हमले की स्थिति में पत्ते मुड़ जाते हैं या बेढंगे रूप के हो जाते हैं। यह शहद की बूंद जैसा पदार्थ जो धुंएं जैसा होता है, को छोड़ते हैं। प्रभावित भागों पर काले रंग की फफूंद पैदा हो जाती है।
जैसे ही हमला देखा जाये, तुरंत प्रभावित हिस्से नष्ट कर दें। डाइमैथोएट 300 मि.ली. प्रति 150 लीटर पानी में मिलाकर बिजाई से 20-35 दिन बाद डालें। यदि जरूरत हो तो दोबारा डालें। हमला दिखने पर थाइमैथोक्सम 25 डब्लयु जी 5 ग्राम को प्रति 15 लीटर पानी की स्प्रे करें।
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  • बीमारियां और रोकथाम
चितकबरा रोग : इस बीमारी के लक्षणों के तौर पर सारे पत्तों पर एक जैसी पीली धारियां होती हैं। इससे पौधे की वृद्धि पर भी असर पड़ता है। और विकास रूक जाता है। इससे फल भी पीले दिखाई देते हैं और आकार में छोटे और सख्त होते हैं। इस से 80-90 प्रतिशत पैदावार कम हो जाती है। यह बीमारी सफेद मक्खी और पत्ते के टिड्डे के कारण फैलती है।
 
इसकी रोकथाम के लिए रोधक किस्मों का प्रयोग करें। बीमारी वाले पौधों को खेत में से दूर ले जाकर नष्ट कर दें। सफेद मक्खी की रोकथाम के लिए डाइमैथोएट 300 मि.ली. प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
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पत्तों पर सफेद धब्बे : इससे नए पत्तों और फलों पर सफेद धब्बे पड़ जाते हैं। गंभीर हमले की स्थिति में फल पकने से पहले ही झड़ जाते हैं। इससे फल की क्वालिटी भी कम हो जाती है और फल आकार में छोटे रह जाते हैं।
 
यदि इसका हमला दिखे तो घुलनशील सलफर 25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी या डाइनोकैप 5 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी की स्प्रे 4 बार 10 दिनों के फासले पर करें। या ट्राइडमॉर्फ 5 मि.ली. या पैनकोनाज़ोल 10 मि.ली. प्रति 10 लीटर की स्प्रे 4 बार 10 दिनों के फासले पर करें।
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पत्तों पर धब्बा रोग : पत्तों के मध्य में सलेटी और किनारों पर लाल धब्बे पड़ जाते हैं। गंभीर हमले की स्थिति में पत्ते झड़ने शुरू हो जाते हैं।
 
भविष्य में हमले से बचने के लिए बीजों को थीरम से उपचार करें। यदि खेत में इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब 4 ग्राम प्रति लीटर या कप्तान 2 ग्राम प्रति लीटर या कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। डाइफैनोकोनाज़ोल/ हैक्साकोनाज़ोल 0.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
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जड़ गलन : प्रभावित जड़ें गहरे भूरे रंग की हो जाती हैं  और ज्यादा हमले की स्थिति में पौधा मर जाता है।

इसकी रोकथाम के लिए  एक ही फसल खेत में बार बार ना लगाएं, बल्कि फसली चक्र अपनाएं। बिजाई से पहले बीजों को कार्बेनडाज़िम 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचार करें। मिट्टी में कार्बेनडाज़िम घोल 1 ग्राम प्रति लीटर पानी डालें।

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सूखा : इससे शुरूआत में पुराने पत्ते पीले पड़ जाते हैं और बाद में सारी फसल ही सूख जाती है। यह बीमारी फसल पर किसी भी समय हमला कर सकती है।

यदि इसका हमला दिखे तो पौधे की नज़दीक की जड़ों में कार्बेनडाज़िम 10 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी डालें।

फसल की कटाई

फसल बिजाई के 60-70 दिनों के बाद पककर तैयार हो जाती है। छोटे और कच्चे फलों की तुड़ाई करें। फलों की तुड़ाई सुबह और शाम के समय करनी चाहिए। तुड़ाई में देरीसे भिंडियों में रेशा भर जाता है और इनका कच्चापन और स्वाद भी चला जाता है।

कटाई के बाद

भिंडियों को ज्यादा देर तक स्टोर करके नहीं रखा जा सकता। भिंडियों को 7-10 डिगरी सैल्सियस और 90 प्रतिशत नमी पर ज्यादा देर तक स्टोर करके रखा जा सकता है। नज़दीक के बाज़ारों में भिंडियों को जूट की बोरियों में भरकर ले जाया जा सकता है, जबकि लंबी दूरी वाले स्थानों पर इन्हें गत्ते के बक्से में पैक करके ले जाया जा सकता है।