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आम जानकारी

सिटरस एक महत्तवपूर्ण फल की फसल है। नींबू इनमें से एक है। यह विश्व में इसके गुद्दे और रस के लिए जाना जाता है। दुनिया भर में विभिन्न खट्टे फलों का उपयोग भोजन या रस बनाने के लिए किया जाता है। उत्तरी भारत में, नागपुर में संतरे को व्यापक स्तर पर उगाया जाता है। आसाम, डिबरूगढ़ और ब्रह्मपुत्र घाटी नारंगी उत्पादक राज्य हैं। भारत में लगभग 923 हज़ार हैक्टेयर में सिटरस की खेती की जाती है, जिससे 8608 हज़ार मीट्रिक टन वार्षिक उत्पादन होता है। पंजाब में 39.20 हैक्टेयर भूमि पर सिटरस उगाया जाता है। सिटरस के कुल क्षेत्रफल के लगभग 55 प्रतिशत पर किन्नू का उत्पादन किया जाता है।

  • Season

    Temperature

    20-25°C
  • Season

    Rainfall

    75-200cm
  • Season

    Sowing Temperature

    22-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    24-28°C
  • Season

    Temperature

    20-25°C
  • Season

    Rainfall

    75-200cm
  • Season

    Sowing Temperature

    22-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    24-28°C
  • Season

    Temperature

    20-25°C
  • Season

    Rainfall

    75-200cm
  • Season

    Sowing Temperature

    22-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    24-28°C
  • Season

    Temperature

    20-25°C
  • Season

    Rainfall

    75-200cm
  • Season

    Sowing Temperature

    22-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    24-28°C

मिट्टी

नींबू को मिट्टी की सभी किस्मों में उगाया जा सकता है। अच्छे निकास वाली हल्की मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त होती है। मिट्टी की पी एच 5.5-7.5 होनी चाहिए। इन्हें हल्की क्षारीय और अम्लीय मिट्टी में उगाया जा सकता है। अच्छे निकास वाली हल्की दोमट मिट्टी कागज़ी-निंबू की खेती के लिए अच्छी होती है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Kagzi: यह बड़े क्षेत्र में उगाई जाने वाली नींबू की आम किस्म है। इसके वृक्ष ज्यादा घनत्व वाले, छोटे पत्ते और फैलने वाले होते हैं। फल छोटे गोल और पतली त्वचा वाले होते हैं। इसका रस स्वाद में बहुत तेज़ाबी होता है। यह किस्म मध्य अगस्त में पक जाती है।
 
Dhaulakuan Seedless: यह देरी से पकने वाली किस्म है। किस्म से इसमें 20-25 प्रतिशत मात्रा रस की होती है। यह किस्म आचार और जूस बनाने के लिए उपयुक्त है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
1) Vikram
 
2) Prumalini
 
3) PKM
 
4) SaiSarbati
 
5) Seed less lime
 

ज़मीन की तैयारी

खेत की तैयारी के लिए, खेत की अच्छी तरह से जोताई, क्रॉस जोताई और अच्छे से समतल करना चाहिए। पहाड़ी क्षेत्रों में ढलानों की बजाय मेंड़ पर रोपण किया जाता है। ऐसे क्षेत्रों में उच्च घनत्व रोपण भी संभव है।

बिजाई

बिजाई का समय
बिजाई के लिए मध्य जून से लेकर अंत सितंबर उपयुक्त होता है।
शुरूआती विकास के दौरान तेज हवा को कम करने के लिए आम, अमरूद, जामुन, अनोला, शीशम या शहतूत खेत के चारों तरफ लगाएं।
 
फासला
पौधों के बीच 6x6 सैं.मी. फासला रखना चाहिए। नए पौधों की रोपाई के लिए गड्ढों का आकार 60x60x60 सैं.मी. होना चाहिए। गड्ढों में रोपाई के समय गली हुई रूड़ी की खाद 10 किलो और सिंगल सुपर फासफेट 500 ग्राम डालें।
 
बीज की गहराई
नए पौधों की रोपाई के लिए गड्ढों का आकार 60x60x60 सैं.मी. होना चाहिए।
 
बिजाई का ढंग
प्रजनन
पौधों का प्रजनन कलियों या एयर लेयरिंग द्वारा किया जाता है।
 

कटाई और छंटाई

पौधे के तने की अच्छी वृद्धि के लिए, ज़मीनी स्तर से 50-60 सैं.मी. नज़दीक की शाखाओं को निकाल देना चाहिए। पौधे का केंद्र खुला होना चाहिए। विकास की शुरूआती अवस्था में आस पास की टहनियों को निकाल देना चाहिए।

बीज

बीज की मात्रा
208 पौधे प्रति एकड़ में लगाएं। 
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति वृक्ष)

Age of crop (Year) Well decomposed cow dung (kg/tree) Urea (gm/tree)
First to three year 5-20 100-300
Four to Six 25-50 400-500
Seven to Nine 60-90 600-800
Ten and above 100 800-1600

 

तत्व (किलोग्राम प्रति वृक्ष)

Age of crop (Year) Well decomposed cow dung (kg/tree) Nitrogen (gm/tree)
First to three year 5-20 50-150
Four to Six 25-50 200-250
Seven to Nine 60-90 300-400
Ten and above 100 400-800

 

फसल के 1-3 वर्ष की हो जाने पर, अच्छी तरह से गला हुए गाय का गोबर 5-20 किलो और युरिया 100-300 ग्राम प्रति वृक्ष में डालें। 4-6 वर्ष की फसल में, अच्छी तरह से गला हुआ गाय का गोबर 25-50 किलो और युरिया 100-300 ग्राम प्रति वृक्ष में डालें। 7-9 वर्ष की फसल में, यूरिया 600-800 ग्राम और गाय का गला हुआ गोबर 60-90 किलो प्रति वृक्ष में डालें। जब फसल 10 वर्ष की या इससे ज्यादा की हो जाए तो गाय का गला हुआ गोबर 100 किलो या यूरिया 800-1600 ग्राम प्रति वृक्ष में डालें।
 
गाय के गले हुए गोबर की पूरी मात्रा दिसंबर महीने के दौरान डालें जबकि यूरिया के दो हिस्से, पहला फरवरी महीने में और दूसरा अप्रैल-मई के महीने में डालें। यूरिया की पहली खुराक के समय सिंगल सुपर फासफेट खाद की पूरी मात्रा डालें।
 
यदि पकने से पहले फलों का गिरना देखा जाए तो फलों के ज्यादा गिरने को रोकने के लिए 2,4-D 10 ग्राम को 500 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। पहली स्प्रे मार्च के अंत में, फिर अप्रैल के अंत में करें। अगस्त और सितंबर के अंत में दोबारा स्प्रे करें। यदि सिटरस के नज़दीक कपास की फसल उगाई गई हो तो 2,4-D की स्प्रे करने से परहेज़ करें, इसकी जगह GA3 की स्प्रे करें।
 

 

 

सिंचाई

नींबू की फसल को नियमित अंतराल पर सिंचाई की आवश्यकता होती है। सर्दियों और गर्मियों में जीवन बचाव सिंचाई जरूर देनी चाहिए। फूल आने के समय, फल लगने के समय और पौधे के अच्छे विकास के लिए सिंचाई आवश्यक है। ज्यादा सिंचाई से जड़ गलन और तना गलन की बीमारियों का खतरा होता है। उच्च आवृत्ति की सिंचाई फायदेमंद होती है। नमकीन पानी फसल के लिए हानिकारक होता है। 

पौधे की देखभाल

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  • हानिकारक कीट और रोकथाम
सुरंगी कीट : ये कीट नए पत्तों के ऊपर और नीचे की सतह के अंदर लार्वा छोड़ देते हैं, जिससे पत्ते मुड़े हुए और विकृत नज़र आते हैं। सुरंगी कीट से नए पौधों के विकास में कमी देखी जा सकती है। सुरंगी कीट के अच्छे प्रबंधन के लिए इसे अकेला छोड़ देना चाहिए और ये प्राकृति कीटों का भोजन बनते हैं और इनके लार्वा को खा लेते हैं। फासफोमिडोन 1 मि.ली. या मोनोक्रोटोफॉस 1.5 मि.ली. को प्रत्येक पखवाड़े में 3-4 बार स्प्रे करें। सुरंगी कीटों का पता लगाने के लिए के लिए फेरोमोन जाल भी उपलब्ध होते हैं।
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स्केल कीट : सिटरस स्केल कीट बहुत छोटे कीट होते हैं जो सिटरस के वृक्ष और फलों से रस चूसते हैं। ये कीट शहद की बूंद की तरह पदार्थ छोड़ते हैं, जिससे चींटियां आकर्षित होती हैं। इनका मुंह वाला हिस्सा ज्यादा नहीं होता है। नर कीटों का जीवनकाल कम होता है। सिटरस के पौधे पर दो तरह के स्केल कीट हमला करते हैं, कंटीले और नर्म स्केल कीट। कंटीले कीट पौधे के हिस्से में अपना मुंह डालते हैं और उस जगह से बिल्कुल नहीं हिलते, उसी जगह को खाते रहते हैं और प्रजनन करते हैं। नर्म कीट पौधे के ऊपर परत बना देते हैं जो पौधे के पत्तों को ढक देती है और प्रकाश संश्लेषण क्रिया को रोक देते हैं। जो मरे हुए नर्म कीट होते हैं वो मरने के बाद पेड़ से चिपके रहने की बजाय गिर जाते हैं। नीम का तेल इन्हें रोकने के लिए प्रभावशाली उपाय है। पैराथियोन 0.03 प्रतिशत इमलसन, डाइमैथोएट 150 मि.ली. या मैलाथियोन 0.1 प्रतिशत की स्प्रे भी इन कीटों को रोकने के लिए प्रभावशाली उपाय है।

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चेपा और मिली बग : ये पौधे का रस चूसने वाले छोटे कीट हैं। कीड़े पत्ते के अंदरूनी भाग में होते हैं। चेपे और कीटों को रोकने के लिए पाइरीथैरीओड्स या कीट तेल का प्रयोग किया जा सकता है।

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  • बीमारियां और रोकथाम
सिटरस कैंकर : पौधों में तनों, पत्तों और फलों पर भूरे, पानी रंग जैसे धब्बे बन जाते हैं। सिटरस कैंकर बैक्टीरिया पौधे के रक्षक सैल में से प्रवेश करता है। इससे नए पत्ते ज्यादा प्रभावित होते हैं। क्षेत्र में हवा के द्वारा ये बैक्टीरिया सेहतमंद पौधों को भी प्रभावित करता है।
 
दूषित उपकरणों के द्वारा भी यह बीमारी सवस्थ पौधों पर फैलती है। यह बैक्टीरिया कई महीनों तक पुराने घावों पर रह सकता है। यह घावों की उपस्थिति से पता लगाया जा सकता है। इसे प्रभावित शाखाओं को काटकर रोका जा सकता है। बॉर्डीऑक्स 1 प्रतिशत स्प्रे, एक्यूअस घोल 550 पी पी एम, स्ट्रैप्टोमाइसिन सल्फेट भी सिटरस कैंकर को रोकने के लिए उपयोगी है। 
 
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गोंदिया रोग : वृक्ष की छाल में गूंद निकलना इस बीमारी के लक्षण हैं। प्रभावित पौधा हल्के पीले रंग में बदल जाता है। तने और पत्ते की सतह पर गूंद की सख्त परत बन जाती है। कई बार छाल गलने से नष्ट हो जाती है और वृक्ष मर जाता है। पौधा फल के परिपक्व होने से पहले ही मर जाता है। इस बीमारी को जड़ गलन भी कहा जाता है। जड़ गलन की प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करना, जल निकास का अच्छे से प्रबंध करने से इस बीमारी को रोका जा सकता है। पौधे को नुकसान से बचाना चाहिए। मिट्टी में 0.2 प्रतिशत मैटालैक्सिल MZ-72 + 0.5 प्रतिशत ट्राइकोडरमा विराइड डालें, इससे इस बीमारी को रोकने में मदद मिलती है। वर्ष में एक बार ज़मीनी स्तर से 50-75 सैं.मी ऊंचाई पर बॉर्डीऑक्स को जरूर डालना चाहिए।
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पत्तों के ऊपर धब्बा रोग : पौधे के ऊपरी भागों पर सफेद रूई जैसे धब्बे देखे जाते हैं। पत्ते हल्के पीले और मुड़ जाते हैं। पत्तों पर विकृत लाइनें दिखाई देती हैं। पत्तों की ऊपरी सतह ज्यादा प्रभावित होती है। नए फल पकने से पहले ही गिर जाते हैं। उपज कम हो जाती है। पत्तों के ऊपरी धब्बे रोग को रोकने के लिए पौधे के प्रभावित भागों को निकाल दें और नष्ट कर दें। कार्बेनडाज़िम की 20-22 दिनों के अंतराल पर तीन बार स्प्रे करने से इस बीमारी को रोका जा सकता है।

काले धब्बे : काले धब्बे एक फंगस वाली बीमारी है। फलों पर काले धब्बों को देखा जा सकता है। बसंत के शुरू में हरे पत्तों पर स्प्रे करने से काले धब्बों से पौधे को बचाया जा सकता है। इसे 6 सप्ताह के बाद दोबारा दोहराना चाहिए।

जड़ गलन : जड़ गलन भी फंगस के कारण होने वाली बीमारी है। यह बीमारी वृक्ष की जड़ की छाल को मुख्य रूप से प्रभावित करती है। छाल गलनी शुरू हो जाती है और ज़मीनी सतह से ऊपर एक परत बन जाती है। यह परत धीरे-धीरे पूरी जड़ को कवर कर लेती है। यह बहुत कम हालातों में होता है, जिससे कि वृक्ष भी मर सकता है। यह गलत मलचिंग के कारण, गोडाई, निराई करते समय पौधे का नष्ट होना इसके कारण हैं। इससे वृक्ष अपनी शक्ति खो सकता है। जड़ गलन से वृक्ष को बचाने के लिए पौधे की जड़ की नर्म और प्रभावित छाल को हटा दें। वृक्ष के प्रभावित भागों पर कॉपर की स्प्रे करनी चाहिए या बॉर्डीऑक्स को प्रभावित भाग पर लगाना चाहिए। हवा के अच्छे बहाव के लिए कमज़ोर, प्रभावित और वृ़क्ष की तंग शाखाओं को हटा दें।

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जिंक की कमी : यह सिटरस के वृक्ष में बहुत सामान्य कमी है। इसे पत्तों की मध्य नाड़ी और शिराओं में पीले भाग के रूप में देखा जा सकता है। जड़ का गलना और शाखाओं का झाड़ीदार होना आम देखा जा सकता है। फल पीला, लम्बा और आकार में छोटा हो जाता है। सिटरस के वृक्ष में जिंक की कमी को पूरा करने के लिए खादों की उचित मात्रा दी जानी चाहिए। जिंक सल्फेट को 10 लीटर पानी में 2 चम्मच मिलाकर दिया जा सकता है। इसकी स्प्रे पूरे वृक्ष, शाखाओं और हरे पत्तों पर की जा सकती है। इसे गाय या भेड़ की खाद द्वारा भी बचाया जा सकता है।

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आयरन की कमी : नए पत्तों का पीले हरे रंग में बदलना आयरन की कमी के लक्षण हैं। पौधे को आयरन कीलेट दिया जाना चाहिए। गाय और भेड़ की खाद द्वारा भी पौधे को आयरन की कमी से बचाया जा सकता है। यह कमी ज्यादातर क्षारीय मिट्टी के कारण होती है।

फसल की कटाई

उचित आकार के होने के साथ आकर्षित रंग, टी एस एस की मात्रा 12:1 होने पर कागज़ी- नींबू के फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। किस्म के आधार पर फल मध्य जनवरी से मध्य फरवरी के महीने में तैयार हो जाते हैं। तुड़ाई उचित समय पर करें। ज्यादा जल्दी और ज्यादा देरी से तुड़ाई करने पर घटिया गुणवत्ता के फल मिलते हैं।

कटाई के बाद

तुड़ाई के बाद, फलों को पानी से अच्छे से धोयें फिर क्लोरीनेटड 2.5 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर इसमें फलों को भिगो दें। तब इन्हें आंशिक रूप से सुखाएं। अच्छी गुणवत्ता के साथ आकार में सुधार लाने के लिए सिट्राशाइन वैक्स फोम लगाएं। फिर इन फलों को छांव में सुखाएं और पैकिंग करें। फलों को बक्सों में पैक किया जाता है।