उत्तर प्रदेश में ज्वार की फसल

आम जानकारी

ज्वार भारत की मुख्य तीसरी अनाज की फसल है।  यह फसल चारे के लिए और कईं फैक्टरियों में कच्चे माल में प्रयोग की जाती है। ज्वार में कैल्शियम, पोटाशियम, आयरन, प्रोटीन और फाइबर उच्च मात्रा में होता है।यू एस ए ज्वार का सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत में महाराष्ट्र, आंध्रा प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, गुजरात, तामिलनाडू, राजस्थान और उत्तर प्रदेश ज्वार उगाने वाले मुख्य राज्य हैं। उत्तर प्रदेश में झांसी, हमीरपुर, बांदा, फतेहपुर, अलाहबाद, फारूखाबाद, मथुरा और हरदोई ज्वार उगाने वाले मुख्य जिले हैं।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    25°C - 32°C (Max)
    18°C (Min)
  • Season

    Rainfall

    40 cm annual
  • Season

    Sowing temperature

    25°C - 30°C
  • Season

    Harvesting temperature

    18°C - 16°C
  • Season

    Temperature

    25°C - 32°C (Max)
    18°C (Min)
  • Season

    Rainfall

    40 cm annual
  • Season

    Sowing temperature

    25°C - 30°C
  • Season

    Harvesting temperature

    18°C - 16°C
  • Season

    Temperature

    25°C - 32°C (Max)
    18°C (Min)
  • Season

    Rainfall

    40 cm annual
  • Season

    Sowing temperature

    25°C - 30°C
  • Season

    Harvesting temperature

    18°C - 16°C
  • Season

    Temperature

    25°C - 32°C (Max)
    18°C (Min)
  • Season

    Rainfall

    40 cm annual
  • Season

    Sowing temperature

    25°C - 30°C
  • Season

    Harvesting temperature

    18°C - 16°C

मिट्टी

इसे मिट्टी की व्यापक किस्मों में उगाया जा सकता है लेकिन अच्छे निकास वाली  रेतली दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त होती है। इसकी खेती करने और अच्छी वृद्धि के लिए मिट्टी की पी एच 6 से 7.5 होनी चाहिए।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Varsha: यह किस्म बुंदेलखंड को छोड़कर यू पी के सभी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 10-12 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह 125-130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
 
CSV 13: यह पूरे यू पी में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है। इसकी औसतन पैदावर 8.8-11 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म 105-111 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
 
CSV 15: यह पूरे यू पी में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है। इसकी औसतन पैदावर 9-11 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म 105-111 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
 
SPB 1388 (Bundel): यह पूरे यू पी में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है। इसकी औसतन पैदावर 12-14 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म 110-115 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
 
Vijeta: यह पूरे यू पी में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है। इसकी औसतन पैदावर 12-14 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म 100-110 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
 
CSH 16: यह एक हाइब्रिड किस्म है। यह किस्म 105-110 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावर 12-14 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
 
CSH 9 : यह एक हाइब्रिड किस्म है। यह किस्म 105-110 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावर 15-17 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
 
CSH 14: यह एक हाइब्रिड किस्म है। यह किस्म 100-105 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावर 14-16 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
 
CSH 18: यह एक हाइब्रिड किस्म है। यह किस्म 115-125 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावर 14-16 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
 
CSH 13: यह एक हाइब्रिड किस्म है। यह किस्म 115-125 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावर 14-16 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
 
CSH 23: यह एक हाइब्रिड किस्म है। यह किस्म 120-125 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावर 16-18 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
UP Chari 1 and 2: यह किस्म चारे के लिए प्रयोग की जाती है। इसकी हरे चारे की पैदावार 140-180 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
HC 171: यह लंबी किस्म, खरीफ और गर्मियों के मौसम में बिजाई के लिए उपयुक्त है। यह 110 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 160 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
HC 136: यह दोहरी कटाई वाली किस्म सिंचित हालातों में बिजाई के लिए उपयुक्त है। यह 140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 160 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Sweet sudan: यह किस्म लंबी, दोहरी कटाई वाली और सिंचित हालातों में बिजाई के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 300 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
SSG 59-3
 
Pusa Chari
 
HC 136
 
Pusa Chari 9
 
Pusa Chari 23
 
MP Chari
 
HC 260, HC 171
 
Harasona 855 F
 
MFSH 3
 
PCH 106
 
Safed Moti (FSH 92079)
 
Pant Chari 5 (UPFS 32)
 
CSH 20MF 
 
Haryana Jowar 513
 
CSH 24MF
 
 

 

ज़मीन की तैयारी

हल्की से मध्यम गहरी मिट्टी में एक गहरी जोताई करें। क्रॉस हैरो से 2 जोताई करें। खेत ऐसे तैयार करें कि खेत में पानी ना खड़ा रहे।

बिजाई

बिजाई का समय
खरीफ मौसम में, जून के आखरी सप्ताह से जुलाई का पहला सप्ताह बिजाई के लिए उपयुक्त होता है।
 
फासला
बिजाई के लिए कतार से कतार में 45 सैं.मी. और पौधे से पौधे में 15-20 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
बीज को 2-3 सैं.मी. से अधिक गहरा नहीं बोना चाहिए।
 
बिजाई का ढंग
ज्वार को सीड ड्रिल विधि से बोया जाता है।
 

बीज

बीज की मात्रा 
बिजाई के लिए 4-5 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
फसल को मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए  बिजाई से पहले 300 mesh सल्फर पाउडर 4 ग्राम से बीजों का उपचार करें और फिर अज़ोटोबेक्टर 25 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। फसल को दीमक से हमले से बचाने के लिए क्लोरपाइरीफॉस 12 मि.ली. से प्रति किलो बीज का उपचार करें।
 
 
फंगसनाशी दवाई   मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज)
Captan 
3 gm
Thiram
3 gm
Carbendazim  
2 gm
Chlorpyrifos 12 ml
 

 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

Varieties Urea SSP MOP
Hybrid 70 100 15
Other varieties 35 50 15

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

Varieties
Nitrogen
Phosphorus
Potash
Hybrid
32
16
9
Other 16 8 9

 

मिट्टी की जांच के आधार पर खादों की मात्रा डालें।
 
हाइब्रिड किस्मों के लिए, नाइट्रोजन 32 किलो (यूरिया 70 किलो), फासफोरस 16 किलो (एस एस पी 100 किलो) और पोटाश 8 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 15 किलेा) प्रति एकड़ में डालें।
 
अन्य किस्मों के लिए, नाइट्रोजन 16 किलो (यूरिया 35 किलो), फासफोरस 8 किलो (एस एस पी 50 किलो) और पोटाश 8 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 15 किलेा) प्रति एकड़ में डालें।
 
फासफोरस, पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बिजाई के समय डालें और बाकी बची नाइट्रोजन बिजाई के 30-35 दिनों के बाद डालें।
 

 

 

खरपतवार नियंत्रण

ज्वार की फसल घास और चौड़े पत्तों वाले नदीनों से प्रभावित होती है। बिजाई के 15-20 दिनों के बाद खुरपी की सहायता से हाथों से गोडाई करें और दूसरी गोडाई बिजाई के 35-40 दिनों के बाद करें। बिजाई के 7-15 दिनों में एट्राज़िन 500 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। स्प्रे करते समय मिट्टी में पर्याप्त नमी मौजूद होनी चाहिए।

सिंचाई

शाखाएं निकलने, फूल निकलने और दाने बनने की अवस्थाएं सिंचाई के लिए गंभीर होती हैं। खरीफ मौसम में बारिश की तीव्रता के आधार पर 1 से तीन सिंचाई करें। पानी के पर्याप्त साधन होने पर रबी और गर्मियों के मौसम में इन तीनों गंभीर अवस्थाओं में सिंचाई जरूर करनी चाहिए।

पौधे की देखभाल

ज्वार की मक्खी
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
ज्वार की मक्खी : यह नए पत्तों के ऊपर अंडे देती है। अंडे सफेद रंग के और बेलनाकार के होते हैं जबकि प्रौढ़ कीट सलेटी रंग के हो जाते हैं। छोटे कीट पीले रंग के होते हैं और तने के अंदर वृद्धि करके तने को काट देते हैं और डेड हार्ट का उत्पादन करते हैं। प्रभावित पौधे में आस पास पत्तों का उत्पादन होता है। पौधे को खींचने पर पौधा आसानी से बाहर निकल आता है और गंदी दुर्गंध देता है। 1 से 6 सप्ताह के पौधे इस कीट के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं।
 
बिजाई में देरी ना करें। पिछली फसल की कटाई के बाद, खेत साफ करें और बचे पौधे बाहर निकाल  दें। बिजाई से पहले बीज को इमीडाकलोप्रिड 70 डब्लयु एस 4 मि.ली. से प्रति किलो बीज का उपचार करें। प्रभावित पौधे को निकालें और खेत में से दूर ले जाकर नष्ट कर दें। हमले की हालत में मिथाइल डेमेटान 25 ई सी 200 मि.ली. और डाइमैथोएट 30 ई सी 200 मि.ली. को प्रति एकड़ में डालें। 
 
तना छेदक
तना छेदक : इसके अंडे लंबे पत्ते के नीचे की ओर गुच्छे में होते हैं। यह सुंडी पीले भूरे रंग की होती है। जिसका सिर भूरा होता है। पतंगे तूड़ी रंग के होते हैं। हमले के दौरान पत्तों का सूखना और उनका झड़ना देखा जा सकता है। पत्तों के ऊपर छोटे छोटे सुराख नज़र आते हैं।
 
इस कीट की जांच के लिए मध्य रात्रि तक रोशनी कार्ड लगा दें। इसे तने छेदक के प्रौढ़ कीट आकर्षित होते हैं और मर जाते हैं। फोरेट 10 जी 5 किलो या कार्बोफियूरॉन 3 जी 10 किलो को रेत में मिलाकर 20 किलो मात्रा बना लें और पत्ते के छेदों में डालें। इससे बचाव के लिए कार्बरील 800 ग्राम प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
गोभ की सुंडी
गोभ की सुंडी : इसके अंडे सफेद और गोल आकार के होते हैं। इसके अंडे क्रीमी सफेद और गोलाकार आकार के होते हैं। कीटों का रंग हरे से भूरे रंग के साथ शरीर पर भूरी सलेटी रंग की धारियां होती हैं। प्रौढ़ कीट हल्के भूरे पीले रंग के होते हैं। इन कीटों का हमला होने पर बालियां आधी खायी हुइ लगती हैं और चूने जैसी दिखाई देती हैं। बालियों में इनका मल देखा जा सकता है।
 
हमले की जांच के लिए रोशनी वाले कार्ड लगाएं। फूल निकलने से दानों के पकने तक 5 सैक्स फेरोमोन कार्ड  प्रति एकड़ में प्रयोग करें। कार्बरील 10 डी 1 किलो या मैलाथियोन 5 डी 10 किलो प्रति एकड़ में स्प्रे करें। 
गोभ की सुंडी
बालियों की सुंडी : जब दाने दूधिया अवस्था में होते हैं तो छोटे और प्रौढ़ कीट दानों में से रस चूसते हैं। जिसके कारण दाने सिकुड़ जाते हैं और काले रंग के हो जाते हैं। बालियों पर बड़ी संख्या में छोटे कीटों को देखा जा सकता है। ये कीट पतले और हरे रंग के होते हैं। बालियों के नर प्रौढ़ कीट हरे रंग के होते हैं। और मादा भी हरे रंग के और किनारों पर से भूरे रंग के होते हैं।
 
बालियों के निकलने के बाद तीसरे और 18वें दिन कार्बरील 10 डी 10 किलो या मैलाथियोन 5 डी 10 किलो प्रति एकड़ में छिड़कें। मैलाथियोन 50 ईसी 400 मि.ली. को 200 लीटर पानी में मिलाकर 10 प्रतिशत बालियों के निकलने पर स्प्रे करें।  
ज्वार का मच्छर
ज्वार का मच्छर : यह कीट छोटे मच्छर के आकार का होता है। जिसका पेट गहरा संतरी रंग का और पारदर्शी पंख होते हैं। छोटे कीट विकसित दानों को अपना भोजन बनाते हैं। लार्वा अंडकोश से अपना भोजन लेता है और विकसित दानों को नष्ट कर देता है जिससे दाने आधे हो जाते हैं। दानों पर लाल रंग के चिपचिपे पदार्थ का निकलना छोटे कीटों की मौजूदगी को दर्शाता है।
 
इन कीटों को आकर्षित करने के लिए रोशनी वाले कार्ड लगाएं। कार्बरील 10 डी 10 किलो या मैलाथियोन 5 डी 10 किलो बालियां निकलने के बाद तीसरे और 18वें दिन प्रति एकड़ में डालें। 
एंथ्राकनोस
  • बीमारियां और रोकथाम
एंथ्राक्नोस : पत्तों की दोनों तरफ छोटे लाल रंग के धब्बे जो बीच में से सफेद रंग के होते हैं, पड़ जाते हैं। प्रभावित भाग के सफेद सतह के ऊपर कई छोटे छोटे काले धब्बे दिखाई देते हैं जो फंगस के जीवाणु होते हैं। तने के ऊपर गोलाकार कोढ़ विकसित हो जाता है। जब हम प्रभावित तने को काटते हैं तो यह बेरंगा दिखाई देता है। यह बीमारी बारिश, उच्च नमी और 28-30 डिगरी सैल्सियस तापमान पर ज्यादा फैलती है। 
 
फसल को लगातार ना उगाएं। अंतरफसली अपनायें। प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। बिजाई से पहले कप्तान या थीरम 3 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। यदि इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब 300 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 400 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
कुंगी
कुंगी : यह बीमारी फसल की वृद्धि वाली अवस्था में हमला करती है। पत्तों के निचली तरफ लाल रंग के छोटे धब्बे देखे जा सकते हैं। पत्तों की दोनों सतहों पर दाने बन जाते हैं और पत्तों के फटने पर लाल रंग का पाउडर निकलता है। तने के नज़दीक और तने पर भी दाने पड़ जाते हैं। यह बीमारी कम तापमान 10-12 डिगरी सैल्सियस के साथ बारिश वाले मौसम में भी हमला करती है।  
 
कुंगी की प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। यदि इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब 250 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। या सल्फर 10 किलो को प्रति एकड़ में छिड़कें।
गुंदिया रोग
गुंदिया रोग : इस बीमारी के कारण प्रभावित फूल में से शहद जैसा पदार्थ निकलता है।  यह पदार्थ कई कीटों और कीड़ियों को आकर्षित करता है और बालियां काले रंग की दिखाई देती हैं। मिट्टी के ऊपर प्रभावित पौधे के आधार पर सफेद रंग के धब्बे देखे जा सकते हैं। फूल निकलने के समय अधिक बारिश, उच्च नमी और बादलवाई में यह बीमारी अधिक फैलती है।
 
गुंदिया रोग की प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। बिजाई से पहले 2 प्रतिशत नमक के घोल में बीजों को भिगोयें, इस रोग से प्रभावित बीजों को निकाल दें। कप्तान या थीरम 4 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। ज़ीरम, ज़िनेब, कप्तान या मैनकोजब 2.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर बालियां निकलने के समय स्प्रे करें। दूसरी स्प्रे 50 प्रतिशत फूल निकलने के समय करें। यदि जरूरत पड़े तो सप्ताह में एक सप्ताह में दोबारा स्प्रे करें।
दानों पर फंगस
दानों पर फंगस : फूल निकलने या दानें भरने के समय नमी वाले मौसम के कारण बालियों पर फंगस पड़ जाती है। घनी बालियां इस बीमारी के प्रति ज्यादा संवेदनशील होती हैं।
 
पिछेती बिजाई ना करें। प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। बिजाई से पहले थीरम 3 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। यदि बालियां निकलने के दौरान बारिश हो जाये तो मैनकोजेब 2.5 ग्राम या कप्तान 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
पत्तों के निचले धब्बे
पत्तों के निचले धब्बे : पत्तों की निचली सतह पर सफेद रंग के धब्बे विकसित हो जाते हैं। पत्ते हरे या पीले रंग के दिखाई देते हैं।
 
एक ही खेत में लगातार फसल ना उगायें। दालों और तेल वाली फसलों के साथ फसली चक्र अपनायें। इस बीमारी की प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। बिजाई से पहले मैटालैक्सिल 4 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। यदि इसका हमला दिखे तो मैटालैक्सिल 2 ग्राम या मैनकोजेब 2.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
झुलस रोग
पत्ता झुलस रोग : शुरूआती अवस्था में छोटे संकुचित लंबी धुरी के आकार के धब्बे पड़ जाते हैं। पुराने पौधों पर लंबे समय तक तूड़ी के आकार के धब्बे मध्य और किनारों पर देखे जा सकते हैं। यह पत्ते के बड़े भाग को नष्ट कर देता है और फल जली हुई दिखाई देती है। यह बीमारी उच्च नमी, अधिक बारिश के साथ ठंडे नमी वाले मौसम में ज्यादा फैलती है।
 
बीमारी रहित बीजों का प्रयोग करें और प्रतिरोधक किस्में उगायें। अंतरफसली अपनायें। बिजाई से पहले थीरम या कप्तान 4 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। यदि इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब 2.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। जरूरत पड़े तो 15 दिनों के अंतराल पर दूसरी स्प्रे करें।
झूठी कांगियारी
दानों की कांगियारी : बालियों में दाने बनने के समय यह बीमारी हमला करती है। दाने गंदे सफेद या सलेटी रंग के दिखाई देते हैं और सफेद क्रीम से ढक जाते हैं। बालियों के निकलने से पूर्व भी पौधा इस बीमारी से प्रभावित हो सकता है। इससे पौधा, सेहतमंद पौधे से छोटा, पतला तना होता है। बालियां सेहतमंद पौधे से जल्दी निकल आती हैं। 
 
बीमारी रहित बीजों का प्रयोग करें और प्रतिरोधक किस्में उगायें। अंतरफसली अपनायें। बिजाई से पहले थीरम या कप्तान 3 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें।

फसल की कटाई

बिजाई के 65-85 दिन बाद जब फसल चारे का रूप ले लेती है तब इसकी कटाई करनी चाहिए। इसकी कटाई का सही समय तब होता है जब दाने सख्त और नमी 25 प्रतिशत से कम हो। जब फसल पक जाये तो तुरंत कटाई कर लें। कटाई के लिए दरांती का प्रयोग करें। पौधे धरती के नज़दीक से काटें। कटाई के बाद काटी फसल को एक जगह पर इक्ट्ठी करें और अलग अलग आकार की भरियां बना लें। कटाई के 2-3 दिन बाद बलियों में से दाने निकालें। कई बार खड़ी फसल में से बलियां काटकर अलग अलग कर ली जाती हैं और फिर बलियों की छंटाई कर ली जाती है। इसके बाद इन्हें धूप में सुखाया जाता है।

कटाई के बाद

सूखने के बाद एक ढोल और छड़ी की सहायता से फसल को झाड़ लें। दाने इक्ट्ठे करें। धूप में 6-7 दिन रखें ताकि 13-15 प्रतिशत नमी हो जाये। साफ किये दाने सूखी और साफ जगह पर जमा कर लें।