मसूर फसल की जानकारी

आम जानकारी

यह एक दालों वाली मुख्य फसल है। यह दाल तीन रंगो गहरी लाल, लाल और पीले रंग की होती है। इसे बहुत सारे पकवानों में प्रयोग किया जाता है। मसूर से कल्फ, कपड़ा और छापा बनाने का पदार्थ भी मिलता है। इसे गेहूं के आटे में मिलाकर ब्रैड और केक भी बनाये जाते हैं। भारत, दुनिया में सब से अधिक मसूर पैदा करने वाला देश है।
 
क्षेत्र और उत्पादन में उत्तर प्रदेश का पहला स्थान आता है। लगभग 6.13 लाख क्षेत्र में मसूर की खेती की जाती है। फुज़ारियम सूखा, कुंगी और सूखे की स्थितियों की रोकथाम करके इसकी उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में मसूर की फसल को धान की फसल के साथ उगाया जाता है।
 

जलवायु

  • Season

    Temperature

    18-20°C
  • Season

    Rainfall

    100cm
  • Season

    Sowing Temperature

    18-20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    22-24°C
  • Season

    Temperature

    18-20°C
  • Season

    Rainfall

    100cm
  • Season

    Sowing Temperature

    18-20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    22-24°C
  • Season

    Temperature

    18-20°C
  • Season

    Rainfall

    100cm
  • Season

    Sowing Temperature

    18-20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    22-24°C
  • Season

    Temperature

    18-20°C
  • Season

    Rainfall

    100cm
  • Season

    Sowing Temperature

    18-20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    22-24°C

मिट्टी

यह हर तरह की मिट्टी में उग सकती है पर कलराफी या सेम वाली ज़मीन में नहीं उग सकती। मिट्टी नदीन और जड़ रहित होनी चाहिए ताकि बीज एक जैसी गहराई में बोये जा सकें।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

IPL 81: यह किस्म बुंदेलखंड के क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह 120-125 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके दाने छोटे होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 7-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Narendra Masur: यह किस्म पूरे उत्तर प्रदेश में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह 135-140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके दाने मध्यम आकार होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 8-9 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
DPL 62: यह किस्म पूरे उत्तर प्रदेश में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह 130-135 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके दाने मध्यम आकार होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 7-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pant Masur 5: यह किस्म पूरे उत्तर प्रदेश में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह 135-140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके दाने मध्यम आकार होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 8-9 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pant Lentil 4: यह किस्म उत्तर प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह 140-145 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके दाने छोटे आकार होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 6.4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
DPL 15: यह किस्म उत्तर प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह 130-140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 7-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
L 4076: यह किस्म पूरे उत्तर प्रदेश में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह 135-140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके दाने मध्यम आकार के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 7-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa Vaibhav: यह किस्म उत्तर प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह 135-140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 7-9 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
K 75: यह किस्म पूरे उत्तर प्रदेश में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह 120-125 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके दाने बड़े आकार के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 5.6-6.4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
HUL 57: यह किस्म पूरे उत्तर प्रदेश में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह 125-135 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके दाने छोटे आकार के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 7-9 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
KLS 218: यह यू पी में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है। यह 125-130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके दाने मध्यम आकार के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 7-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
IPL 406: यह पश्चिमी यू पी में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है। यह 125-130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके दाने बड़े आकार के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 6.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Shekhar 2: यह किस्म पूरे यू पी में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है। यह 125-130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 8-9 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Shekhar 3: यह किस्म पूरे यू पी में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है। यह 125-130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 8-9 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
DDR 27, Prakash, Swati, HUPD 15: यह अधिक उपज वाली और कम समय की किस्म है। यह किस्म पत्ते पर सफेद धब्बे रोगों की प्रतिरोधक है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Pant Lentil 8 (PL 063): यह किस्म 2010 में जारी की गई। इसकी औसतन पैदावार 5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म 135 दिनों में पक जाती है। यह किस्म काफी हद तक कुंगी, सूखे और फली छेदक के प्रतिरोधक किस्म है।
 
Haryana Masur 1: यह पूरे हरियाणा में बोने के लिए अनुकूल किस्म है। यह कीटों और बीमारियों के प्रतिरोधी है। यह किस्म 140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 6.5-7 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Sapna: यह दरमियाने समय की किस्म हरियाणा के सिंचित क्षेत्रों में बोने के लिए अनुकूल है। यह 140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके दाने मोटे, समतल, और सलेटी रंग के होते हैं जिन पर गहरे काले रंग के धब्बे होते हैं। यह फली छेदक के प्रतिरोधी है। इसकी औसतन पैदावार 6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Garima:  यह सिंचित और असिंचित दोनों क्षेत्रों में उगाई जा सकती है। इसके पत्ते चौड़े और गहरे हरे रंग के होते हैं। इसके दाने सपना किस्म के दानों से बड़े होते हैं। यह किस्म 135 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Bombay 18: यह किस्म 130-140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 4-4.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
DPL 15: यह किस्म 130-140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 5.6-6.4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pant Lentil 7: यह किस्म 147 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 

ज़मीन की तैयारी

यदि ज़मीन हल्की हो तो इसमें बहुत जोताई की जरूरत नहीं पड़ती भारी ज़मीनों में गहरी जोताई और उन्हें 3-4 बार जोतना चाहिए। पानी के अच्छे बहाव के लिए सुहागा मारना बहुत जरूरी है। फसल बीजने के समय खेत में सही नमी होनी चाहिए।

बिजाई

बिजाई का समय
समय पर बिजाई के लिए, अक्तूबर से मध्य नवंबर का समय उपयुक्त होता है। देरी से बिजाई के लिए, दिसंबर का महीना उपयुक्त होता है।
 
फासला
कतारों में 25-30 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
बीज को 3-4 सैं.मी. की गहराई पर बोयें।
 
बिजाई का ढंग
बिजाई के लिए, पोरा ढंग या बीज कम खाद ड्रिल का प्रयोग करें। इसके इलावा इसकी बिजाई हाथों से बुरकाव करके भी की जा सकती है।
 

बीज

बीज की मात्रा
एक एकड़ में बिजाई के लिए 12-15 किलो बीज उपयुक्त होते हैं। देरी से बिजाई के लिए मोटे बीज वाली किस्मों का प्रयोग करें और 16-20 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
बिजाई से पहले बीज को कप्तान या थीरम 3 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद, राइज़ोबियम 200 ग्राम से 10 किलो बीज का उपचार करें। यदि मसूर पहली बार लगाई गई हो तो राइज़ोबियम से बीज का उपचार आवश्यक है।
 
निम्नलिखित में से किसी एक फंगसनाशी या कीटनाशी का प्रयोग करें। 
 
 
फंगसनाशी/ कीटनाशी दवाई   मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज)                     
Captan 3gm
Thiram 3gm
 

 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA
SSP MOP SULPHUR
20 150 15 8

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
9 24 9

 

नाइट्रोजन 9 किलो (20 किलो यूरिया), फासफोरस 24 किलो (150 किलो सिंगल सुपर फासफेट) और पोटाश 9 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 15 किलो) और सल्फर 8 किलो प्रति एकड़ में डालें। फासफोरस, पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बिजाई के समय डालें। बाकी बची नाइट्रोजन को बिजाई के 4-5 सप्ताह बाद डालें।
 
जिंक की कमी होने पर जिंक सल्फेट 4-6 किलो प्रति एकड़ में डालें।
 

 

 

खरपतवार नियंत्रण

बाथू, सेंजी, क्रुशन निल, हिरनखुरी, चटरी मटरी, अकारा अकारी, जंगली गाजर आदि खेत में पाये जाने वाले मुख्य नदीन हैं।
पहले दो महीने नदीनों का उचित नियंत्रण आवश्यक है। बिजाई के 30 और 60 दिन बाद गोडाई करें। नदीनों के अंकुरण से पहले पैंडीमैथालीन 1 लीटर को प्रति एकड़ में डालने से नदीनों की रोकथाम में मदद मिलेगी।
 

सिंचाई

मसूर को आमतौर पर बारानी इलाकों में उगाया जाता है। मौसम के हिसाब से इसे दो या तीन पानी की जरूरत पड़ती है। पहला पानी बीजने से चार हफ्ते बाद और दूसरा पानी फूल लगने के समय लगाएं। फूल और फलियां बनने वाले पड़ाव पर भी सिंचाई बहुत जरूरी है।

पौधे की देखभाल

फली छेदक
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
फली छेदक : यह सुंडी पत्ते, डंडियां और फूलों को खाती है। यह मसूर की खतरनाक सुंडी है और पैदावार का बहुत नुकसान करती है। इसकी रोकथाम के लिए हेक्ज़ाविन 900 ग्राम 50 डब्लयु पी को 90 लीटर पानी में मिलाकर फूल लगने के समय प्रति एकड़ में छिड़काव करें। यदि जरूरत हो तो तीसरा छिड़काव 3 हफ्तों बाद कर सकते हैं।
कुंगी
  • बीमारियां और रोकथाम
कुंगी : इससे टहनियां, पत्ते और फलियों के ऊपर हल्के पीले रंग के उभरे हुए धब्बे पड़ जाते हैं। ये धब्बे ग्रुप के रूप में नज़र आते हैं। छोटे धब्बे धीरे धीरे बड़े धब्बों में बदल जाते हैं। कई बार प्रभावित पौधा पूरी तरह सूख जाता है। इससे बचाव के लिए रोग की प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें और रोकथाम के लिए 400 ग्राम M-45 को 200 लीटर पानी में डालकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।
झुलस रोग

झुलस रोग : इससे टहनियां और फलियों के ऊपर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। ये धब्बे धीरे धीरे लंबे आकार के बनते हैं। कईं बाद ये धब्बे गोलाकार का रूप ले लेते हैं। बचाव के लिए बीमारी रहित बीज का प्रयोग करें और पौधे को नष्ट कर दें। इसकी रोकथाम के लिए 400 ग्राम बाविस्टिन को 200 लीटर पानी में डालकर प्रति एकड़ पर छिड़काव करें।

फसल की कटाई

कटाई सही समय पर करनी चाहिए। जब पौधे के पत्ते सूख जाएं और फलियां पक जाएं तब फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। देरी करने से फलियां झड़नी शुरू हो जाती है। इसकी कटाई द्राती से करें। दानों को साफ करके धूप में सुखाकर 12 प्रतिशत नमी पर स्टोर कर लें।