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आम जानकारी

लोबिया हरी फली, सूखे बीज, हरी खाद और चारे के लिए पूरे भारत में उगाने जाने वाली वार्षिक फसल है। यह अफ्रीकी मूल की फसल है। यह सूखे को सहने योग्य, जल्दी पैदा होने वाली फसल है, और नदीनों को शुरूआती समय में पैदा होने से रोकती है। यह मिट्टी में नमी बनाए रखने में मदद करती है। लोबिया प्रोटीन, कैल्शियम और लोहे का मुख्य स्त्रोत है। 
 
यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश की प्रसिद्ध फसल है।
 

जलवायु

  • Season

    Temperature

    22-35°C
  • Season

    Rainfall

    750-1100mm
  • Season

    Sowing Temperature

    22-28°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-35°C
  • Season

    Temperature

    22-35°C
  • Season

    Rainfall

    750-1100mm
  • Season

    Sowing Temperature

    22-28°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-35°C
  • Season

    Temperature

    22-35°C
  • Season

    Rainfall

    750-1100mm
  • Season

    Sowing Temperature

    22-28°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-35°C
  • Season

    Temperature

    22-35°C
  • Season

    Rainfall

    750-1100mm
  • Season

    Sowing Temperature

    22-28°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-35°C

मिट्टी

इसे मिट्टी की विभिन्न किस्मों में उगाया जा सकता है पर यह अच्छे जल निकास वाली दोमट मिट्टी में अच्छे परिणाम देती है। 

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

TA 5269: इस फसल की खेती फलियां लेने के उद्देश्य से की जाती है। यह किस्म 50-60 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 20-24 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
TA 2: इसकी औसतन पैदावार 120-130 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
UPC-5287: इसकी औसतन पैदावार 14-16 टन प्रति एकड़ होती है।
 
UPC 4200: इसकी औसतन पैदावार 140-160 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Russian Giant: इसकी औसतन पैदावार 140 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
IGF 450: इसकी औसतन पैदावार 140 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Kashi Kanchan: यह छोटी और फैलने वाली किस्म है। इसकी खेती गर्मी के मौसम के साथ साथ बरसात के मौसम में की जा सकती है। इसकी फलियां नर्म और गहरे हरे रंग की होती हैं। इसकी फली की औसतन पैदावार 60-70 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Kashi Shyamal: यह किस्म इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ वैजीटेबल रिसर्च द्वारा विकसित की गई है।
 
Kashi Gauri: यह किस्म इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ वैजीटेबल रिसर्च द्वारा विकसित की गई है।
 
Kashi Unnati: इस किस्म की फलियां नर्म और हल्के हरे रंग की होती हैं यह बिजाई के 40-45 दिनों के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार  50-60 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
UPC-5286: इसके हरे चारे की औसतन पैदावार 12-18 टन प्रति एकड़ होती है।
 
IFC-8401: इसके हरे चारे की औसतन पैदावार 12-18 टन प्रति एकड़ होती है।
 
Cowpea 88: इस किस्म की पूरे राज्य में खेती करने की सिफारिश की गई है। इसे हरे चारे के साथ साथ दाने लेने के उद्देश्य से भी उगाया जाता है। इसकी फलियां बड़ी और बीज मोटे चॉकलेटी भूरे रंग के होते हैं। यह पीले चितकबरे रोग और एंथ्राक्नोस रोग के प्रतिरोधक है। इसके बीजों की औसतन पैदावार 4.4 क्विंटल और हरे चारे की 100 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa su Komal: इसकी औसतन पैदावार 40 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में 
 
IGFRI-450: इसके हरे चारे की औसतन पैदावार 12-16 टन प्रति एकड़ होती है।
 
IFC-8503, EC-4216: इसके हरे चारे की औसतन पैदावार 12-16 टन प्रति एकड़ होती है।
 
CL 367: इसे हरे चारे के साथ साथ दाने लेने के उद्देश्य से उगाया जा सकता है। यह किस्म बड़ी संख्या में फलियां पैदा करती है। इसके बीज छोटे और क्रीमी सफेद रंग के होते हैं। यह पीले चितकबरे रोग और एंथ्राक्नोस बीमारी के प्रतिरोधक है। इसके बीजों की औसतन पैदावार 4.9 क्विंटल और हरे चारे की औसतन पैदावार 108 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 

ज़मीन की तैयारी

दालों की फसल की तरह इस फसल के लिए सामान्य बीज बैड तैयार किए जाते हैं।मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए खेत की दो बार जोताई करें और प्रत्येक जोताई के बाद सुहागा फेरें।

बिजाई

बिजाई का समय
लोबिया की बिजाई का उपयुक्त समय मॉनसून के शुरू होने पर है। जुलाई के महीने में बिजाई पूरी कर लें। 
 
फासला
बिजाई के दौरान कतार से कतार में 45-50 सैं.मी. और पौधे से पौधे में 15 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें। TA 2 किस्म के लिए कतारों में 45-50 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें। जबकि TA 5269 किस्म के लिए कतारों में 50 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बिजाई का ढंग
दानों के लिए, बीजों को पोरा या सीड कम खाद ड्रिल की सहायता से बोयें, जबकि हरी खाद के लिए बुरकाव विधि का प्रयोग करें।
 

बीज

बीज की मात्रा
12 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें। TA 5269 किस्म के लिए 8 किलो बीज जबकि TA 2 किस्म के लिए 16 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
बिजाई से पहले थीरम 2.5 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 50 प्रतिशत डब्लयु पी 2 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। इससे बीज को बीज गलन और नए पौधों को मरने से बचाया जा सकता है। 
 

खाद

बिजाई से पहले नाइट्रोजन 7.5 किलो (यूरिया 16.5 किलो) के साथ फासफोरस 20 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 125 किलो) प्रति एकड़ में डालें। लोबिया की फसल फासफोरस खाद के साथ ज्यादा क्रिया करती है। यह जड़ों के साथ साथ पौधे के विकास, पौधे में पोषक तत्वों की वृद्धि और गांठे मजबूत करने में सहायक होती है।

सिंचाई

बारिश की तीव्रता और नियमितता के आधार पर सिंचाई करें। लंबी अवधि तक बारिश ना होने पर 1-2 सिंचाई करें।

खरपतवार नियंत्रण

फसल को नदीनों से बचाने के लिए 24 घंटों के अंदर अंदर पैंडीमैथालीन 750 मि.ली. को 200 लीटर पानी में मिलाकर डालें।

पौधे की देखभाल

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  • हानिकारक कीट और रोकथाम
तेला और काला चेपा : यदि तेला और काले चेपे का हमला दिखे तो मैलाथियॉन 50 ई सी 200 मि.ली. को 80-100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में डालें।
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बालों वाली सुंडी : इस कीट का ज्यादा हमला अगस्त से नवंबर के महीने में होता है। फसल को इस कीट से बचाने के लिए बिजाई के समय तिल के बीजों की एक पंक्ति लोबिया के चारों तरफ डालें।

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  • बीमारियां और रोकथाम
बीज गलन और पौधों का नष्ट होना : यह बीमारी बीज से पैदा होने वाले माइक्रोफलोरा के कारण फैलती है। प्रभावित बीज सिकुड़ जाते हैं और बेरंगे हो जाते हैं। प्रभावित बीज अंकुरन होने से पहले ही मर जाते हैं और फसल भी बहुत कमज़ोर पैदा होती है। इसकी रोकथाम के लिए बिजाई से पहले एमीसन-6@ 2.5 ग्राम या बाविस्टिन 50 डब्लयु पी 2 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें।

फसल की कटाई

बिजाई के 55 से 65 दिनों के बाद फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है।