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आम जानकारी

इसे मूंग के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत की मुख्य दालों में से एक है। यह प्रोटीन के साथ-साथ रेशे और लोहे का मुख्य स्त्रोत है। इसे खरीफ फसल के तौर पर उगाया जा सकता है। इसे हरी खाद के फसल के तौर पर प्रयोग किया जाता है। यह शुष्क ज़मीनों पर खेती करने के लिए लाभदायक फसल है क्योंकि यह सूखे की स्थितियों को सहनेयोग्य फसल है।
 
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, आंध्रा प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान और तामिलनाडू हरी मूंग उगाने वाले मुख्य राज्य हैं। उत्तर प्रदेश में इस फसल को खरीफ की फसल के तौर पर उगाया जाता है। ईटा, अलीगढ़, हरदोई, ईटावा, मथुरा, ललितपुर, कानपुर, गाज़ीपुर, फारूखाबाद और डियोरिया, यू पी के हरी मूंग उगाने वाले मुख्य जिले हैं। 
 

जलवायु

  • Season

    Temperature

    25-35°C
  • Season

    Rainfall

    60-90 mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-35°C
  • Season

    Temperature

    25-35°C
  • Season

    Rainfall

    60-90 mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-35°C
  • Season

    Temperature

    25-35°C
  • Season

    Rainfall

    60-90 mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-35°C
  • Season

    Temperature

    25-35°C
  • Season

    Rainfall

    60-90 mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-35°C

मिट्टी

इसकी खेती मिट्टी की व्यापक किस्मों में की जा सकती है। यह अच्छे निकास वाली दोमट से रेतली दोमट मिट्टी में उगाने पर अच्छे परिणाम देती है। नमक और जल जमाव वाली मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Narendra Moong 1: यह किस्म यू पी के सभी क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त है। यह 65-70 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 4.4-5.2 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Malviya Jagriti: यह किस्म यू पी के सभी क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त है। यह 65-70 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 4.8-6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Samrat (PDM 139): यह किस्म यू पी के सभी क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त है। यह 60-65 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 3.6-4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Moong Janpriya (HUM-6): यह किस्म यू पी के सभी क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त है। यह 60-65 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 4.8-6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Meha: यह किस्म यू पी के सभी क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त है। यह 60-65 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 4.8-6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
HUM 16: यह किस्म यू पी के सभी क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त है। यह 65-70 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 4.4-5.2 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Malviya Jyoti (HUM 1): यह किस्म यू पी के सभी क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त है। यह 65-70 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 5.6-6.4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
TMV 37: यह किस्म यू पी के सभी क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त है। यह 60-65 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 4.8-5.6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Malviya Jan Chetna: यह किस्म यू पी के सभी क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त है। यह 60-62 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 4.8-5.6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
IPM 2-3: यह किस्म यू पी के सभी क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त है। यह 65-70 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
IPM 2-14: यह किस्म यू पी के सभी क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त है। यह 62-65 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 4-4.4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Type 1: यह जल्दी पकने वाली किस्म है। यह किस्म 60-65 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म हरी खाद और दाने लेने के लिए उपयुक्त किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 2.4-3.6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Jawahar- 45: यह मध्यम समय की किस्म है। यह किस्म भारत के उत्तरी और प्रायद्वीपीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। यह 75-90 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 4-5.2 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa Baisakhi: यह किस्म 60-70 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 3.2-4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
ML 1: यह मध्यम समय की किस्म पंजाब और हरियाणा राज्यों के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 90 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 3-4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
PS 16: यह किस्म पूरे देश में खेती करने के लिए उपयुक्त है। यह 60-65 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 4-4.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
K 851: यह मध्यम कद की किस्म है। यह किस्म खरीफ के साथ साथ गर्मियों में भी बिजाई के लिए उपयुक्त है। यह सूखे के प्रतिरोधक किस्म है। यह किस्म 65-70 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 3-4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Muskan: यह किस्म खरीफ के साथ-साथ गर्मियों में भी बिजाई के लिए उपयुक्त है। यह चितकबरे और गर्दन तोड़ के प्रतिरोधक किस्म है। यह किस्म 75-80 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 5-7.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Asha: यह मध्यम कद की किस्म है। यह किस्म खरीफ के साथ-साथ गर्मियों में भी बिजाई के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 65-70 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 3-4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
SML 668: यह किस्म सिंचित क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह 60 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 4-5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
MUM 2: यह किस्म 60-70 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 4.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa 9531: यह किस्म गर्मियों में बिजाई के लिए उपयुक्त है। यह 60 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 4-4.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa Vishal: यह किस्म गर्मियों में बिजाई के लिए उपयुक्त है। यह 62 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 4.4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Ganga 8: यह किस्म खरीफ में बिजाई के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 72 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 3 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
MH 125: यह किस्म 64 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 4.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
MH421: यह गर्मियों और खरीफ में बिजाई के लिए उपयुक्त किस्म है। यह किस्म 60 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 4.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Mohini: यह किस्म 60-70 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म पीले चितकबरे रोग और सरकोस्पोरा पत्तों पर धब्बे रोग को सहनेयोग्य है। इसकी औसतन पैदावार 4-4.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 

ज़मीन की तैयारी

मिट्टी के भुरभुरा होने तक दो या तीन बार जोताई करें और प्रत्येक जोताई के बाद सुहागा फेरें।

बिजाई

बिजाई का समय
गर्मियों के मौसम में 10 मार्च से 10 अप्रैल तक बिजाई पूरी कर लें। तराई क्षेत्रों के लिए मार्च में बिजाई पूरी कर लें।
 
फासला
खरीफ की बिजाई के लिए कतारों में 30 सैं.मी. और पौधे से पौधे में 10 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
बीज को 4-6 सैं.मी. की गहराई पर बोयें।
 
बिजाई का ढंग
बिजाई के लिए बिजाई वाली मशीन, पोरा या केरा ढंग का प्रयोग किया जाता है।
 

बीज

बीज की मात्रा
बिजाई के लिए एक एकड़ खेत में 8-10 किलो बीज पर्याप्त होते हैं।
 
बीज का उपचार
बिजाई से पहले, कप्तान या थीरम 3 ग्राम या थीरम 2.5 ग्राम+कार्बेनडाज़िम 1 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद, राइजोबियम घोल (राइज़ोबियम 200 ग्राम + गुड़ 250 ग्राम को आधे लीटर पानी में मिलाकर, इस घोल से 10 किलो बीज का उपचार करें)। उसके बाद बीज को छांव में सुखाएं।
 
निम्नलिखित में से किसी एक फंगसनाशी या कीटनाशी का प्रयोग करें।
 

फंगसनाशी/ कीटनाशी दवाई 

मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज)

Captan

3 gram

Thiram

3 gram

 
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
10-13 100 #

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
4-6 16 #

 

नाइट्रोजन 4-6 किलो (10-13 किलो यूरिया), फासफोरस 16 किलो (100 किलो सिंगल सुपर फासफेट) और सल्फर 6 किलो प्रति एकड़ में बिजाई के समय डालें। खादों को बीज के नीचे 2-3 सैं.मी. की गहराई पर डालें।  

 

 

खरपतवार नियंत्रण

खेत को नदीन मुक्त रखें, एक या दो गोडाई करें। पहली गोडाई बिजाई के चार सप्ताह बाद करें और दूसरी गोडाई पहली गोडाई के दो सप्ताह बाद करें।

रासायनिक तरीके से नदीनों को ख्त्म करने के लिए फलूक्लोरालिन 600 मि.ली. और ट्राइफलूरालिन 800 मि.ली बिजाई के समय या पहले प्रति एकड़ में डालें। बिजाई के बाद दो दिनों में  पैंडीमैथालीन 1 लीटर को 100 से 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

सिंचाई

मिट्टी की किस्म, जलवायु और अन्य तत्वों के आधार पर हरी मूंग को तीन से चार सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। बिजाई के 30-35 दिनों के बाद पहली सिंचाई करें। उसके बाद, बाकी की सिंचाई आवश्यकता के आधार पर 15 दिनों के अंतराल पर करें। 

पौधे की देखभाल

  • हानिकारक कीट और रोकथाम
रस चूसने वाले कीड़े (हरा तेला, चेपा और सफेद मक्खी) :  यदि इन कीड़ों का नुकसान दिखे तो मैलाथियॉन 375 मि.ली. या डाइमैथोएट 250 मि.ली. या ऑक्सीडेमेटान मिथाइल 250 मि.ली. की प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 
सफेद मक्खी की रोकथाम के लिए थाइमैथोक्सम 40 ग्राम या ट्राइज़ोफॉस 600 मि.ली. की प्रति एकड़ में स्प्रे करें। यदि जरूरत पड़े तो पहली स्प्रे के 10 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।
 
जूं: यदि इनका हमला दिखे दे तो डाइमैथोएट 30 ई सी 150 मि.ली. की प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 
ब्लिस्टर बीटल : इसके कारण फूल निकलने की अवस्था में ज्यादा नुकसान होता है। ये फूलों, कलियों को खाती हैं, जिससे दाने नहीं बनते।
 
यदि इसका हमला दिखे तो इंडोएक्साकार्ब 14.5 एस सी 200 मि.ली. या एसीफेट 75 एस सी 800 ग्राम की प्रति एकड़ में स्प्रे करें। स्प्रे शाम के समय करें और यदि जरूरत हो तो पहली स्प्रे के 10 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।
 

फली छेदक : यह गंभीर कीट है जिसके कारण उपज में भारी नुकसान होता है। यदि इसका हमला दिखे तो इंडोएक्साकार्ब 14.5 एस सी 200 मि.ली. या एसीफेट 75 एस पी 800 ग्राम या स्पिनोसैड 45 एस सी 60 मि.ली. की प्रति एकड़ में स्प्रे करें। दो सप्ताह बाद दूसरी स्प्रे करें।

तंबाकू सुंडी : इसकी रोकथाम के लिए एसीफेट 57 एस पी 800 ग्राम या क्लोरपाइरीफॉस 20 ई सी 1.5 लीटर की प्रति एकड़ में स्प्रे करें। पहली स्प्रे के 10 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।

बालों वाली सुंडी : इसकी रोकथाम के लिए यदि कम हमला हो तो सुंडी को हाथों से उठाएं और नष्ट करें या कैरोसीन डालकर नष्ट करें। यदि इसका हमला ज्यादा हो तो क्विनलफॉस 500 मि.ली. या डाइक्लोरवॉस 200 मि.ली. की प्रति एकड़ में स्प्रे करें। 

  • बीमारियां और रोकथाम
पीला चितकबरा रोग : यह सफेद मक्खी के कारण फैलता है। जिससे पत्तों और पीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। प्रभावित पौधे पर फलियां नहीं बनती।
 
इस रोग की प्रतिरोधक किस्में बीजनी चाहिए। इसकी रोकथाम के लिए 40 ग्राम थाइमैथोक्सम  और ट्राइज़ोफॉस 600 मि.ली. की प्रति एकड़ में स्प्रे करें।  आवश्यकतानुसार पहली स्प्रे के 10 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।
 

पत्तों के धब्बों का रोग : इसकी रोकथाम के लिए कप्तान और थीरम से बीजों का उपचार करें। इस रोग की प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। यदि इसका हमला दिखे तो ज़िनेब 75 डब्लयु पी 400 ग्राम की प्रति एकड़ में स्प्रे करें। 10 दिनों के अंतराल पर दो से तीन स्प्रे करें।

फसल की कटाई

85 प्रतिशत फलियों के पक जाने पर कटाई की जाती है। फलियों को ज्यादा पकने नहीं देना चाहिए इससे वे झड़ जाती हैं जिससे पैदावार का नुकसान होता है। कटाई दरांती से करें। कटाई के बाद थ्रैशिंग करें। थ्रैशिंग के बाद बीजों का साफ करें और धूप में सूखाएं।