सरसों फसल की जानकारी

आम जानकारी

यह भारत की चौथे नंबर की तिलहनी फसल है और तिलहनी फसलों में सरसों का हिस्सा  28.6 प्रतिशत है। विश्व में यह सोयाबीन और पाम के तेल के बाद तीसरी सब से ज्यादा महत्तवपूर्ण फसल है। सरसों के बीज और इसका तेल मुख्य तौर पर रसोई घर में काम आता है। सरसों के पत्ते सब्जी बनाने के काम आते हैं। सरसों की खल भी बनती है जो कि दुधारू पशुओं को खिलाने के काम आती है।

तेल वाली फसलों में भूरी और पीली सरसों, राया, तोरिया आदि आते हैं। पीली सरसों रबी के समय आसाम, बिहार, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल में उगाई जाती है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में लाभ वाली फसल के रूप में उगाई जाती है। पुराने समय में भूरी सरसों ही मुख्य तौर पर उगाई जाती थी पर आज कल इसकी बिजाई कम हो गई है और इसकी जगह राया ने ले ली है। भूरी सरसों की 2 प्रजातियां हैं, लोटनी और तोरिया। तोरिया कम समय वाली फसल है और सिंचित हालातों में उगाई जाती है। गोभी सरसों नई आ रही तेल वाली फसल है। यह लंबे समय वाली फसल है और हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश में उगाई जाती है।

 

 

जलवायु

  • Season

    Temperature

    22-25°C
  • Season

    Rainfall

    25-40cm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-22°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    28-30°C
  • Season

    Temperature

    22-25°C
  • Season

    Rainfall

    25-40cm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-22°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    28-30°C
  • Season

    Temperature

    22-25°C
  • Season

    Rainfall

    25-40cm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-22°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    28-30°C
  • Season

    Temperature

    22-25°C
  • Season

    Rainfall

    25-40cm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-22°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    28-30°C

मिट्टी

तिलहनी फसलों के लिए हल्की से भारी ज़मीनें अच्छी होती हैं। राया हर तरह की ज़मीन में उगाया जा सकता है पर तोरिये के लिए भारी ज़मीनें चाहिए। तारामीरा के लिए आमतौर पर रेतली से मैरा रेतली ज़मीनें अच्छी होती हैं।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

सिंचित क्षेत्रों के लिए
 
Narendra Ageti Rai 4: यह यू पी के सभी क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 95-100 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 6-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Varuna (T 59): यह यू पी के मैदानी क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 125-130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 8-10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Vasanti: यह यू पी के मैदानी क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 130-135 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 10-11 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Rohini: यह यू पी के सभी क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 130-135 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 9-11 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Maya: यह यू पी के सभी क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 130-135 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 10-11 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Urvashi: यह यू पी के सभी क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 125-130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 8-10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Narendra Swarna Rai 8: यह यू पी के सभी क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 130-135 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 8-10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Narendra Rai: यह यू पी के सभी क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 125-130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 10-12 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
असिंचित क्षेत्रों के लिए
 
Vaibhav: यह यू पी के सभी क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 125-130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 8-10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Varuna (T 59): यह यू पी के सभी क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 125-130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 8-10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
पिछेती बिजाई के लिए
 
Aashirwad: यह पिछेती बिजाई के लिए उपयुक्त किस्म है। इसके पौधे की ऊंचाई 130-140 सैं.मी. होती है। इसमें तेल की मात्रा 39-42 प्रतिशत होती है। यह किस्म 120-130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 5-6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Varadan: यह यू पी के सभी क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 120-125 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 6-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
लवणी मिट्टी के लिए
 
Narendra Rai: यह यू पी के सभी क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 120-125 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 6-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
CS 52: यह यू पी के सभी क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 135-145 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 6-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
CS 54: यह यू पी के सभी क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 135-140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 7-8.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
NRCDR 02: यह उच्च उपज वाली किस्म है।
 
NRCHB 101: यह पिछेती बिजाई के क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्म है।
 
NRCDR 601: यह सिंचित क्षेत्रों में समय पर बिजाई के लिए उपयुक्त किस्म है।
 
NRCYS-05-02: यह पीली सरसों की किस्म है।
 
Mustard 30: यह किस्म IARI, नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। यह किस्म अधिक उपज देती है और इसका तेल भी स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।
 
Pusa Jaykisan: इसके पौधे का कद 160-180 सैं.मी. होता है। यह किस्म 130-140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसमें तेल की मात्रा 38-40 प्रतिशत होती है। इसकी औसतन पैदावार 7.2-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa Bold: इसके पौधे का कद मध्यम होता है। इसमें तेल की मात्रा 37-38 प्रतिशत होती है। यह किस्म 130-140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 4.8-10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 

ज़मीन की तैयारी

सीड बैड पर बोयी फसल अच्छी अंकुरित होती है। ज़मीन को देसी हल से दो या तीन बार जोताई करें और प्रत्येक जोताई के बाद सुहागा फेरें। बीजों के एकसार अंकुरित होने के लिए बैड नर्म, गीले और समतल होने चाहिए।

बिजाई

बिजाई का समय
बुंदेलखंड और आगरा क्षेत्रों के लिए, बिजाई के लिए सितंबर का आखिरी सप्ताह उचित समय होता है जबकि बाकी के क्षेत्रों के लिए 15 अक्तूबर तक बिजाई पूरी कर लें।
असिंचित क्षेत्रों के लिए बिजाई का उपयुक्त समय सितंबर के दूसरे पखवाड़ा होता है।
 
फासला
तारामीरा-सरसों की बिजाई के लिए पंक्ति से पंक्ति का फासला 30 सैं.मी. और पौधे से पौधे का फासला 10 से 15 सैं.मी. रखें। गोभी सरसों की बिजाई के लिए पंक्तियों का फासला 45 सैं.मी. और पौधे से पौधे का फासला 10 सैं.मी. रखें।
 
बीज की गहराई
बीजों को 4-5 सैं.मी. की गहराई में बोयें।
 
बिजाई का ढंग
बिजाई के लिए सीड ड्रिल विधि का प्रयोग करें।
 

बीज

बीज की मात्रा
सिंचित और असिंचित क्षेत्रों के लिए 2-2.5 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
बीजों को मिट्टी से पैदा होने वाले कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए बिजाई से पहले थीरम 3 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। फसल को चेपे और चितकबरी भुंडी से बचाव के लिए  इमीडाक्लोप्रिड 8 मि.ली. से प्रति किलो बीज का उपचार करें। 
 
निम्नलिखित में किसी एक फंगसनाशी या कीटनाशी का प्रयोग करें
 
 
फंगसनाशी/ कीटनाशी दवाई   मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज)
Imidacloprid 5 ml
Thiram 3 gm
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
110 150 40

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़) 

NITROGEN
PHOSPHORUS POTASH
50 24 24

 

बिजाई के 3-4 सप्ताह पहले 8-10 किलो गली हुई रूड़ी की खाद या अच्छी तरह से गला हुआ गाय का गोबर मिट्टी में मिलायें। खादों की उचित मात्रा के लिए मिट्टी की जांच करना जरूरी है। 
सिंचित हालातों में नाइट्रोजन 50 किलो (यूरिया 110 किलो), फासफोरस 24 किलो (सुपर फास्फेट 150 किलो) और पोटाश 24 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 40 किलो) प्रति एकड़ में डालें। बिजाई के समय नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फासफोरस की पूरी मात्रा डालें और बाकी बची नाइट्रोजन पहली सिंचाई के समय डालें। 
 
फासफोरस के लिए, यदि एस एस पी का प्रयोग ना किया गया हो तो बिजाई के समय सल्फर 16 किलो प्रति एकड़ में डालें। यदि डी ए पी का प्रयोग ना किया गया हो तो जिप्सम 80 किलो प्रति एकड़ में डालें। 
 
थायोरिया 0.05 प्रतिशत की स्प्रे करने से अनाज की उपज में 10-15 प्रतिशत की वृद्धि होती है।
 

 

 

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों की रोकथाम के लिए 2 सप्ताह के फासले पर, जब नदीन कम हो 2-3 गोडाई करें। तोरिये की फसल में नदीनों की रोकथाम के लिए फसल उगाने से पहले ट्राइफलूरालिन 400 मि.ली. को 200 लीटर पानी में डालकर प्रति एकड़ पर छिड़काव करें। राया की फसल के लिए बिजाई से 2 दिन पहले या बिजाई के 25-30 दिन बाद आइसोप्रोटिउरॉन 75 डब्लयु पी 400 ग्राम को 200 लीटर पानी में डालकर प्रति एकड़ पर बिजाई के बाद स्प्रे करें।

सिंचाई

पहली सिंचाई के लिए बिजाई के 30-40 दिनों के बाद पहली सिंचाई करें और दूसरी सिंचाई बिजाई के 70-80 दिनों के बाद करें। फूल और कलियां बनने की अवस्थाएं सिंचाई के लिए गंभीर होती हैं। इन अवस्थाओं में पानी की कमी उपज को गंभीर रूप से प्रभावित करती है। मिट्टी की किस्म, पानी की उपलब्धता आदि के आधार पर सिंचाई करें।

पौधे की देखभाल

  • हानिकारक कीट और रोकथाम
चेपा : ये कीट पौधे का रस चूसते हैं। जिस कारण पौधा कमज़ोर और छोटा रह जाता है और फलियां सूखकर छोटी रह जाती हैं।
 
इसकी रोकथाम के लिए समय से बिजाई करनी चाहिए। नाइट्रोजन वाली खादों का प्रयोग कम करें। जब खेत में चेपे का नुकसान दिखे तो कीटनाशक जैसे थाइमैथोक्सम@80 ग्राम या क्विनलफॉस 250 मि.ली. या क्लोरपाइरीफॉस 200 मि.ली. को 100-125 लीटर पानी में डालकर प्रति एकड़ के हिसाब से स्प्रे करें।
 
चितकबरी सुंडी : यह फसल को अंकुरन और पकने के समय नुकसान करती है। यह पत्तों का रस चूसती है जिस कारण वे सूख जाते हैं।
 
बिजाई के तीन चार हफ्तों बाद सिंचाई करने से इस कीड़े की संख्या को कम किया जा सकता है। यदि खेतों में इसका नुकसान दिखे तो मैलाथियॉन 400 मि.ली. प्रति एकड़ के हिसाब से स्प्रे करें।
 
बालों वाली सुंडी

बालों वाली सुंडी : यह सुंडी पत्तों को खाती है और उन्हें पूरी तरह नष्ट कर देती है।

यदि खेत में इसका नुकसान दिखे तो मैलाथियॉन 5 प्रतिशत डस्ट 15 किलो प्रति एकड़ या डाइक्लोरोफॉस 200 मि.ली. को 100-125 लीटर पानी में प्रति एकड़ के हिसाब से स्प्रे करें।

  • बीमारियां और रोकथाम
झुलस रोग : पौधे के पत्तों, फूलों, तनों और फलियों पर गहरे भूरे रंग के गोल धब्बे पड़ जाते हैं। ज्यादा हमले की सूरत में तने का ऊपर वाला हिस्सा और फलियां झड़ जाती हैं।
 
बिजाई के लिए रोधक किस्मों का प्रयोग करें। बिमारी के आने पर इंडोफिल एम 45 या कप्तान 260 ग्राम को 100 लीटर पानी में डालकर प्रति एकड़ के हिसाब से स्प्रे करें। यदि जरूरत पड़े तो 15 दिनों के बाद एक ओर स्प्रे करें।

पत्तों के निचली ओर धब्बे  : पत्तों के निचली ओर सफेद रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। पत्ते हरे और पीले रंग के हो जाते हैं।

पिछली फसल के बचे कुचे को नष्ट करें। फसल और इंडोफिल एम 45, 250 ग्राम को 100 लीटर पानी के साथ प्रति एकड़ 15 दिनों के फासले पर चार बार स्प्रे करें।

सफेद कुंगी : पौधे के पत्तों, तनों और फूलों के ऊपर सफेद रंग के दाने दिखाई देते हैं। प्रभावित भाग फूल जाता है।
 
यदि खेत में नुकसान दिखे तो रोकथाम के लिए मैटालैक्सिल 8 प्रतिशत + मैनकोजेब 64 प्रतिशत 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें। यदि जरूरत पड़े तो 10-15 दिनों के बाद एक ओर स्प्रे करें।
 

फसल की कटाई

फसल पकने के लिए 110-140 दिनों का समय लेती है। फसल की कटाई फलियां पीली और बीज सख्त होने पर करें। बीजों के झड़ने को रोकने के लिए कटाई सुबह के समय करें। द्राती की मदद से बूटो को ज़मीन के नज़दीक से काटें। फिर 7-10 दिनों के लिए फसल को सूखने के लिए रखें और सूखने के बाद गहाई करें।

कटाई के बाद

साफ किए बीज चार से पांच दिनों के लिए धूप में सुखाएं या जब तक पानी की मात्रा 8 प्रतिशत तक ना आ जाये। बीजों को सुखाने के बाद बोरियों में या ढोल में डालें।