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आम जानकारी

कपास भारत की ही नहीं, बल्कि विश्व की एक बहुत ही महत्तवपूर्ण रेशे वाली और नकदी फसल है। यह देश के उदयोगिक और खेतीबाड़ी क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था में बहुत ही महत्तवपूर्ण भूमिका निभाती है। कपास कपड़ा उदयोग को प्रारंभिक कच्चा माल उपलब्ध करवाने वाली मुख्य फसल है। कपास भारत के 6 मिलियन किसानों को रोज़ी-रोटी उपलब्ध करवाती है और कपास के व्यापार से लगभ 40-50 मिलियन लोगों को रोज़गार मिलता है। कपास की फसल ज्यादा पानी लेने वाली फसल है और पानी का लगभग 6 प्रतिशत हिस्सा कपास की सिंचाई करने के लिए प्रयोग किया जाता है। भारत में कपास की खेती मुख्य तौर पर महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटका, मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, तामिलनाडू और उत्तर प्रदेश राज्यों में बड़े स्तर पर की जाती है। 
 
उत्तर प्रदेश में, राज्य के पश्चिमी भाग में इसकी खेती की जाती है। अन्य राज्यों के मुकाबले यू पी में कपास का उत्पादन कम है। नई तकनीकें अपनाकर और अधिक उपज वाली किस्मों का प्रयोग करके कपास का उत्पादन 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक बढ़ाया जा सकता है।
 

जलवायु

  • Season

    Temperature

    15-35°C
  • Season

    Rainfall

    55-100cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-25°C
  • Season

    Temperature

    15-35°C
  • Season

    Rainfall

    55-100cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-25°C
  • Season

    Temperature

    15-35°C
  • Season

    Rainfall

    55-100cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-25°C
  • Season

    Temperature

    15-35°C
  • Season

    Rainfall

    55-100cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-25°C

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Lohit: यह देसी किस्म है। यह किस्म 175-180 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके फाइबर की लंबाई 17.5 मि.मी. होती है और पिंजाई के बाद 38 प्रतिशत रूई प्राप्त होती है।
 
RG 8: यह देसी किस्म है। यह किस्म 175-180 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके फाइबर की लंबाई 16.5 मि.मी. होती है और पिंजाई के बाद 39 प्रतिशत रूई प्राप्त होती है।
 
CAD 4: यह देसी किस्म है। यह किस्म 145-150 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 6.4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके फाइबर की लंबाई 17.5 मि.मी. होती है और पिंजाई के बाद 39.4 प्रतिशत रूई प्राप्त होती है।
 
HS 6: यह अमेरिकन किस्म है। इसके पौधे का औसतन कद 150-160 सैं.मी. होता है और यह अगेती बिजाई के लिए उपयुक्त किस्म है। यह फसल 180-185 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके टिंडे बड़े आकार के होते हैं इसलिए इसकी कटाई आसानी से हो जाती है। यह किस्म चेपे और गुलाबी छेदक के प्रतिरोधक है। इसकी औसतन पैदावार 9 क्विंटल प्रति एकड़ होती है और पिंजाई के बाद 36 प्रतिशत होती है। 
 
Vikas: यह अमेरिकन किस्म है। यह 150-165 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 6.4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके फाइबर की लंबाई 24.8 मि.मी. होती है और पिंजाई के बाद 39.4 प्रतिशत रूई प्राप्त होती है।
 
H 777: यह अमेरिकन किस्म है। यह 175-180 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 6.4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके फाइबर की लंबाई 22.5 मि.मी. होती है और पिंजाई के बाद 33.8 प्रतिशत रूई प्राप्त होती है।
 
F 846: यह अमेरिकन किस्म है। यह 175-180 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 5.6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके फाइबर की लंबाई 25.4 मि.मी. होती है और पिंजाई के बाद 35 प्रतिशत रूई
प्राप्त होती है।
 
R S 810: यह अमेरिकन किस्म है। यह 165-170 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके फाइबर की लंबाई 25.2 मि.मी. होती है और पिंजाई के बाद 34.2 प्रतिशत रूई प्राप्त होती है।
 
R S 2013: यह अमेरिकन किस्म है। यह 160-165 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 6.4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके फाइबर की लंबाई 26 मि.मी. होती है और पिंजाई के बाद 35 प्रतिशत रूई प्राप्त होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Ankur 226BG, PCH 406 BT, Sigma Bt, SDS 1368 Bt, SDS 9Bt, NAMCOT 402 Bt, GK 206 Bt, 6317 Bt, 6488 Bt, MRC 7017 BG II, MRC 7031 BG II, NCS 145 BG II , ACH 33-2 BG II, JKCH 1050 Bt, MRC 6025 Bt, MRC 6029 Bt, NCS 913 Bt, NCS 138 Bt, RCH 308 Bt, RCH 314 Bt.
 

ज़मीन की तैयारी

फसल की अच्छी पैदावार और अच्छे अंकुरण के लिए ज़मीन को अच्छी तरह तैयार करना जरूरी होता है। रबी की फसल को काटने के बाद तुरंत खेत को पानी लगाना चाहिए। इसके बाद खेत की हल से अच्छी तरह जोताई करें और फिर सुहागा फेर दें। ज़मीन को तीन वर्षों में एक बार गहराई तक जोतें, इससे सदाबहार नदीनों की रोकथाम में मदद मिलती है और इससे मिट्टी में पैदा होने वाले कीड़ों और बीमारियों को भी रोका जा सकता है।

बिजाई

बिजाई का समय
उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों के लिए, देसी किस्मों की बिजाई अप्रैल के पहले और दूसरे सप्ताह में पूरी कर लें और अमेरिकन किस्मों की बिजाई के लिए 15 अप्रैल से मई का पहला सप्ताह उपयुक्त होता है।
 
फासला
कतार से कतार में 30 सैं.मी. और पौधे से पौधे में 67.5 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
बीजों के अंकुरन ना होने और नए पौधों के नष्ट होने के कारण कुछ फासले पड़ जाते हैं इन खाली जगहों को भरना जरूरी है। इन्हें पानी में भीगे हुए 2-3 बीज एक ही जगह पर बोयें। अंकुरण के बाद इनमें से सिर्फ सेहतमंद बीजों को ही रखें। बिजाई के दो सप्ताह बाद सेहतमंद नए पौधे को रखकर कमज़ोर, बीमार और प्रभावित पौधे को निकाल दें।
 
बीज की गहराई
4-5 सैं.मी. की गहराई पर बीजों को बोना चाहिए।
 
बिजाई का ढंग
देसी कपास की बिजाई के लिए सीड ड्रिल का प्रयोग करें जब कि हाइब्रिड और बी टी कपास के लिए डिबलिंग ढंग का प्रयोग करें। 
 

बीज

बीज की मात्रा
बीज की मात्रा किस्मों, उगाने वाले क्षेत्रों, सिंचाई आदि के साथ विभिन्न होती है। देसी किस्मों के लिए 6 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें और अमेरिकन किस्मों के लिए 1.1-1.5  किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
अमेरिकन कपास का बीज हल्के रेशे से ढका होता है। इसके रेशे को बिजाई से पहले हटा दें, ताकि बिजाई के समय कोई मुश्किल का सामना ना करना पड़े। इसे रासायनिक और कुदरती दोनों ढंग से हटाया जा सकता है।
 
कुदरती ढंग से रेशा हटाने के लिए बीजों को पूरी रात पानी में भिगोकर रखें, फिर अगले दिन गोबर और लकड़ी के बुरे या राख से बीजों को मसलें। फिर बिजाई से पहले बीजों को छांव में सुखाएं।
 
रासायनिक ढंग बीज के रेशे पर निर्भर करता है। शुद्ध सल्फ्यूरिक एसिड (उदयोगिक ग्रेड) अमेरिकन कपास के लिए 400 ग्राम प्रति 4 किलो बीज और देसी कपास के लिए 300 ग्राम प्रति 3 किलो बीज को 2-3 मिनट के लिए मिक्स करें इससे बीजों का सारा रेशा उतर जायेगा। फिर बीजों वाले बर्तन में 10 लीटर पानी डालें और अच्छी तरह से हिलाकर पानी निकाल दें। बीजों को तीन बार सादे पानी से धोयें और फिर चूने वाले पानी (सोडियम बाइकार्बोनेट 50 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) से एक मिनट के लिए धोयें। फिर एक बार दोबारा धोयें और छांव में सुखाएं।
 
रासायनिक ढंग के लिए धातु या लकड़ी के बर्तन का प्रयोग ना करें, बल्कि प्लास्टिक का बर्तन या मिट्टी के बने हुए घड़े का प्रयोग  करें। इस क्रिया को करते समय दस्तानों का प्रयोग जरूर करें।
 
रस चूसने वाले कीटों के हमले से बचाने के लिए 15-20 दिनों तक इमीडाक्लोप्रिड या थाइमैथोक्सम 5-7 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें।
 
निम्नलिखित में से किसी एक फंगसनाशी या कीटनाशी का प्रयोग करें।
 
फंगसनाशी/ कीटनाशी दवाई  मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज)
Imdiacloprid 5-7gm
Thiamethoxam 5-7gm
 
 

खरपतवार नियंत्रण

पौधों में ज्यादा फासला होने के कारण फसल पर नदीनों का गंभीर हमला होता है। अच्छी पैदावार के लिए फसल की बिजाई के बाद 50-60 दिनों तक फसल का नदीन रहित होना जरूरी है, नहीं तो फसल की पैदावार में 60-80 प्रतिशत कमी आ सकती है। नदीनों की असरदार रोकथाम के लिए हाथों से, मशीनी और रासायनिक ढंगों के सुमेल का उपयोग होना जरूरी है। बिजाई के 5-6 सप्ताह बाद या पहली सिंचाई करने से पहले हाथों से गोडाई करें। बाकी गोडाई प्रत्येक सिंचाई के बाद करनी चाहिए। कपास के खेतों के आस पास गाजर बूटी पैदा ना होने दें, क्योंकि इससे मिली बग के हमले का खतरा ज्यादा रहता है।
बिजाई के बाद नदीनों के पैदा होने से पहले ही पैंडीमैथालीन 25-33 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी की स्प्रे करें। बिजाई के 6-8 सप्ताह बाद जब पौधों का कद 40-45 सैं.मी. हो तो पेराकुएट (ग्रामोक्सोन) 24 प्रतिशत डब्लयू एस सी 500 मि.ली. प्रति एकड़ या ग्लाइफोसेट 1 लीटर को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें नदीन नाशक 2, 4-डी से कपास की फसल काफी संवेदनशील होती है। बेशक इस नदीननाश्क की स्प्रे नज़दीक के खेत में की जाए, तो भी इसके कण उड़ कर कपास की फसल को बहुत ज्यादा नुकसान पहंचा सकते हैं। नदीन नाशक की स्प्रे सुबह या शाम के समय में ही करनी चाहिए। 
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

  UREA SSP MOP
Desi and American varieties 48 75 #

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

  NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
Desi and American varieties 24 12 #

 

खादें और सिंचाई के साधनों के सही उपयोग और अच्छी तरह से की जोताई से कीड़ों को पैदा होने से पहले ही रोका जा सकता है कीड़ों के कुदरती दुश्मनों की भी रक्षा की जा सकती है। पौधे के उचित विकास और ज्यादा टिंडे वाली टहनियों की प्रफुल्लता के लिए, मुख्य टहनी के बढ़ रहे हिस्से  को लगभग 5 फुट की ऊंचाई से काट दें। 
 
देसी और अमेरिकन कपास की किस्मों के लिए, नाइट्रोजन 24 किलो (यूरिया 48 किलो) और फासफोरस 12 किलो (एस एस पी 76 किलो) प्रति एकड़ में डालें। मिट्टी की जांच के आधार पर पोटाश डालें। फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा (यदि जरूरत हो तो)  और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बिजाई से पहले आखिरी जोताई के समय डालें। नाइट्रोजन की बाकी बची मात्रा फूल निकलने के समय डालें। यदि मिट्टी में जिंक की कमी हो तो जिंक सल्फेट 10 किलो मिट्टी में बीज बोने से पहले डालें।
 
पानी में घुलनशील खादें: यदि बिजाई के 80-100 दिनों के बाद फसल को फूल ना निकलें या फूल कम हों तो फूलों की पैदावार बढ़ाने के लिए बहु-सूक्ष्म तत्व खाद (Micnelf-32)@ 750 ग्राम प्रति एकड़ प्रति 150 लीटर पानी की स्प्रे करें। बी.टी किस्मों की पैदावार बढ़ाने के लिए बिजाई के 85, 95 और 105 दिनों के बाद NPK 13:00:45 10 ग्राम या पोटाश 5 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे शाम के समय करें। अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए, पोटाशियम 10 ग्राम प्रति लीटर और डी.ए.पी. 20 ग्राम प्रति लीटर (पहले फूल खिलने के प्रत्येक 15 दिनों के फासले पर 2-3 स्प्रे) की स्प्रे करें। कई बाद फूल और टिंडों का गिरना दिखाई देता है तो इन्हें रोकने के लिए और अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए प्लानोफिक्स (एन ए ए) 4 मि.ली. और Micnelf-16 or 32@120 ग्राम, मैगनीश्यिम सल्फेट 150 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी की स्प्रे करें। यदि खराब मौसम के कारण टिंडे झड़ते दिखाई दें तो इसकी रोकथाम के लिए 100 ग्राम NPK 00:52:34+30 मि.ली. हयूमिक एसिड (12 प्रतिशत से कम)+6 मि.मी. स्टिकर को 15 लीटर पानी में मिलाकर 10 दिनों के फासले पर तीन स्प्रे करें। आज कल पत्तों में लाली बहुत ज्यादा दिख रही है, इसका मुख्य कारण तत्वों की कमी है। इसे खादों के सही उपयोग से ठीक किया जा सकता है। इस के लिए 1 किलो मैग्नीशियम सल्फेट की पत्तियों पर स्प्रे करें और इसके बाद यूरिया 2 किलो को 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 

 

 

सिंचाई

नीचे टेबल में सिंचाई के लिए सिफारिश किया गया समय दिया गया है।

नाज़ुक स्थिति सिंचाई का फासला
टहनियां बनने का समय बिजाई के 45-55 दिनों के बाद
फूल और फल निकलने के समय बिजाई के 75-85 दिनों के बाद
टिंडे बनने के समय बिजाई के 95-105 दिनों के बाद
टिंडे के विकास और टिंडे खिलने के समय बिजाई के 115-125 दिनों के बाद

 

कपास की फसल को बारिश की तीव्रता के अनुसार चार से छः सिंचाई की जरूरत होती है। पहली सिंचाई बिजाई के चार से छः सप्ताह बाद करें। बाकी सिंचाइयां दो या तीन सप्ताह के फासले पर करें। छोटे पौधों में पानी खड़ा ना होने दें। फूल और टिंडे गिरने से बचाने के लिए, फूल निकलने  और फूल लगने के समय फसल को पानी की कमी नहीं रहने देनी चाहिए। जब टिंडे 33 प्रतिशत खिल जायें उस समय आखिरी सिंचाई करें और इसके बाद फसल को सिंचाई के द्वारा पानी ना दें।
 
जब भी फसल की सिंचाई के लिए खारे पानी का उपयोग किया जाये, तो सिंचाई करने से पहले पानी की जांच प्रमाणित लैबोरेटरी से करवाएं और उनकी सलाह के अनुसार  ही पानी में जिप्सम या पाइराइट का उपयोग करें। सूखे वाली स्थितियों में खालियां बनाकर और एक  क्यारी छोड़कर सिंचाई करें। सूक्ष्म सिंचाई सिस्टम अपनाएं (जहां भी संभव हो), इससे सिंचाई वाला पानी  बचाने में सहायता होती है। 
 

 

पौधे की देखभाल

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  • बीमारियां और रोकथाम
मुरझाना : इससे पौधे मध्यम और पीले पड़ जाते हैं और इसके बाद पत्ते झड़ने शुरू हो जाते हैं। पहले पीलापन पत्तों के बाहरले हिस्से पर पड़ता है और बाद में अंदर वाले हिस्से पर पड़ना शुरू हो जाता है। प्रभावित पौधों को फल जल्दी लगते हैं। और इसके टिंडे भी छोटे होते हैं इससे रंग काला और छाल के नीचे बने छल्ले जैसा हो जाता है। इसका हमला किसी भी समय हो सकता है।
 
इस रोग की रोकथाम के लिए रोधक किस्मों का प्रयोग करें एक ही खेत में लगातार कपास की फसल ना उगाएं। उचित फसली चक्र अपनाएं। पानी के निकास का पूरा प्रबंध रखें। ट्राइकोडरमा विराइड फॉरमूलेशन 4 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। इसकी रोकथाम के लिए थायोफैनेट मिथाइल 10 ग्राम और यूरिया प्रत्येक 50 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर पौधों की जड़ों के नज़दीक डालें।
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आल्टरनेरिया पत्तों के धब्बे : इससे पत्तों पर छोटे, पीले से भूरे, गोलाकार या बेढंगे मोटे मोटे धारियों वाले धब्बे पड़ जाते हैं। प्रभावित पत्ते सूखकर झड़ने शुरू हो जाते हैं। जिससे टिंडे गलने लग जाते हैं और झड़ जाते हैं। पौष्टिक तत्वों की कमी और सूखे से प्रभावित पौधों पर इस बीमारी का ज्यादा हमला होता है।
 
इस बीमारी की रोकथाम के लिए टैबुकोनाज़ोल 1 मि.ली. या ट्राइफलोकसीट्रोबिन+ टैबुकोनाज़ोल 0.6 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे बिजाई के 60वें, 90वें, और 120वें दिन बाद करें। यदि बीमारी खेत में दिखे तो कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या कप्तान 500 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें या कार्बेनडाज़िम 12 प्रतिशत + मैनकोज़ेब 63 प्रतिशत डब्लयू पी 25 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
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पत्तों पर धब्बा रोग : इससे पत्तों पर गोलाकार लाल धब्बे पड़ जाते हैं, जो कि बाद में बड़े होकर बीच में से सफेद और सलेटी रंग के हो जाते हैं। यह धब्बे गोल होते हैं और बीच बीच में लाल धारियां होती हैं। धब्बों के बीच में सलेटी रंग के गहरे दाने बन जाते हैं, जिस कारण वह सलेटी रंग के दिखाई देते हैं।
 
यदि इस बीमारी का हमला दिखे तो फसल पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम या मैनकोजेब 2.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर 15 दिनों के फासले पर 3-4 बार स्प्रे करें।
 
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एंथ्राकनोस : इस बीमारी से पत्तों पर छोटे, लाल या हल्के रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। तनों पर जख्म बन जाते हैं। जिससे पौधा कमज़ोर हो जाता है। यह बीमारी टिंडों पर कभी भी हमला कर सकती है और बाद में यह बीमारी रूई और टिंडे के अंदर वाले बीज पर नुकसान करती है। इस बीमारी से प्रभावित टिंडों पर छोटे, पानी जैसे, गोलाकार, लाल - भूरे धब्बे पड़ जाते हैं।
 
इस बीमारी की रोकथाम के लिए बिजाई से पहले प्रति किलो बीजों को कप्तान या कार्बेनडाज़िम 3-4 ग्राम से उपचार करें। खेत में पानी खड़ा ना होने दें। यदि इस बीमारी का हमला दिखे तो प्रभावित पौधों को जड़ों से उखाड़कर खेत से दूर ले जाकर नष्ट कर दें। फिर कार्बेनडाज़िम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
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जड़ गलन : इससे पौधा अचानक और पूरा सूख जाता है। पत्तों का रंग पीला पड़ जाता है। प्रभावित पौधों को आसानी से उखाड़ा जा सकता है। मुख्य जड़ के अलावा कुछ अन्य जड़ें ताजी होती हैं जो कि पौधे की जकड़ बनाए रखती हैं और बाकी की जड़ें गल जाती हैं।
 
बिजाई से पहले मिट्टी में नीम केक 60 किलो प्रति एकड़ में डालें। जड़ गलने के हमले की संभावना कम करने के लिए ट्राइकोडरमा विराइड 4 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें। यदि इस बीमारी का हमला दिखे तो प्रभावित पौधों और साथ के सेहतमंद पौधों के नीचे की  ओर कार्बेनडाज़िम 1 ग्राम प्रति लीटर डालें।
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अमेरिकन सुंडी : यह सुंडी पत्ते के ऊपरी और निचली ओर अंडे देती है। अंडे में से निकली सुंडी का रंग शुरू में पीला सफेद होता है, इसका सिर भूरा काला होता है। बाद में इसके शरीर का रंग गहरा हो जाता है और उसके बाद इसका रंग भूरे रंग में तबदील हो जाता है। इस सुंडी के हमले से टिंडों में गोल छेद हो जाते हैं। इन छेदों के बाहरी ओर सुंडी का मल दिखाई देता है। अकेला लार्वा 30-40 टिंडों को नुकसान पहुंचा सकता है। इन हमलों की जांच के लिए रोशनी वाले कार्डों या फेरोमोन कार्ड का प्रयोग करें।
 
कपास की फसल लगातार एक खेत में ना लगाएं, बल्कि बदल बदल कर फसल उगाएं। कीड़ों का हमला रोकने के लिए हरी मूंग, काले मांह, सोयाबीन, अरिंड, बाजरा आदि को कपास की फसल के साथ या उसके आस पास लगाना फायदेमंद रहता है। कपास बोने से पहले, पहली फसल के बचे कुचे को अच्छी तरह निकाल दें। पानी का सही मात्रा में प्रयोग करें और नाइट्रोजन खाद का ज्यादा प्रयोग ना करें।
 
इसकी रोकथाम के लिए रोधक किस्में उगाएं अमेरिकन सुंडी की रोकथाम के लिए कुदरती ढंग ना अपनाएं। यदि हमला ज्यादा हो तो उपलब्धता अनुसार साइपरमैथरिन या डैल्टामैथरिन या फैनवेलरेट या लैंबडा साइहैलोथ्रिन में से किसी एक को 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर प्रभावित फसल पर स्प्रे करें। टिंडे की सुंडी की उचित रोकथाम के लिए एक ग्रुप के कीटनाशक की स्प्रे एक बार ही करें।

 

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गुलाबी सुंडी : लार्वे का रंग शुरू में सफेद होता है और बाद में इसका रंग काले, भूरे या हरे से पीला या गुलाबी हो जाता है। बड़ी सुंडियों की गतिविधियां जानने के लिए फेरोमोन कार्ड का ही प्रयोग करें।
 
यदि इसका हमला नज़र आये तो फसल पर कार्बरिल 5 प्रतिशत डी 10 किलो को प्रति एकड़ के हिसाब से बुरकाओ। यदि हमला ज्यादा हो तो ट्राइज़ोफॉस 40 ई सी 300 मि.ली. प्रति एकड़ की स्प्रे करें।
 
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तंबाकू सुंडी : यह सुंडियां झुंड में हमला करती हैं और यह मुख्य तौर पर पत्ते की ऊपरी सतह को अपना शिकार बनाती हैं और पत्ते खाकर इसकी नाड़ियां छोड़ देती हैं। यदि इसका हमला ज्यादा हो तो बूटे का तना और टहनियां ही दिखाई देती हैं। हरी सुंडी के अंडे सुनहरी भूरे रंग के होते हैं और यह इकट्ठे दिखाई देते हैं। इसका लार्वा हरे रंग का होता है।
 
इन कीड़ों के हमले की तीव्रता जानने के लिए रोशनी कार्डों का प्रयोग करें। एक एकड़ में 5 सैक्स फेरोमोन ट्रैप लगाएं इन कीड़ों की हाथों से भी जांच करें। इनका लार्वा झुंड में मिलता है, उसे इक्ट्ठा करके जल्दी ही नष्ट कर दें। यदि इनका हमला बहुत ज्यादा हो तो क्लोरपाइरीफॉस 20 ई सी 1 लीटर या क्लोरैंटरानीलीपरोल 18.5 प्रतिशत एस सी 50 मि.ली. या डाइफलूबैंज़ियूरॉन 25 प्रतिशत डब्लयू पी 100-150 ग्राम की स्प्रे प्रति एकड़ में करें। कीटनाशकों की स्प्रे सुबह या शाम के समय ही करनी चाहिए।
 
 
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तेला : नए जन्मे और बड़े तेले पत्तों के निचली ओर से रस चूस लेते हैं, जिससे पत्ता मुड़ जाता है। इसके बाद पत्ते लाल या भूरे हो जाते हैं और फिर सूखकर गिर पड़ते हैं। जड़ों के नजदीक कार्बोफियूरन 3 जी 14 किलो या फोरेट 10 जी 5 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से नमी वाली मिट्टी में डालें। जब फसल का उपरला हिस्सा पीला पड़ने लगे और पौधे के 50 प्रतिशत तक पत्ते मुड़ जायें तो कीटनाशक की स्प्रे करें। इमीडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल 40-50 मि.ली. या थाइमैथोक्सम 40 ग्राम या एसेटामीप्रिड 75 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। 

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धब्बेदार सुंडी : इसकी सुंडी या लार्वा हल्के हरे काले चमकदार रंग का होता है और शरीर पर काले रंग की धारियां होती हैं। सुंडी के हमले के कारण फूल निकलने से पहले ही टहनियां सूख जाती हैं और फिर झड़ जाती हैं। यह टिंडों में छेद कर देती हैं और फिर टिंडे गल जाते हैं।
 
यदि इसका हमला दिखे तो रोकथाम के लिए प्रोफैनोफॉस 50 ई सी 500 मि.ली. को प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
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मिली बग : यह पत्तियों के निचली ओर झुंड में पाया जाता है और यह चिपचिपा पदार्थ छोड़ता है। चिपचिपे पदार्थ के कारण पत्तों पर फंगस बनती है, जिससे पौधे बीमार पड़ जाते हैं और काले रंग के दिखाई देते हैं।
 
इसकी रोकथाम के लिए मक्की, बाजरा और जवार की फसलें कपास की फसल के आस पास उगाएं। प्रभावित पौधों को उखाड़कर पानी के स्त्रोतों या खाली स्थानों पर ना फेंके, बल्कि इन्हें जला दें। कपास के खेतों के आस पास गाजर घास ना होने दें, क्योंकि इससे मिली बग के हमले का खतरा बढ़ जाता है। इसे नए क्षेत्रों में फैलने से रोकने के लिए प्रभावित क्षेत्रों वाले इन्सानों या जानवरों को सेहतमंद क्षेत्रों में जाने से रोक लगाएं। शुरूआती समय नीम के बीजों का अर्क 5 प्रतिशत 50 मि.ली. + कपड़े धोने वाले सर्फ 1 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर प्रभावित पौधों पर डालें। यदि इसका हमला गंभीर हो तो प्रोफैनोफोस 500 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। एक चम्मच वॉशिंग पाउडर 15 लीटर की टैंकी में मिक्स करें या क्विनलफॉस 25 ई सी 5 मि.ली. या क्लोरपाइरीफॉस 20 ई सी 3 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।
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सफेद मक्खी : इसके बच्चे पीले रंग के और अंडाकार आकार के होते हैं, जब कि मक्खी के शरीर का रंग पीला होता है और एक सफेद मोम जैसे पदार्थ से ढका होता है। यह पत्तियों का रस चूसते हैं, जिससे प्रकाश संश्लेषण क्रिया पर बुरा प्रभाव पड़ता है। यह मक्खी पत्ता मरोड़ बीमारी का भी माध्यम बनती है। इसका हमला ज्यादा होने से पत्तों का झड़ना, टिंडो का झड़ना और टिंडों का पूरी तरह से ना खिलना आदि आम तौर पर देखा जा सकता है। इससे पौधों पर फंगस बन जाती है और पौधे बीमार और काले दिखाई देते हैं।
 
एक ही खेत में बार बार कपास ना उगाएं। फसली चक्र के तौर पर बाजरा, रागी, मक्की आदि फसलें अपनायें। फसल के अनआवश्यक विकास को रोकने के लिए नाइट्रोजन का अनआवश्यक प्रयोग ना करें। फसल को समय सिर बोयें। खेत को साफ रखें। कपास की फसल के साथ बैंगन, भिंडी, टमाटर, तंबाकू और सूरजमुखी की  फसल ना उगायें। सफेद मक्खी पर नज़र रखने के लिए पीले चिपकने वाले कार्ड 2 प्रति एकड़ लगाएं। यदि सफेद मक्खी का हमला दिखे तो ट्राइज़ोफॉस 3 मि.ली. या थायाक्लोराइड 4.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में या एसेटामीप्रिड 4 ग्राम या एसीफेट 75 डब्लयू पी 800 ग्राम को प्रति 200 लीटर पानी या इमीडाक्लोप्रिड 40 मि.ली. को 200 लीटर पानी में मिलाकर या थाइमैथोक्सम 40 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
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थ्रिप्स : छोटे और बड़े थ्रिप्स पत्तों के निचली ओर से रस चूसते हैं। पत्तों का ऊपरला हिस्सा भूरा हो जाता है और निचला हिस्सा चांदी रंग जैसे सफेद हो जाता है।
 
फसल को चेपे, पत्ते के टिड्डे और थ्रिप्स से 8 सप्ताह तक बचाने के लिए, इमीडाक्लोप्रिड 70 डब्लयू एस 7 मि.ली. से प्रति किलो बीज का उपचार करें। मिथाइल डेमेटान 25 ई सी 160 मि.ली. बुप्रोफेंज़िन 25 प्रतिशत एस सी 350 मि.ली. फिप्रोनिल 5 प्रतिशत एस सी 200-300 मि.ली., इमीडाक्लोप्रिड 70 प्रतिशत डब्लयू जी 10-30 मि.ली, थाइमैथोक्सम 25 प्रतिशत डब्लयू जी 30 ग्राम में से किसी एक को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

कमी और इसका इलाज

पत्तों पर लाली आना : शुरूआत में यह जड़ों पर पाई जाती है और फिर पौधे के ऊपर वाले हिस्से पर फैल जाती है। इसे सही खाद प्रबंध से ठीक किया जा सकता है। पत्तों पर मैग्नीश्यिम सलफेट 1 किलो, फिर यूरिया 2 किलो प्रति 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
नाइट्रोजन की कमी : पौधे का विकास रूक जाता है और कद बोना रह जाता है। निचले पत्ते पीले दिखाई देते हैं। गंभीर हालातों में पत्ते भूरे हो जाते हैं और फिर सूख जाते हैं।
 
फासफोरस की कमी : नए पत्ते गहरे हरे दिखाई देते हैं। पुराने पत्ते छोटे आकार के हो जाते हैं और इन पर जामुनी और लाल धब्बे पड़ जाते हैं।
 
पोटाश की कमी : पोटाश की कमी से पत्ते झड़ने शुरू हो जाते हैं और टिंडे भी पूरी तरह नहीं खिलते। पत्ते मुड़ जाते हैं और फिर सूख जाते हैं।
 
जिंक की कमी : इससे पौधे का विकास प्रभावित होता है और पौधे का कद बोना रह जाता है। इसकी शाखाएं सूख जाती हैं और फिर पौधे का सिरा या नए पत्ते खराब हो जाते हैं।
 

फसल की कटाई

जब टिंडे पूरी तरह खिल जायें तो रूई की चुगाई करें। सूखे टिंडों की चुगाई करें, रूई सूखे हुए पत्तों के बिना ही चुगें। खराब टिंडों को अलग से चुगें और बीज के तौर पर प्रयोग करने के लिए रखें। पहली और आखिरी चुगाई आमतौर पर कम क्वालिटी की होती है, इसलिए इसे अच्छा लाभ लेने के लिए बाकी की फसल के साथ ना मिलाएं। चुगे हुए टिंडे साफ-सुथरे और सूखे हुए होने चाहिए। चुगाई ओस सूखने के बाद करें। चुगाई हर 7-8 दिनों के बाद लगातार करें, ताकि रूई के धरती पर गिरने से पहुंचाने वाली नुकसान से बचाया जा सके। अमेरिकन कपास को 15-20 दिनों और देसी कपास को 8-10 दिनों के फासले पर चुगें। चुगे हुए टिंडों को मंडी ले जाने से पहले अच्छी तरह साफ करें।

कटाई के बाद

चुगाई के बाद भेड़ों, बकरियों और अन्य जानवरों को कपास के खेतों में चरने के लिए छोड़ दें ताकि ये जानवर सुंडियों से प्रभावित टिंडों और पत्तों को खा सकें। आखिरी चुगाई के बाद छटियों को जड़ों सहित उखाड़ दें। सफाई रखने के लिए पौधों के बाकी बचे कुचे को मिट्टी में दबा दें। छटियां बांधने से पहले बंद टिंडों को धरती पर मारकर या तोड़कर अलग कर दें और जला  दें ताकि सुंडी के लार्वे को नष्ट किया जा सके। चुगाई के बाद छटियों को उखाड़ने के लिए दो खालियां बनाने वाले ट्रैक्टर से जोताई करें।