जौं की खेती

आम जानकारी

राजस्थान और बिहार के साथ उत्तर प्रदेश जौं का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड जौं का मुख्य उत्पादक क्षेत्र है। जौं की सूखे के प्रति अच्छी प्रतिरोधक क्षमता होती है। जौं का मनुष्यों के साथ-साथ पशुओं द्वारा भी उपभोग किया जाता है। जौं का प्रयोग शराब बनाने और आयुर्वेदिक दवाइयों आदि में भी किया जाता है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    12-32°C
  • Season

    Rainfall

    800-1100 mm
  • Season

    Sowing temperature

    12 - 16°C
  • Season

    Harvesting temperature

    30°-32°C
  • Season

    Temperature

    12-32°C
  • Season

    Rainfall

    800-1100 mm
  • Season

    Sowing temperature

    12 - 16°C
  • Season

    Harvesting temperature

    30°-32°C
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    Temperature

    12-32°C
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    Rainfall

    800-1100 mm
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    12 - 16°C
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    Harvesting temperature

    30°-32°C
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    Temperature

    12-32°C
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    Rainfall

    800-1100 mm
  • Season

    Sowing temperature

    12 - 16°C
  • Season

    Harvesting temperature

    30°-32°C

मिट्टी

यह फसल हल्की ज़मीनों जैसे कि रेतली और कल्लर वाली ज़मीनों में भी कामयाबी से उगाई जा सकती है। इसलिए उपजाऊ ज़मीनों और भारी से दरमियानी मिट्टी इसकी अच्छी पैदावार के लिए सहायक होती हैं। तेजाबी मिट्टी में इसकी पैदावार नहीं की जा सकती।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Ratna: यह किस्म IARI, नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। यह नमक वाली और क्षारीय मिट्टी को सहनेयोग्य है। यह किस्म 125-130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 10-12 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Azad: यह किस्म C.S.A कानपुर द्वारा विकसित की गई है। यह किस्म पीली कुंगी रोग के प्रतिरोधक है। सिंचित हालातों में खेती करने पर यह अधिक उपज देती है। यह किस्म चारे और दाने लेने के लिए उपयुक्त किस्म है। यह 115-120 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। सिंचित हालातों में, इसकी औसतन पैदावार 14-15 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Vijaya: यह किस्म C.S.A कानपुर द्वारा विकसित की गई है। यह 120-125 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 12-14 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Dolama: यह किस्म उत्तर प्रदेश के बारानी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह 140-150 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।  यह पीली कुंगी के प्रतिरोधक किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 12-15 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Himani: यह किस्म शिमला में विकसित की गई है। यह यू पी के मध्यम और निचली पहाड़ी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 12.8-14 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
LSB 2: यह किस्म उत्तर प्रदेश के ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह 145-150 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं इसकी औसतन पैदावार 10-12 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Amber: यह किस्म C.S.A कानपुर द्वारा विकसित की गई है। यह 130-133 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म यू पी के बारानी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसका प्रयोग बीयर बनाने के लिए किया जाता है। इसकी औसतन पैदावार 10-12 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Jyoti: यह किस्म C.S.A  कानपुर द्वारा विकसित की गई है। यह किस्म उत्तर प्रदेश के सिंचित क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह 120-125 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 8-10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
C 164: यह लंबी प्रकार की किस्म है, इसकी बालियां सघन होती है। इसके दाने मोटे और सुनहरी होते हैं। यह पीली कुंगी के प्रतिरोधक किस्म है। यह सिंचित क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त किस्म है।
 
BG 108: यह किस्म HAU, हिसार द्वारा विकसित की गई है। यह पिछेती बिजाई के लिए उपयुक्त किस्म है। यह किस्म 120-125 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 8-10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Kedar: यह किस्म IARI, नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। यह पिछेती बिजाई के लिए उपयुक्त किस्म है। यह पीली कुंगी के प्रतिरोधक किस्म है।
 
Neelam: यह किस्म IARI, नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। इसके दाने छिल्के वाले और सुनहरी रंग के होते हैं। यह किस्म सिंचित और बारानी दोनों क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। 
 

ज़मीन की तैयारी

खेत को 2-3 बार जोतना चाहिए ताकि खेत में से नदीनों को अच्छी तरह नष्ट किया जा सके।
खेत की तैयारी के लिए तवियों का प्रयोग करें और फिर 2-3 बार सुहागा फेर दें ताकि फसल अच्छी तरह जम जाए। पहले बोयी गई फसल की पराली को हाथों से उठाकर नष्ट कर दें ताकि दीमक का हमला ना हो सके।

बिजाई

बिजाई का समय
अच्छी उपज के लिए, 15 अक्तूबर से 15 नवंबर तक बिजाई पूरी कर लें। सिंचित क्षेत्रों के लिए, 15 से 25 नवंबर तक बिजाई पूरी कर लें। बारानी क्षेत्रों में, बिजाई के लिए 15 अक्तूबर से 10 नवंबर का समय उपयुक्त होता है। यदि बिजाई देरी से की जाए तो दानों की उपज और गुणवत्ता कम हो जाती है और उपज बीयर बनाने के लिए उपयुक्त नहीं होती। 
 
फासला
बिजाई के लिए पंक्ति से पंक्ति का फासला 22.5 सैं.मी. होना चाहिए। यदि बिजाई देरी से की गई हो तो 18-20 सैं.मी. फासला रखें।
 
बीज की गहराई
सिंचाई वाले क्षेत्रों में गहराई 3-5 सैं.मी. रखें और बारिश वाले क्षेत्रों में 5-8 सैं.मी. रखें।
 
बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई छींटे द्वारा और मशीन द्वारा की जाती है।

बीज

बीज की मात्रा
बीज की मात्रा अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग होती है। उत्तर प्रदेश के लिए 30-40 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें। बारानी और नमक वाली मिट्टी में ज्यादा बीजों का प्रयोग किया जाता है।
 
बीज का उपचार
अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए बाविस्टिन 2 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। इससे कांगियारी रोग नहीं लगता। बंद कांगियारी के रोग  से बचाने के लिए बीजने से पहले वीटावैक्स 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। दीमक से बचाने के लिए बीज को 250 मि.ली. फॉर्माथियोन को 5.3 लीटर पानी में डालकर बीज का उपचार करें।
 

खरपतवार नियंत्रण

अच्छी फसल और अच्छी पैदावार के लिए शुरू में ही नदीनों की रोकथाम बहुत जरूरी है। चौड़े और तंग पत्तों वाले नदीन इस फसल के गंभीर कीट हैं। चौड़े पत्तों वाले नदीनों की रोकथाम के लिए नदीनों के अंकुरण के बाद 2,4-D @ 250 ग्राम को 100 लीटर पानी में मिलाकर बिजाई के 30-35 दिनों के बाद डालें।
 
बारीक पत्तों जैसे नदीनों की रोकथाम के लिए आइसोप्रोटिउरॉन 75 प्रतिशत डब्लयु पी 500 ग्राम को  प्रति 100 लीटर पानी या पैंडीमैथालीन 30 प्रतिशत ई सी 1.4 लीटर को प्रति 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

  UREA SSP
Rainfed 18-35 50
Irrigated 35-52 50

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

  NITROGEN PHOSPHORUS
Rainfed Areas 8-16 8
Irrigated Areas 16-24 8

 

खादें हमेशा मिट्टी की जांच के आधार पर दें। बारानी क्षेत्रों में नाइट्रोजन 8-16 किलो प्रति एकड़ में प्रयोग करें, जबकि सिंचित क्षेत्रों में नाइट्रोजन 16-24 किलो प्रति एकड़ में प्रयोग करें। यदि खेती सूखी भूमि पर करनी हो तो नाइट्रोजन 8 किलो प्रति एकड़ में प्रयोग करें। सिंचित और समय पर बिजाई के लिए फासफोरस 8 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बारानी क्षेत्रों के लिए, बिजाई के समय नाइट्रोजन की पूरी मात्रा डालें।  सिंचित क्षेत्रों में, नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फासफोरस की पूरी मात्रा बिजाई के समय डालें। बाकी की नाइट्रोजन को पहली सिंचाई के समय टॉप ड्रेसिंग के तौर पर डालें।  
 

 

 

पौधे की देखभाल

सैनिक सुंडी
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
सैनिक सुंडी : इसका लार्वा हल्के हरे रंग का होता है और बाद की अवस्था में यह पीले रंग का हो जाता है। ये कीट पत्तों को किनारे पर से खाते हैं और कभी कभी पूरा पत्ता ही खा जाते हैं। पत्तों पर मौजूद इसके अंडे के गुच्छे रूई या फंगस की तरह लगते हैं।
 
रोकथाम : प्राकृतिक जीव सैनिक सुंडी के लार्वा को खा जाते हैं जो कि फसल को नुकसान करते हैं। बेसीलस थरीजिंनसिस की स्प्रे भी लाभदायक है।
 
इसके लक्षण जब भी दिखें तो मैलाथियॉन 5 प्रतिशत, 9.6 किलो या क्विनलफॉस 1.5 प्रतिशत 9.6 किलो का प्रति एकड़ में छिड़काव करें। कटाई के बाद खेत में से नदीनों और जड़ों को निकाल दें।

 

बदबूदार कीड़ा
बदबूदार कीड़ा : इस कीट का आकार ढाल जैसा होता है। यह कीट हरे या भूरे रंग का और इस पर पीले और लाल रंग के निशान बने होते हैं। इस कीट के मुंह में रोगजनक जीव होते हैं जो कि पौधे को गंभीर नुकसान पहुंचाते है और ये अंडे गुच्छों में देते हैं।
 
रोकथाम : इसकी रोकथाम के लिए फसल के आस-पास को नदीन रहित रखें। इसकी रोकथाम के लिए परमैथरिन और बाईफैथरिन दो कीटनाशक हैं जो इस कीड़े को मारने की क्षमता रखते हैं।
पतली सुंडी
पतली सुंडी : यह सुंडियां हल्के भूरे रंग की होती हैं। यह अपना जीवन 1-4 साल तक पूरा करती हैं। यह सुंडियां तने को मोड़ देती हैं और तने का शिखर सफेद रंग का हो जाता है।
 
रोकथाम : नुकसान होने पर इसका कोई हल मौजूद नहीं है पर फसल बीजने से पहले थाइमैथोक्सम 325 मि.ली. से प्रति 100 किलो बीजों का उपचार करें।
 
चेपा : यह रस चूसने वाला कीट है। चेपे के हमले से पत्ते पीले पड़ जाते हैं और आधे पके पत्ते गिर जाते हैं। ज्यादातर इसका हमला जनवरी के दूसरे पखवाड़े पर होता है।
 
रोकथाम : इसकी रोकथाम के लिए 4-6 हज़ार क्राइसोपरला प्रीडेटर प्रति एकड़ या 50 ग्राम नीम का घोल प्रति लीटर का प्रयोग करें। बादलवाई होने पर इसका हमला ज्यादा होता है। इसकी रोकथाम के लिए थाईमैथोक्सम या इमीडाक्लोप्रिड 30 मि.ली. को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से स्प्रे करें।
गोभ की सुंडी
बालियों का कीड़ा : यह कीड़ा बालियां निकलने पर हमला करके जाल बना लेता है। इसके अंडे चकमीले सफेद रंग के होते हैं और गुच्छों में पाए जाते हैं। अंडों के ऊपर संतरी रंग के बाल होते हैं। इसकी सुंडियां भूरे रंग की होती हैं जिनके ऊपर पीले रंग की धारियां होती हैं और थोड़े बाल होते हैं। जवान कीड़ों की अगली टांगे भूरे रंग की होती हैं और पिछली टांगे पीले रंग की होती हैं।
 
रोकथाम : बालग कीड़ों की रोकथाम के लिए दिन के समय रोशनी यंत्र लगाएं। फूल से बालियां बनने पर 5 फेरोमोन कार्ड प्रति एकड़ पर लगाएं। गंभीर हालत में 1 ग्राम मैलाथियॉन या कार्बरिल 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
टिड्डी
घास का टिड्डा : नाबालिग और बालिग टिड्डे पत्ते को खाते हैं। नाबालिग हरे भूरे रंग के होते हैं और शरीर पर धारियां होती हैं।
 
रोकथाम : फसल की कटाई के बाद सारे पौधों को खेत में से हटा दें और अच्छी तरह सफाई कर दें। इसके अंडों को मारने के लिए गर्मियों में खेत की जोताई कर दें। जिससे धूप के कारण अंडे मर जाते हैं। गंभीर हालातों में 400 ग्राम कार्बरिल 50 डब्लयु पी की प्रति एकड़ के हिसाब से स्प्रे करें।
थ्रिप्स
थ्रिप्स : यह अक्सर सूखे मौसम में नज़र आती है।
 
रोकथाम : इसके गंभीर रूप का पता करने के लिए 6-8 नीले नीले चिपकने वाले कार्ड प्रति एकड़ में लगाएं। इसके हमले को कम करने के लिए 5 ग्राम वर्टीसिलियम लैकानी को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
गंभीर हालातों में इमीडाक्लोप्रिड 17.8% एस एल या फिप्रोनिल 1 मि.ली. या फिप्रोनिल 80 प्रतिशत डब्लयु पी 2.5 मि.ली. या एसीफेट 75 प्रतिशत डब्लयु पी 1.0  ग्राम को 100 लीटर पानी के हिसाब से स्प्रे करें| थाइमैथोक्सम 25 प्रतिशत डब्लयु जी 1.0 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
सफेद धब्बे
  • बीमारियां और रोकथाम
सफेद धब्बे : इस बीमारी से पत्ते, तने और फूलों वाले भाग के ऊपर सफेद आटे जैसे धब्बे पड़ जाते हैं यह धब्बे बाद में सलेटी और भूरे रंग के हो जाते हैं और इससे पत्ते के अन्य भाग सूख जाते हैं इस बीमारी का हमला ठंडे तापमान और भारी नमी में बहुत होता है। घनी फसल, कम रोशनी और सूखे मौसम में इस बीमारी का हमला बढ़ जाता है।
 
बीमारी आने पर 2 ग्राम घुलनशील सल्फर प्रति लीटर पानी में या 200 ग्राम कार्बेनडाज़िम प्रति एकड़ में छिड़काव करें। गंभीर नुकसान होने पर 1 मि.ली. प्रॉपीकोनाज़ोल प्रति लीटर पानी मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से स्प्रे करें।
पीली कुंगी
धारीदार जंग : इस बीमारी को फैलने और हमला करने के लिए 8-13 डिगरी सैल्सियस तापमान चाहिए होता है और विकास के लिए 12-15 डिगरी सैल्सियस तापमान चाहिए और बहुत पानी चाहिए। इस बीमारी से 5 से 30 प्रतिशत तक पैदावार कम हो जाती है। पत्तों पर पीले धब्बे लंबी धारियों के रूप में दिखाई देते हैं जिन पर पीली हल्दीनुमा नज़र आती है।
 
रोकथाम : पीली कुंगी से बचाव के लिए रोग रहित किस्मों की बिजाई करें। मिश्रित खेती और फसली चक्र अपनाएं। ज्यादा मात्रा में नाइट्रोजन का प्रयोग ना करें। लक्षण दिखाई देने पर 35-40 किलो सल्फर प्रति एकड़ में छिड़काव करें या 2 ग्राम मैनकोज़ेब  या  प्रॉपीकोनाज़ोल 25 ई सी 1 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
कांगियारी
झंडा रोग : यह बीज से पैदा होने वाली बीमारी है। यह बीमारी हवा द्वारा फैलती है यह बीमारी ठंडे और नमी वाले मौसम में फूल आने पर पौधे के ऊपर हमला करती है।
 
रोकथाम : बीज को फंगीनाशी जैसे कि कार्बोक्सिन 75 डब्लयु पी 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। ज्यादा बीमारी पड़ने पर कार्बेनडाज़िम 2.5 ग्राम, टैबुकोनाज़ोल 1.25 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। यदि नमी की मात्रा कम हो तो बीजों को टराईकोडरमा विराईड 4 ग्राम और कार्बोक्सिन (विटावैक्स 75 डब्लयु पी) 1.25 ग्राम  से प्रति किलो बीज का उपचार करें।

फसल की कटाई

फसल किस्म के अनुसार मार्च के आखिर और अप्रैल में पक जाती है। फसल को ज्यादा पकने से बचाने के लिए समय के अनुसार कटाई करें। फसल में 25-30 प्रतिशत नमी होने पर फसल की कटाई करें। कटाई के लिए दांतों वाली दरांती का प्रयाग करें। कटाई के बाद बीजों को सूखे स्थान पर स्टोर करें।

कटाई के बाद

जौं सिरका और शराब बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।