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आम जानकारी

करेले का बोटेनीकल नाम मेमोरडिका करेंटिया है और यह कुकुबिटेशियस परिवार से संबंधित है। इसे इसके औषधीय, पोषक, और अन्य स्वास्थ्य लाभों के कारण जाना जाता है। क्योंकि इसकी बाज़ार में बहुत अधिक मांग होती है इसलिए करेले की खेती काफी सफल है। करेले को मुख्यत: जूस बनाने के लिए और पाक उद्देश्य के लिए प्रयोग किया जाता है। यह विटामिन बी 1, बी 2 और बी 3, बिटा केरोटीन, जिंक, आयरन, फासफोरस, पोटाशियम, मैगनीज़, फोलेट और कैलशियम का उच्च स्त्रोत है। इसके काफी स्वास्थ्य लाभ हैं जैसे यह रक्त की अनियमितता को रोकता है, रक्त और लीवर को डीटॉक्सीफाई करता है, इम्यून प्रणाली को बढ़ाता है और वजन को नियंत्रित करने में मदद करता है।

मिट्टी

अच्छे जल निकास वाली रेतली दोमट मिट्टी, जिसमें जैविक तत्व उच्च मात्रा में होते हैं करेले की खेती के लिए उपयुक्त है। मिट्टी की पी एच 6.5-7.5 करेले की खेती के लिए सबसे अच्छी रहती है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Pusa Do Mousami: यह गर्मियों के साथ साथ खरीफ के मौसम के लिए उपयुक्त किस्म है। इसके फल मध्यम, लंबे और हरे रंग के होते हैं। यह किस्म बिजाई के 55 दिनों के बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है।
 
Pusa Vishesh: इसके फल हरे, पतले और मध्यम आकार के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 48-52 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Arka Harit: इसके फल चमकदार हरे रंग के होते हैं। यह किस्म बिजाई के 120 दिनों के बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके फल कम बीज वाले होते हैं और कम कड़वे होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 52 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Kashi Harit: इसके फल गहरे हरे रंग के होते हैं। यह किस्म बिजाई के 50 दिनों के बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 120 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Kashi Urvashi: इस किस्म के फल सीधे और हरे रंग के होते हैं। यह किस्म बिजाई के 60 दिनों के बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 120 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Priya: इसके फल लगभग 40 सैं.मी. लंबे होते हैं। यह किस्म बिजाई के 60 दिनों के बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है।
 
Kalyanpur Baramansi: इस किस्म के फल हल्के हरे रंग के 30-50 सैं.मी. लंबे होते हैं। यह किस्म बारिश के मौसम में खेती के लिए उपयुक्त होती है।
 
Faijabadi: यह स्थानीय किस्म है। इसके फल लंबे, मध्यम आकार के और गहरे हरे रंग के होते हैं।
 
Pant Karela 1: इसके फल मोटे होते हैं। यह 55 दिनों में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 60 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa Hybrid 2: इसके फल मध्यम लंबे, मोटे और चमकदार हरे होते हैं।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
CO 1: इस किस्म के फल मध्यम आकार के होते हैं जो कि लंबे और गहरे हरे रंग के होते हैं। इसके फल का औसतन भार 100-120 ग्राम होता है। इस किस्म की औसतन पैदावार 5.8 टन प्रति एकड़ होती है और यह किस्म 115 दिनों में पक जाती है।
 
COBgoH 1: यह किस्म 115-120 दिनों में पक जाती है और इसकी औसतन पैदावार 20-21 टन प्रति एकड़ होती है।
 
MDU 1: इस किस्म  के फल की लंबाई 30-40 सैं.मी. होती है और यह 120-130 दिनों में पक जाती है। इसकी औसतन पैदावार 13-14 टन प्रति एकड़ होती है।
 
Punjab Kareli-1: यह किस्म 2009 में जारी की गई है। इस किस्म के पत्ते हरे रंग के होते हैं जो कि नर्म और दांतेदार होते हैं। ये लंबे आकार के फल पैदा करते हैं जो कि पतले और हरे रंग के होते हैं। इसके फल 66 दिनों के बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके फल का औसतन भार 50 ग्राम होता है और इसकी औसतन पैदावा 50 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
 
Punjab 14: यह किस्म 1985 में जारी की गई है। इस पौधे की बेलें छोटी होते हैं। इसके फल का औसतन भार 35 ग्राम होता है और हल्के हरे रंग के होते हैं। यह किस्म बारिश या बसंत के मौसम में बिजाई के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 50 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 

ज़मीन की तैयारी

करेले की खेती के लिए अच्छे तरह से तैयार ज़मीन की आवश्यकता होती है। मिट्टी के भुरभुरा होने तक 2-3 जोताई करें।

बिजाई

बिजाई का समय
गर्मियों के मौसम में, बिजाई के लिए फरवरी से मार्च और खरीफ के मौसम के लिए, जून से जुलाई का महीना उपयुक्त होता है। पहाड़ी क्षेत्रों में, मार्च से अप्रैल में बिजाई पूरी कर लें।
 
फासला
कतार से कतार में 2.0-2.5 मीटर और पौधे से पौधे में 40-50 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें। बैड के दोनों ओर बीज को बोयें।
 
बीज की गहराई
प्रत्येक गड्ढे में दो से तीन बीज बोयें। 3-5 सैं.मी. की गहराई पर बीज बोयें।
 
बिजाई का ढंग
बिजाई के लिए डिबलिंग विधि का प्रयोग करें।
 

बीज

बीज की मात्रा 
एक एकड़ में बिजाई के लिए 2-2.4 किलो बीज का प्रयोग करें।  Kalyanpur Baramansi के लिए 1.2-1.6 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
बिजाई से पहले बीज को 25-50 पी पी एम जिबरैलिक एसिड और 25 पी पी एम बोरोन में 24 घंटे के लिए भिगायें।
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
70 150 40

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
32 24 24

 

करेले की फसल को अच्छी तरह से गले हुए गाय का गोबर 8-10 टन, नाइट्रोजन 32 किलो (यूरिया 70 किलो), फासफोरस 24 किलो (एस एस पी 150 किलो) और पोटाश 24 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 40 किलो) प्रति एकड़ में डालें। गाय का गोबर, पोटाश और फासफोरस की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा बीज की बिजाई के दो से तीन सप्ताह पहले डालें। बाकी बची नाइट्रोजन को दो बराबर भागों में बांटे। पहला भाग बिजाई के 25-30 दिन बाद डालें और दूसरा भाग बिजाई के 40-50 दिन के बाद डालें।

 

 

सिंचाई

बारिश के मौसम में, फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। यदि जरूरत पड़े तो बारिश की तीव्रता और नियमितता के आधार पर सिंचाई करें। मिट्टी में जल जमाव की स्थिति ना होने दें। पानी के निकास का उचित प्रबंध करें। गर्मियों के मौसम में 6-7 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें।  मई जून के महीने में 4-5 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें।

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों की रोकथाम के लिए हाथों से गोडाई करें। 2-3 गोडाई पौधे की शुरूआती वृद्धि के समय करनी चाहिए। खादों की मात्रा डालने के समय मिट्टी में गोडाई की प्रक्रिया करें और मुख्यत बारिश के मौसम में मिट्टी चढ़ाएं।

पौधे की देखभाल

  • बीमारियां और रोकथाम
पत्तों पर सफेद धब्बे :  इससे पत्तों की ऊपरी सतह पर सफेद रंग के धब्बे पड़ जाते हैं, जिसके कारण पत्ते सूख जाते हैं।
 
कार्बेनडाज़िम 3 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 

पत्तों के निचली ओर धब्बे : यदि इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब या क्लोरथालोनिल 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर 10-12 दिनों के अंतराल पर दो बार स्प्रे करें।

  • हानिकारक कीट और रोकथाम
चेपा :  ये कीट पत्तों में से रस चूसते हैं जिसके कारण पत्ते पीले पड़ जाते हैं और अंतत गिर जाते हैं।
 
इसकी रोकथाम के लिए इमीडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
जूं  : थ्रिप्स के कारण पत्ते मुड़ जाते हैं, पत्ते कप के आकार के हो जाते हैं या ऊपर से मुड़ जाते हैं।
 
इसकी रोकथाम के लिए डिकोफॉल 18.5 प्रतिशत एस सी 2.5 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
भुंडी : इसके कारण फूलों, पत्तों और तने को नुकसान पहुंचता है।
 
इसकी रोकथाम के लिए मैलाथियोन 50 ई सी 1 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 

फसल की कटाई

मौसम और फसल की किस्म के आधार पर फसल 55-60 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।  2-3 दिनों के अंतराल पर फलों की तुड़ाई करें। 

बीज उत्पादन

रोगिंग तीन बार किया जाना चाहिए पहली बानस्पतिक वृद्धि के समय, दूसरी फूल निकलने के समय और तीसरी फल निकलने के समय करनी चाहिए। करेले की अन्य किस्मों से 1000 मीटर का फासला रखें। खेत में से बीमार पौधों को निकाल दें। बीज उत्पादन के लिएए की तुड़ाई पूरी तरह पकने पर करें। सही बीज लेने के लिए खेत की तीन बार जांच आवश्यक है। तुड़ाई के बादए फलों के सूखाएं और फिर बीज निकाल लें।