सीताफल की खेती

आम जानकारी

यह खाने में स्वाद और सूखी ज़मीन का फल है। यह विटामिन सी, पोटाशियम, मैगनीज़ और आयरन का उच्च स्त्रोत है। इस फल में कुछ मात्रा में संतृप्त वसा, सोडियम और कोलैस्ट्रोल की मात्रा होती है। अच्छे पोषक तत्व होने के कारण इसे सेहत के लिए आदर्श फल के रूप में भी जाना जाता है। यह ज्यादातर फिलिपिन्स, मिस्र, केंद्रीय अमेरिका और भारत में उगाया जाता है। कोलकाता, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, केरला, कर्नाटक, गुजरात, तेलंगना, आंध्र प्रदेश, अंडेमान और निकोबार मिज़ोरम भारत के सीताफल उगाने वाले मुख्य राज्य हैं। यह फल कब्ज का उपचार करने के लिए उपयोगी है, गठिया को कम करने और मांसपेशियों की कमज़ोरी से लड़ने में मदद करता है। इस फल को ताजे फल के रूप में खाया जा सकता है और इसे कस्टर्ड पाउडर, आइसक्रीम आदि बनाने के लिए भी उपयोग किया जाता है।

मिट्टी

इसे कई तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है। लेकिन रेतली दोमट मिट्टी में खेती करने पर यह अच्छे परिणाम देता है। सीताफल की खेती के लिए चिकनी दोमट मिट्टी भी उपयुक्त होती है। हल्के निकास वाली मिट्टी, भारी चिकनी या पथरीली मिट्टी में इसकी खेती ना करें। उस ज़मीन पर भी इसकी खेती करने से परहेज़ करें जहां पहले टमाटर, बैंगन, शिमला मिर्च और अदरक की फसल बोयी गई हो। सीताफल की खेती के लिए हमेशा वह मिट्टी उपयुक्त होती है जिसकी पी एच 7.5 से ज्यादा हो।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Saraswati Seven: यह किस्म राजस्थान एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा जारी की गई है। यह राजस्थान के कटिबंधीय क्षेत्रों जैसे दुंगरपुर, राजसामंद, चितौड़गढ़, उदयपुर, बंसवाड़ा, और जाहलावर में उगाया जाता है। इस किस्म के फल का भार 350-400 ग्राम होता है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Red Sitaphal, Balanagar, Purandhar (Pune), Washington, Hybrid, Pink Mammoth and African pride भारत में उगाई जाने वाली किस्म हैं।
 

ज़मीन की तैयारी

सीताफल की खेती के लिए अच्छी तरह से तैयार ज़मीन की आवश्यकता होती है। मिट्टी के भुरभुरा होने तक मोल्डबोर्ड हल की सहायता से दो बार जोताई करें और समतल करें।

बिजाई

बिजाई का समय
रोपाई के लिए जून-जुलाई का समय उपयुक्त होता है।
 
फासला
रोपाई के लिए 5 मीटर x 5 मीटर का फासला रखें और उच्च घनता में रोपाई के लिए 6 मीटर x 3 मीटर का फासला रखें।
 
बीज की गहराई
बीजों को 2-3 सैं.मी. की गहराई पर बोयें।
 

बीज

बीज की मात्रा
बिजाई के लिए, 160 पौधे प्रति एकड़ में प्रयोग करें और उच्च घनता रोपाई के लिए 225 पौधे प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
बिजाई से पहले, बीज का रेती के साथ ऊपरी छिल्का उतारें और उसके बाद इन बीजों को गर्म पानी में 24 घंटे के लिए भिगोकर रखें। उसके बाद बीज को खेत में सीधा या तैयार बैडों पर बोयें।
 

पनीरी की देख-रेख और रोपण

मई के महीने में 60 सैं.मी.x60 सैं.मी.x60 सैं.मी. आकार के गड्ढे खोदें। ऊपरी मिट्टी को गड्ढे के दायीं ओर और निचली  मिट्टी को गड्ढे के बायीं ओर डालें। गड्ढों को मिट्टी से पैदा होने वाले कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए धूप में 2 सप्ताह के लिए खुला छोड़ दें।
खोदने के बाद, गड्ढों को रूड़ी की खाद 20 किलो, एस एस पी 1 किलो से भरें। पौधों को जुलाई के महीने में तैयार गड्ढों में लगाएं।
 

खाद

खादें (ग्राम प्रति पौधा)

UREA
SSP
MOP
400
250
#

 

खेत की तैयारी के समय 30 किलो गली हुई रूड़ी की खाद डालें और मिट्टी में अच्छी तरह मिलायें। नाइट्रोजन 400 ग्राम, फासफोरस 250 ग्राम प्रति पौधे में डालें। नाइट्रोजन को तीन भागों में पहला जनवरी के महीने में, दूसरा जुलाई के महीने में और तीसरा नवंबर महीने में डालें। फासफोरस को दो भागों में पहला जनवरी में और फिर जुलाई के महीने में डालें।

 

कटाई और छंटाई

जब पौधे कलियों या ग्राफ्टिंग विधि से उगाए जाते हैं तो तने को आकार दिया जाता है। तने की अच्छी वृद्धि के लिए कम छंटाई की आवश्यकता होती है। इसके फलस्वरूप लंबे समय तक अच्छी उपज प्राप्त होगी।

सिंचाई

यह एक बारानी फसल है इसलिए इसे सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन अगेती कटाई के लिए फूल निकलने के समय सिंचाई दें जैसे मई के महीने में मॉनसून के शुरू होने तक लगातार करें। अच्छे फूल और फल निकलने के लिए फव्वारे से धुंध बनाकर सिंचाई करना अच्छा होता है। इससे तापमान को कम करने और नमी में वृद्धि करने में भी मदद मिलेगी।

खरपतवार नियंत्रण

शुरूआती 5 वर्षों तक हाथों से गोडाई करें। मिट्टी के तापमान को कम करने के साथ साथ नदीनों के नियंत्रण के लिए मलचिंग भी एक प्रभावी तरीका है।

पौधे की देखभाल

मिली बग
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
मिली बग : ये विकसित फलों में से रस चूसते हैं। परिणामस्वरूप फल का आकार कम हो जाता है और फल समय से पहले पककर गिरना शुरू हो जाते हैं। ये कीट पत्तों, फल के तने और नर्म टहनियों पर भी हमला करते हैं। जिसके कारण वे पीले रंग के हो जाते हैं और सूख जाते हैं।
 
यदि इसका हमला दिखे तो डाइक्लोरवास 2 मि.ली या एसीफेट 6 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
स्केल कीट
स्केल कीट : प्लूमोज़ स्केल कीट टहनियों और वृक्ष के तने पर हमला करते है जिसके कारण तनों और टहनियों पर गहरे भूरे रंग से सलेटी रंग के धब्बे देखे जा सकते हैं। फिलेफेडरा कीट पत्तों, नए तने और फलों पर हमला करते हैं। इसके कारण पत्ते भूरे रंग के हो जाते है जो अपने आप ही गिरने लगते हैं और तना मर जाता है।
 
रोकथाम : यदि इसका हमला खेत में दिखे तो कार्टैप हाइड्रोक्लोराइड 170 ग्राम या ट्राइज़ोफॉस 250 मि.ली. को 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 
 
फल छेदक
फल छेदक सुंडी : ये कीट फलों और पत्तों पर अंडे देते हैं जो नई टहनियों और पत्तों को अपना भोजन बनाते हैं।
 
रोकथाम : यदि इसका हमला खेत में दिखे तो कार्टैप हाइड्रोक्लोराइड 170 ग्राम या ट्राइज़ोफॉस 250 मि.ली. को 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 
 
पत्तों पर धब्बे पड़ना
  • बीमारियां और रोकथाम
पत्तों पर धब्बे : पत्तों पर बड़े, गोल और गहरे रंग के धब्बे देखे जा सकते हैं। इस बीमारी के ज्यादा हमले से पत्ते गिरने भी लग जाते हैं।
 
यदि इसका ज्यादा हमला दिखे तो कॉपर फंगसनाशी की स्प्र करें। इस बीमारी को कम करने के लिए मलचिंग भी एक प्रभावी तरीका है।
यदि इस बीमारी का हमला दिखे तो कार्बेनडाज़िम 300 ग्राम या 400 ग्राम एम-45 को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 15 दिनों के अंतराल पर दोबारा स्प्रे करें।
 
काले दभे
काले धब्बे : यह मुख्य तौर पर बसंत के मौसम में विकसित होते हैं। पत्तों पर छोटे काले रंग के धब्बे देखे जा सकते हैं। काले धब्बों की बाहरी भाग पर पीले रंग के धब्बे विकसित होते हैं और अपने आप ही पूरे पत्ते पीले रंग के हो जाते हैं और गिर जाते हैं।
 
यदि इसका हमला दिखे तो कार्बेनडाज़िम 300 ग्राम या 400 ग्राम एम-45 को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 15 दिनों के अंतराल पर दोबारा स्प्रे करें।
 
एंथ्राकनोस
एंथ्राक्नोस : यह एक फंगस की  बीमारी है जिसके कारण हरे पत्तों, तने और फलों पर गहरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं।
 
यदि इस बीमारी का हमला दिखे तो कार्बेनडाज़िम 300 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 15 दिनों के अंतराल पर दोबारा स्प्रे करें।
 

फसल की कटाई

वृक्ष तीसरे वर्ष में उपज देना शुरू करता है। जब फल अपने रंग को हरे रंग से विभिन्न रंगों में बदलता है, तो यह फल पकने के लक्षण होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 30 क्विंटल प्रति एकड़ होती है और उच्च घनता वाले क्षेत्रों में इसकी औसतन पैदावार 100 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।