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आम जानकारी

बैंगन (सोलेनम मैलोंजेना) सोलेनैसी जाति की फसल है, जो कि मूल रूप में भारत की फसल मानी जाती है और यह फसल एशियाई देशों में सब्जी के तौर पर उगाई जाती है। इसके बिना यह फसल मिस्र, फरांस, इटली और अमेरिका में भी उगाई जाती है। बैंगन की फसल बाकी फसलों से ज्यादा सख्त होती है। इसके सख्त होने के कारण इसे शुष्क और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता हैं यह विटामिन और खनिजों का अच्छा स्त्रोत है। इसकी खेती सारा साल की जा सकती है। चीन के बाद भारत दूसरा सबसे अधिक बैंगन उगाने वाला देश है। भारत में बैंगन उगाने वाले मुख्य राज्य पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, कर्नाटक, बिहार, महांराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश हैं।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    15-32°C
  • Season

    Rainfall

    600-1000mm
  • Season

    Sowing Temperature

    15-20°C
    28-32°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-32°C
    25-30°C
  • Season

    Temperature

    15-32°C
  • Season

    Rainfall

    600-1000mm
  • Season

    Sowing Temperature

    15-20°C
    28-32°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-32°C
    25-30°C
  • Season

    Temperature

    15-32°C
  • Season

    Rainfall

    600-1000mm
  • Season

    Sowing Temperature

    15-20°C
    28-32°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-32°C
    25-30°C
  • Season

    Temperature

    15-32°C
  • Season

    Rainfall

    600-1000mm
  • Season

    Sowing Temperature

    15-20°C
    28-32°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-32°C
    25-30°C

मिट्टी

बैंगन की फसल सख्त होने के कारण इसे अलग अलग तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है। यह एक लंबे समय की फसल है, इसलिए अच्छे जल निकास वाली उपजाऊ रेतली दोमट मिट्टी उचित होती है और अच्छी पैदावार देती है। अगेती फसल के लिए हल्की मिट्टी और अधिक पैदावार के लिए चिकनी और नमी या गारे वाली मिट्टी उचित होती है। फसल की वृद्धि के लिए 5.5-6.6 पी एच होनी चाहिए।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

लंबी किस्में
 
Pusa Purple Long: यह जल्दी पकने वाली किस्म है। सर्दियों में यह 70-80 दिनों में और गर्मियों में यह 100-110 दिनों में पक जाती है। इस किस्म के बूटे दरमियाने कद के और फल लंबे और जामुनी रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 120 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa Purple Cluster: यह किस्म आई. सी. ए. आर. नई दिल्ली द्वारा बनाई गई है। यह दरमियाने समय की किस्म है। इसके फल गहरे जामुनी रंग और गुच्छे में होते हैं। यह बैक्टीरिया सूखे के कुछ हद तक प्रतिरोधक है।
 
Pusa Kranti: यह किस्म IARI, नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। यह किस्म बसंत और पतझड़ के मौसम में उगाने के लिए अनुकूल है। यह किसम 130-150 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती हे। इसके फल आकर्षित गहरे जामुनी रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 56-64 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Punjab Sadabahar: इसकी औसतन पैदावार 120-160 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Punjab Basarati: इसकी औसतन पैदावार 120-140 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pant Samrat: इसके फल रोपाई के 70 दिनों के बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं।
 
गोल किस्में
 
Pusa Purple Round: यह किस्म छोटे पत्ते, शाख और फल के छेदक की रोधक किस्म है।
 
Pant Rituraj: इस किस्म के फल गोल और आकर्षित जामुनी रंग के होते हैं और इनमें बीज की मात्रा भी कम होती है। इसकी औसतन पैदावार 160 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Banaras Giant: यह वाराणसी और उसके नजदीक के क्षेत्रों में प्रसिद्ध किस्म है। इसके फल हरे और सफेद रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 400 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Swarna Mani: यह किस्म बैक्टीरियल सूखे के प्रतिरोधक किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 24-26 टन प्रति एकड़ होती है|
 
Swarna Ajay: इसकी औसतन पैदावार 28-30 टन प्रति एकड़ होती है।
 
हाइब्रिड किस्में
 
Arka Navneet: यह अधिक उपज देने वाली हाइब्रिड किस्म है। यह 150-160 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके फल बड़े और अंडाकार होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 260-280 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।  
 
Pusa Anmol: यह हाइब्रिड किस्म IARI, नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। यह pusa purple long किस्म से 80% ज्यादा उपज देती है।
 
Pusa Hybrid 9: यह हाइब्रिड किस्म IARI, नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। यह किस्म रोपाई के 90 दिनों के बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 240 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa Hybrid 5: इस किस्म के फल लंबे और गहरे जामुनी रंग के होते है। यह किस्म 80-85 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 204 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Kashi Sandesh: इसके फल चमकदार हल्के जामुनी रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 240-280 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Arka Navneet : यह किस्म IIHR, बैंगलोर द्वारा तैयार की गई है और यह उच्च पैदावार देने वाली किस्म है। यह 150-160 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके फल बड़े और अंडाकार होते हैं। इसको पकने की गुणवत्ता बहुत बढ़िया है| इसकी औसतन पैदावार 260-280 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।  
 
Neelima: यह भारत में पहली सूखा रोधक किस्म है जो कि KAU द्वारा जारी की गई है। इसके फल बड़े और अंडाकार होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 260 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Swetha: यह बैक्टीरियल सूखा विरोधी किस्म है जो कि KAU द्वारा जारी की गई है। इसके फल मध्यम लंबे और सफेद रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 120 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 

ज़मीन की तैयारी

मिट्टी के भुरभुरा होने तक खेत की तीन से चार बार जोताई करें। गाय का गला हुआ गोबर 42 क्विंटल प्रति एकड़ में डालें और मिट्टी में अच्छी तरह मिलायें।

पनीरी की देख-रेख और रोपण

बैंगन के बीज 3 मीटर लंबे, 1 मीटर चौड़े और 15 सैं.मी. ऊंचे बैडों पर बोये जाते हैं। पहले बैडों में बढ़िया रूड़ी की खाद डालें। फिर बिजाई से दो दिन पहले कप्तान का घोल डालें ताकि जो नर्सरी बैडों में पौधों को नष्ट होने से बचाया जा सके। उसके बाद बीजों को कतारों में 2.5 सैं.मी. के फासले पर और 1.5 सैं.मी. की गहराई पर बोयें। हल्की सिंचाई करें। पौधों के अंकुरन तक बैडों को काले रंग की पॉलीथीन शीट या पराली से ढक दें। तंदरूस्त पौधे जिनके 3-4 पत्ते निकलें हों और कद 12-15 सैं.मी. (30-40 days crop) हो, खेत में पनीरी लगाने के लिए तैयार होते हैं।
 
रोपाई: रोपाई से पहले 4-5 बार जोताई करके मिट्टी को अच्छी तरह से तैयार कर लें और समतल करें। जब खेत अच्छे से तैयार और समतल हो जाए तो रोपाई से पहले खेत में उचित आकार के बैड बनायें। रोपाई शाम के समय करें और रोपाई के बाद हल्की सिंचाई करें। 
 

बिजाई

बिजाई का समय
बैंगन की खेती पूरे वर्ष की जाती है। खरीफ मौसम के लिए, नर्सरी फरवरी - मार्च के महीने में तैयार करें और मार्च - अप्रैल के महीने में रोपाई करें।
सर्दियों के मौसम में, नर्सरी की तैयारी के लिए जून जुलाई का समय उपयुक्त होता है और रोपाई के लिए जुलाई अगस्त का महीना उपयुक्त होता है।
बसंत के मौसम में, सितंबर के महीने में नर्सरी तैयार करें और अक्तूबर - नवंबर के महीने में रोपाई पूरी कर लें।
 
फासला
लंबी किस्मों के लिए, कतार से कतार में 60-75 सैं.मी. जबकि गोल किस्मों के लिए कतारों में 80-90 सैं.मी. और पौधे से पौधे में 60-70 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
नर्सरी में, बीज को 1.5 सैं.मी. गहराई में बोयें और मिट्टी से ढक दें।
 
बिजाई का ढंग
खेत में पनीरी लगाकर इसकी बिजाई की जाती है।
 

बीज

बीज की मात्रा
एक एकड़ खेत में बिजाई के लिए 300-400 ग्राम बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
बिजाई के लिए तंदरूस्त और बढ़िया बीज का ही प्रयोग करें। बिजाई से पहले बीज को थीरम 3 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 3 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद, बीज का ट्राइकोडरमा विराइड 4 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचार करें और फिर छांव में सुखाने के बाद तुरंत बिजाई करें।

निम्नलिखित में से किसी एक फंगसनाशी या कीटनाशी का प्रयोग करें
 
 फंगसनाशी /कीटनाशी दवाई मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज)
Carbendazim 3gm
Thiram 3gm
 
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA
SSP MOP
130 125 35

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN
PHOSPHORUS POTASH
60 20 20

 

नाइट्रोजन 60 किलो (130 किलो यूरिया), फासफोरस 20 किलो (125 किलो सिंगल सुपर फासफेट) और पोटाश 20 किलो (35 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश) की मात्रा प्रति एकड़ में प्रयोग करें। नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा और फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा आखिरी जोताई के समय डालें। बाकी बची नाइट्रोजन को रोपाई के बाद 30 वें और 45वें दिन डालें।

पानी में घुलनशील खादें : फसल के शुरूआती विकास के समय हयूमिक तेजाब 1 लीटर प्रति एकड़ या 5 किलो प्रति एकड़ मिट्टी में मिलाकर डालें। यह फसल की पैदावार और वृद्धि में बहुत मदद करता है। पनीरी लगाने के 10-15 दिन बाद खेत में NPK 19:19:19 के साथ 2.5-3 ग्राम प्रति लीटर सूक्ष्म तत्वों की स्प्रे  करें।शुरूआती विकास के समय कईं बार कम तापमान के कारण पौधे  सूक्ष्म तत्व नहीं ले पाते, जिस के कारण पौधा पीला पड़ जाता है और कमज़ोर दिखता है। ऐसी स्थिति में  NPK 19:19:19 या 12:61:00 की 5-7 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे करें। आवश्यकतानुसार 10-15 दिन के बाद दोबारा स्प्रे करें। पनीरी खेत में लगाने के 40-45 दिनों के बाद 20 प्रतिशत बोरोन 1 ग्राम में सूक्ष्म तत्व 2.5-3 ग्राम प्रति लीटर पानी से स्प्रे करें। फसल में तत्वों की पूर्ति और पैदावार 10-15 प्रतिशत बढ़ाने के लिए 13:00:45 की 20 ग्राम प्रति लीटर पानी की दो स्प्रे करें। पहली स्प्रे 50 दिनों के बाद और दूसरी स्प्रे पहली स्प्रे के 10 दिन बाद करें। जब फूल या फल निकलने का समय हो तो 00:52:34 या 13:00:45 की 20 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
 
अधिक तापमान होने के कारण फूल गिरने शुरू हो जाते हैं, इसकी रोकथाम के लिए NAA 4 मि.ली. प्रति 15 लीटर पानी की स्प्रे फूल निकलने के समय करें। 20-25 दिन बाद यह स्प्रे दोबारा करें। 
 

 

 

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों को रोकने, अच्छे विकास और उचित हवा के लिए दो - चार गोडाई करें। काले रंग की पॉलिथीन शीट से पौधों को ढक दें जिससे नदीनों का विकास कम हो जाता है और ज़मीन का तापमान भी बना रहता हैं
 
नदीनों को रोकने के लिए पौधे लगाने से पहले मिट्टी में फलूकलोरालिन 600-800 मि.ली. प्रति एकड़ या ऑक्साडायाज़ोन 400 ग्राम प्रति एकड़ डालें। अच्छे परिणाम के लिए पौधे लगाने से पहले एलाकलोर 2 लीटर प्रति एकड़ की मिट्टी के तल पर स्प्रे करें।
 

पौधे की देखभाल

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  • हानिकारक कीट और रोकथाम
फल और शाख का कीट : यह बैंगन की फसल का मुख्य और खतरनाक कीट है। शुरूआत में इसकी छोटी गुलाबी सुंडियां पौधे की गोभ में छेद करके अंदर से तंतू खाती हैं और बाद में फल पर हमला करती हैं। प्रभावित फलों के ऊपर बड़े छेद नज़र आते हैं और खाने योग्य नहीं होते हैं।
 
प्रभावित फल हर सप्ताह तोड़ कर नष्ट कर दें। नर्सरी लगाने से 1 महीने बाद ट्राइज़ोफॉस 20 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी और 50 ग्राम नीम एक्सट्रैक्ट 50 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे करें। 10-15 दिनों के फासले पर यह स्प्रे दोबारा करें। फूल निकलने के समय कोराजैन 18.5 प्रतिशत एस सी 5 मि.ली. + टीपॉल 5 मि.ली. का घोल 12 लीटर पानी में मिलाकर 20 दिनों के फासले पर दो बार स्प्रे करें।
 
शुरूआती हमले में 5 प्रतिशत नीम एक्सट्रैक्ट 50 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे करें। ज्यादा हमला दिखने पर 25 प्रतिशत साइपरमैथरिन 2.4 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी की स्प्रे करें। कीटों की गिनती अधिक हो जाने पर स्पाइनोसैड 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। फल पकने के बाद ट्राइज़ोफॉस या किसी और कीटनाशक की स्प्रे ना करें।
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चेपा : पौधों पर मकौड़ा जुंएं, चेपा और मिली बग भी हमला करते हैं। ये पत्ते का रस चूसते हैं और पत्ते पीले पड़ कर झड़ने शुरू हो जाते हैं।
 
यदि चेपे और सफेद मक्खी का हमला दिखे तो डैल्टामैथरिन + ट्राइज़ोफॉस के घोल 10 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी की स्प्रे करें। सफेद मक्खी के नुकसान को देखते हुए एसेटामीप्रिड 5 ग्राम प्रति 15 लीटर की स्प्रे करें।
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थ्रिप : थ्रिप के हमले को मापने के लिए 6-8 प्रति एकड़ नीले फेरोमोन कार्ड लगाएं और हमले को कम करने के लिए वर्टीसिलियम लिकानी 5 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। थ्रिप का ज्यादा हमला होने पर फिप्रोनिल 2 मि.ली. प्रति लीटर की स्प्रे करें।

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मकौड़ा जुंएं : यदि खेत में जुंओं का हमला दिखे तो एबामैक्टिन 1-2 मि.ली. या फैनाजैकुइन 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।

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पत्ता खाने वाली सुंडी : कईं बार फसल की शुरूआत में इस कीड़े का हमला नज़र आता है। इसकी रोकथाम के लिए नीम वाले कीटनाशकों का प्रयोग करें।

यदि कोई असर ना दिखे और हमला बढ़ रहा हो तो रासायनिक कीटनाशक जैसे कि एमामैक्टिन बैंज़ोएट 4 ग्राम लैंबडा साइहैलोथ्रिन 2 मि.ली. प्रति 1 लीटर पानी की स्प्रे करें।

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  • बीमारियां और रोकथाम
जड़ों में गांठें : यह बैंगन की फसल की आम बीमारी है। यह फसल के शुरूआती समय में ज्यादा खतरनाक होते हैं। इससे जड़ें फूलने लग जाती हैं इस बीमारी के हमले से फसल का विकास रूक जाता है, पौधा पीला पड़ जाता है और पैदावार भी कम हो जाती है।
 
इसकी रोकथाम के लिए फसल चक्र अपनाएं और मिट्टी में कार्बोफिउरॉन या फोरेट 5-8 किलो प्रति एकड़ मिलाएं।
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उखेड़ा रोग : नमी और बुरे निकास वाली मिट्टी से यह बीमारी पैदा होती है। यह ज़मीन से पैदा होने वाली बीमारी है। इस बीमारी से तने पर धब्बे और धारियां पड़ जाती हैं। इससे छोटे पौधे अंकुरन से पहले ही मर जाते हैं। यदि नर्सरी में इसका हमला हो जाये तो सारे पौधों को नष्ट कर देती है।
 
इसकी रोकथाम के लिए बिजाई से पहले बीजों को थीरम 3 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचार करें। बिजाई से पहले नर्सरी वाली मिट्टी को सूर्य की रोशनी में खुला छोड़ें। यदि नर्सरी में इसका हमला दिखे तो रोकथाम के लिए नर्सरी में से पानी का निकास करें और मिट्टी में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर डालें।
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झुलस रोग और फल गलन : इस बीमारी से पत्तों पर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। यह दाग फलों पर भी नज़र आते हैं। जिस कारण फल काले रंग के होने शुरू हो जाते हैं।
 
इसकी रोकथाम के लिए बिजाई से पहले बीजों को थीरम 3 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचार करें। इस बीमारी की रोधक किस्मों का प्रयोग करें यदि खेत में हमला दिखे तो ज़िनैब 2 ग्राम प्रति लीटर या मैनकोज़ेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
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पत्तों का छोटापन : यह बीमारी पत्तों के टिड्डे द्वारा फैलती है। इस बीमारी से प्रभावित पत्ते पतले रह जाते हैं। छोटी पत्तियां भी हरी पड़ जाती हैं। प्रभावित पौधे फल नहीं पैदा करते।
 
इस बीमारी की रोकथाम के लिए रोधक किस्मों का प्रयोग करें। नर्सरी में फोरेट 10 प्रतिशत (20 ग्राम, 3x1 मीटर चौड़े बैड के लिए) का प्रयोग करें। बिजाई के समय दो पंक्तियों के बीच फोरेट डालें। यदि शुरूआती समय पर हमला दिखे तो प्रभावित पौधे उखाड़कर बाहर निकाल दें। फसल में डाईमैथोएट या ऑक्सीडैमीटन मिथाइल 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। इस बीमारी का मुख्य कारण तेला है। तेले के हमले को काबू करने के लिए थायामैथोक्सम 25 प्रतिशत डब्लयु जी 5 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी की स्प्रे करें।
 
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चितकबरा रोग : इस बीमारी से पत्तों पर हल्के हरे धब्बे दिखाई देते हैं। पत्तों पर छोटे-छोटे बुलबुले जैसे दाग बन जाते हैं और पत्ते छोटे रह जाते हैं।
 
इसकी रोकथाम के लिए बिजाई के लिए तंदरूस्त और बीमारी रहित बीज का प्रयोग करें। प्रभावित पौधे खेत में से उखाड़कर नष्ट कर दें। सिफारिश की गई दवाइयां चेपे की रोकथाम के लिए अपनाएं। इसके हमले की रोकथाम के लिए एसीफेट 75 एस पी 1 ग्राम प्रति लीटर या मिथाइल डैमेटन 25 ई सी 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी या डाईमैथोएट 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
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सूखा रोग : इस बीमारी से फसल पीली पड़ने लग जाती है और पत्ते झड़ जाते हैं। सारा पौधा सूखा हुआ नज़र आता है प्रभावित तने को यदि काटकर पानी में डुबोया जाये तो पानी सफेद रंग का हो जाता है।
 
इसकी रोकथाम के लिए फसली चक्र अपनाएं। बैंगन की फसल फ्रांसबीन की फलियों की फसल के बाद उगाएं, ऐसा करने से इस बीमारी को फसल को बचाया जा सकता है। प्रभावित पौधों के हिस्सों को खेत से बाहर निकालकर नष्ट कर दें। खेत में पानी खड़ा ना रहने दें। बीमारी के हमले को रोकने के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।

फसल की कटाई

बैंगन की तुड़ाई फल पकने से थोड़ा समय पहले की जाती है, जब फल उचित आकार और रंग का हो जाता है। मंडी में अच्छा रेट लेने के लिए फल चिकना और आकर्षक रंग का होना चाहिए।

कटाई के बाद

बैंगन को ज्यादा देर के लिए आम कमरे के तापमान में नहीं रखा जा सकता, क्यों कि इससे इसकी नमी खत्म हो जाती है। बैंगन को 2-3 सप्ताह के लिए 10-11 डिगरी सैल्सियस तापमान पर और 92 प्रतिशत नमी में रखा जा सकता है। कटाई के बाद इसे सुपर, फैंसी और व्यापारिक आकार के हिसाब से छांट लिया जाता है। पैकिंग के लिए, बोरियों या टोकरियों का प्रयोग करें।