onions.jpg

आम जानकारी

प्याज़ एक प्रसिद्ध व्यापक सब्जी वाली प्रजाति है| इसको रसोई के कार्यो में प्रयोग किया जाता है| इसके इलावा इस के कड़वे रस के कारण इसे कीटों की रोकथाम, कांच और पीतल के बर्तनों को साफ करने के लिए और प्याज़ के घोल को कीट-रोधक के तौर पर पौधों पर स्प्रे करने के लिए भी प्रयोग किया जाता है| ताजा खाने के साथ साथ इसका प्रयोग फ्लेक्स, पाउडर और पेस्ट के रूप में किया जाता है। बड़े प्याज की तुलना में छोटे प्याज में पोषक तत्व ज्यादा होते हैं। भारत प्याज़ की खेती के क्षेत्र में पहले और उत्पादन के तौर पर चीन के बाद दूसरे स्थान पर है| क्षेत्र और उत्पादकता के आधार पर कर्नाटक, मध्य प्रदेश और आंध्रा प्रदेष के बाद महाराष्ट्र मुख्य प्याज उत्पादक है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    21-26°C
  • Season

    Rainfall

    650-750mm
  • Season

    Sowing Temperature

    18°C - 20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    25°C - 30°C
  • Season

    Temperature

    21-26°C
  • Season

    Rainfall

    650-750mm
  • Season

    Sowing Temperature

    18°C - 20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    25°C - 30°C
  • Season

    Temperature

    21-26°C
  • Season

    Rainfall

    650-750mm
  • Season

    Sowing Temperature

    18°C - 20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    25°C - 30°C
  • Season

    Temperature

    21-26°C
  • Season

    Rainfall

    650-750mm
  • Season

    Sowing Temperature

    18°C - 20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    25°C - 30°C

मिट्टी

इसकी खेती अलग-अलग किस्म की मिट्टी जैसे की रेतली दोमट, चिकनी, गार और भारी मिट्टी में की जा सकती है| यह गहरी दोमट और जलोढ़ मिट्टी, जिसका निकास प्रबंध बढ़िया, नमी को बरकरार रखने की समर्थता, जैविक तत्वों वाली मिट्टी में बढ़िया परिणाम देती है| विरली और रेतली मिट्टी इसकी खेती के लिए बढ़िया नहीं मानी जाती है, क्योंकि मिट्टी के घटिया जमाव के कारण इसमें गांठों का उत्पादन सही नहीं होता है| इसकी खेती के लिए मिट्टी का pH 6-7 होना चाहिए|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Kalyanpur Red Round: यह उत्तर प्रदेश की प्रसद्धि किस्म है। इसकी गांठे भूरे रंग की और गोलाकार आकार की होती हैं। इसके पौधे 150-160 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इसकी औसतन पैदावार 8-10 टन प्रति एकड़ होती है।
 
Bhima Shakti: यह खरीफ के साथ साथ रबी के मौसम में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह किस्म रोपाई के 130 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावारा 170 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Arka Kalyan: इसकी गांठे गहरे गुलाबी रंग की होती हैं। इसकी औसतन पैदावार 135 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa White Round: इसकी गांठे सफेद, गोल और समतल होती हैं। इसकी औसतन पैदावार 120 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa white flat: इसकी गांठे सफेद, चपटी और मध्यम से बड़े आकार की होती हैं। यह किस्म डीहाइड्रेशन के लिए उपयुक्त है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Pusa Red: इसकी गांठे मध्यम आकार और तांबे के रंग की होती हैं। इसे ज्यादा समय तक रखा जा सकता है। रोपाई के  बाद ये 125-140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 100-120 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa Ratnar: इसकी गांठे गोलकार समतल और गहरे लाल रंग की होती हैं। इसकी औसतन पैदावार 120-160 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa Madhavi: इसकी गांठे मध्यम से बड़े आकार की और हल्के लाल रंग की होती है। यह किस्म रोपाई के बाद 130-135 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 120 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa Ridhi: यह किस्म खरीफ के साथ साथ रबी के मौसम में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी गांठे सघन, समतल गोलाकार के साथ गहरे लाल रंग की होती हैं। इसकी औसतन पैदावार 120 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Arka Niketan: इसकी गांठे गोलाकार और आकर्षित रंग की होती हैं। यह किस्म 145 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं।
 
Arka Bindu: इसकी गांठे छोटे आकार की और गहरे गुलाबी रंग की होती हैं। यह जल्दी पकने वाली किस्म है और निर्यात के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 100 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Banglore Rose: इसकी गांठे छोटे आकार की और एक समान होती हैं। इसकी औसतन पैदावार 60 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Bhima Raj: इसकी गांठे गहरी लाल और अंडाकार आकार की होती है। यह किस्म 120-125 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 100-120 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Bhima Red: यह किस्म खरीफ में पिछेती बिजाई के लिए उपयुक्त है। इसकी गांठे आकर्षित लाल रंग की होती हैं। यह किस्म 115-120 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 190-210 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
 
Bhima Super: इसकी गांठे 100-110 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं। इसकी औसतन पैदावार 105-115 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 

ज़मीन की तैयारी

मिट्टी को भुरभुरा बनाने के लिए तीन-चार बार गहराई से जोताई करें| मिट्टी में जैविक तत्वों की मात्रा बढ़ाने के लिए रूड़ी की खाद डालें| फिर खेत को छोटे-छोटे प्लाटों में बांट दे|

बिजाई

बिजाई का समय
खरीफ के मौसम में रोपाई के लिए मई से जून का महीना नर्सरी तैयार करने के लिए उपयुक्त होता है। बिजाई के 6-8 सप्ताह बाद नए पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं। जुलाई -अगस्त के महीने में रोपण कर दें।
 
फासला
रोपण के समय, पंक्तियों के बीच 15 सैं.मी. और पौधों के बीच 10 सैं.मी. का फासला रखें|
 
बीज की गहराई
नर्सरी में बीज 1-2 सैं.मी. गहराई पर बोयें|
 
बिजाई का ढंग
बिजाई के लिए रोपण विधि का प्रयोग करें|
 

बीज

बीज की मात्रा
एक एकड़ के लिए 2-3 किलो बीज का प्रयोग करें|
 
बीज का उपचार
उखेड़ा रोग और कांव-गियारी से बचाव के लिए थीरम 2 ग्राम+बैनोमाइल 50 डब्लयू पी 1 ग्राम प्रति लीटर पानी से प्रति किलो बीजों का उपचार करें| रासायनिक उपचार के बाद बायो एजेंट ट्राईकोडर्मा विराइड 2 ग्राम के साथ प्रति किलो बीजों का उपचार करने की सिफारिश की जाती है| इस तरह करने से नए पौधे मिट्टी से पैदा होने वाली और अन्य बीमारीयों से बच जाते है|
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP
MURIATE OF POTASH
65 100 30

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN
PHOSPHORUS POTASH
30 16 16

 

बिजाई से 10 दिन पहले 20 टन रूड़ी की खाद डालें| नाइट्रोजन 30 किलो(यूरिया 65 किलो), फासफोरस 16 किलो(सिंगल सुपर फासफेट 100 किलो) और पोटाश 16 किलो(मिउरेट ऑफ़ पोटाश 30 किलो) प्रति एकड़ डालें| फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा रोपण के समय डालें| बाकी बची नाइट्रोजन को दो भागों में बांटकर रोपाई के बाद टॉप ड्रेसिंग के तौर पर 30वें और 45वें दिन डालें। 
 
अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए सल्फर भी बहुत महत्तवपूर्ण है। मिट्टी की जांच के आधार पर रोपाई के समय 6-12 किलो सल्फर प्रति एकड़ में डालें।
 
पानी में घुलनशील खादें: रोपण से 10-15 दिन बाद सूक्ष्म-तत्व 2.5-3 ग्राम प्रति लीटर पानी के साथ 19:19:19 की स्प्रे करें|
 

 

 

सिंचाई

मिट्टी की किसम और जलवायु के आधार पर सिंचाई की मात्रा और आवर्ती का फैसला करें| आमतौर पर, इसे 5-8 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बिजाई के तुरंत बाद करें और दूसरी सिंचाई रोपाई के तीन दिन बाद करें |बाकी की सिंचाई आवश्यकता और मिट्टी में नमी के आधार पर 7-10 दिनों के अंतराल पर करें। पुटाई के 10-15 दिन पहले सिंचाई बंद कर दें। अत्याधिक सिंचाई ना करें।

खरपतवार नियंत्रण

शुरुआत में नए पौधे धीरे-धीरे बढ़ते है| इसलिए नुकसान से बचाव के लिए गोड़ाई की जगह रासायनिक नदीन-नाशक का प्रयोग करें| रोकथाम के लिए बिजाई से 72 घंटे में पेंडीमैथालीन(स्टंप) 1 लीटर को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें| नदीनों के अंकुरण उपरांत बिजाई से 7 दिन बाद आक्सीफ्लोरफैन 425 मि.ली. को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें| नदीनों की रोकथाम के लिए 2-3 गोड़ाईयों की सिफारिश की जाती है| पहली गोड़ाई बिजाई से एक महीने बाद और दूसरी गोड़ाई, पहली से एक महीने बाद करें|

पौधे की देखभाल

maggot.jpg
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
सफेद सुंडियां: इनका हमला आमतौर पर जनवरी-फरवरी महीने में होता है| यह पौधे की जड़ों को खाते है, जिस कारण पत्ते भूरे हो जाते है| इससे पौधे का शिखर गीला रहने लग जाता है|
 
अगर इसका हमला दिखाई दे तो कार्बरील 4 किलो या फोरेट 4 किलो मिट्टी में डालें और हल्की सिंचाई करें| सिंचाई वाले पानी या मिट्टी में मिला कर क्लोरपाइरीफोस 1.5 लीटर प्रति एकड़ में डालें|
iTHRIPS.jpg
थ्रिप्स: यदि इसे ना रोका जाए तो यह पैदावार को 50% तक नुकसान पहुंचाते है| यह ज्यादातर शुष्क मौसम में पाए जाते है| यह पत्तों का रस चूसते है, जिस कारण पत्ते मुड़ जाते है, और कप के आकार के हो जाते है या ऊपर की तरफ मुड़ जाते है|
 
थ्रिप्स के हमले की जांच के लिए 6-8 नीले चिपकने वाले कार्ड प्रति एकड़ में लगाएं|अगर इनका हमला दिखाई दे तो फिपरोनिल (रीजेंट) 30 मि.ली. को प्रति 15 लीटर पानी में घोल कर स्प्रे करें या प्रोफैनोफोस 10 मि.ली.को प्रति 10 लीटर की स्प्रे 8-10 दिनों के फासले पर करें|
purple-blotch-onions-2_2.jpg
जामुनी धब्बे और तने का झुलस रोग: गंभीर हमले के दौरान यह बीमारी फसल की पैदावार को 70% तक नुकसान पहुंचाती है| इससे पत्तों पर जामुनी रंग के धब्बे पड़ जाते है| इसकी पीली धारियां भूरी हो जाती है और तीखी और लम्बी हो जाती है|
 
इसकी रोकथाम के लिए प्रोपीनेब 70% डब्लयू पी 350 ग्राम को 150 लीटर में मिलाकर प्रति एकड़ में 10 दिन के फासले पर स्प्रे करें|

फसल की कटाई

सही समय पर पुटाई करना बहुत जरूरी है| पुटाई का समय किस्म,ऋतु,मंडी रेट आदि पर निर्भर करता है| 50% पौधे की पत्तियां नीचे की तरफ गिरना दर्शाता है कि फसल पुटाई के लिए तैयार है| फसल की पुटाई हाथों से प्याज़ को उखाड़ कर की जाती है| पुटाई के बाद इनको 2-3 दिन के लिए अनावश्यक नमी निकालने के लिए खेत में छोड़ दे|

कटाई के बाद

पुटाई और पूरी तरह से सूखने के बाद, गांठों को आकार अनुसार छांट ले|