तिल की फसल

आम जानकारी

भारत विश्व में तिल का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। कम समय की फसल होने के कारण इसे पूरे वर्ष उगाया जा सकता है। इसके बीजों से निकाला गया तेल खाने के लिए प्रयोग किया जाता है। बीज दो रंगो में उपलब्ध होते हैं- काले और सफेद। भारत विश्व में तिल का सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत में गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, तामिलनाडू और महाराष्ट्र मुख्य तिल उत्पादक राज्य हैं।
 
उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड, मिर्ज़ापुर, सोनभादरा, कानपुर, अलाहाबाद, आगरा, मैनपुरी और फतेहपुर मुख्य तिल उगाने वाले क्षेत्र हैं। इस फसल का अकेले भी या ज्वार, बाजरा आदि के साथ मिश्रित फसल के रूप में भी उगाया जा सकता है। 
 

मिट्टी

तिल की खेती के लिए अच्छे निकास वाली हल्की से दरमियानी मिट्टी जिसमें पानी को बांधने की अच्छी क्षमता हो, उपयुक्त होती है। मिट्टी की पी एच 5 से 8 होनी चाहिए। क्षारीय और तेजाबी मिट्टी में तिल की खेती ना करें।

  • Season

    Rainfall

    500-700mm

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

T4: यह किस्म 90-100 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 2.4-2.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसमें तेल की मात्रा 40-42 प्रतिशत होती है।
 
T12: यह किस्म 85-90 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म उत्तर प्रदेश के मध्य और पश्चिमी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 2-2.4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसमें तेल की मात्रा 40-45 प्रतिशत होती है।
 
T13: यह किस्म राजस्थान में हल्की मिट्टी के लिए उपयुक्त है। यह किस्म उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 2.4-2.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसमें तेल की मात्रा 40-45 प्रतिशत होती है।
 
T 78: यह किस्म 80-85 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म उत्तर प्रदेश के सभी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 2.8-3.2 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसमें तेल की मात्रा 45-48 प्रतिशत होती है।
 
Shekhar: यह किस्म 80-85 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म उत्तर प्रदेश के सभी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 2.8-3.2 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसमें तेल की मात्रा 45-48 प्रतिशत होती है।
 
Pragati: यह किस्म 80-85 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म उत्तर प्रदेश के सभी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 2.8-3.6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसमें तेल की मात्रा 45-48 प्रतिशत होती है।
 
Tarun : यह किस्म 80-85 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म उत्तर प्रदेश के सभी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 3.2-3.6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसमें तेल की मात्रा 50-52 प्रतिशत होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Pratap (C 50): यह किस्म लंबी और 100-105 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके बीज सफेद रंग के होते हैं, जिनमें तेल की मात्रा 50 प्रतिशत होती है। इसकी औसतन पैदावार 200 किलोग्राम प्रति एकड़ होती है।
 
RT 46: इस किस्म के बीज सफेद होते हैं जिनमें तेल की मात्रा 50 प्रतिशत होती है। इसकी औसतन पैदावार 280 किलोग्राम प्रति एकड़ होती है।
 
TC 25: यह किस्म 80-85 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके बीज सफेद रंग के जिनमें तेल की मात्रा 48.4 प्रतिशत होती है। इसकी औसतन पैदावार 200 किलोग्राम प्रति एकड़ होती है।
 
JTS 8
 
RT 103, RT 125, RT 54, RT 46
 
RT 127, RT 346, RT 351
 
हाइब्रिड किस्में
SVPR-1, TMV 4, TMV 5, TMV 3, CO-1, TMV 6, VRI (SV)-1, VRI (SV)-2
 

 

ज़मीन की तैयारी

खेत की देसी हल की सहायता से एक बार जोताई करें। उसके बाद 1-2 तिरछी जोताई करें। मिट्टी को समतल करें ताकि खेत में पानी खड़ा ना हो सके।

बिजाई

बिजाई का समय
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए, तिल का बिजाई का उचित समय जुलाई का दूसरा पखवाड़ा होता है। बुंदेलखंड क्षेत्रों में जून के आखिरी सप्ताह में बिजाई पूरी कर लें।
 
फासला
कतारों में 30-35 सैं.मी. और पौधों में 15 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
तिल के बीजों को गहराई में ना बोयें। बीजों को 3-4 सैं.मी. की गहराई में बोयें।
 
बिजाई का ढंग
तिल की बिजाई के लिए, बुरकाव या कतारों में बीज बो कर, ढंग प्रयोग किए जाते हैं।
 

बीज

बीज की मात्रा
बिजाई के लिए 1-1.5 किलो बीज एक एकड़ में प्रयोग किए जाते हैं। तिल के बीज छोटे होते हैं इसलिए बिजाई से पहले उसके भार से 4 गुणा ज्यादा सूखी रेत या खाद में मिलायें और बिजाई करें।
 
बीज का उपचार
मिट्टी से होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए बीजों को कार्बेनडाज़िम 3 ग्राम या थीरम 3 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर प्रति किलो बीज का उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद, ट्राइकोडरमा विराइड या ट्राइकोडरमा 4 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें।
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
30 40 -

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
12 6 -

 

खेत की तैयारी के समय अच्छी तरह से गला हुआ, गाय का गोबर 4-8 टन प्रति एकड़ में डालें। तिल की पूरी फसल को भारी मिट्टी में नाइट्रोजन 12 किलो (यूरिया 30 किलो) और फासफोरस 6 किलो (एस एस पी 40 किलो) की आवश्यकता होती है। 10 किलो सल्फर भी प्रति एकड़ में डालें।
 
नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फासफोरस की पूरी मात्रा बिजाई के समय डालें। नाइट्रोजन की बाकी की मात्रा बिजाई के 30-35 दिनों के बाद डालें।  
 

 

 

 

 

सिंचाई

खरीफ के मौसम में वृद्धि के लिए कम सिंचाई की आवश्यकता होती है। बारिश की तीव्रता और नियमितता के आधार पर जीवन बचाव सिंचाई दें। फूल निकलने और फल बनने के समय पानी की कमी ना होने दें।

खरपतवार नियंत्रण

खेत को नदीन मुक्त करने के लिए बिजाई के 20-25 दिन बाद पहली गोडाई करें। दूसरी गोडाई बिजाई के 40-45 दिन बाद करें। नदीनों की रासायनिक रोकथाम के लिए उनके अंकुरण से पहले फलूक्लोरालिन 800 ग्राम या एलाक्लोर 1 ली. प्रति एकड़ में डालें।

पौधे की देखभाल

बालों वाली सूण्डी
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
बिहारी बालों वाली सुंडी : यह कीट तने को छोड़कर पत्तों और पौधे के पूरे भाग को अपना भोजन बनाती है।
 
यदि इसका हमला दिखे तो डाइमैथोएट 20 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
फूल की मक्खी
फूल की मक्खी : यह पौधे के फूल वाले भाग से भोजन लेती है। प्रभावित पौधे पर फल विकसित नहीं होते।
 
शुरूआती समय में नीम का घोल 3 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यदि हमला ज्यादा हो तो कार्बरिल 50 डब्लयु पी 900 ग्राम को 200 लीटर पानी या डाइमैथोएट 20 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
फल छेदक
फल छेदक : नए कीट पत्तों को मोड़ देते हैं और उनको अपना भोजन बनाते हैं। जिससे पौधा शाखाओं का उत्पादन नहीं करता। फूल निकलने की अवस्था में ये फूल से भोजन लेते हैं जिससे पैदावार पर प्रभाव पड़ता है।
 
शुरूआती समय में नीम का घोल 3 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यदि हमला ज्यादा हो तो कार्बरिल 50 डब्लयु पी 900 ग्राम को 200 लीटर पानी या डाइमैथोएट 20 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
बाज के सिर वाला पतंगा
बाज के सिर वाला पतंगा : ये कीट पत्तों पर हमला करते हैं और उन्हें अपना भोजन बनाते हैं। प्रभावित पौधा किसी भी टहनी का उत्पादन नहीं करता।
 
यदि इसका हमला दिखे तो कीटों को इक्ट्ठा करें और खेत से दूर ले जाकर नष्ट करे दें। यदि इसका हमला दिखे तो कार्बरील 800 ग्राम की प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
फिल्लोडी
  • बीमारियां और रोकथाम
फाइलोडी : पौधा फूल उत्पादन नहीं करता जिससे फूल वाला भाग पत्ते के आकार जैसे हो जाता है।
 
प्रभावित पौधे को हटा दें और खेत से दूर ले जाकर नष्ट कर दें। फोरेट 4 किलो प्रति एकड़ में डालें या डाइमैथोएट 20 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
पत्तों के धब्बा रोग
पत्तों के ऊपरी धब्बा रोग : नए पत्तों के ऊपर सफेद रंग के धब्बे हो जाते हैं। कई हालातों में फल पकने से पहले ही गिर जाते हैं।
 
यदि खेत में इनका हमला दिखे तो  घुलनशील सलफर 25 ग्राम या डिनोकैप 5 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यदि जरूरत पड़े तो 10 दिनों के अंतराल पर दूसरी स्प्रे करें।
सरकोस्पोरा पत्ता धब्बा रोग : पत्तों पर छोटे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। ज्यादा हमले के कारण पत्ते गिर भी जाते हैं।
 
इस बीमारी का खेत में हमला दिखने पर मैनकोजेब 2 ग्राम या कप्तान 2 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
जड़ गलन
जड़ गलन : प्रभावित जड़ें गहरे भूरे रंग की हो जाती हैं और ज्यादा हमला होने पर पौधा मर भी जाता है।
 
एक ही खेत में एक ही फसल ना बोयें और अंतरफसली अपनायें। बिजाई से पहले कार्बेनडाज़िम 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें। कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर मिट्टी में छिड़कें।
 

फसल की कटाई

जब पत्ते और फल रंग बदल कर पीले रंग के हो जायें और पत्ते गिरना शुरू हो जायें, तब फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। कटाई करने में देरी ना करें, इससे फल नष्ट हो जाते हैं।

कटाई के बाद

कटाई के बद फसल को बंडलों में इक्ट्ठा करें और अच्छे से सुखाने के लिए कई दिनों तक फर्श पर ढेर लगा दें। लाठियां मारकर बीजों को फसल से अलग कर लें। सफाई के बाद बीजों को तीन दिनों के लिए धूप में सुखाएं। उसके बाद बोरियों में स्टोर करके रख दें।