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आम जानकारी

मेथी का मूल स्थान दक्षिण यूरोप है। एशिया में इसके पत्ते सब्जी के तौर पर और बीज स्वाद बढ़ाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। इसके पीसे हुए बीजों की चाय के औषधीय गुण हैं, मेथी रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल को कम करने में सहायक होते हैं। यह विटामिन ए और विटामिन सी का उच्च स्त्रोत है। इसे चारे के तौर पर भी प्रयोग किया जाता है। भारत में राजस्थान मुख्य मेथी उत्पादक राज्य है और मेथी के कुल उत्पादन में 83 प्रतिशत का योगदान करता है। मध्य प्रदेश, तामिलनाडू, राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश और पंजाब अन्य मेथी उत्पादक राज्य हैं। 

जलवायु

  • Season

    Temperature

    15-28°C
  • Season

    Rainfall

    50-75cm
  • Season

    Sowing Temperature

    22-28°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20° C
  • Season

    Temperature

    15-28°C
  • Season

    Rainfall

    50-75cm
  • Season

    Sowing Temperature

    22-28°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20° C
  • Season

    Temperature

    15-28°C
  • Season

    Rainfall

    50-75cm
  • Season

    Sowing Temperature

    22-28°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20° C
  • Season

    Temperature

    15-28°C
  • Season

    Rainfall

    50-75cm
  • Season

    Sowing Temperature

    22-28°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20° C

मिट्टी

इसे सभी प्रकार की मिट्टी जिनमें कार्बनिक पदार्थ उच्च मात्रा में हो, उगाया जा सकता है पर यह अच्छे निकास वाली दोमट और रेतली दोमट मिट्टी में उगाने पर अच्छे परिणाम देती है। यह मिट्टी की 5.3 से 8.2 पी एच को सहन कर सकती है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Pusa Kasuri: इस किस्म के पौधे का कद मध्यम होता है। इसकी 2-3 कटाई की जा सकती है। इसकी औसतन पैदावार 37.5-42 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म 50-60 दिनों में तैयार हो जाती है।
 
Kasuri Methi: यह किस्म फैलने वाली होती हैं। इसके पत्ते नर्म और अधिक सुगंधित होते हैं। यह छोटे बीजों वाली किस्म है। इसके पत्तों को सुखाने के बाद मसाले के तौर पर प्रयोग किया जाता है। इसकी औसतन पैदावार 25-32 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
IC-74: इसका पौधा सीधा होता है। पत्ते नर्म होते हैं और बीजों का आकार बड़ा होता है। इसके बीजों को कूटकर मसाले के तौर पर प्रयोग किया जाता है। इसके हरे पत्तों की औसतन पैदावार 32-42 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Hissar Sonali: यह लंबी और झाड़ियों वाली किस्म है और सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 680 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह 140-155 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
 
Hisar Suvarna: यह तेजी से उगने वाली और लंबी किस्म है। यह मध्यम समय की किस्म है। यह 130-140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 640 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Hisar Madhavi: यह तेजी से उगने वाली और लंबी किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 760 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Hisar Mukta: यह तेजी से उगने वाली और मध्य मौसम की किस्म है। यह पत्तों पर सफेद धब्बे और पत्तों के निचले धब्बों की प्रतिरोधक किस्म है।
 
Pant Ragini: इसकी औसतन पैदावार 480 किलो प्रति एकड़ होती है। यह किस्म 170-175 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
ML 150: इसके पौधे के पत्ते गहरे हरे और अधिक मात्रा में फलियां होती हैं। इसके बीज चमकदार, पीले और मोटे होते हैं। इसे चारे के तौर पर भी प्रयोग किया जाता है। इसकी औसतन पैदावार 6.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
PRM 45 (Pratap Raj Methi): यह किस्म महाराणा प्रताप ऑफ एग्रीकल्चर  और टैक्नोलोजी द्वारा विकसित की गई है। यह रेतली दोमट से भारी मिट्टी में उगाने पर अच्छे परिणाम देती है। यह गर्दन तोड़ के प्रतिरोधक किस्म है।
 
Rmt-1: यह राजस्थान एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित की गई है। यह अन्य किस्मों से 4-8 क्विंटल प्रति एकड़ अधिक उपज देती है।
 
अन्य व्यापारिक किस्में Kasuri, Methi No 47, CO 1, Hissar Sonali, Methi no 14. Pusa early bunching, Rajendra Kranti
 
HM 219: यह अधिक उपज देने वाली किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 8-9 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह पत्तों के सफेद धब्बे रोग की प्रतिरोधक है। 
 

ज़मीन की तैयारी

मिट्टी के भुरभुरा होने तक खेत की दो - तीन बार जोताई करें उसके बाद सुहागे की सहायता से ज़मीन को समतल करें। आखिरी जोताई के समय 8-10 टन प्रति एकड़ अच्छी तरह से गली हुई रूड़ी की खाद डालें। बिजाई के लिए 3x2 मीटर समतल बीज बैड तैयार करें।  

बिजाई

बिजाई का समय
वानस्पतिक उद्देश्य के लिए अक्तूबर के आखिरी सप्ताह से लेकर नवंबर का पहला सप्ताह बिजाई के लिए अनुकूल होता है जब कि बीज उद्देश्य के लिए नवंबर का महीना बिजाई के लिए उत्तम समय होता है। बीजों को पूरी धूप में बोयें। 
फासला
कतारों में 25-30 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
बैड पर 3-4 सैं.मी. की गहराई पर बीज बोयें।
 
बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई बुरकाव विधि द्वारा या कतारों में की जाती है।
 

बीज

बीज की मात्रा
एक एकड़ खेत में बिजाई के लिए 12-14 किलोग्राम बीजों का प्रयोग करें। कसूरी मेथी के लिए 8-10 किलोग्राम बीजों का प्रयोग प्रति एकड़ में करें।
 
बीज का उपचार
बिजाई से पहले बीजों को 8 से 12 घंटे के लिए पानी में भिगो दें। बीजों को मिट्टी से पैदा होने वाले कीट और बीमारियों से बचाने के लिए थीरम 4 ग्राम और कार्बेनडाज़िम 50 प्रतिशत डब्लयु पी 3 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद  एज़ोसपीरीलियम 600 ग्राम + ट्राइकोडरमा विराइड 20 ग्राम प्रति एकड़ से प्रति 12 किलो बीजों का उपचार करें।
 
निम्नलिखित में से किसी एक फंगसनाशी या कीटनाशी का प्रयोग करें।
 
फंगसनाशी/ कीटनाशी दवाई   मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज)
Carbendazim 3 gram
Thiram 4 gram
 
 

खाद

 खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
45 100 -

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOPHORUS POTASH
20 16 -

 

मिट्टी में पोषक तत्वों को जानने के लिए मिट्टी की जांच करें।
 
अच्छी फसल के लिए 20 किलो नाइट्रोजन (यूरिया 45 किलो) और फासफोरस 16 किलो (100 किलो सुपर फासफेट) प्रति एकड़ में डालें। बिजाई के समय मिट्टी में नाइट्रोजन की आधी मात्रा और पोटाश की पूरी मात्रा डालें। बाकी बची नाइट्रोजन को बिजाई के 15 दिनों के बाद डालें।
 
तेजी से वृद्धि के लिए अंकुरण के 15-20 दिनों के बाद ट्राइकैंटानोल हॉरमोन 20 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। फसल की अच्छी और तेजी से वृद्धि के लिए N:P:K (19:19:19) 90 ग्राम को 15 लीटर पानी में मिलाकर बिजाई के 20 दिन बाद स्प्रे करें। अधिक उपज के लिए ब्रासीनोलाइड 50 मि.ली. को प्रति 150 लीटर पानी में मिलाकर बिजाई के 40-50 दिन बाद स्प्रे करें। 10 दिनों के बाद इसकी दूसरी स्प्रे करें। पौधे को ठंड से बचाने के लिए थायोयूरिया 150 ग्राम को प्रति 150 लीटर पानी में मिलाकर बिजाई के 45-65 दिनों के बाद स्प्रे करें।
 

 

 

 

खरपतवार नियंत्रण

खेत को नदीन मुक्त करने के लिए एक या दो बार गोडाई करें। पहली गोडाई बिजाई के 25-30 दिनों के बाद और दूसरी गोडाई पहली गोडाई के 30 दिनों के बाद करें। नदीनों को रासायनिक तरीके से रोकने के लिए फलूक्लोरालिन 800 ग्राम प्रति एकड़ में डालने की सिफारिश की जाती है इसके इलावा पैंडीमैथालिन 1 लीटर प्रति एकड़ को 200 लीटर पानी में मिलाकर बिजाई के 1-2 दिनों के अंदर अंदर मिट्टी में नमी बने रहने पर स्प्रे करें।
 
जब पौधा 4 इंच ऊंचा हो जाता है तो उसे बिखरने से बचाने के लिए बांध दें।
 

सिंचाई

अच्छी वृद्धि के लिए आमतौर पर पांच से सात सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। बिजाई के बाद 30वें दिन, 70-75वें दिन, 85-90वें दिन और 105-110वें दिन सिंचाई करें। फली के विकास और बीज के विकास के समय पानी की कमी नहीं होने देनी चाहिए क्योंकि इससे पैदावार में भारी नुकसान होता है।

पौधे की देखभाल

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  • हानिकारक कीट और रोकथाम
चेपा : यदि चेपे का हमला दिखे तो  इमीडाक्लोप्रिड 3 मि.ली को 10 लीटर पानी या थाइमैथोक्सम 4 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
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  • बीमारियां और रोकथाम
जड़ गलन : फसल को जड़ गलन से बचाने के लिए मिट्टी में नीम केक 60 किलोग्राम प्रति एकड़ में डालें। बीज उपचार के लिए ट्राइकोडरमा विराइड 4 ग्राम से प्रति किलोग्राम बीजों का उपचार करें। यदि खेत में जड़ गलन का हमला दिखें तो इसकी रोकथाम के लिए कार्बेनडाज़िम 5 ग्राम या कॉपर ऑक्सीकलोराइड 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर डालें।
 
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पत्तों पर सफेद धब्बे : पत्तों की ऊपरी सतह पर सफेद रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। यदि इनका हमला दिखे तो पानी में घुलनशील 20 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यदि दोबारा स्प्रे की जरूरत पड़े तो 10 दिनों के अंतराल पर करें या पेनकोनाज़ोल 10 ई सी 200 मि.ली को 200 लीटर पानी में डालकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

फसल की कटाई

सब्जी के तौर पर उपयोग के लिए इस फसल की कटाई बिजाई के 20-25 दिनों के बाद करें। बीज प्राप्त करने के लिए इसकी कटाई बिजाई के 90-100 दिनों के बाद करें। दानों के लिए इसकी कटाई निचले पत्तों के पीले होने और झड़ने पर और फलियों के पीले रंग के होने पर करें। कटाई के लिए दरांती का प्रयोग करें।

कटाई के बाद

कटाई के बाद फसल की गठरी बनाकर बांध लें और 6-7 दिन सूरज की रोशनी में रखें। अच्छी तरह से सूखने पर इसकी छंटाई करें, फिर सफाई करके ग्रेडिंग करें।