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आम जानकारी

एलोवीरा का यह नाम अरबी शब्द एलोए से लिया गया है, जिसका अर्थ चमकदार कड़वा तत्व होता है। इसे घीकवार के नाम से भी जाना जाता है पत्ते का अंदरूनी भाग जो कि जैल और लैटेक्स युक्त होता है, विभिन्न दवाइयां तैयार करने के लिए उपयोग किया जाता है। घीकवार में विटामिन ए, बी1, बी 2, बी 6, बी 12, फोलिक एसिड, नियासीन युक्त होता है। एलोवीरा से तैयार दवाइयों का प्रयोग जले हुए या धूप में जले हुए स्थान पर और विभिन्न प्रकार के त्वचा के रोग जैसे एक्ज़ीमा, प्ररिटस और मुंहासे जैसे रोगों के लिए किया जाता है। यह तना रहित पौधा होता है, जिसकी ऊंचाई 24सैं.मी.-39सैं.मी. होती है। इसके पत्ते मोटे और ताजे होते हैं। पत्तों की लंबाई  0.5 मीटर होती है। घीकवार के मुख्य उत्पादक देश भारत, ऑस्ट्रेलिया, यू एस ए, जापान और यूरोप हैं। भारत में इसे पंजाब, आंध्रा प्रदेश, अरूणांचल प्रदेश, आसाम, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, केरला, मध्य प्रदेश, महांराष्ट्र, मणिपुर, मिज़ोरम, नागालैंड, उड़ीसा, राजस्थान, उत्तरांचल राज्यों में पाया जाता है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    25-40°C
  • Season

    Rainfall

    35-40cm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    25-35°C
  • Season

    Temperature

    25-40°C
  • Season

    Rainfall

    35-40cm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    25-35°C
  • Season

    Temperature

    25-40°C
  • Season

    Rainfall

    35-40cm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    25-35°C
  • Season

    Temperature

    25-40°C
  • Season

    Rainfall

    35-40cm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    25-35°C

मिट्टी

इस पौधे को मिट्टी की कई किस्मों जैसे रेतली तटवर्ती से मैदानों की दोमट मिट्टी में उगाया जा सकता है। यह पौधा जल जमाव हालातों मे खड़ा नहीं रह सकता। जब इसे अच्छे जल निकास वाली दोमट से रेतली दोमट और 8.5 पी एच वाली ज़मीन में उगाया जाये तो यह अच्छे परिणाम देती है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

एलोए जो कि लिलीकाए परिवार से संबंधित है उसकी लगभग 150 प्रजातियां पायी जाती हैं। जिनमें से barbedensis, A. chinensis, A. perfoliata, A. vulgaris, A indica, A. littoralis और A abyssinica हैं। ये आमतौर पर उगायी जाती हैं और इनका औषधीय मूल्य होता है।
 
नैशनल बौटैनीकल और प्लांट जैनेटिक रिसोर्स आई. सी. ए. आर, दिल्ली  द्वारा रिलीज़ की गई किस्में  IC111271, IC111269, IC111280, IC111273, IC111279 और IC111267 आदि। इस किस्म में उच्च मात्रा में एलोइन तत्व पाया जाता है।
 
नैशनल बौटैनीकल और प्लांट जैनेटिक रिसोर्स, आई. सी. ए. आर, दिल्ली  द्वारा जारी की गई किस्में  IC111267, IC1112666, IC111280, IC111280, IC111272 और  IC111277 आदि। इस किस्म में उच्च मात्रा में जैल तत्व पाया जाता है।
 
AL-1:- यह किस्म सैंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मैडीकल एंड एरोमैटिक प्लांट्स, लखनऊ द्वारा जारी की गई है।

ज़मीन की तैयारी

घीकवार की जड़ें 20-30 सैं.मी. तक ही जाती हैं। इसके लिए खेत को जोत कर नर्म करें। आखिरी जोताई के बाद 6 टन प्रति एकड़ रूड़ी की खाद डालें। मेंड़ और खालियां बना कर 45-60 सैं.मी. के फासले पर बिजाई करें और अगर जरूरत पड़े तो सिंचाई करें। गांठों को 40 या 30 सैं.मी. के फासले पर लगाएं।

बिजाई

बिजाई का समय
गांठों के विकास के लिए इसकी बिजाई जुलाई-अगस्त महीने में करनी चाहिए। सिंचाई वाले क्षेत्रों में इसकी बिजाई सर्दियों के महीने में भी की जाती है।
 
फासला
आमतौर पर फासला 45 सैं.मी.x40 सैं.मी. या 60 सैं.मी.x30 सैं.मी. रखा जाता है।
 
बीज की गहराई
ये गांठें चार से पांच महीने पुरानी और 15 सैं.मी. की गहराई पर गड्ढों में लगानी चाहिए।
 
बिजाई का ढंग
 
पौधे के प्रयोग किए जाने वाले भाग
जब इसका निचला भाग पीला हो जाता है तो इसके पत्तों को काटकर एलोवीरा का जूस प्राप्त कर लिया जाता है। इसका पानी या रस गर्मी के कारण वाष्पीकरण हो जाता है और फलस्वरूप् इसका रंग हल्के से गहरा भूरा हो जाता है।

बीज

बीज की मात्रा 
बिजाई के लिए आम तौर पर एक एकड़ के लिए 22000 गांठों की जरूरत होती है।
 
बीज का उपचार 
बिजाई के लिए सेहतमंद गांठों का ही प्रयोग करें। बिजाई के लिए 3-4 महीने पुरानी गांठो का प्रयोग करें, जिसके चार से पांच पत्ते हों।

खाद

खादें (किलोग्राम / प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
44 125 34

 

तत्व (किलोग्राम /प्रति एकड़)

NITROGEN

PHOSPHORUS

POTASH
20 20 20

 

ज़मीन की तैयारी के समय 60-80 क्विंटल प्रति एकड़ रूड़ी की खाद डालें। नाइट्रोजन 20 किलो (44 किलो यूरिया), फासफोरस 20 किलो (125 किलो एस.एस. पी.) और पोटाश 20 किलो (34 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश) की मात्रा प्रति एकड़ में प्रयोग करें।

 

 

खरपतवार नियंत्रण

खेत को साफ सुथरा और नदीन रहित रखें। उचित अंतराल पर गोडाई करें। एक वर्ष में मुख्यत: दो बार गोडाई करें।

सिंचाई

गर्मियों और शुष्क हालातों में 2 सप्ताह के अंतराल पर सिंचाई करें। बारिश के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती और सर्दियों के मौसम में पौधा ज्यादा पानी नहीं लेता इसलिए कम सिंचाई करनी चाहिए। पौधे के गांठे बनने के बाद तुरंत पहली सिंचाई करें। खेत में ज्यादा पानी ना लगाएं इससे फसल को नुकसान होता है। याद रखें कि फसल को दोबारा पानी लगाने से पहले, खेत को सूखने दें। सिंचाई खेत में अच्छी तरह दे देनी चाहिए ताकि अतिरिक्त पानी निकल जाये।

पौधे की देखभाल

  • हानिकारक कीट और रोकथाम 
मिली बग: यह लैपिडोसफेलस और सिउडोकोकस के कारण पैदा होती है। इससे पत्ते पीले पड़ने और मुरझाने शुरू हो जाते हैं।
 
इसके हमले को रोकने के लिए मिथाइल पैराथियॉन 10 मि.ली. या क्विनलफॉस 20 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिलाकर पौधे की जड़ों और शाखाओं में डालें।
  • बीमारियां और रोकथाम:
 पत्तों के काले भूरे धब्बे: काले भूरे धब्बे विशेष तौर पर लाल-भूरे दिखते हैं, जो अंडाकार और लंबकार होते हैं। यदि तापमान लगभग 20 डिगरी सैल्सियस हो और नमी की मात्रा ज्यादा हो तो यह बीमारी तेजी से फैलती है। यदि स्थिति इस बीमारी के अनुकूल हो तो यह बीमारी 10-14 दिनों में पीड़ी दर पीड़ी बढ़ती रहती है।
 

एंथ्राकनोस: यह बीमारी बहुत सारी बीमारियों का कारण बनती है। इसमें पौधा शिखर से सूखना शुरू होता है, फिर टहनियां और तना सूख जाता है और अंत में पौधे के सारे भाग झड़ने के बाद सारा पौधा नष्ट हो जाता है। नीम के तेल (70 प्रतिशत) की स्प्रे करने से इस बीमारी को रोका जा सकता है।

फसल की कटाई

घीकवार की फसल पकने के लिए 18-24 महीनों का समय लेती है। इस फसल को साल में 4 बार लिया जा सकता है और 3-4 बार पौधों के पत्तों को काटें। कटाई सुबह और शाम के समय करें। यह फसल दोबारा उग पड़ती है। इस लिए इसे 5 वर्षों तक लिया जा सकता है।

कटाई के बाद

नए उखाड़े पौधे को दूसरी जगह लिजाने से पहले थोड़ा सूखने दें। आमतौर पर पौधा 24-72 घंटों में सूख जाता है पर इसे शुष्क और ठंडा रखने से गलने और फफूंदी के विकास को रोका जा सकता है। इसे सुखाने के लिए पक्का फर्श प्रयोग किया जा सकता है।