coriander.jpg

आम जानकारी

धनिया की फसल सारा साल उगाई जा सकती है। भारत में इसका प्रयोग मसाले ओर औषधि के रूप् में किया जाता है। इसके बीजों, तने और पत्तों का प्रयोग अलग अलग पकवानों को सजाने और स्वादिष्ट बनाने के लिए किया जाता है। इसके पत्तों में विटामिन सी भरपूर मात्रा में होता है। घरेलू नूस्खों में इसका प्रयोग दवाई के तौर पर किया जाता है। इसे पेट की बिमारियों, मौसमी बुखार, उल्टी, खांसी और चमड़ी के रोगों को ठीक करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसकी सब से ज्यादा पैदावार और खप्त भारत में ही होती है। भारत में इसकी सब से ज्यादा खेती राज्यस्थान में की जाती है। मध्य प्रदेश, आसाम, और गुजरात में भी इसकी खेती की जाती है।
 
उत्तर प्रदेश का धनिये का उत्पादन, कुल उत्पादन में 1 प्रतिशत शेयर के साथ लगभग 3.33 हज़ार टन है।
 

जलवायु

  • Season

    Temperature

    15-28°C
  • Season

    Rainfall

    75-100mm
  • Season

    Sowing Temperature

    22-28°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-25°C
  • Season

    Temperature

    15-28°C
  • Season

    Rainfall

    75-100mm
  • Season

    Sowing Temperature

    22-28°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-25°C
  • Season

    Temperature

    15-28°C
  • Season

    Rainfall

    75-100mm
  • Season

    Sowing Temperature

    22-28°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-25°C
  • Season

    Temperature

    15-28°C
  • Season

    Rainfall

    75-100mm
  • Season

    Sowing Temperature

    22-28°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-25°C

मिट्टी

इसे सभी प्रकार की मिट्टी जिसमें जैविक तत्व उच्च मात्रा में होते हैं, में उगाया जा सकता है। लेकिन अच्छे जल निकास वाली दोमट या रेतली दोमट मिट्टी में उगाने पर यह अच्छे परिणाम देती है। इसके अच्छे विकास के लिए मिट्टी की पी एच 6 से 8 होनी चाहिए। धनिये की खेती के लिए खारी और लवण वाली मिट्टी ठीक नहीं होती।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Rajendra swathi: यह मध्यम किस्म की गोल और सुगंधित दानों वाली किस्म है। यह चेपे को सहनेयोग्य किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 520 किलो प्रति एकड़ होती है।
 
Sadhana: यह किस्म 95-110 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह दोहरे उद्देश्य वाली किस्म है और सफेद मक्खी को सहनेयोग्य है। इसकी औसतन पैदावार 410 किलो प्रति एकड़ होती है।
 
Swathi: यह जल्दी पकने वाली किस्म है। यह बारानी और पिछेती बिजाई के लिए उपयुक्त किस्म है। यह 82-85 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 360 किलो प्रति एकड़ होती है।

Sindhu: यह किस्म बारानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्म है। यह सूखे और पत्तों पर सफेद धब्बों को सहनेयोग्य किस्म है। यह किस्म 100-110 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 400 किलो प्रति एकड़ होती है। 
 
Pant Haritima: यह किस्म 150-160 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह लंबी और दोहरे उद्देश्य वाली किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 480 किलो प्रति एकड़ होती है।
 
Hissar Anand: यह मध्यम पिछेती बिजाई की किस्म है। जिसकी शाखाएं काफी मात्रा में होती हैं और वृद्धि झाड़ीनुमा होती है। यह पत्तों और दानों के लिए प्रसिद्ध किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 7-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
GC 1: इसके दाने मध्यम आकार के गोल और पीले रंग के होते हैं। यह 112 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह पत्तों के मुरझाने और सफेद रंग के धब्बों के रोग को सहने योग्य है। इसकी औसतन पैदावार 5.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
GC 2: यह लंबी और दरमियानी फैलने वाली किस्म है और इसके दाने दरमियाने आकार के होते हैं। यह पत्तों के मुरझाने और सफेद रंग के धब्बों को सहने योग्य है। इसकी औसतन पैदावार 5.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
CO 1: यह छोटे कद ओर छोटे आकार के भूरे रंग के दानो वाली किस्म है। यह 100-120 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 2 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
CO 2: यह दरमियाने आकार और पीले भूरे रंग के दानों वाली किस्म है। यह किस्म 90-100 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 2.08 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
 
RCr 20: यह किस्म 100-110 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म राजस्थान के बारानी और भारी मिट्टी वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। यह किस्म तना गलन के प्रतिरोधक किस्म है। इसके दाने मोटे होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 3.6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
RCr 446: इस किस्म के दाने मध्यम आकार के होते हैं। यह किस्म तना गलन के प्रतिरोधक किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 4.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
RCr 436: यह जल्दी बढ़ने वाली किस्म है। यह 90-100 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके दाने मोटे होते हैं। यह जड़ गलन और निमाटोड के प्रतिरोधक किस्म हैं । इसकी औसतन पैदावार 4.4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
RCr 435 : यह जल्दी बढ़ने वाली किस्म है। यह 110-130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके दाने मोटे, मध्यम आकार के होते हैं। यह किस्म सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्म है। यह जड़ गलन और पत्तों पर सफेद धब्बों के प्रतिरोधक किस्म हैं । इसकी औसतन पैदावार 4.2 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
RCr 41: यह किस्म 130-140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 3.7 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
 
Hisar Sugandh: यह अधिक उपज वाली किस्म हैं यह सुखे और पत्तों पर सफेद धब्बों के प्रतिरोधक किस्म है।
 
Hisar Bhoomit: यह किस्म तना गलन बीमारी के प्रतिरोधक किस्म है। इसके दाने छोटे आकार के होते हैं इनमें तेल की मात्रा अधिक होती है।
 
Hisar Surbhi: यह किस्म चेपे और पत्तों पर सफेद धब्बों के प्रतिरोधक किस्म है। इसके दाने मध्यम आकार के होते हैं।
 

ज़मीन की तैयारी

सब से पहले ज़मीन की दो तीन बार हल से अच्छी तरह जोताई करें। इसके बाद सुहागे की मदद से ज़मीन को समतल कर देना चाहिए। आखिरी जोताई से पहले ज़मीन में 40 क्विंटल प्रति एकड़ के हिसाब से रूड़ी की खाद मिलानी चाहिए।

बिजाई

बिजाई का समय
सब्जियों में प्रयोग करने के लिए, इसकी बिजाई अक्तूबर के पहले सप्ताह में करनी चाहिए और बीज तैयार करने के लिए, बिजाई अक्तूबर के आखिरी सप्ताह से नवंबर के पहले सप्ताह तक करनी चाहिए।
 
फासला
कतार से कतार का फासला 30 सैं.मी. और पौधे से पौधे का फासला 15 सैं.मी. रखें।
 
बीज की गहराई
बीज की गहराई 3 सैं.मी. से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
 
बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई के लिए पोरा ढंग का प्रयोग किया जाता हैं
 

बीज

बीज की मात्रा
बिजाई के लिए 8-10 किलो बीज प्रति एकड़ डाला जाता है।
 
बीज का उपचार
जल्दी अंकुरन के लिए बीजों को बिजाई से पहले अच्छी तरह रगड़ लेना चाहिए ताकि इसके ऊपर की ओर से अनावश्यक छिल्कें उतर जायें। बिजाई से पहले बीजों को 8 से 12 घंटे के लिए पानी में भिगोकर रख देना चाहिए। फसल को जड़ गलन और पौधे सूखने की बिमारी से बचाने के लिए बीजों को 4 ग्राम टराइकोडरमा विराइड सिउडोमोनास फलोरसैंस प्रति किलोग्राम बीज में मिला देना चाहिए।
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP
MOP
55 125 On soil test results

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS
POTASH
25 20 -

 

फसल की अच्छी वृद्धि के लिए, नाइट्रोजन 25 किलो (यूरिया 55 किलो) और फासफोरस 20 किलो (एस एस पी 125 किलो) प्रति एकड़ में डालें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फासफोरस की पूरी मात्रा बिजाई के समय डालें। बाकी बची नाइट्रोजन को फूल निकलने के समय डालें।
 
अंकुरण के 15-20 दिनों के बाद तेज वृद्धि के लिए ट्राइकोंटानोल हारमोन 20 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। NPK (19:19:19) @75 ग्राम को प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर बिजाई के 20 दिन बाद करें। यह फसल की अच्छी और तेज वृद्धि करने में सहायक है। उच्च उपज के लिए ब्रासीनोलाइड 50 मि.ली. को प्रति 150 लीटर पानी में मिलाकर बिजाई के 40-50 दिन बाद प्रति एकड़ में स्प्रे करें। 10 दिनों के बाद इसकी दूसरी स्प्रे करें। मोनो अमोनियल फासफेट 12:61:00 45 ग्राम केा प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर पत्तों और शाखाओं के बढ़ने की अवस्था में एक स्प्रे करें। यह अच्छी उपज में मदद करती है और पैदावार को बढ़ाती है।
 

 

 

खरपतवार नियंत्रण

धनिये की शुरूआती अवस्था में नदीन गंभीर समस्या होते हैं। खेत को नदीन मुक्त करने के लिए एक या दो गोडाई करें। बिजाई के 4 सप्ताह बाद पहली गोडाई करें और बिजाई के 5-6 सप्ताह बाद दूसरी गोडाई करें।

सिंचाई

मिट्टी की बनतर, बारिश और जलवायु के आधार पर चार से पांच सिंचाई फसल की अच्छी वृद्धि के लिए सहायक होती है। बिजाई के 30 दिन बाद पहली सिंचाई करें। बाकी की सिंचाइयां 60-70 वें दिन, 80-90वें दिन, 100-105वें दिन और 110-150वें दिन करें। फूल निकलने और बीजों की विकसित अवस्था में नमी की कमी ना होने दें।

पौधे की देखभाल

aphid coriander_.jpg
  • हानिकारक कीड़े और रोकथाम
चेपा : फसल के ऊपर इस कीड़े का हमला दिखाई देने पर 6 मि.ली. इमीडाक्लोप्रिड या 4 ग्राम थाइमैथोक्सम को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
powdery_mildew coriander_.png
  • बीमारियां और रोकथाम
पत्तों पर सफेद धब्बे : इसका हमला होने पर धनिये के पत्तों के ऊपर की तरफ सफेद रंग के धब्बे पड़ने शुरू हो जाते हैं।
 
इसके लक्ष्ण दिखाई देने पर 20 ग्राम  घुलनशील सलफर को प्रति 10 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। जरूरत पड़ने पर 10 दिनों के फासले पर फिर छिड़काव करना चाहिए या 200 मि.ली. प्रोपीकोनाज़ोल 10 ई.सी. का प्रति 200 लीटर पानी में घोल तैयार करके छिड़काव करना चाहिए।
gain_mould coriander_.jpg

दानों का गलना: बीजों को लगने वाली फफूंदी से बचाने के लिए बिजाई के 20 दिनों बाद 200 ग्राम कार्बेनडाज़िम की प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

coriander root rot.jpg
जड़ गलन : फसल की जड़ को गलने से बचाने के लिए 60 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से नीम का पेस्ट मिट्टी में मिलाना चाहिए। इसके इलावा  4 ग्राम टराईकोडरमा विराइड से प्रति किलो बीज का उपचार करें।
 
जड़ गलन के लक्ष्ण दिखाई देने पर मिट्टी में कार्बेनडाज़िम 5 ग्राम या 2 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को प्रति लीटर पानी में मिलाकर मिट्टी में छिड़कें।

फसल की कटाई

फसल का कद 20 से 25 सैं.मी. होने पर हरे पत्तों को काटना शुरू कर देना चाहिए। एक फसल को तीन से चार बार काटा जा सकता है। बीज की पैदावार के लिए बीजी गई फसल अप्रैल महीने में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। फसल के फल हरे रंग में ही काट लेने चाहिए क्योंकि ज्यादा पकने की सूरत में इसका पूरा मूल्य नहीं मिल पाता।

कटाई के बाद

कटाई के बाद 6-7 दिनों के लिए फसल को धूप में सूखने के लिए छोड़ देना चाहिए। पूरी तरह सूखने के बाद फसल की गहाई करके बीजों को साफ करके अलग कर लेना चाहिए।