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आम जानकारी

लौकी को कैलाबाश के नाम से जाना जाता है और यह कुकुरबिटेशियस फैमिली से संबंधित है। यह एक वार्षिक फल देने वाला पौधा है, जिसकी बढ़वार अधिक होती है। इसके पौधे के फूल सफेद रंग के होते हैं जो गुद्देदार और बोतल के आकार के फल देते हैं। इसके फल का उपयोग सब्जी के तौर पर किया जाता है। लौकी के शारीरिक फायदे भी हैं। यह पाचन प्रणाली को अच्छा करता है, शूगर के स्तर और कब्ज को कम करता है। अनिद्रा और मूत्र संक्रमण का इलाज करता है और अनिद्रा उपचार के लिए अच्छा उपाय है। 
 
उत्तर प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में, इसे खरीफ के साथ साथ गर्मियों की फसल के तौर पर उगाया जाता है।
 

मिट्टी

इसे मिट्टी की कई किस्मों में उगाया जाता है। रेतली दोमट से चिकनी मिट्टी में उगाने पर यह अच्छे परिणाम देती है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Swarn Purna: इसके फल का आकार मध्यम होता है। इसकी औसतन पैदावार 120-140 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Swarn Shweta: इसके फल मजबूत और मध्यम आकार के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 100-120 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Swarn Ageti: इसके फल मजबूत और मध्यम आकार के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 100-120 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pwainset: इसके फल गहरे हरे रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 60-80 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pant Sankar (Lauki 1): इसके फल 35 सैं.मी. लंबे होते हैं। फल 60 दिनों में पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इसकी औसतन पैदावार 160 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pant Sankar (Lauki 2): इसके फल 40 सैं.मी. लंबे होते हैं। फल 60 दिनों में पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इसकी औसतन पैदावार 160 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pant Lauki 4: इसके फल 40 सैं.मी. लंबे होते हैं। यह मध्यम समय की और अधिक उपज वाली किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 120 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
N.Rashmi: यह जल्दी पकने वाली किस्म है। यह किस्म गर्मियों के साथ साथ बारिश के मौसम में बिजाई के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 120-160 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
N.Dharidar: इसके फल लंबी बोतल के आकार के होते हैं। यह किस्म गर्मियों में बिजाई के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 140 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
N.Jyoti: यह जल्दी पकने वाली किस्म है। यह 60 दिनों में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 160-240 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
N.Shashir: यह गोल किस्म है और सर्दियों में बिजाई के लिए उपयुक्त है। यह किस्म सफेद धब्बा रोग, पत्तों के निचले धब्बा रोगों की प्रतिरोधक है। इसकी औसतन पैदावार 340 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
N.Madhuri: इसकी औसतन पैदावार 400 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
N.Shivani: इसकी औसतन पैदावार 520 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
N.Bottle gourd (NDBG 132): यह किस्म बसंत  और गर्मियों के मौसम में बिजाई के लिए उपयुक्त है। यह 60 दिनों में पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 120 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Bottle gourd (NDBG 619): यह जल्दी पकने वाली किस्म है और बेलनाकार आकार की होती है। इसकी औसतन पैदावार 120 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
हाइब्रिड किस्में  : Aman, Priya.
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Pusa Summer Prolific round  : इसकी औसतन पैदावार 100-120 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa Hybrid 3: इस किस्म के फल हरे और लंबी दूरी वाले स्थानों पर ले जाने के लिए उपयुक्त है। यह किस्म बिजाई के 50-55 दिनों के बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। गर्मियों में इसकी औसतन पैदावार 170 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Kashi Bahar: यह हाइब्रिड किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 200-220 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Kashi Ganga: यह जल्दी पकने वाली किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 190-220 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa Manjri (Sankar variety)
 

ज़मीन की तैयारी

लौकी की खेती के लिए, ज़मीन को अच्छी तरह से तैयार करें। मिट्टी के भुरभुरा होने तक जोताई के बाद सुहागा फेरें।

बिजाई

बिजाई का समय
गर्मियों के मौसम में, बिजाई फरवरी से मार्च में पूरी कर लें। खरीफ के मौसम के लिए, लौकी की बिजाई का उपयुक्त समय जून - जुलाई का महीना उपयुक्त होता है।
 
फासला
कतार से कतार में 1.5-2.0 मीटर और पौधे से पौधे में 30-45 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
बीज को 1-2 सैं.मी. की गहराई पर बोयें। एक गड्ढे में दो बीज बोयें। अंकुरण के बाद बीमार पौधों को निकालकर सिर्फ सेहतमंद पौधे ही रखें।
 

बीज

बीज की मात्रा
एक एकड़ में बिजाई के लिए 1.5 से 2 किलो बीजों का प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
मिट्टी से पैदा होने वाली फंगस से बचाने के लिए बाविस्टिन 0.2 प्रतिशत 3 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें।
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
70 150 40

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
32 24 24

 

बैड की तैयारी से पहले अच्छी तरह से गला हुआ गाय का गोबर 8-10 टन प्रति एकड़ में डालें। पहली तुड़ाई के समय नाइट्रोजन 32 किलो (यूरिया 70 किलो), फासफोरस 24 किलो (एस एस पी 150 किलो) और पोटाश 24 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 40 किलो) प्रति एकड़ में डालें। गाय का गला हुआ गोबर, पोटाश और फासफोरस की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा बिजाई के तीन से चार सप्ताह पहले डालें। बाकी बची नाइट्रोजन को दो भागों में बांटे। पहले भाग को बिजाई के 25-30 दिन बाद और दूसरे भाग को बिजाई के 40-50 दिन बाद डालें|

 

 

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों की रोकथाम के लिए, पौधे की वृद्धि के शुरूआती समय में 2-3 गोडाई करें। गोडाई खाद डालने के समय करें। बरसात के मौसम में नदीनों की रोकथाम के लिए मिट्टी चढ़ाना भी प्रभावी तरीका है। नदीनों की रासायनिक रोकथाम के लिए, पैंडीमैथालीन 1 लीटर को 200 लीटर पानी में मिलाकर बिजाई के बाद 48 घंटों के अंदर अंदर स्प्रे करें।  

सिंचाई

खरीफ के मौसम में, सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। यदि जरूरत पड़े तो सिंचाई करें। खेत में पानी ना खड़ा होने दें। पानी का उचित निकास करें। गर्मियों के मौसम में, बिजाई के बाद तुरंत सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। गर्मियों में 6-7 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। 4-7 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें |

पौधे की देखभाल

  • हानिकारक कीट और रोकथाम
फल की मक्खी : ये फल के अंदरूनी भागों को अपना भोजन बनाते हैं जिसके कारण फल पकने से पहले ही गिर जाते हैं गल जाते हैं और पीले पड़ जाते हैं।
 
उपचार : कार्बरिल 10 प्रतिशत 600-700 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 
चेपा : ये कीट पौधे का रस चूसते हैं जिसके कारण पत्ते सिकुड़ जाते हैं और मुड़ जाते हैं।
 
उपचार : चेपे की रोकथाम के लिए 200-250 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 
पेठे की भुण्डियां : ये कीट जड़ों को अपना भोजन बनाकर नुकसान पहुंचाती है।
 
उपचार : कार्बरिल 10 प्रतिशत 600-700 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 
रंग बिरंगी भुण्डी : ये कीट पौधे के भागों को अपना भोजन बनाकर उसे नष्ट कर देते हैं।
 
उपचार : कार्बरिल 10 प्रतिशत 600-700 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 
  • बीमारियां और रोकथाम
पत्तों के निचले धब्बे : क्लोरोटिक धब्बे इस बीमारी के लक्षण हैं।
 
उपचार : मैनकोजेब 400 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 
पत्तों पर सफेद धब्बे : इस बीमारी के कारण छोटे, सफेद रंग के धब्बे पत्तों और तने पर देखे जाते हैं।
 
उपचार : इस बीमारी से बचाव के लिए, एम-45 या Z – 78, 400-500 ग्राम की स्प्रे करें।
 
चितकबरा रोग : इस बीमारी के कारण वृद्धि रूक जाती है और उपज में कमी आती है।
 
उपचार : चितकबरे रोग से बचाव के लिए, डाइमैथोएट 200-250 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 

फसल की कटाई

किस्म और मौसम के आधार पर, फसल 60-70 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। मार्किट की आवश्यकतानुसार, मध्यम और नर्म फलों की कटाई करें। बीज उत्पादन के लिए ज्यादातर पके फलों को स्टोर किया जाता है। तीखे चाकू की मदद से फलों को बेलों  से काटें। मांग ज्यादा होने पर फल की तुड़ाई प्रत्येक 3-4 दिन में करनी चाहिए।

बीज उत्पादन

लौकी की अन्य किस्मों से 800 मीटर का फासला रखें। खेत में से बीमार पौधों को निकाल दें। बीज उत्पादन के लिए, की तुड़ाई पूरी तरह पकने पर करें। सही बीज लेने के लिए खेत की तीन बार जांच आवश्यक है। तुड़ाई के बाद, फलों के सूखाएं और फिर बीज निकाल लें।