बरसीम की खेती

आम जानकारी

बरसीम एक जल्दी बढ़ने वाली और अधिक गुणवत्ता वाली पशुओं के चारे की फसल है। इसके फूल पीले-सफेद रंग के होते हैं। बरसीम अकेले या अन्य मसाले वाली फसलों के साथ उगाई जाती है। इसे अच्छी गुणवत्ता वाला आचार बनाने के लिए रायी घास या जई के साथ भी मिलाया जा सकता है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    15-27°C
  • Season

    Rainfall

    550-750mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-27°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20°C
  • Season

    Temperature

    15-27°C
  • Season

    Rainfall

    550-750mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-27°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20°C
  • Season

    Temperature

    15-27°C
  • Season

    Rainfall

    550-750mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-27°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20°C
  • Season

    Temperature

    15-27°C
  • Season

    Rainfall

    550-750mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-27°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20°C

मिट्टी

यह दरमियानी भारी जमीनों में उगने वाली फसल है। परंतु हल्की दोमट जमीनों में इसे लगातार पानी देना पड़ता है। यह मिट्टी की उपजाऊ शक्ति, भौतिक और रासायनिक क्रिया को सुधारती है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Vardan : यह पूरे उत्तर प्रदेश में खेती करने के लिए उपयुक्त किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 360-400 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Bundelkhand Berseem (J.H.B 146)
 
Mescavi : यह किस्म सी सी एस, हिसार की तरफ से तैयार की गई है।यह सभी उगाने वाले क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त किस्म है। इसकी कटाई 5-6 बार की जाती है और इसकी औसतन पैदावार 300-340 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Bundelkhand Berseem (J.H.T.B 146) : यह पूरे उत्तर प्रदेश में खेती करने के लिए उपयुक्त किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 380-440 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
BL 10 : यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खेती करने के लिए उपयुक्त किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 400-480 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
BL 22 : यह किस्म पी ए यू, लुधियाना की तरफ से बनाई गई है और यह शुष्क और पहाड़ी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। 
 
BL 180 : यह किस्म पी ए यू, लुधियाणा की तरफ से बनाई गई है और यह उत्तरी भारत के उपजाऊ क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है।
 
HFB 600 : यह किसम सी सी एस, हिसार की तरफ से तैयार की गई किस्म है। यह यू पी के सभी क्षेत्रेां में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह Mescavi  किस्म से ज्यादा मुनाफा देने वाली किस्म है। यह किस्म जड़ और तना गलन के प्रतिरोधक है। इसकी हरे चारे की औसतन पैदावार 280-300 क्विंटल प्रति एकड़ और सूखे चारे की औसतन पैदावार 36-40 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
 

ज़मीन की तैयारी

बिजाई के लिए समतल भूमि का प्रयोग करें ताकि वृद्धि के समय जल जमाव वाले हालात ना बनें। प्रत्येक जोताई के बाद सुहागा फेरें।

बिजाई

बिजाई का समय 
अधिक उपज के लिए, 15 अक्तूबर से 15 नवंबर का समय बरसीम की खेती के लिए उपयुक्त होता है।
 
फासला
बिजाई के लिए बुरकाव विधि का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
बीजों को 4-5 सैं.मी. की गहराई में बोयें। शाम तक बिजाई पूरी कर लें।
 
बिजाई का ढंग
बरसीम की बिजाई बुरकाव विधि द्वारा की जाती है।
 

बीज

बीज की मात्रा
नदीन रहित बीजों का प्रयोग करें। एक एकड़ के लिए 10-12 किलो बीज की मात्रा का प्रयोग करें। अच्छी उपज के लिए बरसीम के बीजों के साथ सरसों के 750 ग्राम बीज मिक्स करें।
 
बीज का उपचार
बरसीम के बीजों को नदीन वाले बीजों से अलग करने के लिए, बीजों को नमक वाले पानी में डालें। नदीन वाले बीज पानी की सतह पर तैरने लगते हैं। इन्हें निकाल दें और बीजों को ताजे पानी से धोयें।
बिजाई से पहले, बीज का उपचार राइज़ोबियम से कर लेना चाहिए। राइज़ोबियम के एक पैकेट को 10 प्रतिशत गुड़ के घोल में मिलायें और फिर इस मिश्रण को बीजों पर रगड़ें और उन्हें छांव में सुखाएं।
 

खाद

खादें (किलो प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
18 200 -

 

तत्व (किलो प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
8 12 -

 

नाइट्रोजन 8 किलो (यूरिया 18 किलो) और फासफोरस 32 किलो (सुपर फास्फेट 200 किलो) को बिजाई के समय प्रति एकड़ में डालें।

 

 

खरपतवार नियंत्रण

बुई बरसीम का खतरनाक नदीन है। इसकी रोकथाम के लिए फ्लूक्लोरालिन 400 मि.ली. को 200 ली. पानी प्रति एकड़ में मिलाकर बिजाई से पहले सीड बैड पर स्प्रे करें।

सिंचाई

पहली सिंचाई महत्तवपूर्ण होती है। अंकुरण के बाद हल्की मिट्टी में 3 से 5 दिनों के अंदर अंदर और भारी मिट्टी में 8-10 दिनों में सिंचाई करें। उसके बाद प्रत्येक सप्ताह 2 से 3 सिंचाई करें। गर्मियों में 8-10 दिनों के अंतराल पर और सर्दियों में 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। प्रत्येक कटाई के बाद सिंचाई करें।

पौधे की देखभाल

  • हानिकारक कीट और रोकथाम
घास का टिड्डा : यह कीट पत्तों को खाकर फसल को नुकसान पहुंचाता है। यह ज्यादातर मई जून के महीने में हमला करता है। इस की रोकथाम के लिए 500 मि.ली. मैलाथियॉन 50 ई.सी. को 80-100 ली. पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। स्प्रे के बाद 7 दिनों तक पशुओं के लिए प्रयोग ना करें।

चने के सूण्डी : यह फसल के दानों को खाती है। इसकी रोकथाम के लिए, फसल को टमाटर, चने और पिछेती गेहूं के नजदीक ना बोयें। इसकी रोकथाम के लिए क्लोरैनट्रानीलिप्रोल 18.5 SL 50 मि.ली. या स्पिनोसैड 48 SC 60 मि.ली. को 80-100 पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

  • बीमारियां और रोकथाम
तने का गलना : यह मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारी है। इसके कारण ज़मीनी स्तर के नज़दीक का तना गल जाता है। मिट्टी के नजदीक सफेद रंग की फंगस विकसित होती देखी जा सकती है।
 
प्रभावित पौधों को निकालें और नष्ट कर दें। कार्बेनडाज़िम 400 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

फसल की कटाई

फसल बीजों के 50 दिनों के बाद कटाई के योग्य हो जाती है। सर्दियों में 40 दिनों के फासले और बसंत में 30 दिनों के फासले पर कटाई करें। पशुओं के लिए आचार बनाने के इसे 20 प्रतिशत मक्की में मिलाकर तैयार किया जाता है।