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आम जानकारी

आड़ू शीतोष्ण क्षेत्रों की महत्तवपूर्ण गुठली वाले फल की फसल है। यह रसदार और अधिक स्वादिष्ट फल होता है। यह आमतौर पर ताजे फल के रूप में प्रयोग होने वाला फल है। लेकिन इसकी किस्मों से अच्छा स्क्वैश भी तैयार किया जा सकता है। कुछ किस्में जैसे Shan-i-Punjab और flordared डिब्बे में पैक करने के लिए उपयुक्त होती हैं। आड़ू की गुठली से आवश्यक तेल भी प्राप्त किया जा सकता है जिसका प्रयोग कॉस्मैटिक उत्पादों के साथ साथ औषधीय उत्पाद बनाने के लिए भी किया जाता है। यह प्रोटीन, शूगर, खनिज और विटामिन का उच्च स्त्रोत है।
 
उत्तर पूर्वी राज्यों, जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश भारत के मुख्य आड़ू उगाने वाले राज्य हैं।
 

जलवायु

  • Season

    Temperature

    20-30°C
  • Season

    Rainfall

    200-300mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-25°C
  • Season

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    20-30°C
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    200-300mm
  • Season

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    25-30°C
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    20-25°C
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    20-30°C
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    25-30°C
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    20-25°C
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    20-30°C
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    Harvesting Temperature

    20-25°C

मिट्टी

आड़ू की फसल को गहरी रेतली दोमट मिट्टी जिसमें जैविक तत्वों की मात्रा और पानी का बढिया निकास हो की जरूरत होती है| इसके लिए मिट्टी का pH 5.8 और 6.8 होना चाहिए| आड़ू की फसल के लिए तेज़ाबी और नमकीन मिट्टी उचित नहीं है| इसकी खेती के लिए हल्की ढलान वाली ज़मीन उचित मानी जाती है| इसके फल तलहटी, उच्च-पहाड़ी और सामान्य क्षेत्रों में बढिया बनावट लेते है|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Early Candor: यह अगेते मौसम की किस्म उत्तर प्रदेश के लिए उपयुक्त है।
 
Red Heaven: इस किस्म के फल मध्यम गोल, फल का छिल्का पीले रंग का, सख्त होता है। फल अच्छी गुणवत्ता वाले होते हैं। यह किस्म जून के महीने में पक जाती है।
 
Sunhaven: यह अगेते मौसम की किस्म उत्तर प्रदेश के लिए उपयुक्त है।
 
Safeda Early Cream: यह किस्म उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त है।
 
SRE 6 : यह किस्म उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त है।
 
July Albert: इसके फल मध्यम आकार के, छिल्का हल्के लाल रंग का, गुद्दा गुठली से चिपका हुआ और नर्म होता है। फल अच्छी गुणवत्ता वाले होते हैं। यह किस्म जुलाई के दूसरे सप्ताह में पक जाती है। यह पैकिंग के लिए उपयुक्त किस्म है।
 
Alexander: यह मध्य मौसम की किस्म उत्तर प्रदेश के लिए उपयुक्त किस्म है।
 
Crawford early: यह मध्य मौसम की किस्म उत्तर प्रदेश के लिए उपयुक्त किस्म है।
 
Parrot Delux: यह पिछेते मौसम की किस्म है।
 
J.H.Hale: यह पिछेते मौसम की किस्म है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Alton: इस किस्म के फल मध्यम आकार के और गोलाकार होते हैं। गुद्दा, गुठली से चिपका हुआ होता है और बेरियम पीले रंग का होता है। छिलका हल्का कड़वा होता है। यह किस्म जून के तीसरे सप्ताह में पक जाती है।
 
Worlds Earliest: इसके फल छोटे से मध्यम आकार के होते हैं। गुद्दा हल्के भूरे रंग का होता है। फल रसदार होते हैं। गुद्दा गुठली से चिपका हुआ होता है। फल स्वाद में कड़वा होता है। यह किस्म जून के तीसरे सप्ताह में पक जाती है।
 
Early White Giant: इस किस्म के फल छोटे से मध्यम आकार के होते हैं। फल का गुद्दा मीठा होता है। फल जून के दूसरे सप्ताह में पक जाते हैं। गुद्दा आसानी से गुठली से अलग हो जाता है। फल आकर्षित और सुगंधित होते हैं।
 
Stark Red Gold: इसके फल मध्यम आकार के होते हैं। इसका छिलका पीले संतरी रंग का होता है जिसमें पीले रंग का गुद्दा होता है। गुद्दा थोड़ा चिपचिपा होता है। फल में टी एस एस की मात्रा 12.4 प्रतिशत होती है। यह किस्म जल्दी पकने वाली होती है जो मई के आखिरी सप्ताह में पक जाती है। इसका पौधा लंबा, फैलने वाला और अधिक फल देता है।
 
Snow Queen (Nectarine): इसके फल छोटे से मध्यम आकार के, चमकदार सफेद रंग के होते हैं। फल मध्य जून में पक जाते हैं। इस किस्म का पौधा फैलने वाला होता है। यह किस्म अच्छी उपज देती है। यह किस्म 6000 फीट की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है।
 
Sharbati
 
Shan-e- Punjab: यह किस्म मई के पहले हफ्ते में पक जाती है| इसके ताज़े फल पूर्ण रूप से बड़े, पीले, गहरे-लाल रंग के, रसभरे, स्वाद में लाजवाब और गुठली के बिना होते है| इसके फल सख्त होने के कारण इनको दूरी वाले स्थानों पर आसानी से ले  जाया जा सकता है| यह पैकिंग के लिए अनुकूल किस्म है, इस किस्म की औसतन पैदावार 70 किलो प्रति वृक्ष होती है|
 
Summer Set: इस किस्म के फल मध्यम आकार के होते हैं जो कि रंग में पीले संतरी रंग के होते हैं। गुद्दा चिपचिपा होता है। यह किस्म मध्यम फैलने वाली और मध्यम उपज देती है। इसके फल जून के अंतिम सप्ताह में पक जाते हैं। फल में टी एस एस की मात्रा 12 प्रतिशत होती है।
 
JH HALE:  इस किस्म के फल मध्यम आकार के, गोलाकार होते हैं। फल लाल जामुनी रंग के होते हैं। फल कम खट्टे होते हैं और जुलाई के तीसरे सप्ताह में पक जाते हैं।
 
Silver King (Nectarine): यह किस्म कुल्लू पहाड़ी क्षेत्रों (1100-1500 मीटर) में उगाने के लिए उपयुक्त है। इस किस्म के फल मई के अंतिम सप्ताह से मध्य जून में पक जाते हैं। इसके फल हरे सफेद रंग के होते हैं। फल का 3/4 हिस्सा गहरे लाल रंग का होता है। गुद्दा क्रीमी सफेद रंग का होता है। फल स्वाद में मीठे होते हैं। फल में टी एस एस की मात्रा 8-10 प्रतिशत और अम्लता 0.6 प्रतिशत होती है।
 
Venus Misoori (Nectarine): यह मध्य मौसम की किस्म है। यह जुलाई के पहले सप्ताह में पक जाती है। इसके फल आकार में अधिक बड़े होते हैं। फल हरे पीले रंग का होता है। फल की सतह खुरदरी होती है। फल का तीन चौथाई भाग मैरून लाल रंग का होता है। गुद्दा सख्त, कुरकुरा और पीले रंग का होता है। फल का स्वाद मीठा होता है। इसके फल लाभकारी हाते हैं। इस किस्म का वृक्ष मध्यम वृद्धि करता है। यह अधिक फल देने वाली किस्म है।
 
Suncrest (Nectarine): इस किस्म का फल 102.25 ग्राम होता है। फल मध्यम आकार के, लंबकार होते हैं। फल का छिलका पीले संतरी रंग का और गुद्दा संतरी रंग का होता है। गुठली लंबी होती है जिसका भार 4.61 ग्राम होता है। फल में टी एस एस की मात्रा 18.4 ब्रिक्स होती है। अम्लता 0.5 प्रतिशत, सुक्रॉस की मात्रा 14.46 प्रतिशत और अघुलनशील शर्करा 8.34 प्रतिशत होती है।
 
Early Grande: इस किस्म का फल 82.67 ग्राम होता है। फल मध्यम आकार के, लंबकार होते हैं। फल का छिलका पीले हरे रंग का और गुद्दा पीले रंग का होता है। गुठली लंबी होती है जिसका भार 5.44 ग्राम होता है। फल में टी एस एस की मात्रा 13.36 ब्रिक्स होती है। अम्लता 0.5 प्रतिशत, सुक्रॉस की मात्रा 14.46 प्रतिशत और अघुलनशील शर्करा 8.81 प्रतिशत होती है।
 
Suncrest: यह मध्य मौसम की किस्म जून के आखिरी सप्ताह में पक जाती है। इसके फल बड़े आकार के होते हैं। जिनका भार 175 ग्राम होता है। फल गोल, सख्त होते हैं। फल का छिलका पीले रंग का होता है। फल मीठा और रसदार होता है। फल में टी एस एस की मात्रा 10.5 प्रतिशत होती है।
 
Glow Heaven: यह मध्य मौसम की किस्म है। इसके फल बड़े आकार के होते हैं। फल का भार 190 ग्राम होता है। फल गोल, मीठे और रसदार होते हैं। फल का गुद्दा पीले रंग का होता है। फल में टी एस एस की मात्रा 11.2 ब्रिक्स होती है। फल जुलाई के पहले सप्ताह में पक जाते हैं।
 
Prabhat, Pratap, Flordasun, Shan-e- Punjab, Florda red sun, Red (Nectarine), Khurmani, Sharbati, Flordaprince.
 
Khurmani: इस किस्म के फल बड़े, आकर्षित और लाल रंग के होते है, इसका गुद्दा सफेद, नरम, रसीला और गुठली चिपकी हुई होती हैं|
 
Florida Red: इस किस्म के फल बढिया, मध्य मौसम वाले होते है जो जून के शुरू में पक जाते है| इसके फल बड़े, आमतौर पर लाल, रसीले और गुठली के बिना होते है| इसकी औसतन पैदावार 100 किलो प्रति वृक्ष होती हैं|
 

ज़मीन की तैयारी

खेत नदीन और झाड़ियों से रहित होना चाहिए। खड़ी ढलानों वाले क्षेत्रों में रोपाई के लिए कोंटूर विधि का प्रयोग किया जाता है जबकि मैदानी क्षेत्रों में रोपाई के लिए वर्गाकार विधि का प्रयोग किया जाता है। 4.5मीटर x 4.5 मीटर के फासले पर 1 मीटर x 1 मीटर x 1 मीटर के आकार के गड्ढे खोदें। गड्ढों को 30 सैं.मी. तक मिट्टी, 20 किलो गाय का गला हुआ गोबर, 125 ग्राम यूरिया, 250 ग्राम एस एस पी और 25 ग्राम क्लोरपाइरीफॉस से भरें।

बिजाई

बिजाई का समय
रोपाई के लिए सर्दियों का मौसम उपयुक्त होता है।
 
फासला
रोपाई के लिए 4.5 मीटर x 4.5 मीटर के फासले के साथ वर्गाकार विधि का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
आड़ू के बीजों को बैडों पर बोना आवश्यक है जो 5 सैं.मी. गहरे हों और एक दूसरे से 12-16 सैं.मी. की दूरी पर हों।
 
बिजाई का ढंग
बिजाई के लिए शुरू में, कलम लगाने की विधि का प्रयोग किया जाता है और फिर मुख्य खेत में रोपाई की जाती है|
 

बीज

बीज की मात्रा
5 मीटर x 1 मीटर के फासले के साथ 800 पौधे  एक एकड़ में लगाए जाते हैं जब कि 2000 पौधे 2 मीटर x 1 मीटर के फासले पर प्रति एकड़ में लगाए जाते हैं। 
 
बीज का उपचार 
बीजों की अंकुरण प्रतिशतता और नए पौधों की वृद्धि को बढ़ाने के लिए थायोरिया 5 ग्राम या 200 मि. ग्रा. प्रति लीटर पानी से बीजों को उपचार करें।
 

प्रजनन

प्रजनन के लिए ग्राफ्टिंग या बडिंग विधि का प्रयोग किया जाता है। जड़ के भाग के लिए Sharbati, Khurmani का प्रयोग किया जाता है। बिजाई से पहले थायोरिया से बीजों का उपचार करें और फिर बीजों को 5 सैं.मी. की गहराई पर बोयें। पौधे से पौधे में 15 सैं.मी. और कतार से कतार में 20 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें। उसके बाद इन्हें 6-10  सैं.मी. लंबी सूखी मोटी घास से ढक दें। टंग ग्राफ्टिंग के लिए जनवरी से फरवरी का महीना उपयुक्त होता है जबकि टी बडिंग के लिए मई जून का महीना उपयुक्त होता है।
 
आड़ू के वृक्ष को भारी और नियमित सिधाई की आवश्यकता होती है। अक्तूबर के आखिरी हफ्ते में छंटाई जरूर करें। जलीय जड़ों और अन्य टहनियों को जरूर निकाल दें। आड़ू का नया रोपित किया गया वृक्ष 35 इंच कद का होना चाहिए। 
 

खाद

खादें (ग्राम प्रति वृक्ष)

Age of tree NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
10th year 300 500 300

 

सिंचित हालातों में नाइट्रोजन की आधी मात्रा बसंत के मौसम में और बाकी बची मात्रा एक महीने बाद डालें। फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा दिसंबर जनवरी के महीने में डालें। खादों को डालने के बाद हल्की सिंचाई करें।
 
यदि आयरन की कमी दिखे तो फेरस सल्फेट 0.5 से 1 प्रतिशत की फोलियर स्प्रे करें। वृक्ष के आस पास 20-30 छोटे गड्ढे बनाकर उन्हें चीलेटड फेरस 50-250 ग्राम से भरें।
 

 

कटाई और छंटाई

इस फसल को नियमित और अधिक छंटाई की आवश्यकता होती है। अक्तूबर के आखरी सप्ताह में छंटाई करें। छंटाई इसलिए की जाती है कि पौधे की वृद्धि 25-50 सैं.मी. से ज्यादा ना हो। छंटाई के लिए मध्य सर्दी का मौसम उपयुक्त होता है। छंटाई में ज़मीनी स्तर से 45 सैं.मी. ऊपर तक मुख्य तने की सफाई करें। अनावश्यक, बीमारी और कमज़ोर शाखाओं को दूसरे वर्ष में निकाल दें।

सिंचाई

पौधे की बिजाई के बाद, तुरंत सिंचाई करें| बारिश के मौसम में, पौधों को पानी की जरूरत नहीं होती है| तुपका सिंचाई पानी के प्रभावशाली प्रयोग के लिए उचित विधि है | इस फसल को गंभीर अवस्था में सिंचाई की ज्यादा जरूरत होती है, जैसे कि सूखा पड़ने पर आदि| फूलों के अंकुरण, कलम लगाने की अवस्था, फलों के विकास के समय फसल को सिंचाई की आवश्यकता होती है|

खरपतवार नियंत्रण

इस फसल को बार-बार गोड़ाई की जरूरत पड़ती है, हालांकि यह थकाने वाला और महंगा काम है| आड़ू की जड़ें अस्थायी होती है, जो लगातार जोताई करने से क्षतिग्रस्त हो जाती है| इस लिए नदीन-नाशक का प्रयोग करना उचित है| नए बाग़ों में फरवरी-मार्च में चौड़े पत्तों और घास वाले नदीन ज्यादा पैदा होते है, इसकी रोकथाम के लिए नदीनों के अंकुरण से पहले डीयूरोन 800 ग्राम से 1 किलो प्रति एकड़ और अंकुरण के बाद ग्लाइफोसेट 6 मि.ली. प्रति एकड़ को 200 लीटर पानी में मिला कर स्प्रे करें|

पौधे की देखभाल

  • बीमारीयां और रोकथाम
छोटे धब्बे: पत्तों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं।
 
उपचार: पत्तों के गिरने या कलियों के सूजने के समय कप्तान या ज़ीरम या थीरम 0.2 प्रतिशत की स्प्रे करें।
 

बैक्टीरियल कैंकर और गोंदिया रोग: यह मुख्य तने, टहनी, शाखाओं, कलियों, पत्तों और यहां तक कि फलों पर भी हमला करता है। 
 
उपचार:  सुनिश्चित करें कि आड़ू की उपयुक्त किस्म हो और जड़ का भाग भूगौलिक स्थान और पर्यावरण की स्थितियों के आधार पर लिया गया हो। फूल खिलने से पहले वृक्षों पर कॉपर की स्प्रे करें। संक्रमण को कम करने के लिए अगेती गर्मियों में वृक्षों की सिधाई करें। 
 

 

भूरा गलना: इसके कारण पौधा सूख जाता है, पत्तियां और नई टहनियां मर जाती हैं।
 
उपचार: तुड़ाई से 3 सप्ताह पहले कप्तान 0.2 प्रतिशत की स्प्रे करें।
 
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
चेपा: यह कीट मार्च से मई के महीने में क्रियाशील होता है। इस कीट के कारण पत्ते मुड़ जाते हैं और पीले हो जाते हैं।
 
उपचार: रोगोर 30 ई सी 800 मि.ली. को 500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। यदि जरूरत हो तो 15 दिनों के बाद दोबारा स्प्रे करें।
 
काला चेपा: यह कीट अप्रैल-जून महीने में क्रियाशील होता है।
 
उपचार: मैलाथियोन 50 ई सी 800 मि.ली. को 500 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
चपटे सिर वाला छेदक: यह एक गंभीर कीट है जो कि मध्य मार्च में क्रियाशील होता है। ये हरे पत्तों को खाता है।
 
उपचार: डरमेट 20 ई सी 1000 मि.ली. को 500 लीटर पानी में मिलाकर तुड़ाई के बाद जून के महीने में स्प्रे करें।
 
भुंडियां: भुंडियां रात के समय पत्तों को खाती हैं।
 
उपचार:  हैक्साविन 50 डब्लयु पी 1 किलो को 500 लीटर पानी में मिलाकर शाम के समय स्प्रे करें। यदि हमला ज्यादा हो तो 5-6 दिनों के बाद दोबारा स्प्रे करें।
 

फसल की कटाई

अप्रैल से मई का महीना आड़ू की फसल के लिए मुख्य तुड़ाई का समय होता है| इनका बढ़िया रंग और नरम गुद्दा पकने के लक्षण दिखाता है| आड़ू की तुड़ाई वृक्ष को हिला कर की जाती है|

कटाई के बाद

तुड़ाई के बाद इनको सामान्य तामपान पर स्टोर कर लिया जाता है और स्क्वेश आदि बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है|