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आम जानकारी

यह एक हरे पत्तेदार सब्जी है। इसमें विटमिन ए और सी खनिज जैसे फासफोरस, पोटाश्यिम,  कैल्श्यिम,  सोडियम ओर लोहा भरपूर मात्रा में होते हैं। इसको कच्ची या पकाकर खाया जा सकता है। भारत में यह सब्जी आमतौर पर सर्दियों में मैदानी इलाकों में उगाई जाती है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    12-30°C
  • Season

    Rainfall

    10-15 (Winter)
    21-26 (Summer)
  • Season

    Sowing Temperature

    10-15 (Winter)
    21-26 (Summer)
  • Season

    Harvesting Temperature

    25-30°C
  • Season

    Temperature

    12-30°C
  • Season

    Rainfall

    10-15 (Winter)
    21-26 (Summer)
  • Season

    Sowing Temperature

    10-15 (Winter)
    21-26 (Summer)
  • Season

    Harvesting Temperature

    25-30°C
  • Season

    Temperature

    12-30°C
  • Season

    Rainfall

    10-15 (Winter)
    21-26 (Summer)
  • Season

    Sowing Temperature

    10-15 (Winter)
    21-26 (Summer)
  • Season

    Harvesting Temperature

    25-30°C
  • Season

    Temperature

    12-30°C
  • Season

    Rainfall

    10-15 (Winter)
    21-26 (Summer)
  • Season

    Sowing Temperature

    10-15 (Winter)
    21-26 (Summer)
  • Season

    Harvesting Temperature

    25-30°C

मिट्टी

इसे हर तरह की ज़मीन पर उगाया जा सकता है पर अच्छे जल निकास वाली हल्की ज़मीन इसके लिए सबसे अच्छी हैं ज़मीन का पी एच 5.5-6.5 अच्छा है यह अधिक तेजाबी मिट्टी में कामयाबी से नहीं उग सकती।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Golden acre: यह किस्म सभी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। यह जल्दी पकने वाली और छोटे पौधे वाली किस्म है। इसके 4-5 खुले हुए पत्ते होते हैं। यह किस्म गोल और इसका छोटे आकार का सख्त सिर होता है। यह किस्म 60-70 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है और इसकी औसतन पैदावार 94-104 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa Mukta: यह गोल, सख्त सिर और आकर्षित हरे रंग की किस्म है। यह किस्म 85-90 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी गर्मियों की फसल की औसतन पैदावार 84 क्विंटल प्रति एकड़ होती है और सर्दियों की फसल की औसतन पैदावार 125 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pride of India: यह छोटा पौधा है, लगभग गोल होता है। यह हरे रंग की और छोटे से मध्यम आकार के सिर वाली किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 100-125 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa Drum Head: यह देरी से पकने वाली किस्म है। इसका तना मध्यम लंबा होता है। इसका सिर समतल हरा और बड़े आकार का सख्त सिर होता है। यह अधिक उपज देने वाली किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 156-182 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Shree Ganesh Gol: यह रोपाई के 80 दिनों के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 140 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Hari Rani Gol : यह हाइब्रिड किस्म है। यह 90-95 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 140-160 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Kranti : यह हाइब्रिड किस्म है। यह 60-65 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म कम फासले पर लगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 80 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Manisha, Krishna, Mitra, Naath -401 etc. 
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Popular varieties of Cabbage: Pusa Drumhead, K-1, Pride of india, Kopan hagen, Ganga, Pusa synthetic,  Hariana, Kaveri, Bajrang. इसकी औसतन पैदावार 75-80 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

Midseason Market, September Early, Early Drum head, late large drum head, K1
 

ज़मीन की तैयारी

मिट्टी के भुरभुरा होने तक खेत की 3-4 बार जोताई करें और उसके बाद मिट्टी को समतल करें। आखिरी जोताई के समय गाय का गला हुआ गोबर मिट्टी में अच्छी तरह मिलायें।

बिजाई

बिजाई का समय
अगेती किस्मों की बिजाई के लिए अगस्त के आखिरी सप्ताह से 15 सितंबर तक बिजाई पूरी कर लें, जबकि मध्यम मौसम और पिछेते मौसम की किस्मों के लिए 15 सितंबर से अक्तूबर में बिजाई पूरी कर लें। 
 
फासला
अगेती मौसम की फसल के लिए 45x30 सैं.मी. जबकि देरी से पकने वाली फसल के लिए 60 x 45 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
बीज को 1-2 सैं.मी. की गहराई पर बोयें।
 
बिजाई का ढंग
बिजाई के लिए, रोपण विधि का प्रयोग किया जाता है। 
 
उपयुक्त आकार के बैड तैयार करें। प्रत्येक बैड में डी ए पी 40 ग्राम, यूरिया 25 ग्राम और म्यूरेट ऑफ पोटाश 30 ग्राम डालें और मिट्टी में अच्छी तरह मिलायें। उसके बाद बीज को नर्सरी में बोयें और सिंचाई करें, आवश्यकता के अनुसार खाद डालें। बिजाई के बाद नए पौधे 25-30 दिनों के बाद रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं। रोपाई के लिए तीन से चार सप्ताह के पौधों का प्रयोग करें। शाम के समय रोपाई करें।
 

बीज

बीज की मात्रा
अगेती किस्मों की बिजाई के लिए, 200-250 ग्राम बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें जबकि पिछेती बिजाई की किस्मों के लिए, लगभग 120-150 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
 
बीज का उपचार
बिजाई से पहले, बीज को गर्म पानी में 50 डिग्री सैल्सियस पर 30 मिनट के लिए या स्ट्रैपटोसाइकलिन 0.01 ग्राम प्रति लीटर में दो घंटों के लिए भिगो दें । बीज उपचार के बाद, उन्हें छांव में सुखाएं और बैडों पर बीज दें । रबी की फसल में गलने की बीमारी बहुत पायी जाती है और इससे बचाव के लिए बीज को मरकरी कलोराईड के साथ उपचार करें । इसके लिए बीज को मरकरी कलोराइड 1 ग्राम प्रति लीटर घोल में 30 मिनट के लिए डालें और छांव में सुखाएं । रेतली ज़मीनों में बोयी फसल पर तने का गलना बहुत पाया जाता है। इसको रोकने के लिए बीज को कार्बनडैज़िम 50 प्रतिशत डब्लयु पी 3 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचार करें । 
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
130 155 40

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS MURIATE OF POTASH
60 25

25

 

ज़मीन को पूरी तरह गली हुई रूड़ी की खाद 8-10 टन प्रति एकड़ और नाइट्रोजन 60 किलो (यूरिया 130 किलो), (फासफोरस 25 किलो), (एस एस पी 155 किलो) और पोटाश 25 किलो, (एम ओ पी 40 किलो) डालें । गाय का गोबर, एस एस पी और म्यूरेट ऑफ पोटाश की पूरी मात्रा और युरिया की एक तिहाई मात्रा खेत की तैयारी के समय डालें। बाकी बची यूरिया को दो समान भागों में बांटकर रोपाई के बाद 30वें और 45वें दिन डालें।
फूल के अच्छी तरह बनने और अच्छी वृद्धि के लिए, पानी में घुलनशील खाद NPK(19:19:19) 10 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर पौधे के शुरूआती विकास के दौरान स्प्रे करें। रोपाई के 40 दिन बाद 12:61:00 4-5 ग्राम + सूक्ष्म तत्व 2.5 से 3 ग्राम + बोरोन 1 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। फूल की गुणवत्ता को सुधारने के लिए पानी में घुलनशील खाद NPK 13:00:45 20 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर फूल के विकसित होने के समय डालें। 
मिट्टी की जांच करें और यदि मैगनीशियम की कमी दिखे तो इसे पूरा करने के लिए मैगनीशियम सल्फेट 5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर रोपाई के 30-35 दिन बाद और कैल्शियम की कमी को पूरा करने के लिए कैल्शियम नाइट्रेट 5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर रोपाई के 30-35 दिन बाद डालें। 
कई बार खोखले और बेरंगे तने दिखाई देते हैं, जिससे फूल भी भूरे रंग का हो जाता है और पत्ते भी मुड़ जाते हैं। यह सब बोरोन की कमी के कारण होता है। इसके लिए बोरेक्स 250-400 ग्राम को प्रति एकड़ में डालें। 
 

 

 

 

 

खरपतवार नियंत्रण

नए पौधों की रोपाई से पहले  पैंडीमैथालीन 1 लीटर को पौधों की रोपाई से चार दिन पहले प्रति एकड़ में डालें। इसके बाद हाथों से एक गोडाई करें। 

सिंचाई

रोपाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई करें। मिट्टी, जलवायु की परिस्थितियों के आधार पर सर्दियों के मौसम में 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। वानस्पतिक अवस्था में नए पौधों को पर्याप्त मात्रा में पानी दें। सिरे बनने की अवस्था में भारी मात्रा में पानी के कारण सिरों में दरारें पड़ जाती हैं। 

पौधे की देखभाल

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  • हानिकारक कीट और रोकथाम 
कुतरा सुंडी: इसके हमले से बचाव के लिए मिथाइल पैराथियॉन या मैलाथियॉन 10 किलोग्राम बिजाई से पहले प्रति एकड़ मिट्टी में डालें।
 
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पत्ते खाने वाली सुंडी : यह सुंडी पत्तों को खाती है। यदि नुकसान दिखे तो डाईक्लोरवॉस 200 मि.ली. को 150 लीटर पानी में या फलूबैनडायामाइड 48 प्रतिशत एस सी 0.5 मि.ली. को 3 लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें ।

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चमकीली पीठ वाला पतंगा : यह बंद गोभी का एक खतरनाक कीड़ा है और पत्तों के नीचे की और अंडे देता है। हरे रंग की सूण्डी पत्तों को खाती हैं और उनमें छेद कर देती हैं। यदि इसे ना रोका जाये तो 80-90 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है।
 
शुरूआत में नीम की निंबोलियों का रस 40 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें और 10-15 दिन बाद दोबारा स्प्रे करें । इसके बिना बी टी घोल 500 ग्राम रोपाई के 35 और 50 दिनों के बाद प्रति एकड़ में स्प्रे करें। यदि नुकसान बढ़ जाये तो स्पिनोसैड 2.5 प्रतिशत एस सी 80 मि.ली. को प्रति 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
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रस चूसने वाले कीड़े : यह कीड़े पत्तों के रस चूसते हैं और पत्ते पीले होकर गिर जाते हैं और ठूठी आकार के हो जाते हैं।
 
यदि चेपे और तेले का नुकसान बढ़ जाये तो इमीडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल 60 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें । शुष्क मौसम में नुकसान बढ़ जाता है। इसके लिए थाइमैथोक्सम 80 ग्राम को प्रति 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
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पत्तों के नीचे की ओर धब्बे : पत्तों के निचली ओर भूरे और जामुनी धब्बे दिखाई देते हैं। खेत की सफाई और फसली चक्र अपनाने से इस बीमारी को कम किया जा सकता है। यदि खेत में यह बीमारी दिखे तो मैटालैक्सिल + मैनकोज़ेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें और 10 दिनों के फासले पर कुल 3 स्प्रे करें।
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  • बीमारियां और रोकथाम
पत्तों के धब्बे और झुलस रोग : यदि पत्तों पर धब्बे और झुलस रोग दिखे तो मैटालैक्सिीकल 8 प्रतिशत + मैनकोज़ेब 64 प्रतिशत  डब्लयू पी 250 ग्राम को 150 प्रति लीटर पानी के साथ  स्टिकर या मैनकोजेब 400 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 400 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
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गलना : इस बीमारी से बचाने के लिए मरकरी क्लोराइड से बीज का उपचार करें। मरकरी क्लोराइड 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में बीजों को 30 मिनट के लिए भिगो दें। उसके बाद इन्हें छांव में सुखा लें। यदि पूरे खेत में यह बीमारी नज़र आये तो कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 300 ग्राम + स्ट्रैप्टोमाइसिन 6 ग्राम को प्रति 150 लीटर पानी में डाल कर स्प्रे करें।

फसल की कटाई

गोभी के फूल के पूरे और बढ़िया आकार के होने पर कटाई करें। कटाई बाजार की मांग के अनुसार की जा सकती है। यदि मांग ज्यादा और मूल्य भी ज्यादा हो तो कटाई जल्दी करें। कटाई के लिए चाकू का प्रयोग किया जाता है।

कटाई के बाद

कटाई के बाद फूलों को आकार के अनुसार अलग अलग करें। यदि मांग और मूल्य ज्यादा हो तो कटाई जल्दी की जा सकती है।