कुसुम फसल की जानकारी

आम जानकारी

कटाई अंत दिसंबर से जनवरी के पहले सप्ताह में की जाती है। पत्तों के गिरने और फलियों के पीले रंग के होने पर कटाई की जाती है। इसकी औसतन पैदावार 4-6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।कुसुम को आम-तौर पर कुसुम्भ के नाम से भी जाना जाता हैं| यह सबसे पुरानी तेल वाली फसल है, जिस में 24-36% तेल होता है| इसका प्रयोग खाना पकाने के लिए ज्यादा किया जाता है| इससे तैयार खल को पशुओं के चारे के लिए प्रयोग किया जाता है| महाराष्ट्र और कर्नाटक कुसुम उगाने वाले मुख्य राज्य हैं। उत्तर प्रदेश में इसे मुख्यत बुंदेलखंड के क्षेत्रों में उगाया जाता है। सिंचित हालातों में कुसुम की खेती ज्यादा लाभदायक है।
 
  • Season

    Temperature

    20-25°C
  • Season

    Sowing Temperature

    20-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    35-37°C
  • Season

    Rainfall

    500-700mm
  • Season

    Temperature

    20-25°C
  • Season

    Sowing Temperature

    20-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    35-37°C
  • Season

    Rainfall

    500-700mm

जलवायु

  • Season

    Temperature

    20-25°C
  • Season

    Sowing Temperature

    20-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    35-37°C
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    500-700mm
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    20-25°C
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    Sowing Temperature

    20-25°C
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    Harvesting Temperature

    35-37°C
  • Season

    Rainfall

    500-700mm

मिट्टी

इसकी खेती कई प्रकार की मिट्टी में की जा सकती हैं| यह बढ़िया निकास वाली रेतली-दोमट और जैविक तत्वों की भरपूर मात्रा वाली मिट्टी में अच्छी पैदावार देती है|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

K – 65: यह किस्म 180-190 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 5.6-6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसमें तेल की मात्रा 30-35 प्रतिशत होती है।

Malvika Kusum (HUS 305): यह किस्म 160 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसमें तेल की मात्रा 36 प्रतिशत होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में

Phule kusum, NARI-6, DSH-129, MKH-11, Parbhani Kusuma (PBNS-12), NARI-NH-1 (PH- 6), 

NARI-H-15: यह हाइब्रिड किस्म फलटन (महाराष्ट्र) 2005 में पूरे देश के सिंचिंत क्षेत्रों के लिए बनायी गई | इसमें तेल की मात्रा 28% होती है और यह किस्म चेपे को सहनयोग्य हैं|
 

ज़मीन की तैयारी

मिट्टी को भुरभुरा बनाने के लिए ज़मीन की कई बार जोताई करें, सारे नदीनों को निकालें और खेत को नदीन रहित बनाएं। निचले क्षेत्रों में इसकी खेती ना करें, क्योंकि यह फसल जल जमाव वाली स्थिति में खड़ी नहीं रह सकती। बिजाई से पहले निश्चित करें कि मिट्टी में पर्याप्त नमी मौजूद हो, यह उचित और जल्दी अंकुरण में मदद करेगा।
 
फसली-चक्र: कुसुम की खेती के बाद खरीफ की फसलें जैसे कि उड़द, चारा, मूंग, मक्की आदि उगाई जा सकती है|
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA
SSP MOP
35 50 On soil test results

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
16 8 -

 

नाइट्रोजन 16 किलो(यूरिया 35 किलो) और फासफोरस 8 किलो (एस एस पी 50 किलो)  प्रति एकड़ में डालें| अगर ज़मीन में पौष्टिक तत्वों की कमी हो तो, फासफोरस और बाकी की सारी खादें बिजाई से पहले ड्रिल मशीन के साथ डालें|

 

 

बिजाई

बिजाई का समय
इसकी बिजाई का उचित समय  मध्य अक्तूबर से मध्य नवंबर तक का है।
 
फासला
पौधे से पौधे में 15 सैं.मी. और कतार से कतार में 45 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
बीज को 4-5 सैं.मी. की गहराई पर बोयें। 
 
बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई ड्रिल मशीन के द्वारा की जाती है|
 

बीज

बीज की मात्रा
बिजाई के लिए 7-8 किलो बीजों का प्रयोग प्रति एकड़ में करें|
 
बीज का उपचार
बिजाई से पहले कप्तान  थीरम या कार्बेनडाज़िम 3 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। बढ़िया अंकुरण के लिए सेहतमंद और निरोग बीजों को रात भर पानी में भिगोएं|
 

खरपतवार नियंत्रण

कुसुम की फसल फूल बनने के समय नदीनों से ज्यादा प्रभावित होती है| फूल बनने के समय डैकनी क्षेत्रों में 25-30 दिन और ज्यादा सर्दी पड़ने वाले क्षेत्रों में 2 महीने या इससे ज्यादा होता है| इस नाज़ुक समय खेत को नदीं मुक्त रखने के लिए बिजाई से 45-50 दिन की बजाए 25-30 दिन बाद नियमित 1-2 बार गोड़ाई करें| रोपाई से पहले ट्रिफ्लुरालिन 400 मि.ली. या नदीनों के अंकुरण से पहले एट्राज़िन 0.3 किलो या एलाक्लोर 0.6 किलो प्रति एकड़ में डालें।

बिजाई के 15-20 दिन बाद कमज़ोर और बीमार पौधों को निकाल दें।

सिंचाई

जहां पर सिंचाई  की आवश्यकता नहीं होती, यह फसल उन क्षेत्रों में भी उगाई जा सकती हैं और मौसम के अनुसार मिट्टी में नमी मौजूद होती है| फूल निकलने के समय पानी की बहुत जरूरत होती है और बढ़िया पैदावार के लिए 30 दिन के बाद एक बार सिंचाई करें| जहां पर मिटी में नमी कम हो तो, बिजाई से पहले एक भारी सिंचाई करें| यह फसल के विकास के लिए लाभदायक होती है|

पौधे की देखभाल

हरा चेपा
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
आड़ू का हरा चेपा: इसका रूप सड़े हुए पौधे जैसा होता हैं|
कुसुम का चेपा
कुसुम का चेपा: यह कोमल शाखाओं, पत्तों और तने पर देखा जा सकता हैं| यह पौधे को कमज़ोर करता है और कई जगह से सूखा देता है|
 
रोकथाम: क्लोरपाइरीफोस 20 ई सी 100 मि.ली. को 100 लीटर पानी में मिला कर स्प्रे करें| अगर जरूरत पड़े तो 15 दिन बाद दोबारा स्प्रे करें|
मुरझाना और सड़ना
  • बीमारियां और रोकथाम
मुरझाना और सड़ना: इस बीमारी के साथ पौधे पीले पड़ जाते है, फिर भूरे हो जाते है और अंत में मर जाते है| यह एक सफेद रंग की फंगस होती है, जो पौधे की जड़ों और तने पर देखी जा सकती हैं|
 
रोकथाम: बीमारी के लिए सेहतमंद और निरोग बीजों का प्रयोग करें| बारिश की ऋतु के समय तने पर मिट्टी ना चढ़ाये|

फसल की कटाई

कुसुम की फसल 150-180 दिनों में पक जाती है| इसकी कटाई फूल पीले-भूरे रंग के होने पर मध्य-मई में करें|