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आम जानकारी

पेठे को सफेद कद्दू, सर्दियो का खरबूज़ा या धुंधला ख़रबूज़ा भी कहा जाता है| इसका मूल स्थान दक्षिण-पूर्व एशिया है| यह वसा, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और रेशे का उच्च स्त्रोत है| पेठे के बहुत सारे औषधीय गुण हैं। इसमें केलोरी कम होने के कारण यह शुगर के मरीज़ो के लिए बहुत अच्छी है| इसका प्रयोग कब्ज़, एसिडिटी और आंतड़ी के कीट के उपचार के रूप में भी किया जाता है| प्रसिद्ध खाने वाली वस्तु पेठा भी इसी से बनाई जाती है| पेठे की दो किस्में उपलब्ध होती हैं जामुनी हरा और हरा पेठा।
 
उत्तर प्रदेश में इसकी खेती बड़े स्तर पर की जाती है और इसका मुख्य तौर पर पेठा बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
 

जलवायु

  • Season

    Temperature

    15-35°C
  • Season

    Rainfall

    100-150cm
  • Season

    Sowing Temperature

    15-20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    22-35°C
  • Season

    Temperature

    15-35°C
  • Season

    Rainfall

    100-150cm
  • Season

    Sowing Temperature

    15-20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    22-35°C
  • Season

    Temperature

    15-35°C
  • Season

    Rainfall

    100-150cm
  • Season

    Sowing Temperature

    15-20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    22-35°C
  • Season

    Temperature

    15-35°C
  • Season

    Rainfall

    100-150cm
  • Season

    Sowing Temperature

    15-20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    22-35°C

मिट्टी

इसकी खेती बहुत किस्म की मिट्टी में की जा सकती है, पर रेतली दोमट मिट्टी में यह बढ़िया पैदावार देती है| मिट्टी का उचित pH 6-6.5 होना चाहिये|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Kashi Ujawal: इस किस्म के फल गोल और बीज रहित होते हैं। यह 130-140 दिनों में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 240-244 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
CO 1, CO 2, Pusa Ujjwal, MAH 1, IVAG 502 
 

ज़मीन की तैयारी

मिट्टी को अच्छी तरह से भुरभुरा करने के लिए 3-4 बार जोताई करें| अंत में, जोताई करने से पहले 20 किलो गली-सड़ी रूडी की खाद, 40 किलो नीम केक के साथ मिलाकर प्रति एकड़ में डालें।

बिजाई

बिजाई का समय
उत्तरी भारत में इसकी खेती दो बार की जाती है| इसकी बिजाई फरवरी-मार्च में और जून जुलाई में भी की जाती हैं|
 
फासला
कतारों में 1.5-2.5 मीटर फासले का प्रयोग करें और पौधे से पौधे में 60-120 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें। बैड के दोनों ओर प्रति क्यारी पर 2 बीज बोयें।
 
बीज की गहराई
बीज को 1-2 सै.मी. गहराई पर बोयें|
 
बिजाई का ढंग
बीज को सीधा ही बैडों पर बोया जाता है|
 

बीज

बीज की मात्रा
एक एकड़ में बिजाई के लिए 2-2.5 किलो बीज पर्याप्त होते हैं।
 
बीज का उपचार
बीज को मिट्टी में पैदा होने वाली फंगस से बचाने के लिए कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम के साथ प्रति किलो बीज का उपचार करें| रसायनिक उपचार के बाद ट्राइकोडर्मा विराइड 4 ग्राम या सिओडोमोनस फ्लूरोसेंस 10 ग्राम के साथ प्रति किलो बीज का उपचार करें|
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
70 150 40

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
32 24 24

 

संपूर्ण रूप से फसल को गाय का गला हुआ गोबर 8-10 टन, नाइट्रोजन 32 किलो (यूरिया 70 किलो), फासफोरस 24 किलो (सिंगल सुपर फास्फेट 150 किलो) और पोटाश 24 किलो (म्यूरेट ऑफ़ पोटाश 40 किलो) प्रति एकड़ में जरूरत होती है| गाय का गला हुआ गोबर, पोटाश और फासफोरस की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा बिजाई से 2-3 सप्ताह पहले डालें। बाकी  बची नाइट्रोजन को दो हिस्सों में बांटे। पहले भाग को बिजाई के 25-30 दिन बाद और दूसरे भाग को बिजाई के 40-50 दिन बाद डालें।

 

 

सिंचाई

बिजाई के बाद तीन से चार दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। वानस्पतिक अवस्था में, जलवायु और मिट्टी की किस्म के आधार पर, गर्मियों के मौसम में 7-10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। बारिश के मौसम में, बारिश की तीव्रता के आधार पर सिंचाई करें। फूल और फल निकलने की अवस्थाएं सिंचाई के लिए गंभीर होती हैं। इन अवस्थाओं में पानी की कमी ना होने दें।

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों की तीव्रता के अनुसार, हाथों या कसी के साथ गोडाई करें| मलचिंग के साथ भी नदीनों को रोका जा सकता है और पानी की बचत भी की जा सकती है|

पौधे की देखभाल

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  • हानिकारक कीट और रोकथाम
भुन्डी: अगर इसका हमला दिखाई दें तो रोकथाम के लिए मैलाथियान 50 ई सी 1 मि.ली  या डाइमेथोएट 30 ई सी 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें|
 
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चेपा: अगर इसका हमला दिखाई दें तो इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें|

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  • बीमारियां और रोकथाम
पत्तों का धब्बा रोग: नुकसान हुए पौधों के ऊपर वाले हिस्से और मुख्य तने पर भी सफेद धब्बे दिखाई देते है| यह बीमारी पौधे को भोजन के रूप में प्रयोग करती है| गंभीर हमला होने पर इसके पत्ते झड़ जाते है और फल पकने से पहले ही गिर जाते है| अगर इसका हमला दिखाई  दें तो डाइनोकॉप 1 मि.ली. या कार्बेन्डाजिम 0.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिला कर स्प्रे करें|
 
पत्तों के निचले हिस्सों पर धब्बा रोग: यदि इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब या क्लोरोथालोनिल 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर 10 दिनों के अंतराल पर दो बार स्प्रे करें।
 
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पत्तों के निचले हिस्सों पर धब्बा रोग: यदि इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब या क्लोरोथालोनिल 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर 10 दिनों के अंतराल पर दो बार स्प्रे करें।

फसल की कटाई

किस्म के आधार पर फसल 90-100 दिनों में तैयार हो जाती है|मांग के मुताबिक फलों की तुड़ाई पकने के समय या उससे पहले की जा सकती है| पके हुए फलों को ज्यादातर बीज उत्पादन के लिए प्रयोग किया जाता है| फलों को तेज़ चाकू के साथ बेल के पास से काटें|

कटाई के बाद

फलों को 70-75 प्रतिशत आर्द्रता के साथ 13-15 डिगरी सेल्सियस तापमान पर तीन महीने के लिए स्टोर किया जा सकता है।

बीज उत्पादन

बीज उत्पादन के लिए बीजों को फरवरी मार्च के महीने में बोयें। बीमार और अनचाहे पौधों को फूल निकलने के समय, फल बनने के समय और पकने की अवस्था में निकाल दें। जब फल और तने की सतह सफेद मोम की तरह दिखने लग जाए, तब फल तुड़ाई के लिए तैयार होते हैं। बीजों को अलग करें और फिर पानी से धोयें। धोये हुए बीजों को सुखाएं और स्टोर करने से पहले उन्हें साफ करें। बीजों को कम तापमान और कम नमी वाली स्थितियों पर स्टोर किया जाता है।