उत्तर प्रदेश में पान के बारे में जानकारी

आम जानकारी

पान भारत की महत्तवपूर्ण नकदी फसल है। इसका मूल स्थान केंद्रीय और पूर्वीय मलेशिया है। पान को चबाने के लिए उपयोग किया जाता है और भारतीय उपमहाद्वीप में मेहमानों को पान-सुपारी की पेशकश के रूप में भी दिये जाते हैं। इसकी अपनी महत्तवपूर्ण जगह है, क्योंकि यह विभिन्न अनुष्ठानों और कार्यों में प्रयोग किया जाता है। यह किसान के परिवारों में भी महत्तवपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके कई औषधीय गुण भी हैं, यह कई बीमारियों और विकारों को ठीक करता है। अरंडी के तेल के साथ, यह बच्चों में कब्ज की समस्या से राहत देने के लिए उपयोग किया जाता है। यह तंत्रिका संबंधी विकारों के इलाज में लाभदायक है। इसका उपयोग घावों के उपचार और गले के खराश के लिए भी किया जाता है। इसके गीले पत्तों को तेल के साथ छाती पर लगाया जाता है, यह दूध के स्त्राव में मदद करते हैं। यह सभी खेती की जाने वाली फसलों में महत्तवपूर्ण व्यापारिक और लाभदायक फसल है। भारत में मुख्य पान उगाने वाले राज्य तामिलनाडू, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश हैं।
पान में कामोद्यीपक गुण होते हैं।
पान के जूस में मूत्रवर्धक गुण होते हैं।
पान के पत्ते तंत्रिका संबंधी विकारों के इलाज में लाभदायक है।
पान के पत्ते दर्दनाशक और इनकी तासीर ठंडी होती है।
इसका उपयोग तेज सिरदर्द को दूर करने के लिए किया जा सकता है।
बचपन और बुढ़ापे में होने वाली फेफड़ों से संबंधित समस्याओं को दूर करने में पान के पत्ते लाभदायक होते हैं।
यह बच्चों में कब्ज की समस्या से राहत देने में सहायक है।
यह गले की दूर को खराश को दूर करने में प्रभावशाली है।
पान के पत्तों को जख्मों के इलाज के लिए भी उपयोग किया जा सकता है।
यह जड़ी बूटी फोड़े फुंसियों के लिए प्रभावशाली उपाय है।
यह कहा जाता है कि स्तनपान के दौरान इसके पत्तों को स्तन पर लगाने से दूध के स्त्राव में वृद्धि होती है।
 
  • Season

    Rainfall

    225-475cm

मिट्टी

इसे मिट्टी की विभिन्न किस्मों जैसे भारी चिकनी दोमट और रेतली दोमट मिट्टी में उगाया जा सकता है। यह उपजाऊ मिट्टी में भी अच्छी उगती है। जलजमाव, नमक वाली और क्षारीय मिट्टी में पान की खेती ना करें। हल्की मिट्टी के साथ साथ अच्छी गहराई वाली भारी लाल दोमट मिट्टी भी इसकी खेती के लिए उपयुक्त होती है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Deswari, Kapoori, Maghai and Bangla उत्तर प्रदेश में प्रसिद्ध किस्में है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
आंध्रा  प्रदेश- Karapaku, Chennor, Tellaku, Bangla and Kalli Patti.
 
आसाम- Assam Patti, Awani pan, Bangla and Khasi pan.
 
बिहार- Desi pan, Calcutta, Paton, Maghai and Bangla.
 
कर्नाटक- Kariyale, Mysoreale and Ambadiale.
 
उड़ीसा- Godi Bangla, Nova Cuttak, Sanchi and Birkoli.
 
मध्य प्रदेश- Desi Bangl, Calcutta and Deswari
 
महाराष्ट्र- Kallipatti, Kapoori and Bangla (Ramtek).
 
पश्चिमी बंगाल- Bangla, Sanchi, Mitha, Kali Bangla and Simurali Bangla.
 

ज़मीन की तैयारी

मिट्टी के भुरभुरा होने तक खेत की चार से पांच बार जोताई करें। फिर पास के क्षेत्रों से 5-10 सैं.मी. की दूरी पर ज़मीन तैयार करें और दोनों भागों पर उचित ढलान दें। इससे अतिरिक्त पानी के निकास में मदद मिलेगी। फिर 15 सैं.मी. ऊंचे और 30 सैं.मी. चौड़े आवश्यक बैड तैयार करें।

बिजाई

बिजाई का समय
यू पी में पान की खेती के लिए जनवरी-फरवरी और अक्तूबर से नवंबर का समय उपयुक्त होता है।
 
फासला
भारत में पान की खेती के लिए दो प्रणालियों का प्रयोग किया जाता है। खुली प्रणाली जिसमें दूसरे पौधे को सहारे के लिए प्रयोग किया जाता है।
बंद प्रणाली जिसमें बनावटी आयताकार ढांचे होते हैं, जिन्हें बोरोजस कहा जाता है, उन्हें सहारे के लिए प्रयोग किया जाता है।

बिजाई का ढंग
तने के काटे हुए भाग का रोपण किया जाता है।
 

बीज

बीज की मात्रा 
खुली प्रणाली में एक एकड़ खेत के लिए 16000-3000 कटिंग का प्रयोग किया जाता है। जबकि बंद प्रणाली में खेती के लिए 40000-48000 कटिंग का प्रति एकड़ में प्रयोग किया जाता हैं 
 
बीज का उपचार
फसल को सूखे और बीमारियों से बचाव के लिए बीजों को 30 मिनट के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 500 मि.ग्रा.+ बॉर्डीऑक्स मिश्रण 0.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में भिगोयें।
 

प्रजनन

प्रजनन उद्देश्य के लिए 3-5 गांठो वाली तने की कटिंग का प्रयोग करें। इन कटिंग को इस तरह बोयें कि मिट्टी में 2-3 गांठे दफन हो जायें। बेलों के ऊपरी भाग से 35-45 सैं.मी. लंबाई की तने की कटिंग का चयन करें। उत्तर प्रदेश में रोपाई के लिए सिंगल गांठ वाली कटिंग के साथ मुख्य पौधे के पत्ते का प्रयोग करें। एक एकड़ खेत के लिए 16000-30000 कटिंग का प्रयोग किया जाता है।
 
3-5 गांठों वाली तने की कटिंग को प्रजनन के लिए प्रयोग किया जाता है और इन्हें इस तरह व्यवस्थित किया जाता है कि 2-3 गांठे मिट्टी में लग जाएं। एक सिंगल कटिंग के साथ मुख्य पौधे के पत्ते को भी रोपित किया जाता है। लगभग 30-45 सैं.मी. लंबी तने की कटिंग से बेलों का प्रजनन किया जाता है। बेलों के ऊपरी भाग का कुछ हिस्सा लें। इसे रोपित करना आसान होता है और इससे जड़ें जल्दी निकलती हैं। एक एकड़ में रोपाई के लिए औसतन 100000 सैट की आवश्यकता होती है। आमतौर पर एक हेक्टेयर में 40000-75000 कटिंग का प्रयोग किया जाता है।
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
130 40 12

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
60 8 8

 

पान की पूरी फसल को नाइट्रोजन 60 किलो (यूरिया 130 किलो), फासफोरस 8 किलो (एस एस पी 40 किलो) और पोटाश 8 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 12 किलो) प्रति एकड़ में प्रति वर्ष डालें। शुरूआती खुराक के तौर पर नाइट्रोजन 15 किलो (यूरिया 35 किलो) के साथ फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा डालें। बाकी बची नाइट्रोजन को तीन भागों में बांटे - पहले भाग को बेलों के चढ़ने के 15 दिन बाद और दूसरी और तीसरी मात्रा 40-45 दिनों के अंतराल पर डालें।

 

 

सिंचाई

अच्छी वृद्धि और अच्छी उपज के लिए मिट्टी में पर्याप्त नमी मौजूद होनी चाहिए इसलिए जलवायु परिस्थितियों के आधार पर लगातार हल्की सिंचाई करें। यह जल जमाव स्थिति के प्रति संवेदनशील है। अतिरिक्त पानी के निकास का उचित प्रबंध करें।

कटाई और छंटाई

बेलों की सिधाई 
15-20 सैं.मी. के अंतराल पर बेल को केले के फाइबर से ढीला बांधकर सिधाई की जाती है। बेल की वृद्धि के आधार पर प्रत्येक 15-20 दिनों के अंतराल पर सिंधाई की जाती है।
 

पौधे की देखभाल

  • बीमारियां और रोकथाम
पैर गलन या पत्ता गलन या सूखा : इसकी रोकथाम के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 500 मि.ग्रा. + बॉर्डीऑक्स मिश्रण 0.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर 30 मिनट के लिए इस घोल में बेल के बीजों को भिगोयें।
 
यदि इसका हमला खेत में दिखे तो प्रभावित बेलों और पत्तों को इक्ट्ठा करें और खेत से दूर ले जाकर नष्ट कर दें। बॉर्डीऑक्स मिश्रण 500 मि.ली. को विशेष कर ठंडे मौसम में महीने के अंतराल पर मिट्टी पर छिड़कें।
 
एंथ्राक्नोस : यदि इसका हमला दिखे तो प्रभावित बेलों और पत्तों को इकट्ठा करें और नष्ट कर दें।
 
ज़ीरम 3 ग्राम या एम 45 4 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर तोड़े गए पत्तों पर स्प्रे करें।
 

बैक्टीरियल पत्तों पर धब्बा रोग या तना गलन : Z-78, 3 ग्राम +एम 45, 3 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यदि जरूरत पड़े तो तोड़े गए पत्तों पर 20 दिनों के अंतराल पर दूसरी स्प्रे करें। 

पत्तों पर सफेद धब्बे : यदि इसका हमला दिखे तो घुलनशील सल्फर 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर तोड़े गए पत्तों पर स्प्रे करें या सल्फर 10 किलो को प्रति एकड़ में तोड़े गए पत्तों पर छिड़कें।

  • हानिकारक कीट और रोकथाम
स्केल कीट : प्रभावित भाग पर क्विनलफॉस 3 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यदि इसे तुड़ाई के दौरान स्प्रे किया जाये तो स्प्रे करने से पहले पके हुए और मंडीकरण वाले पत्ते निकाल लें।
 

मिली बग : पौधे के प्रभावित भागों को इकट्ठा करें और नष्ट कर दें। नीम का तेल 5 मि.ली. को टीपॉल 1 मि.ली. को प्रति लीटर पानी के साथ स्प्रे करें।

लाल मकौड़ा जूं : यदि इसका हमला दिखे तो मोनोसिल 2 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 

फसल की कटाई

पान की फसल रोपाई के 2-3 महीनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। जैसे कि जब बेल 1.2-1.8 मीटर की वृद्धि कर जाये तो इसके बाद प्रत्येक 15-25 दिनों के लिए तुड़ाई कर लें। तने के निचले भाग से पत्तों  की तुड़ाई करें। पंखुड़ियों के भाग के साथ पके हुए पत्तों को तोड़ें । तुड़ाई हाथों से से की जाती है। एक एकड़ खेत से प्रतिवर्ष 30-40 लाख पत्ते प्राप्त किए जाते हैं।

कटाई के बाद

तुड़ाई के बाद पत्तों को धोयें, उसके बाद साफ करें और उनके आकार, रंग, बनावट और परिपक्वता के आधार पर छंटाई करें। छंटाई के बाद, पंखुड़ी के भाग को तोड़कर उन्हें पैक किया जाता है। पैकिंग के लिए आमतौर पर बांस की टोकरी का प्रयोग किया जाता है। अंदरूनी लाइनिंग सामग्री के लिए पराली, ताजे और सूखे केले के पत्ते या गीले कपड़े आदि का प्रयोग किया जाता है।
 
क्युरिंग : पत्तों को 6-8 घंटे के लिए 60-70 डिगरी सेल्सियस के तापमान पर उबाला जाता है। ये पत्ते बिना प्रोसेस किए पत्तों की अपेक्षा ज्यादा कीमतें प्राप्त करते हैं।