potato.jpg

आम जानकारी

आलू विश्व की एक महत्तवपूर्ण सब्जियों वाली फसल है। यह एक सस्ती और आर्थिक फसल है, जिस कारण इसे गरीब आदमी का मित्र कहा जाता है। यह फसल दक्षिणी अमरीका की है और इस में कार्बोहाइड्रेट और विटामिन भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। आलू लगभग सभी राज्यों में उगाए जाते हैं। यह फसल सब्जी के लिए और चिपस बनाने के लिए प्रयोग की जाती है। यह फसल स्टार्च और शराब बनाने के लिए प्रयोग की जाती है। भारत में ज्यादातर उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, पंजाब, कर्नाटका, आसाम और मध्य प्रदेश में आलू उगाए जाते हैं। 
 
उत्तर प्रदेश भारत का उच्च आलू उत्पादक राज्य है। यह देश के कुल उत्पादन का लगभग 34 प्रतिशत हिस्सा देता है। आगरा, फिरोज़ाबाद, हथरस, कनौज, फारूखाबाद, अलीगढ़, बदायुं, ईटावा, मथुरा, मेनपुरी और बाराबांकी उत्तर प्रदेश के मुख्य आलू उत्पादक राज्य हैं। 
 

जलवायु

  • Season

    Temperature

    14-25°C
  • Season

    Rainfall

    300-500mm
  • Season

    Sowing Temperature

    15-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    14-20°C
  • Season

    Temperature

    14-25°C
  • Season

    Rainfall

    300-500mm
  • Season

    Sowing Temperature

    15-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    14-20°C
  • Season

    Temperature

    14-25°C
  • Season

    Rainfall

    300-500mm
  • Season

    Sowing Temperature

    15-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    14-20°C
  • Season

    Temperature

    14-25°C
  • Season

    Rainfall

    300-500mm
  • Season

    Sowing Temperature

    15-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    14-20°C

मिट्टी

यह फसल बहुत तरह की मिट्टी जैसे कि रेतली, नमक वाली, दोमट और चिकनी मिट्टी में उगाई जा सकती है। अच्छे जल निकास वाली, जैविक तत्व भरपूर, रेतली से दरमियानी ज़मीन में फसल अच्छी पैदावार देती है। यह फसल नमक वाली तेजाबी ज़मीनों में भी उगाई जा सकती है पर बहुत ज्यादा जल जमाव और खारी या नमक वाली ज़मीन इस फसल की खेती के लिए उचित नहीं होती।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Kufri Bahar: इस किस्म के पौधे लंबे और तने मोटे होते हैं। तनों की संख्या 4-5 प्रति पौधा होती है। इसके आलू बड़े, सफेद रंग के, गोलाकार से अंडाकार होते हैं और इसका गुद्दा सफेद रंग का होता है।यह किस्म 100-110 दिनों में पक जाती है और इसकी औसतन पैदावार 125 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसे ज्यादा देर तक स्टोर करके रखा जा सकता है। यह पिछेती और अगेती झुलस रोग और पत्ता मरोड़ रोग की रोधक है।
 
Kufri Badshah: इसके पौधे लंबे और 4-5 तने प्रति पौधा होते हैं। इसके आलू बड़े से दरमियाने, गोलाकार और हल्के सफेद रंग के होते हैं। इसके आलू स्वाद होते हैं यह किस्म 100-110 दिनों में पक जाती है। यह किस्म कोहरे को सहनेयोग्य है और पिछेती, अगेती झुलस रोग की प्रतिरोधक है।
 
Kufri Sutlaj: इस किस्म के पौधे घने और मोटे तने वाले होते हैं। पत्ते हल्के हरे रंग के होते हैं। आलू बड़े आकार के, गोलाकार और नर्म छिल्के वाले होते हैं। यह किस्म 90-100 दिनों में पकती है। इसकी औसतन पैदावार 160 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म खाने के लिए अच्छी और स्वादिष्ट होती है। इन आलुओं को पकाना आसान होता है। यह नए उत्पाद बनाने के लिए उचित किस्म नहीं है।
 
Kufri Anand: यह मध्यम समय की किस्म है, जो कि पिछेते झुलस रोग और कोहरे के प्रतिरोधक है। इसकी औसतन पैदावार 140-160 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
 
Kufri Pukhraj: इसके पौधे लंबे और तने संख्या में कम और दरमियाने मोटे होते हैं। आलू सफेद, बड़े, गोलाकार और नर्म छिल्के वाले होते हैं यह किस्म 70-90 दिनों में पकती है। इसकी औसतन पैदावार 130 क्विंटल प्रति एकड़ है। यह अगेती झुलस रोग की रोधक किस्म है और नए उत्पाद बनाने के लिए उचित नहीं है।
 
Kufri Chipsona 2: इस किस्म के पौधे दरमियाने कद के और कम तनों वाले होते हैं इसके पत्ते गहरे हरे और फूल सफेद रंग के होते हैं। आलू सफेद, दरमियाने आकार के, गोलाकार, अंडाकार और नर्म होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 140 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह पिछेती झुलस रोग की रोधक किस्म है। यह किस्म चिपस और फरैंच फ्राइज़ बनाने के लिए उचित है।
 
Kufri Chipsona 1: यह किस्म 90-100 दिनों में पुटाई के लिए तैयार हो जाती है।
 
Kufri Chandramukhi:  इस किस्म के आलू बड़े अंडाकार आकार के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 10 टन प्रति एकड़ होती है। यह किस्म 80-90 दिनों में पुटाई के लिए तैयार हो जाती है।
 
Kufri Jyoti: यह प्रोसेसिंग के लिए उपयुक्त किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 80-120 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
 
Kufri Ashoka: यह किस्म CPIU, शिमला द्वारा विकसित की गई है और बिहार, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बंगाल में खेती के लिए उपयुक्त किस्म है। यह लंबे कद की और मोटे तने वाली किस्म है। यह किस्म 70-80 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसके आलू बड़े, गोलाकार, सफेद और नर्म छिल्के वाले होते हैं। यह पिछेती झुलस रोग को सहने योग्य किस्म है।
 
Kufri Lalima: इस किस्म के आलू गोल, लाल और सफेद गुद्दे वाले होते हैं। आलू बड़े से मध्यम आकार के होते हैं। यह किस्म 100-110 दिनों में पुटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 16 टन प्रति एकड़ होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Kufri Giriraj, Kufri Himalini, Kufri Himsona, Kufri Giridhari, Kufri Shailja 
 
Kufri Garima, Kufri Gaurav, Kufri Sadabahar, Kufri Khyati
 
प्रक्रिया के लिए विदेशी किस्में: White Potato
 
कतारों में रखने और प्रक्रिया के लिए उपयुक्त किस्में : Russet, Round white, Round Red, Yellow Flesh etc
 

ज़मीन की तैयारी

खेत को एक बार 30 सैं.मी. गहरा जोतकर अच्छे ढंग से बैड बनाएं। जोताई के बाद 2-3 बार तवियां फेरें और फिर 2-3 बार सुहागा फेरें। बिजाई से पहले खेत में नमी की मात्रा बनाकर रखें। बिजाई के लिए दो ढंग मुख्य तौर पर प्रयोग किए जाते हैं। 1. मेंड़ और खालियों वाला ढंग  2. समतल बैडों वाला ढंग

बिजाई

बिजाई का समय
अगेती बिजाई के लिए, सितंबर के आखिरी सप्ताह से अक्तूबर का पहला सप्ताह खेती के लिए उपयुक्त होता है। मुख्य फसल के लिए अक्तूबर का दूसरे से चौथा सप्ताह बिजाई के लिए उपयुक्त समय होता है।
 
फासला
गांठों के आकार के अनुसार रोपाई का फासला विभिन्न होता है। बिजाई के लिए कतार से कतार में 60 सैं.मी. और पौधे से पौधे में 20 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें। 
 
बीज की गहराई
बीज बोने के बाद बीजों को 8-10 सैं.मी. तक मिट्टी की परत से ढक दें।
 
बिजाई का ढंग
बिजाई के लिए ट्रैक्टर से चलने वाली सेमी ऑटोमेटिक या ऑटोमैटिक प्लांटर का प्रयोग करें।
 

बीज

बीज की मात्रा
रोपाई के लिए बड़ी आकार की गांठों का प्रयोग किया जाता है। बिजाई के लिए 13-15 क्विंटल बीज प्रयोग किए जाते हैं।
 
बीज का उपचार
बिजाई के लिए सेहतमंद आलू ही चुने। बिजाई से पहले आलुओं को कोल्ड स्टोर से निकालकर 1-2 सप्ताह के लिए छांव वाले स्थान पर रखें ताकि वे अंकुरित हो जायें। आलुओं के सही अंकुरन के लिए उन्हें जिबरैलिक एसिड 1 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर एक घंटे के लिए उपचार करें। फिर छांव में सुखाएं और 10 दिनों के लिए हवादार कमरे में रखें। फिर काटकर आलुओं को मैनकोजेब 0.5 प्रतिशत घोल (5 ग्राम प्रति लीटर पानी) में 10 मिनट के लिए भिगो दें। इससे आलुओं को शुरूआती समय में गलने से बचाया जा सकता है। आलुओं को गलने और जड़ों में कालापन रोग से बचाने के लिए साबुत और काटे हुए आलुओं को 6 प्रतिशत मरकरी के घोल (टैफासन) 0.25 प्रतिशत (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) में डालें।
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
90-10 190-250 66-85

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
40-50 24-32 40-50

 

यदि संभव हो, तो आलू की रोपाई से पहले, हरी खाद वाली फसलें जैसे सनई, जंतर आदि फसलें उगायें और उन्हें मिट्टी में अच्छी तरह दबायें। यदि हरी खाद उपलब्ध ना हो तो गली सड़ी रूड़ी की खाद या गाय का गला हुआ गोबर 60-80 क्विंटल प्रति एकड़ में खेत की तैयारी के समय रोपाई से दो सप्ताह पहले डालें।
 
फसल की उचित वृद्धि के लिए नाइट्रोजन 40-50 किलो (90-110 किलो यूरिया), फासफोरस 24-32 किलो (150-200 किलो सिंगल सुपर फासफेट) और पोटाश 40-50 किलो (66-85 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश) की मात्रा प्रति एकड़ में डालें। 
 
बिजाई के समय नाइट्रोजन का 3/4 हिस्सा और फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा डालें। बाकी बचा हुआ नाइट्रोजन का 1/4 हिस्सा बिजाई से 35-40 दिन बाद जड़ों में मिट्टी लगाने के समय डालें। 
 
जड़ों के साथ मिट्टी लगाना : मिट्टी में सही हवा, पानी और तापमान बनाए रखने के लिए यह काम बहुत जरूरी है ताकि फसल का विकास अच्छा हो सके । आलुओं के अच्छे विकास के लिए पौधे की जड़ों के साथ मिट्टी लगाएं। मिट्टी को अच्छी तरह से पौधे के आधार पर डाला जाता है। जिससे गांठे अच्छे से बनने में मदद मिलती है। यह काम पौधों के 15-20 सैं.मी. कद होने पर करें। यदि जरूरत पड़े तो पहली बार मिट्टी लगाने के दो सप्ताह बाद दूसरी बार फिर मिट्टी लगाएं। यह काम कही से हाथों के द्वारा या बड़े क्षेत्रों में मोल्ड बोर्ड या रिज़र की सहायता से किया जा सकता है।
 
पानी में घुलनशील खादें : मोटे आलुओं की पैदावार के लिए 13:00:45, 2 किलो और मैगनीश्यिम ई डी टी ए 100 ग्राम प्रति एकड़ की स्प्रे करें। बीमारियों के हमले को रोकने के लिए फंगसनाशी प्रॉपीनेब 3 ग्राम प्रति लीटर पानी डालें। आलुओं का आकार और गिणती बढ़ाने के लिए हयूमिक एसिड (12 प्रतिशत) 3 ग्राम + एम ए पी 12:61:00 की 8 ग्राम या डी ए पी 15 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे पौधे की वृद्धि के समय करें।
 

 

 

सिंचाई

बिजाई से पहले सिंचाई करें। बिजाई के बाद 10-12 दिनों के अंदर अंदर पहली सिंचाई करें। दूसरी सिंचाई पहली सिंचाई के 7 दिनों के बाद करें। बाकी की सिंचाइयां जलवायु की परिस्थितियों और जरूरत के अनुसार करें। गांठे बनने की अवस्था सिंचाई के लिए बहुत महत्तवपूर्ण होती है। इस अवस्था में पानी की कमी ना होने दें। ज्यादा सिंचाई ना करें इससे गलने की बीमारी का खतरा बढ़ता है। पुटाई से 10-12 दिन पहले सिंचाई बंद कर दें।

खरपतवार नियंत्रण

आलुओं के अंकुरन से पहले मैटरीबिउज़िन 70 डब्लयु पी 200 ग्राम या एलाकलोर 2 लीटर प्रति एकड़ डालें। आलुओं के 5-10 प्रतिशत अंकुरन और केवल मेंड़ पर नदीनों का हमला होने पर पैराकुएट 500-750 मि.ली. प्रति एकड़ डालें। यदि नदीनों का हमला कम हो तो बिजाई के 25 दिन बाद मैदानी इलाकों में और 40-45 दिनों के बाद पहाड़ी इलाकों में जब फसल 8-10 सैं.मी. कद की हो जाये तो नदीनों को हाथों से उखाड़ दें। आमतौर पर आलुओं की फसल में नदीन नाशक की जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि जड़ों को मिट्टी लगाने से सारे नदीन नष्ट हो जाते हैं।
 
नदीनों के हमले को कम करने के लिए और मिट्टी की नमी को बचाने के लिए मलचिंग का तरीका भी प्रयोग किया जा सकता है, जिसमें मिट्टी पर धान की पराली और खेत के बची-कुची सामग्री बिछायी जा सकती है। बिजाई के 20-25 दिन बाद मलचिंग को हटा दें।
 

पौधे की देखभाल

APHIdS potato.png
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
चेपा : यह कीट पौधों का रस चूसते हैं और पौधे को कमज़ोर बनाते हैं। गंभीर हमले से पौधे के पत्ते मुड़ जाते हैं और पत्तों का आकार बदल जाता है। प्रभावित हिस्सों पर काले रंग की फंगस लग जाती है।
 
चेपे के हमले को चैक करने के लिए अपने इलाके के समय अनुसार पत्तों को काट दें। यदि चेपे या तेले का हमला दिखे तो इमीडाक्लोप्रिड 50 मि.ली. या थाइमैथोक्सम 40 ग्राम प्रति एकड़ 150 लीटर पानी की स्प्रे करें।
cutworm.png
कुतरा सुंडी : यह सुंडी पौधे को अंकुरन के समय काटकर नुकसान पहुंचाती हैं। यह रात के समय हमला करती है, इसलिए इसे रोकना मुश्किल है।
 
इसके नुकसान को कम करने के लिए रूड़ी की खाद का प्रयोग करें। यदि इसका हमला दिखे तो क्लोरपाइरीफॉस 20 प्रतिशत ई सी 2.5 मि.ली. को प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। पौधों पर फोरेट 10 जी 4 किलो प्रति एकड़ डालें और मिट्टी से ढक दें।
 
यदि तंबाकू सुंडी का हमला दिखे तो रोकथाम के लिए क्विनलफॉस 25 ई सी 20 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी की स्प्रे करें।
 
LEAF_EATING potato.png
पत्ते खाने वाली सुंडी : यह सुंडी पत्ते खाकर फसल का नुकसान करती है।
 
यदि खेत में इसका हमला दिखे तो क्लोरपाइरीफॉस या प्रोफैनाफॉस 2 मि.ली. या लैंबडा साइहैलोथ्रिन 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
BEETLE potato.png
लाल भुंडी : यह सुंडी और कीड़ा पत्ते खाकर फसल का नुकसान करती है।
 
इनके हमले के शुरूआती समय में इनके अंडे इक्ट्ठे करके खेत से दूर नष्ट कर दें। इसकी रोकथाम के लिए कार्बरिल 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
WHITE_GRUB potato.png
सफेद सुंडी : यह कीड़ा मिट्टी में रहता है और जड़ों, तनों और आलुओं को खाता है। इससे प्रभावित पौधे सूखे हुए दिखाई देते हैं और आलुओं में सुराख हो जाते हैं।
 
इसे रोकने के लिए बिजाई के समय कार्बोफिउरॉन 3 जी 12 किलो या थिमट 10 जी 7 किलो प्रति एकड़ डालें।
POTATO_TUBER_MOTH potato.png
आलू का कीड़ा : यह कीड़ा खेत और स्टोर में पड़े आलुओं पर हमला करता हैं यह आलुओं में छेद करके इसका गुद्दा खाता है।
 
बीज सेहतमंद और बीमारी मुक्त प्रयोग करें। पूरी तरह गली रूड़ी की खाद ही प्रयोग करें। यदि हमला दिखे तो कार्बरिल 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
 
Early_blight_potato potato.jpg
  • बीमारीयां और रोकथाम
अगेता झुलस रोग : इससे नीचे के पत्तों पर धब्बे पड़ जाते हैं। यह बीमारी मिट्टी में स्थित फंगस के कारण आती है। कम तापमान और अधिक नमी होने के समय यह बीमारी तेजी से फैलती है।
 
खेत में एक ही फसल बार बार ना लगाएं। बदल बदल कर फसलें उगाएं। यदि हमला दिखे तो मैनकोजेब 30 ग्राम या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 30 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर बिजाई के 45 दिनों के बाद 10 दिनों के फासले पर 2-3 बार स्प्रे करें।
BLACK_SCURF potato.png
आलुओं पर काले धब्बे : इस बीमारी से आलुओं पर काले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं और पौधे सूखते दिखाई देते हैं। प्रभावित आलुओं के अंकुरन के समय आंखों पर काला और भूरा रंग आ जाता है।
 
बिजाई के लिए बीमारी मुक्त बीज प्रयोग करें। बिजाई से पहले आलुओं को मरकरी के घोल से उपचार करें। एक फसल को बार बार ना उगाएं। यदि खेत को दो वर्षों के लिए खाली छोड़ दिया जाये तो बीमारी के खतरे को कम किया जा सकता है।
 
Late_BLIGHT potato.png
पिछेता झुलस रोग : इस बीमारी का हमला पत्तों के शिखरों और नीचे के भाग पर देखा जा सकता है। प्रभावित पत्तों पर बेढंगे आकार के धब्बे दिखते हैं और धब्बों के आस पास सफेद पाउडर बन जाता है। ज्यादा हमले की सूरत में प्रभावित पौधों की नज़दीक की मिट्टी में सफेद पाउडर दिखाई देता है। यह बीमारी बारिश के बाद और बादलवाई वाले मौसम में अधिक फैलती है। यदि इसे ना रोका जाये तो 50 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है।
 
बिजाई के लिए सेहतमंद और बीमारी मुक्त बीज प्रयोग करें। यदि हमला दिखे तो प्रॉपीनेब 40 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी की स्प्रे करें।
COMMON_SCAB potato.png
आलुओं पर काली परत : यह बीमारी खेत और भंडारन दोनों में आती है। कम नमी वाली स्थिति में यह बीमारी तेजी से फैलती है। प्रभावित आलुओं पर हल्के भूरे से गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं।
 
खेत में सिर्फ अच्छी तरह से गली हुई रूड़ी की खाद का ही प्रयोग करें। बीमारी रहित बीजों का प्रयोग करें। बीजों को ज्यादा गहराई में ना बोयें। एक ही फसल बार बार ना उगाएं। बिजाई से पहले बीजों को एमीसन 6 के 0.25 प्रतिशत (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) घोल से 5 मिनट के लिए उपचार करें।
BACTERIAL_SOFT_ROT potato.png
नर्म होकर गलना : इस बीमारी से पौधे के नीचे के हिस्से का रंग काला और प्रभावित आलुओं का रंग भूरा हो जाता है और पौधा कांस्य रंग का नज़र आता है। ज्यादा हमले की स्थिति में पौधा सूखकर नष्ट हो जाता है। प्रभावित आलुओं पर लाल धब्बे नज़र आते हैं।
 
बिजाई के लिए सेहतमंद और बीमारी रहित बीज का प्रयोग करें। बिजाई से पहले बीजों को बोरिक एसिड 3 प्रतिशत ( 300 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) से 30 मिनट के लिए उपचार करें और छांव में सुखाएं। भंडारण से पहले एक बार फिर बोरिक एसिड से उपचार करें। बीमारी की उचित रोकथाम के लिए मैदानी इलाकों में बीजों को कार्बेनडाज़िम 1 प्रतिशत से 15 मिनट के लिए उपचार करें।
 
yellow mosaic potato.jpg
चितकबरा रोग : इससे पत्ते पीले हो जाते हैं और पौधे का विकास रूक जाता है। आलुओं का आकार और गिणती कम हो जाती है।
 
बिजाई के लिए सेहतमंद और बीमारी रहित बीज का प्रयोग करें। खेत की लगातार जांच करें और प्रभावित पौधों और हिस्सों को तुरंत नष्ट कर दें। इसकी रोकथाम के लिए मैटासिसटोक्स या रोगोर 300 मि.ली. को प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

फसल की कटाई

डंठलों की कटाई : आलुओं को विषाणु से बचाने के लिए यह क्रिया बहुत जरूरी है और इससे आलुओं का आकार और गिणती भी बढ़ जाती है। इस क्रिया में सही समय पर पौधे को ज़मीन के नज़दीक से काट दिया जाता है। इसका समय अलग अलग स्थानों पर अलग है और चेपे की जनसंख्या पर निर्भर करता है। उत्तरी भारत में यह क्रिया दिसंबर महीने में की जाती है।
 
पत्तों के पीले होने और ज़मीन पर गिरने से फसल की पुटाई की जा सकती है। फसल को डंठलों की कटाई के 15-20 दिन बाद ज़मीन की नमी सही होने से उखाड़ लें। पुटाई ट्रैक्टर और आलू उखाड़ने वाली मशीन से या कही से की जा सकती है। पुटाई के बाद आलुओं को सुखाने के लिए ज़मीन पर बिछा दें और 10-15 दिनों तक रखें ताकि उनपर छिल्का आ सके। खराब और सड़े हुए आलुओं को बाहर निकाल दें।

कटाई के बाद

सब से पहले आलुओं को छांट लें और खराब आलुओं को हटा दें। आलुओं को व्यास और आकार के अनुसार बांटे। बड़े आलू चिपस बनने के कारण अधिक मांग में रहते हैं। आलुओं को 4-7 डिगरी सैल्सियस तापमान और सही नमी पर भंडारण करें।