आंवला की फसल

आम जानकारी

आंवला को आमतौर पर भारतीय गूज़बैरी और नेल्ली के नाम से जाना जाता है। इसे इसके औषधीय गुणों के लिए भी जाना जाता है। इसके फल विभिन्न दवाइयां तैयार करने के लिए प्रयोग किये जाते हैं। आंवला से बनी दवाइयों से अनीमिया, डायरिया, दांतों में दर्द, बुखार और जख्मों का इलाज किया जाता है। यह फल विटामिन सी का उच्च स्त्रोत है। आंवला के हरे फल आचार बनाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। शैंपू, बालों में लगाने वाला तेल, डाई, दांतो का पाउडर, और मुंह पर लगाने वाली क्रीमें आंवला से तैयार की जाती है। भारत में उत्तर प्रदेश और गुजरात आंवला के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।
 
आंवला के उत्पादन में उत्तर प्रदेश सबसे ऊपर है। यह एक सख्त किस्म की फसल है इसलिए इसकी खेती उत्तर प्रदेश, आगरा, मथुरा, ईटावा, फतेहपुर के नमक से प्रभावित क्षेत्रों में की जाती है और बुंदेलखंड के अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में भी इसकी खेती की जाती है। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ शहर को भारत के आंवला शहर के रूप में भी जाना जाता है। महाराष्ट्र, राजस्थान, आंध्रा प्रदेश, कर्नाटक, तामिलनाडू, पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश आंवला उगाने वाले अन्य राज्य हैं।
 

जलवायु

  • Season

    Temperature

    46-48°C
  • Season

    Rainfall

    630-800 mm
  • Season

    Sowing temperature

    22-30°C
  • Season

    Harvesting temperature

    8-15°C
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    Temperature

    46-48°C
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    Rainfall

    630-800 mm
  • Season

    Sowing temperature

    22-30°C
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    Harvesting temperature

    8-15°C
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    Temperature

    46-48°C
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    630-800 mm
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    22-30°C
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    Harvesting temperature

    8-15°C
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    Temperature

    46-48°C
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    Rainfall

    630-800 mm
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    22-30°C
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    Harvesting temperature

    8-15°C

मिट्टी

इसके सख्त होने की वजह से इसे मिट्टी की हर किस्म में उगाया जा सकता है। इसे हल्की तेजाबी और नमकीन और चूने वाली मिट्टी में उगाया जा सकता है| अगर इसकी खेती बढ़िया जल निकास वाली और उपजाऊ-दोमट मिट्टी में की जाती है तो यह अच्छी पैदावार देती है। यह खारी मिट्टी को भी सहयोग्य है।  इस फसल की खेती के लिए मिट्टी की pH 6.5-9.5 होना चाहिए। भारी ज़मीनों में इसकी खेती करने से परहेज करें।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

NA-4 (Kanchan): यह मध्य मौसम की किस्म है, जो कि मध्य नवंबर से मध्य दिसंबर में पक जाती है। इसके फल छोटे होते हैं। फल का भार 30.2 ग्राम होता है। फल में 1.5 प्रतिशत फाइबर की मात्रा होती है और मध्यम एसकार्बिक एसिड होता है। इसकी औसतन पैदावार 121 किलो प्रति वृक्ष होती है।
 
NA 5 (Krishna): यह जल्दी पकने वाली किस्म है। यह मध्य अक्तूबर से मध्य नवंबर में पक जाती है। इसके फल मध्यम से बड़े आकार के होते हैं। फल का भार 44.6 ग्राम होता है। इसका छिल्का नर्म होता है और इस पर अच्छी तरह से धारियां बनी हुई होती हैं। इस किस्म में 1.4 प्रतिशत फाइबर की मात्रा होती है। इसकी औसतन उपज 123 किलो प्रति वृक्ष होती है।
 
NA-10: यह भी जल्दी पकने वाली किस्म है, जो मध्य अक्तूबर से मध्य नवंबर में पक जाती है। इसके फल मध्यम से बड़े आकार, भार 41.5 ग्राम, छिल्का खुरदरा होता है और इसके 6 अलग-अलग भाग होते है| इसका गुद्दा हरे-सफेद रंग का होता है, और इसमें 1.5 % फाइबर की मात्रा होती है| 
 
Narendra 6: यह दरमियाने मौसम की फसल है जो मध्य नवंबर से मध्य दिसंबर तक की होती है। इसके फल मध्यम आकार के, भार 38.8 ग्राम, इसमें फाइबर की मात्रा सबसे कम 0.8% होती है।इसमें विटामिन सी की मात्रा 100 ग्राम और कम मात्रा में फैनोलिक होता है। इसे जैम और कैंडिज़ बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
 
Narendra 7 (Promising variety): यह दरमियाने मौसम की फसल है, जो मध्य नवंबर से मध्य दिसंबर तक होती है। इसके फल मध्यम से बड़े आकार के, भार 44 ग्राम, और रंग हरा-सफेद होता है। इसमें रेशे की मात्रा 1.5% होती है।
 
NA-9: यह भी एक जल्दी पकने वाली किस्म है यह मध्य अक्तूबर से मध्य नवंबर में पक जाती है। इसके फल बड़े आकार के,  भार 50.3 ग्राम, लंबाकार, छिल्का मुलायम और पतला होता है। इस किस्म में फाइबर की मात्रा 0.9% होती है और उच्च मात्रा में एसकॉर्बिक एसिड 100 ग्राम होता है। इससे जैम, जैली और कैंडीज़ आदि बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Balwant: यह जल्दी पकने वाली किस्म है जो  कि मध्य नवंबर के महीने में पक जाती है। इसके फल चपटे गोल आकार के होते हैं जो कि आकार में मध्यम होते हैं। इसके फल नर्म और रसदार होते हैं। फल का गुद्दा सफेद और फल का बाहरी छिल्का हरे रंग का होता है। इसकी औसतन पैदावार 121 किलो प्रति वृक्ष होती है।
 
Francis: यह दरमियाने मौसम की फसल है, जो मध्य नवंबर से मध्य दिसंबर तक होती है। इसके फल बड़े आकार के, भार 45.8 ग्राम, और रंग हरा-सफेद  होता है। इसमें फाइबर की मात्रा 1.5% होती है। इस किस्म को हाथी झूल के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसकी शाखाएं लटकी हुई होती हैं।
 
Banarasi: यह अच्छी गुणवत्ता वाली और जल्दी पकने वाली किस्म है। इसके फल बड़े आकार के होते हैं। इनमें विटामिन की मात्रा उच्च होती है। फल चमकदार और पीले रंग के होते हैं।
 
Green Tinzed: इस किस्म के फल हरे रंग के और आकार में बड़े होते हैं।
 
Chakaiya: इस किस्म के फल मध्यम आकार के होते हैं। फल का भार 33.4 ग्राम और आकार अंडाकार होता है। फल में एसकार्बिक एसिड की मात्रा 789 मि.ग्रा. प्रति 100 ग्राम, पैक्टिन की मात्रा 3.4 प्रतिशत और फाइबर की मात्रा 2 प्रतिशत होती है। इस किस्म को आचार बनाने और छोटे टुकड़ों को सुखाने के लिए उपयोग किया जाता है।
 
Red Tinzed: इसके फल मध्यम से बड़े आकार के होते हैं। फल का गुद्दा आधार पर से लाल रंग का होता है।
 
White Streaked: इस किस्म के मध्यम आकार के फल होते हैं और उन पर सफेद धारियां होती हैं।
 
Katha: इस किस्म के फल छोटे आकार के, रंग में हरे और फल के ऊपर सफेद धारियां होती हैं।
 

ज़मीन की तैयारी

आंवला की खेती के लिए अच्छी तरह से जोताई और जैविक मिट्टी की आवश्यकता होती है। मिट्टी को अच्छी तरह से भुरभुरा बनाने के लिए बिजाई से पहले ज़मीन की जोताई करें| जैविक खाद जैसे कि  रूड़ी की खाद को मिट्टी में मिलायें। फिर 15×15 सैं.मी. आकार के 2.5 सैं.मी. नर्सरी बैड तैयार करें।

बिजाई

बिजाई का समय
आंवला को खेत में अगस्त या जनवरी-फरवरी महीने में बोयें। उदयपुर में इसकी खेती जनवरी से फरवरी महीने में की जाती है।
 
फासला
आंवला की कलियों को 7-8 मीटर के फासले पर खोदे गए गड्ढों में बोयें। रोपाई के लिए वर्गाकार विधि का प्रयोग करें ।
 
बीज की गहराई
1मीटरx 1मीटरx 1 मीटर आकार के गड्ढे खोदें और उन्हें 15-20 दिनों में लिए धूप में खुला छोड़ें। गड्ढों को मिट्टी और रूड़ी की खाद से भरें।
 
बिजाई का ढंग
कलियों वाले नए पौधों की मुख्य खेत में रोपाई करें।
 

बीज

बीज की मात्रा
अच्छी वृद्धि के लिए 70-80 नए पौधे प्रति एकड़ में लगाएं।
 
बीज का उपचार
फसल को मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारियों और कीटों से बचाने के लिए और अच्छे अंकुरन के लिए, बीजों को जिबरैलिक एसिड 200-500 पी पी एम से उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद बीजों को हवा में सुखाएं।
 

खाद

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
100 50 100

 

खेत की तैयारी के समय मिट्टी में 10 किलो रूड़ी की खाद अच्छी तरह मिलाएं। एक वर्ष के पौधे के लिए, खेत में नाइट्रोजन 100 ग्राम, फासफोरस 50 ग्राम और पोटाश्यिम 100 ग्राम प्रति पौधा डालें। 10 साल तक खाद की मात्रा बढ़ते रहें। फासफोरस की पूरी और पोटाशियम और नाइट्रोजन की आधी मात्रा को जनवरी-फरवरी में शुरूआती खुराक के तौर पर डालें। बाकी की मात्रा अगस्त के महीने में डालें| सोडियम की ज्यादा मात्रा वाली मिटटी में, बोरोन और ज़िंक सल्फेट 100-150 ग्राम पौधे की आयु और सेहत के अनुसार डालें|

 

खरपतवार नियंत्रण

खेत को नदीन मुक्त बनाने के लिए समय-समय पर गोड़ाई करें| कटाई और छंटाई करें। टेढ़ी-मेढ़ी शाखाओं को काट दें और सिर्फ 4-5 सीधी टहनियां ही ज्यादा विकास के लिए रखें|
 
नदीनों की रोकथाम के लिए मलचिंग का तरीका भी बहुत प्रभावशाली है। गर्मियों में मलचिंग पौधे के शिखर से 15-10 सैं.मी. के तने तक करें|
 

सिंचाई

गर्मियों में सिंचाई 15 दिनों के फासले पर करें और सर्दियों में अक्तूबर दिसंबर के महीने में हर रोज़ तुपका सिंचाई द्वारा 25-30 लीटर प्रति वृक्ष डालें। मानसून के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। फूल निकलने के समय सिंचाई ना करें।

पौधे की देखभाल

छाल खाने वाली सुंडी
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
छाल खाने वाली सुंडी: यह तने और छाल को खाकर नुकसान पहुंचाती हैं|
इनकी रोकथाम के लिए क्विनलफॉस 0.01% या फैनवलरेट 0.5% घोल को छेदों में भरें।
पित्त वाली सुंडी
पित्त वाली सुंडी: यह सुंडी तनेके शिखर में जन्म लेती हैं और सुरंग बना देती हैं।
 इनकी रोकथाम के लिए डाइमैथोएट 0.03% डालें।
कुंगी
  • बीमारीयां और रोकथाम
कुंगी: पत्तों और फलों पर गोल आकार में लाल रंग के धब्बे पड़ जाते है।
इसकी रोकथाम के लिए इंडोफिल एम-45 0.3% को दो बार डालें। पहली सितंबर के शुरू में और दूसरी फिर 15 दिनों के बाद डालें|
अंदरूनी गलन
अंदरूनी गलन: यह बीमारी मुख्य तौर पर बोरोन की कमी से होती है। इस बीमारी के कारण टिशु भूरे रंग के, बाद में काले रंग के हो जाते हैं।
इस बीमारी से बचाव के लिए बोरोन 0.6% सितंबर से अक्तूबर के महीने में डालें|
फल का गलना
फल का गलना: इस बीमारी सेके कारण फलों पर सोजिश पड़ जाती है और रंग बदल जाता है|
इसकी रोकथाम के लिए बोरेक्स और क्लोराइड 0.1%- 0.5% डालें|

फसल की कटाई

बिजाई से 7-8 साल बाद पौधे पैदावार देना शुरू कर देते है। जब फूल हरे रंग के हो जाएं और इनमें विटामिन सी की अधिक मात्रा हो जाए तो फरवरी के महीने में तुड़ाई कर दें। इसकी तुड़ाई वृक्ष को ज़ोर-ज़ोर से हिलाकर की जाती है। जब फल पूरी तरह से पक जाते हैं तो यह हरे पीले रंग के हो जाते हैं। बीजों के लिए पके हुए फूलों का प्रयोग किया जाता है।

कटाई के बाद

तुड़ाई के बाद छंटाई करनी चाहिए। उसके बाद फलों को बांस की टोकरी और लकड़ी के बक्सों में पैक करें| फलों को खराब होने से बचाने के लिए अच्छी तरह से पैकिंग करें और जल्दी से जल्दी खरीदने वाले स्थानों पर ले जाएं। आंवले के फलों से कई उत्पाद जैसे आंवला पाउडर, चूर्ण, च्यवनप्राश, अरिष्ट, और मीठे उत्पाद तैयार किए जाते हैं।