सूरजमुखी फसल की जानकारी

आम जानकारी

सूरजमुखी का नाम "हैलीएन्थस" है जो दो शब्दों से बना हुआ है। हैलीअस मतलब सूरज और एन्थस मतलब फूल। फूल, सूरज की दिशा होने में मुड़ जाने के कारण इसे सूरजमुखी कहा जाता है। यह देश की महत्तवपूर्ण तिलहनी फसल है। इसका तेल हल्के रंग, अच्छे स्वाद और इसमें उच्च मात्रा में लिनोलिक एसिड होता है, जो कि दिल के मरीज़ों के लिए अच्छा होता है। सूरजमुखी के बीज में खाने योग्य तेल की मात्रा 48-53 प्रतिशत होती है ।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    20-25°C
  • Season

    Rainfall

    500-700mm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    35-37°C
  • Season

    Temperature

    20-25°C
  • Season

    Rainfall

    500-700mm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    35-37°C
  • Season

    Temperature

    20-25°C
  • Season

    Rainfall

    500-700mm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    35-37°C
  • Season

    Temperature

    20-25°C
  • Season

    Rainfall

    500-700mm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    35-37°C

मिट्टी

इसे कई प्रकार की मिट्टी रेतली दोमट से काली मिट्टी में उगाया जा सकता है। उपजाऊ और अच्छे निकास वाली भूमि में उगाने पर यह अच्छे परिणाम देती है। यह क्षारीय मिट्टी को सहन कर सकती है। तेजाबी और जल जमाव वाली मिट्टी में इसकी खेती ना करें। मिट्टी की पी एच 6.5-8 के लगभग होनी चाहिए।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Mordern: यह किस्म 75-80 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 4 से 4.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है और इसमें तेल की मात्रा 34-38 प्रतिशत होती है।
 
Surya: यह किस्म 80-85 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 4.8-6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है और इसमें तेल की मात्रा 35-37 प्रतिशत होती है।
 
KVSH 1: यह हाइब्रिड किस्म है। यह किस्म 90-95 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 7.2-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है और इसमें तेल की मात्रा 43-45 प्रतिशत होती है।
 
SH 3322: यह हाइब्रिड किस्म है। यह किस्म 90-95 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 8.8-10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है और इसमें तेल की मात्रा 40-42 प्रतिशत होती है।
 
MSFH 17: यह हाइब्रिड किस्म है। यह किस्म 90-95 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 7.2-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है और इसमें तेल की मात्रा 35-40 प्रतिशत होती है।
 
VSF 1: यह हाइब्रिड किस्म है। यह किस्म 90-95 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 7.2-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है और इसमें तेल की मात्रा 35-40 प्रतिशत होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Variety: DRSF 108, PAC 1091, PAC-47, PAC-36, Sungene-85
 
KBSH 1, MSFH 8, PAC 36, KBSH 44, HSFH 848, PCSH 234
 
Hybrids: KBSH 44, APSH-11, MSFH-10, BSH-1, KBSH-1, TNAU-SUF-7, MSFH-8, MSFH-10, MLSFH-17, DRSH-1, Pro.Sun 09.
 
MSFH 17, PAC 1091, PROSEN 09, HSFH 848
 

ज़मीन की तैयारी

सीड बैड तैयार करने के लिए हल से 2-3 जोताई करें उसके बाद सुहागा फेरें। ज़मीन तैयार करने के लिए आलू, सरसों या गन्ने की कटाई के बाद लोकल हल की मदद से मिट्टी के भुरभुरा होने तक दो से तीन बार जोताई करें।

बिजाई

बिजाई का समय
गर्मियों के मौसम में फरवरी महीने के दूसरे पखवाड़े में बिजाई पूरी कर लें। देरी से बिजाई ना करें क्योंकि फसल की कटाई की अवस्था में बारिश के आने पर उपज गंभीर रूप से प्रभावित होगी।
बारानी क्षेत्रों के लिए बिजाई का उपयुक्त समय जुलाई के आखिरी सप्ताह से लेकर अगस्त का दूसरे सप्ताह तक का है।
 
फासला
बिजाई के लिए कतार से कतार में 45 सैं.मी. और पौधे से पौधे में 15 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
बीज को 4-5 सैं.मी. की गहराई पर बोयें।
 
बिजाई का ढंग
बिजाई गड्ढा खोदकर की जाती है। सूरजमुखी की बिजाई के लिए, बीज को बिजाई वाले यंत्र के प्रयोग से समतल बैडों या मेंड़ों पर बोया जाता है।
 

बीज

बीज की मात्रा
किस्म के लिए 4.8-6 किलो बीज प्रति एकड़ में बिजाई के लिए प्रयोग करें। हाइब्रिड किस्मों के लिए 2-2.4 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें। 
 
बीज का उपचार
बिजाई से पहले, अच्छे अंकुरन के लिए बीजों को 24 घंटों के लिए पानी में डालें। फिर छांव में सुखाएं उसके बाद थीरम 2 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। इससे बीज को मिट्टी के कीड़ों और बीमारियों से बचाया जा सकता है। फसल को सफेद धब्बों के रोग से बचाने के लिए मैटालैक्सिल 6 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। इमीडाक्लोपरिड 5-6 मि.ली. से प्रति किलो बीज का उपचार करें।
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

  UREA SSP MOP
Composite 70 150 30
Hybrid 90 150 30

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

  NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
Composite 32 24 18
Hybrid 41 24 18

 

संयुक्त किस्मों के लिए, नाइट्रोजन 32 किलो (70 किलो यूरिया), फासफोरस 24 किलो (एस एस पी 150 किलो),  पोटाश 18 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 30 किलो) प्रति एकड़ मिट्टी में मिलायें।
 
और हाइब्रिड किस्मों के लिए नाइट्रोजन 41 किलो (यूरिया 90 किलो) और फासफोरस 24 किलो (एस एस पी 150 किलो), पोटाश 18 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 30 किलो)  प्रति एकड़ में डालें। 
 
नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बिजाई के समय डालें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा पहली सिंचाई के समय डालें।  दूसरे शब्दों में बिजाई के 25-30 दिन बाद डालें। बिजाई के समय जिप्सम 80 किलो प्रति एकड़ में डालें। खादों को बीज की कतार से 5 सैं.मी. की दूरी पर डालें। 
 
खादों की सही मात्रा के लिए मिट्टी की जांच करें और खुराकों को इसके आधार पर डालें।
 
पानी में घुलनशील खादें :  वानस्पतिक की अच्छी वृद्धि के लिए पानी में घुलनशील NPK 19:19:19, 5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर फसल पर 5-6 पत्ते आने की अवस्था में 8 दिनों के अंतराल पर दो स्प्रे करें। बोरोन 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर फूल के खुलने की अवस्था में स्प्रे करें।
 

 

 

खरपतवार नियंत्रण

फसल के पहले 45 दिनों के दौरान खेत को नदीन मुक्त रखें और फसल की गंभीर अवस्थाओं पर सिंचाई करें। बिजाई के 2-3 सप्ताह बाद पहली गोडाई करें और उसके 3 सप्ताह बाद दूसरी गोडाई करें। रासायनिक तरीके से नदीनों को रोकने के लिए पैंडीमैथालीन 1 लीटर को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर नदीनों के अंकुरण से पहले बिजाई के 2-3 दिन बाद स्प्रे करें।
गर्दन तोड़ से फसल को बचाने के लिए जब फसल 60-70 सैं.मी. लंबी हो जाये तो फूल निकलने से पहले मिट्टी चढ़ाने की प्रक्रिया पूरी कर लें।
 

सिंचाई

फसल की अच्छी वृद्धि और उपज के लिए 4-5 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। भारी मिट्टी के लिए 3-4 सिंचाइयां पर्याप्त होती हैं। बिजाई के 20-25 दिनों के बाद पहली सिंचाई करें। पानी की आवश्यकता के आधार पर, जब फसल पर 50 प्रतिशत फूल निकल आयें, नर्म और सख्त दुधिया अवस्था सिंचाई के लिए गंभीर अवस्थाएं होती हैं। इस अवस्था पर पानी की कमी से उपज का काफी नुकसान हो सकता है। ज्यादा या दो लगातार सिंचाई ना करें क्यांकि इससे सूखा और जड़ गलन होने का हमला बढ़ सकता है।
मधु मक्खी बीज बनने में महत्तवपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यदि मधु मक्खियां कम हो तो सुबह 8-11 समय 7-10 दिनों के अंतर पर हाथों से पॉलीनेशन करें। इसलिए हाथों को मलमल के कपड़े से ढक लें।
 

पौधे की देखभाल

तंबाकू सुंडी
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
तंबाकू सूण्डी :  यह सूरजमुखी का प्रमुख कीड़ा है और अप्रैल मई महीने में हमला करता है ये पत्तों को अपना भोजन बनाते हैं।
 
सूण्डियों को पत्तों सहित नष्ट कर दें। यदि इसका हमला दिखे तो फ़िप्रोनिल एस सी 2 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें। हमला बढ़ने की हालत में दो स्प्रे 10 दिनों के फासले पर करें या स्पिनोसैड 5 मि.ली. प्रति 10 ली. पानी या नुवान + इंडोएक्साकार्ब 1 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
अमेरिकन सूण्डी
अमेरिकन सूण्डी : यह कीड़ा पौधों और दानों को खाता है। इससे फफूंद लगती है और फूल गल जाते हैं। इसकी सूण्डी हरे से भूरे रंग की होती है।
 
इसको रोकने के लिए 4 फेरोमोन कार्ड प्रति एकड़ लगाएं। यदि खतरा बढ़ जाये तो कार्बरिल 1 किलो या एसीफेट 800 ग्राम या कलोरपाइरीफॉस 1 ली.को 100 लीटर पानी में डालकर प्रति एकड़ स्प्रे करें।
तेला
तेला : इसका हमला आंखे बनने के समय होता है। इससे पत्ते मुड़ जाते हैं और जले हुए नज़र आते हैं।
 
यदि 10-20 प्रतिशत बूटों के ऊपर रस चूसने वाले कीड़ों का हमला दिखे तो नीम सीड करनाल एक्सटरैक 50 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
कुंगी
  • बीमारियां और रोकथाम
कुंगी : यह बीमारी पैदावार का 20 प्रतिशत तक नुकसान करती है। यदि कुंगी का हमला दिखे तो इसकी रोकथाम के लिए ट्राइडमॉर्फ 1 ग्राम या मैनकोजेब 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 15 दिनों के अंतराल पर दूसरी बार स्प्रे करें या हैक्साकोनाज़ोल 2 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर 10 दिनों के अंतराल पर दो बार स्प्रे करें।
 
जड़ों का गलना
जड़ों का गलना : इस रोग वाले पौधे कमज़ोर हो जाते हैं और जल्दी पक जाते हैं। तने के ऊपर राख के रंग के धब्बे पड़ जाते हैं परागण के बाद पौधा अचानक सूख जाता है।
 
इसको रोकने के लिए बिजाई के 30 दिन बाद टराईकोडरमा विराईड 1 किलो को 20 किलो रूड़ी की खाद या रेत में मिलाकर डालें। इसके इलावा कार्बेनडाज़िम 1 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
तने का गलना
तने का गलना : फसल बीजने के 40 दिनों के बाद यह बीमारी नुकसान करती है। प्रभावित पौधे का तना और ज़मीन के नजदीक हिस्से में फफूंद बननी शुरू हो जाती है। इसकी रोकथाम के लिए बिजाई से पहले 2 ग्राम थीरम से प्रति किलो बीज का उपचार करें।
 
आल्टरनेरिया झुलस रोग
ऑल्टरनेरिया झुलस रोग : इस रोग से बीज और तेल की पैदावार कम हो जाती है। पहले नीचे के पत्तों के ऊपर गहरे भूरे और काले धब्बे पड़ जाते हैं जो कि बाद में ऊपर वाले पत्तों पर पहुंच जाते हैं। नुकसान बढ़ने पर यह धब्बे तने के ऊपर भी पहुंच जाते हैं।
 
यदि इसका नुकसान दिखे तो मैनकोजेब 3 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर 10 दिनों के अंतराल पर चार बार स्प्रे करें।
फूलों का गलना
फूलों का गलना : शुरू में फूलों के ऊपर भूरे रंग के धब्बे नज़र आते हैं। बाद में यह धब्बे बड़े हो जाते हैं और फफूंद लग जाती है जो कि अंत में काले हो जाते हैं।
 
फूल निकलने या बनने के समय यदि इसका नुकसान दिखे तो मैनकोजेब 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

फसल की कटाई

पत्तों के सूखने और फूलों के पीले रंग के होने पर कटाई करें। कटाई में देरी ना करें क्योंकि इससे पत्ते गिर जाते हैं और दीमक का खतरा बढ़ जाता है।

कटाई के बाद

फूल तोड़ने के बाद उन्हें 2-3 दिनों के लिए सुखाएं। सूखे हुए फूलों में से बीज आसानी से निकल जाते हैं। गहाई मशीन के साथ की जा सकती है। गहाई के बाद बीज को भंडारण से पहले सुखाएं और उनमें पानी की मात्रा 9-10 प्रतिशत होनी चाहिए।