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आम जानकारी

यह घर में रखने के लिए अच्छी नसल है जो लोग कुत्ते रखना पसंद करते हैं उनके लिए यह सबसे उपयुक्त नसल है। यह नसल 1.7 फीट से 2 फीट लंबी और इसका औसतन भार 21-24 किलो होता है। इस नसल का औसतन जीवन काल 13-16 वर्ष होता है। इनकी खाल छोटी और चमकदार होती है और खाल पर धब्बे बने होते हैं और शरीर वर्गाकार अनुपातिक होता है। इनकी खाल का आधार रंग सफेद होता है जिन पर घने रूप में काले से सफेद लाल रंग के धब्बे बने होते हैं। ये बच्चों के लिए चुलबुले और सक्रिय साथी होते हैं।

चारा

भोजन की मात्रा और किस्म, कुत्ते की उम्र और उसकी नसल पर निर्भर करती है। छोटी नसलों को बड़ी नसल के मुकाबले भोजन की कम मात्रा की आवश्यकता होती है। भोजन उचित मात्रा में दिया जाना चाहिए नहीं तो कुत्ते सुस्त और मोटे हो जाते हैं। संतुलित आहार जिसमें कार्बोहाइड्रेट्स, फैट, प्रोटीन, विटामिन और ट्रेस तत्व शामिल हैं, पालतू जानवरों को स्वस्थ और अच्छे आकार में रखने के लिए आवश्यक होते हैं। कुत्ते को 6 आवश्यक तत्व जैसे फैट, खनिज, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट्स, पानी और प्रोटीन की आवश्यकता होती है। इसके साथ ही इन्हें सारा समय साफ पानी की आवश्यकता होती है। पिल्ले को 29 प्रतिशत प्रोटीन और प्रौढ़ कुत्ते को आहार में 18 प्रतिशत प्रोटीन की जरूरत होती है। हम उन्हें ये सारे आवश्यक तत्व उच्च गुणवत्ता वाले सूखा भोजन देकर दे सकते हैं। इन्हें दिन में दो बार 1.5-2 कप उच्च गुणवत्ता वाला सूखा भोजन देना चाहिए।

सावधानियां:

भोजन जो कुत्ते को नहीं देना चाहिए:

कॉफी - यह पालतू जानवरों के लिए हानिकारक होती है क्योंकि इसके कारण कैफीन विषाक्तता होगी। इस बीमारी के लक्षण हैं तेजी से सांस लेना, बेचैनी, मांसपेशियों में झटके और घबराहट होनी।

आइस क्रीम - मानवों की तरह ही कई कुत्ते लैक्टोस को सहन नहीं करते और परिणामस्वरूप उन्हें डायबिटीज़ हो जाती है।

चॉकलेट - क्योंकि चॉकलेट में उच्च मात्रा में थियोब्रोमाइन होता है जो कि नुकसानदायक पदार्थ होता है। इसके कारण अत्याधिक प्यास लगती है, दौरे पड़ते हैं, दिल की धड़कन अनियमित हो जाती है और फिर अचानक मौत हो जाती है। 

शराब - यह कुत्ते के लीवर और दिमाग को नुकसान पहुंचाती है। इसके कारण सांस लेने में कठिनाई होती है, कुत्ते कोमा में चले जाते हैं और यहां तक कि मौत भी हो जाती है। 

च्युइंगम - यदि च्युइंगम में ज़ाइलीटॉल पदार्थ हो तो यह कुत्ते में लीवर के फेल होने का कारण बनता है।

प्याज - यह कुत्ते के लाल रक्ताणुओं को नष्ट करके उसे नुकसान पहुंचाता है।

एवोकाडो - इसमें परसिन होता है जो कि कुत्ते के पेट को खराब करता है। 

नस्ल की देख रेख

पिल्ले का चयन करते समय सावधानियां - पिल्ले का चयन आपकी जरूरत, उद्देश्य, उसके बालों की खाल, लिंग और आकार के अनुसार किया जाना चाहिए। पिल्ला वह खरीदें जो 8-12 सप्ताह का हो। पिल्ला खरीदते समय उसकी आंखे, मसूड़े, पूंछ और मुंह की जांच करें। आंखे साफ और गहरी होनी चाहिए, मसूड़े गुलाबी होने चाहिए और पूंछ तोड़ी हुई नहीं होनी चाहिए और दस्त के कोई संकेत नहीं होने चाहिए।

आश्रय - कुत्ते को रहने के लिए अच्छी तरह से हवादार, साफ और सुरक्षित वातावरण प्रदान करें। आश्रय अत्याधिक बारिश और हवा और आंधी से सुरक्षित होना चाहिए। सर्दियों में कुत्तों को ठंड के मौसम से बचाने के लिए कंबल दें और गर्मियों में छाया और ठंडे स्थानों की आवश्यकता होती है। 

पानी - कुत्ते के लिए 24 घंटे साफ पानी उपलब्ध होना चाहिए। पानी को साफ रखने के लिए प्रयोग किए जाने वाले बर्तन को आवश्यकतानुसार दिन में कम से कम दो बार या इससे अधिक समय में साफ करना चाहिए।

बालों की देख रेख - सप्ताह में दो बार बालों की देख रेख की जानी चाहिए। कंघी करने से अच्छा है प्रतिदिन ब्रशिंग करें। छोटे बालों वाली नसल के लिए सिर्फ ब्रशिंग की ही आवश्यकता होती है और लंबे बालों वाली नसल के लिए ब्रशिंग के बाद कंघी करनी चाहिए।

नहलाना - कुत्तों को 10-15 दिनों में एक बार नहलाना चाहिए। नहलाने के लिए औषधीय शैंपू की सिफारिश की जाती है।

ब्यांत समय में मादा की देखभाल - स्वस्थ पिल्लों के लिए गाभिन मादा की उचित देखभाल आवश्यक है। ब्यांत के समय या पहले उचित अंतराल पर टीकाकरण अवश्य देना चाहिए। ब्यांत का समय लगभग 55-72 दिन का होता है। उचित आहार, अच्छा वातावरण, व्यायाम और उचित जांच ब्यांत के समय के दौरान आवश्यक होती है।

नवजात पिल्लों की देखभाल - पिल्लों के जीवन के कुछ हफ्तों के लिए उनकी प्राथमिक गतिविधियों में अच्छे वातावरण, आहार और अच्छी आदतों का विकास शामिल है। कम से कम 2 महीने के नवजात पिल्ले को मां का दूध प्रदान करें और यदि मां की मृत्यु हो गई हो या किसी भी मामले में पिल्ला अपनी मां से अलग हो जाए तो शुरूआती फीड या पाउडरड दूध पिल्ले को दिया जाता है। 

चिकित्सीय देखभाल - इंसानों की तरह, कुत्ते को भी हर 6-12 महीनों के बाद दांतों की जांच के लिए पशु चिकित्सक की आवश्यकता होती है। अपने कुत्ते के दांतों को नर्म ब्रश के साथ ब्रश करें और एक ऐसे पेस्ट का चयन करें जो फ्लोराइड मुक्त हो क्योंकि फ्लोराइड कुत्तों के लिए बहुत ही जहरीला होता है।

सिफारिश किया गया टीकाकरण - पालतू जानवरों को नियमित टीकाकरण और डीवॉर्मिंग की आवश्यकता होती है ताकि उन्हें स्वास्थ्य समस्याएं ना हों।

6 सप्ताह के कुत्ते को  canine distemper, canine hepatitis, corona viral enteritis, canine parainfluenza, parvo virus infection, leptospirosis का प्राथमिक टीकाकरण दें और फिर दूसरा टीकाकरण 2-3 सप्ताह से 16 सप्ताह के कुत्ते को दें और फिर वार्षिक टीकाकरण देना चाहिए।

रेबीज़ बीमारी के लिए 3 महीने की उम्र के कुत्ते को प्राथमिक टीकाकरण दें, पहले टीके के 3 महीने बाद दूसरा टीका लगवाएं और फिर वार्षिक टीका लगवाना चाहिए।

हानिकारक परजीवियों से अपने पालतु जानवरों को बचाने के लिए डीवॉर्मिंग अवश्य करवानी चाहिए। 3 महीने और इससे कम उम्र के कुत्ते को प्रत्येक 15 दिनों के बाद डीवॉर्मिंग करवानी चाहिए। 6-12 महीने के बीच के कुत्ते को दो महीने में एक बार डीवॉर्मिंग करवानी चाहिए और फिर 1वर्ष या इससे ज्यादा उम्र के कुत्ते को प्रत्येक 3 सप्ताह बाद डीवॉर्मिंग करवानी चाहिए। डीवॉर्मिंग कुत्ते के भार के अनुसार विभिन्न होती है। 

बीमारियां और रोकथाम

•    Cancer: The symptoms are bad breath, lethargy, rapid weight loss, sudden lameness, loss or decrease of appetite and difficulty in breathing or urinating. The cancer is much more common in older dogs. Mainly Boston terrier, Golden Retrievers and Boxers are the breeds which develop tumor and in Great Danes and Saint Bernard breed bone cancer is mainly found.
Treatment: Depending upon type and stage of cancer, treatment should be given. The treatment mainly includes chemotherapy, radiation, surgery and immunotherapy.

•    Diabetes:
This disease is mainly caused due to lack of insulin hormone or inadequate response of insulin. The symptoms are lethargy, vomiting, chronic skin infections, blindness, dehydration, weight loss and increased urination. Mainly it is seen that diabetes is caused in dogs having 6-9 years of age. In Poodles, keeshonds, Dachshunds, standard and miniature Schnauzers, Samoyeds and Australian terriers breeds in which this disease is mainly found. In golden retrievers and keeshonds breeds mainly Juvenile diabetes are found. 
Treatment: Insulin injections are necessary for proper blood regulation.

•    Heartworm:
The symptoms are bad breathing, vomiting, coughing, weight loss and fatigue. It is mainly transmit from animal to animal through mosquitoes.
Treatment: “Adulticides” name drug is given in dog’s muscle to treat heartworm disease.

•    Kennel cough:
The symptoms are dry cough with a honking sound, fever and nasal discharge.
Treatment: An antimicrobial or cough suppressant is recommended to get relief from kennel cough.

•    Rabies:
The symptoms of rabies are hypersensitivity, fever, loss of appetite, weakness, paralysis of jaw and throat muscle, sudden death etc.
Treatment: No treatment is there to cure rabies once it appears on the dog. The disease results in sudden death.

•    Parvovirus:
The symptoms are loss of appetite, lethargy, sever vomiting, bloody and foul smelling diarrhea etc.
Treatment: Parvovirus vaccine is recommended to give 6-8 weeks old puppy and then as a booster is given at the age of 16-20weeks to prevent from parvovirus disease.

•    Ringworm:
The symptoms are lesions appear on the ear, paws, head and on forelimbs, etc. The ringworms are circular and patchy in shape. The puppies are more prone to this disease.
Treatment: Medicated shampoos or ointments are recommended to treat the ringworm. 

•    Canine distemper
: Pups having age of 3-6 months are more susceptible to this disease. They symptoms are vomiting, cough, diarrhea and pneumonia.
Treatment: Antibiotics such as Chloramphenicol or ampicillin or gentamicin for 5-7 days.
Prevention: First vaccination should be given when pup is 7-9 weeks old and then second vaccination is given when pup is 12-14 weeks old.

•    Leptospirosis:
It is a bacterial disease which is caused by Leptospira canicola and Leptospira icterohaemorrhagica. The symptoms are rise in body temperature, vomiting and uremia.
Treatment: Streptomycine @25mg/kg of body weight should be given to treat this disease.