भूमि अमलाकी की फसल

आम जानकारी

भूमि अमलाकी को फिलांथस के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है पत्ते और फूल। यह वार्षिक जड़ी बूटी है जिसका औसतन कद 30-40 सैं.मी. होता है। इसके फूल सफेद हरे और छोटे अंडाकार आयताकार आकार में होते हैं। यह विटामिन सी का भरपूर स्त्रोत है। पूरा पौधा अन्य उत्पाद या दवाइयां बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। भूमि आंवलाकी का प्रयोग पीलिया, चमड़ी रोग, खांसी और खून साफ करने के लिए किया जाता है। यह दक्षिणी चीन, दक्षिणी भारत और बाहामस सहित पूरे विश्व में पायी जाती है। भारत में यह छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार आदि इलाकों में उगाई जाती है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    28-38 degree
  • Season

    Rainfall

    25-30cm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-33 degree
  • Season

    Harvesting Temperature

    23-20 degree
  • Season

    Temperature

    28-38 degree
  • Season

    Rainfall

    25-30cm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-33 degree
  • Season

    Harvesting Temperature

    23-20 degree
  • Season

    Temperature

    28-38 degree
  • Season

    Rainfall

    25-30cm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-33 degree
  • Season

    Harvesting Temperature

    23-20 degree
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    Temperature

    28-38 degree
  • Season

    Rainfall

    25-30cm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-33 degree
  • Season

    Harvesting Temperature

    23-20 degree

मिट्टी

इसे खारी से निरपक्ष और तेजाबी मिट्टी आदि जैसी बहुत तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है। इसे अच्छे जल निकास वाली चूने वाली मिट्टी में और हल्की बनावटी मिट्टी में भी उगाया जा सकता है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Phyllanthus urinaria: इस किस्म का फल खुरदरा और सतह छेद वाली होती है।

Phyllanthus debilis: इस किस्म के फल(कैप्सूल) की सतह मुलायम होती है।

Phyllanthus amarus: इस किस्म के फल(कैप्सूल) छोटे, दबे हुए और गोलाकार होते हैं।

Phyllanthus niruri: इस किस्म के फल(कैप्सूल) की सतह मुलायम होती है।

Phyllanthus fraternus: इस किस्म के फल(कैप्सूल) की सतह छोटी और मुलायम होती है।

ज़मीन की तैयारी

भूमि अमलाकी के लिए, खेत की तैयारी अप्रैल-मई के महीने में की जाती है। मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए एक बार कल्टीवेटर से खेत की गहरी जोताई करें और फिर 2-3 बार टिल्लर से जोताई करें। बैड आवश्यकतानुसार 30-40 सैं.मी. की लंबाई पर तैयार करें।

बिजाई

बिजाई का समय
मार्च-अप्रैल महीने में नर्सरी बैड तैयार किए जाते हैं।

फासला
खेत में रोपण के समय 15x10 सैं.मी. का फासला रखें।

बिजाई का ढंग
जब पनीरी वाले पौधे 10-15 सैं.मी. कद के हो जाएं तो मुख्य खेत में लगा दिए जाते हैं।

बीज

बीज की मात्रा
अच्छी पैदावार के लिए 400 ग्राम प्रति एकड़ बीज का प्रयोग करें।

पनीरी की देख-रेख और रोपण

प्रजनन क्रिया बीजों के द्वारा की जाती है। आवश्यकतानुसार लंबाई 30 सैं.मी. और चौड़ाई 40 सैं.मी. वाले बैडों पर बोयें। बिजाई का उचित समय अप्रैल-मई महीने में होता है।

नए पौधे 15-30 दिनों में, जब उनका कद 10-15 सैं.मी. हो जाता है, तो रोपण के लिए तैयार हो जाते हैं। बैडों में से पनीरी उखाड़ने से 24 घंटे पहले पानी लगाएं, ताकि उन्हें आसानी से उखाड़ा जा सके। फिर पनीरी को मुख्य खेत में लगाया जाता है। रोपाई के बाद तुरंत सिंचाई करें। यदि फसल रोपण के द्वारा उगाई जाये तो ज्यादा पैदावार देती है।

खाद

ज़मीन की तैयारी के समय, 5-10 टन रूड़ी की खाद डालें और मिट्टी में अच्छी तरह मिलायें। इस फसल को नाइट्रोजन, पोटाशियम और पोटाश खाद की जरूरत नहीं होती। अच्छी पैदावार और विकास के लिए नाइट्रोजन खाद थोड़ी मात्रा में दी जाती है। डी ए पी 70-80 किलो प्रति एकड़ शुरूआती खुराक के तौर पर डालें।

सिंचाई

शुष्क इलाकों मे विशेष कर उत्तरी मैदानों में, हर पखवाड़े एक सिंचाई की जरूरत होती है और वर्षा वाले इलाकों में विशेष कर दक्षिणी इलाकों में सिंचाई की जरूरत नहीं होती। जल जमाव से भी इस पौधे को कोई नुकसान नहीं होता।

खरपतवार नियंत्रण

खेत को नदीन मुक्त रखने के लिए महीने में एक बार हाथों से गोडाई करें। किसी भी व्यापारिक नदीन नाशक की स्प्रे नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे फसल में गिरावट आती है और ज़मीन  पर भी बुरा प्रभाव पड़ता हैं।

पौधे की देखभाल

  • हानिकारक कीट और रोकथाम

पत्ते खाने वाली सुंडी: यह सुंडी ताजा हरे पत्ते खाती है, जिससे फसल के सारे पत्ते नष्ट हो जाते हैं।
इसकी रोकथाम के लिए नुवाक्रॉन 0.2 % की स्प्रे करें।

तने का कीड़ा: यह तने और पत्तों के एपीडरमल टिशू खाता है।
इसकी रोकथाम के लिए नुवाक्रॉन 0.2 % की स्प्रे करें।

  • बीमारियां और रोकथाम

पत्तों का धब्बा रोग: यह एक फंगस वाली बीमारी है, जिससे पत्तों पर सफेद कुंगी बीमारी लग जाती है।
इसकी रोकथाम के लिए सलफैक्स 0.25 % डालें।

फसल की कटाई

इसकी कटाई सितंबर महीने में की जाती है, जब वर्षा ऋतु अभी खत्म हुई होती है। जब पौधे का रंग हरा हो जाये और जड़ी बूटी में बदल जाये तो इसकी कटाई कर लेनी चाहिए, क्योंकि उस समय पत्तों में भारी मात्रा में सक्रिय तत्व मौजूद होते हैं।

कटाई के बाद

कटाई के बाद पत्तों को हवा में सुखाएं। फिर इनका जीवन काल बढ़ाने के लिए हवा मुक्त पैकटों में पैक कर दें। फिर इनका प्रयोग जूस, पाउडर, टॉनिक आदि में किया जाता है।

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare