धनिये की फसल

आम जानकारी

धनिया एक वार्षिक जड़ी बूअी का पौधा है जिसका प्रयोग रसोई में मसाले के तौर पर किया जाता है। इसके बीजों, तने और पत्तों का प्रयोग अलग अलग पकवानों को सजाने और स्वादिष्ट बनाने के लिए किया जाता है। इसके पत्तों में विटामिन सी भरपूर मात्रा में होता है। घरेलू नूस्खों में इसका प्रयोग दवाई के तौर पर किया जाता है। इसे पेट की बिमारियों, मौसमी बुखार, उल्टी, खांसी और चमड़ी के रोगों को ठीक करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसकी सब से ज्यादा पैदावार और खप्त भारत में ही होती है। भारत में इसकी सब से ज्यादा खेती राजस्थान में की जाती है। मध्य प्रदेश, आसाम, और गुजरात में भी इसकी खेती की जाती है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    15-28°C
  • Season

    Rainfall

    75-100mm
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-25°C
  • Season

    Sowing Temperature

    22-28°C
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    15-28°C
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    15-25°C
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    22-28°C

मिट्टी

इसे मिट्टी की कई किस्मों में उगाया जा सकता है लेकिन अच्छे निकास वाली दोमट मिट्टी  इसकी अच्छी वृद्धि के लिए उपयुक्त होती है। मिट्टी की पी एच 8-10 होनी चाहिए।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Local: इस किस्म के पौधे की औसत उंचाई 60 सैं.मी. होती है। इसके फूलों का रंग सफेद और फल का रंग हल्का हरे से पीला होता है। यह किस्म 175 से 180 दिनों के दरमियान पककर तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 3.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Punjab Sugandh: इस किस्म के पत्तों का आकार छोटा और सुगंध बहुत तेज होती है। इसका पत्ता चार पंखुड़ियों के आकार वाला होता है। हरे पत्तों के रूप में इसकी औसतन पैदावार 150 क्विंटल और 3.5 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार बीज की हो जाती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
GC 1: इसके दाने मध्यम आकार के गोल और पीले रंग के होते हैं। यह 112 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह पत्तों के मुरझाने और सफेद रंग के धब्बों के रोग को सहने योग्य है। इसकी औसतन पैदावार 5.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
GC 2: यह लंबी और दरमियानी फैलने वाली किस्म है और इसके दाने दरमियाने आकार के होते हैं। यह पत्तों के मुरझाने और सफेद रंग के धब्बों को सहने योग्य है। इसकी औसतन पैदावार 5.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
CO 1: यह छोटे कद ओर छोटे आकार के भूरे रंग के दानो वाली किस्म है। यह 100-120 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 2 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
CO 2 : यह दरमियाने आकार और पीले भूरे रंग के दानों वाली किस्म है। यह किस्म 90-100 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 2.08 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
 

ज़मीन की तैयारी

ज़मीन की दो तीन बार हल से अच्छी तरह जोताई करें। इसके बाद सुहागे की मदद से ज़मीन को समतल कर देना चाहिए। आखिरी बार हल जोतने से पहले ज़मीन में 40 क्विंटल प्रति एकड़ के हिसाब से रूड़ी की खाद मिलानी चाहिए।

बिजाई

बिजाई का समय
सब्जियों में प्रयोग करने के लिए इसकी बिजाई अक्तूबर के पहले सप्ताह में करनी चाहिए और बीज तैयार करने के लिए बिजाई अक्तूबर के आखिरी सप्ताह से नवंबर के पहले सप्ताह तक करनी चाहिए।
 
फासला
कतार से कतार का फासला 30 सैं.मी. और पौधे से पौधे का फासला 15 सैं.मी. रखें।
 
बीज की गहराई
बीज की गहराई 3 सैं.मी. से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
 
बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई के लिए पोरा ढंग का प्रयोग किया जाता है।
 

बीज

बीज की मात्रा
एक एकड़ खेत में बिजाई के लिए 8-10 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
 बीज का उपचार
जल्दी अंकुरन के लिए बीजों को बिजाई से पहले अच्छी तरह रगड़ लेना चाहिए ताकि इसके ऊपर की ओर से अनावश्यक छिल्कें उतर जायें। बिजाई से पहले बीजों को 8 से 12 घंटे के लिए पानी में भिगोकर रख देना चाहिए। फसल को जड़ गलन और पौधे सूखने की बिमारी से बचाने के लिए 4 ग्राम टराइकोडरमा विराइड  स्यिूडोमोनास फलोरसैंस से प्रति किलो बीज का उपचार करें।
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
90 On soil test results On soil test results

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
40 - -
 
 
नाइट्रोजन 40 किलो (90 किलो यूरिया) की मात्रा को प्रति एकड़ में तीन भागों में बांट कर प्रयोग करें। पहली खुराक बिजाई के समय जबकि दूसरी और तीसरी खुराक फसल की पहली और दूसरी कटाई के समय करनी चाहिए। बीज तैयार करने के लिए बीजी गई फसल में 30 किलोग्राम नाइट्रोजन की पूर्ति के लिए 65 किलोग्राम यूरिया खाद का प्रयोग दो बार, पहली खुराक बिजाई और दूसरी फसल के फूलों के आने पर करनी चाहिए।
 
फसल के जल्दी विकास के लिए बिजाई के 15 से 20 दिन बाद 20 मि.ली. टराईकोटानोल हारमोन को 20 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। फसल के अच्छे ओर तेज विकास के लिए 75 ग्राम नाइट्रोजन, पोटाश्यिम और फासफोरस की खाद 19:19:19 की दर के हिसाब से 15 लीटर पानी में घोल तैयार करके बिजाई के 20 दिनों के बाद स्प्रे करना चाहिए। अनुकूल पैदावार के लिए बिजाई के 40 से 50 दिन बाद 50 मि.ली. बरासीनोलाइड को 150 लीटर पानी में घोल तैयार करके प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए। दूसरा स्प्रे 10 दिनों के बाद करना चाहिए। 45 ग्राम मोनो अमोनियम फासफेट 12:61:00 को 15 लीटर पानी में घोलकर पौधों के तनों के ऊपर छिड़काव करना चाहिए। यह पौधे के अच्छे विकास और प्रफुल्लता के लिए लाभदायक होता है।
 

 

 

खरपतवार नियंत्रण

बिजाई के पहले पड़ाव के समय धनिये की फसल के लिए नदीन गंभीर समस्या होते हैं। फसल को नदीनों से मुक्त करने के लिए एक या दो बार गोडाई करने की जरूरत पड़ती है। पहली गोडाई बिजाई से 4 सप्ताह बाद और दूसरी 5 से 6 सप्ताह बाद करनी चाहिए।

 

 

सिंचाई

मिट्टी में नमी की मौजूदगी के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए। बीजों को बोने के बाद तुरंत पहली सिंचाई करें। 10 से 12 दिनों के अंतराल पर लगातार सिंचाई करें।
 

पौधे की देखभाल

चेपा
  • हानिकारक कीड़े और रोकथाम
 
चेपा: फसल के ऊपर इस कीड़े का हमला दिखाई देने पर 6 मि.ली. इमीडाक्लोप्रिड या 4 ग्राम थाइमैथोक्सम को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
पत्तों पर सफेद धब्बे
  • बीमारियां और रोकथाम
 
पत्तों पर सफेद धब्बे: इसका हमला होने पर धनिये के पत्तों के ऊपर की तरफ सफेद रंग के धब्बे पड़ने शुरू हो जाते हैं। इसके लक्ष्ण दिखाई देने पर 20 ग्राम  घुलनशील सलफेट को प्रति 10 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। जरूरत पड़ने पर 10 दिनों के फासले पर फिर छिड़काव करना चाहिए या 100 मि.ली. प्रोपीकोनाज़ोल 10 ई.सी. का प्रति 200 लीटर पानी में घोल तैयार करके छिड़काव करना चाहिए।
 
 
दानों का गलना
दानों का गलना: बीजों को लगने वाली फफूंदी से बचाने के लिए बिजाई के 20 दिनों बाद 200 ग्राम कार्बेनडाज़िम की प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 

 

जड़ गलन
जड़ गलन: फसल की जड़ को गलने से बचाने के लिए 60 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से नीम का पेस्ट मिट्टी में मिलाना चाहिए। इसके इलावा  4 ग्राम टराईकोडरमा विराइड से प्रति किलो बीज का उपचार करें।
 
जड़ गलन के लक्ष्ण दिखाई देने पर मिट्टी में कार्बेनडाज़िम 5 ग्राम या 2 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को प्रति लीटर पानी में मिलाकर मिट्टी में छिड़कें।

फसल की कटाई

फसल का कद 20 से 25 सैं.मी. होने पर हरे पत्तों को काटना शुरू कर देना चाहिए। एक फसल को तीन से चार बार काटा जा सकता है। बीज की पैदावार के लिए बीजी गई फसल अप्रैल महीने में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। फसल के फल हरे रंग में ही काट लेने चाहिए क्योंकि ज्यादा पकने की सूरत में इसका पूरा मूल्य नहीं मिल पाता।

कटाई के बाद

कटाई के बाद 6-7 दिनों के लिए फसल को धूप में सूखने के लिए छोड़ देना चाहिए। पूरी तरह सूखने के बाद फसल की गहाई करके बीजों को साफ करके अलग कर लेना चाहिए।
 

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare