आम जानकारी
इस नसल का शरीर काफी छोटा, आकार घना और टांगे अगली छोटी होती हैं।
 
 आम जानकारी
चारा
नस्ल की देख रेख
बीमारियां और रोकथाम
इस नसल का शरीर काफी छोटा, आकार घना और टांगे अगली छोटी होती हैं।
खरगोश को हर प्रकार का अनाज जैसे कि ज्वार, बाजरा और अन्य फलीदार और हरा  चारा जैसे कि गाजर और गोभी के पत्ते, लूसर्न आदि को आहार में दे सकते हैं।  खरगोश के लिए हर समय ताजा और साफ पानी उपलब्ध होना चाहिए। खरगोश के दांत  लगातार बढ़ते हैं, इसलिए इन्हें दो किस्म की फीड की जरूरत होती है जैसे कि  मिश्रण (कन्सनट्रेट) और हरा चारा।एक किलो के खरगोश को 40 ग्राम मिश्रित फीड  और 40 ग्राम हरे चारे की हर रोज़ जरूरत होती है। खरगोश अपनी खुराक सिर्फ  दिन के समय ही लेते हैं। मिश्रित फीड की छोटी गोलियां बनाकर पैलेट के रूप  में दी जाती हैं। फीड निम्नलिखित अनुसार खरगोश  के आकार और भार के अनुसार  देनी चाहिए।
•    4-5 किलो भार वाले प्रौढ़ खरगोश को प्रतिदिन लगभग 100 ग्राम मिश्रित फीड और 250 ग्राम हरा चारा देना चाहिए।
•    4-5 किलो भार वाले प्रौढ़ मादा खरगोश को प्रतिदिन लगभग 100 ग्राम मिश्रित फीड और 300 ग्राम हरा चारा देना चाहिए।
•    दूध पिलाने वाले और गर्भवती खरगोश, जिसका भार 4-5 किलो हो, उसे हर रोज़ लगभग 150 ग्राम हरा चारा दिया जाना चाहिए।
•    0.6-0.7 किलो भार वाले खरगोशों को हर रोज़ लगभग 50-75 ग्राम मिश्रित फीड और 150 ग्राम हरा चारा देना चाहिए।
खुराक संबंधी कुछ और महत्तवपूर्ण बातें
•    दोनों किस्म की फीड को बराबर मात्रा में दें। खरगोश को मिश्रित फीड के अलावा कोई अन्य फीड ना दें।
•    अच्छी स्वाद वाली फीड के लिए खरगोशों को सब्जियां जैसे कि हरा घास, शलगम, लूसर्न, पालक, बरसीम आदि दें।
•    रसोई के बचे-कुचे पदार्थ जैसे कि गाजर और गोभी के पत्ते फीड में दें।
•    ब्याने के 5-7 दिन बाद फीड की मात्रा बढ़ानी चाहिए।
•    सभी मौसमों में हर समय साफ आर ताजा पानी उपलब्ध होना चाहिए।
 
आवास और देखभाल: खरगोश पालने के लिए 10-20 डिगरी सै.  तापमान और 55-65 प्रतिशत तक की नमी अनुकूल है। खरगोश के अच्छे विकास के लिए  उन्हें तीन तरह के आवास जैसे कि हच, पिंजरे और फर्श पर रखा जा सकता है।  पिंजरा प्रणाली में पिंजरे, लकड़ी या गैलवनाइज़ की तार वाली जाली के बनाए  जाते हैं। हच प्रणाली के लिए बने बनाए पिंजरे होते हैं, जिनके ऊपर छत होती  है और इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है। फर्श प्रणाली  में फर्श को व्यर्थ पदार्थों से ढका जाता है।
ब्याने वाली मादा की देखभाल:  नर्सिंग को अलग पिंजरे में रखा जाता है। दोपहर की खुराक में बासी रोटी,  जबकि सुबह और शाम की खुराक में दूध शामिल करना चाहिए। ब्याने के बाद मां  खरगोश को शांत जगह पर रखें, जहां कुत्ते और बच्चों का शोर ना हो।
नवजात खरगोशों की देखभाल:  नवजात खरगोशों को दिखाई नहीं देता अैर इनके शरीर पर बाल नहीं होते। इनके  बाल चौथे दिन उगने शुरू करते हैं और ये अपनी आंखे 10 दिनों के बाद खोलते  हैं। जब खरगोश 21-23 दिन के हो जाते हैं तो वे खुड्डे में से बाहर आना और  खाना शुरू कर देते हैं और जब खरगोश लगभग 1 महीने के होते हैं तो वे उचित  फीड लेना शुरू कर देते हैं।
सिफारिशी टीकाकरण: 
•    5 सप्ताह के खरगोश को RMD और माईक्सोमैटोसिस का मिश्रित टीका लगाया जाता है। यह टीका 1 साल के अंतराल पर लगाया जाता है।
•     6-12 महीने के बाद RHD2 का टीकाकरण किया जाता है। RHD2 के टीके और RMD  -माईक्सोमैटोसिस के टीके में 2 सप्ताह का अंतराल होना चाहिए।
 
.jpg) पासचुरेलोसिस: निमोनिया, तापमान में वृद्धि, सांस की बीमारी और छींके आना इस रोग के लक्षण हैं। यह बीमारी जयादातर छोटे खरगोशों में आती है।
पासचुरेलोसिस: निमोनिया, तापमान में वृद्धि, सांस की बीमारी और छींके आना इस रोग के लक्षण हैं। यह बीमारी जयादातर छोटे खरगोशों में आती है।
इलाज: इस रोग के इलाज के लिए पैन्सिलिन एल ए 4 या स्ट्रैप्टोमाइसिन का टीका (3-5 दिन) 0.5 ग्राम दें।
.jpg) थनैला रोग:  यह जीवाणु रोग है, जो स्ट्रैप्टोकोकस के कारण होता है। इस बीमारी से थनों  पर नीले रंग के धब्बे बन जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप मादा बच्चों को दूध  नहीं पीने देती।
 थनैला रोग:  यह जीवाणु रोग है, जो स्ट्रैप्टोकोकस के कारण होता है। इस बीमारी से थनों  पर नीले रंग के धब्बे बन जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप मादा बच्चों को दूध  नहीं पीने देती।
इलाज: शुरूआती समय में पैन्सिलिन एल ए 3, स्ट्रैप्टोमाइसिन या अन्य एंटीबायोटिक दवाइयों का टीका 3-5 दिन तक लगातार दें।
  
.jpg) मिक्सोमैटोसिस:  यह रोग मुख्य तौर पर खरगोश में पिस्सू और मच्छरों के द्वारा फैलता है।  इसके लक्षण कान, पूंछ, जनन अंग, और आंखों की पलकों पर देखे जा सकते हैं।
मिक्सोमैटोसिस:  यह रोग मुख्य तौर पर खरगोश में पिस्सू और मच्छरों के द्वारा फैलता है।  इसके लक्षण कान, पूंछ, जनन अंग, और आंखों की पलकों पर देखे जा सकते हैं।
इलाज: इसका कोई असरदार इलाज नहीं है। अन्य सहायक प्रभावों से बचने के लिए एंटीबायोटिक दिए जा सकते हैं।
  
.jpg) कोक्सीडियोसिस: इसके मुख्य लक्षण खून वाले दस्त हैं।
कोक्सीडियोसिस: इसके मुख्य लक्षण खून वाले दस्त हैं।
इलाज:  इस बीमारी के इलाज के लिए सल्फा दवाइयां  (सलफामेराजीन सोडियम(0.2 प्रतिशत), सलफाकुइनाकिसलीन (0.05-0.1 प्रतिशत)) या  नाइट्रोफिउरॉन (0.5 - 2 ग्राम प्रति किलो भार के अनुसार) दिया जाता है।
.jpg) म्यूरकोइड इंटरोपैथी : इसके लक्षण दस्त और शरीर में पानी की कमी होना आदि हैं।
म्यूरकोइड इंटरोपैथी : इसके लक्षण दस्त और शरीर में पानी की कमी होना आदि हैं।
इलाज:  इसका कोई असरदार इलाज नहीं होता। अन्य सहायक प्रभावों से बचने के लिए एंटीबायोटिक दिए जा सकते हैं।
.jpg) कान का कोढ़ (कैंकर): इसके लक्षण सिर हिलाना, कानों में पपड़ी और टांगों से कानों को खुरकना आदि हैं।
कान का कोढ़ (कैंकर): इसके लक्षण सिर हिलाना, कानों में पपड़ी और टांगों से कानों को खुरकना आदि हैं।
इलाज: पहले पपड़ी हटाएं और फिर कान को साफ करें और फिर बेंजाइल बेंजोएट दवाई 3-4 दिन तक लगाएं।
शरीर पर खुजली और ददरी: इसका मुख्य लक्षण नाक और कानों पर से बालों का झड़ना है।
इलाज: पहले पपड़ी हटाएं और फिर कान को साफ करें और फिर बेंजाइल बेंजोएट दवाई 3-4 दिन तक लगाएं।
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सॉर हॉक या पैरों के जख्म: इस बीमारी के लक्षण भार का कम होना, एनोरैक्सिया और सुन्न होना आदि हैं।
इलाज: जिंक का लेप और आयोडीन और एममोनियम एसीटेट घोल 0.2 प्रतिशत सॉर हॉक के इलाज के लिए दिया जाता है।
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