सोयाबीन की खेती

आम जानकारी

सोयाबीन को गोल्डन बीन्स भी कहा जाता है, जो कि लैग्यूम परिवार से संबंधित है। इसका मूल स्थान पूर्वी एशिया है। यह प्रोटीन के साथ साथ रेशे का भी उच्च स्त्रोत है। सोयाबीन से निकाले हुए तेल में कम मात्रा में शुद्ध वसा होती है। पंजाब में, यह फसलों की विविधता में महत्तवपूर्ण भूमिका निभाती है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    18-38°C
  • Season

    Rainfall

    30-60cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-38°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18-25°C
  • Season

    Temperature

    18-38°C
  • Season

    Rainfall

    30-60cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-38°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18-25°C
  • Season

    Temperature

    18-38°C
  • Season

    Rainfall

    30-60cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-38°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18-25°C
  • Season

    Temperature

    18-38°C
  • Season

    Rainfall

    30-60cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-38°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18-25°C

मिट्टी

अच्छे जल निकास वाली उपजाऊ दोमट मिट्टी में उगाने पर यह अच्छे परिणाम देती है। सोयाबीन की अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी का pH 6 से 7.5  अनूकूल होता है। जल जमाव, खारी और क्षारीय मिट्टी सोयाबीन की खेती के लिए अनुकूल नहीं होती। कम तापमान भी इस फसल को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

SL 525 (2003): यह हल्के काले केन्द्रक भाग के साथ चमकदार, शानदार, क्रीम रंग के दाने होते हैं जो सभी सामान्य आकार के होते हैं। इसके अनाज में 37.2 प्रतिशत प्रोटीन और 21.9 प्रतिशत तेल होता है। तने का झुलस रोग और रूट-नॉट निमाटोड को सहनेयोग्य है और यह पीला चितकबरा रोग के लिए प्रतिरोधी है। यह किस्म 144 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी पैदावार 6.1 क्विंटल प्रति एकड़ है।

SL 744 (2010): इसके दाने चमकीले और हल्के पीले रंग के होते हैं और केन्द्रक भाग भूरे रंग का होता है। इसके दानों से 43.2% प्रोटीन और तेल 21.0 प्रतिशत प्राप्त होता है। यह किस्म सोयाबीन चितकबरा रोग और पीला चितकबरा रोग के लिए प्रतिरोधक है। यह किस्म 139 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी पैदावार 7.3 क्विंटल प्रति एकड़ है।

SL 958 (2014): इसके दाने चमकीले और हल्के पीले रंग के होते हैं और केन्द्रक भाग काले रंग का होता है। इसके दाने से 41.7% प्रोटीन और तेल 20.2 प्रतिशत प्राप्त होता है। यह किस्म चितकबरा रोग और पीला चितकबरा रोग के लिए उच्च स्तर पर प्रतिरोधक है। यह किस्म 142 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी पैदावार 7.73 क्विंटल प्रति एकड़ है।

दूसरे राज्यों की किस्में

Alankar, Ankur, Bragg, Lee, PK 262, PK 308, PK 327, PK 416, PK 472, PK 564, Pant Soybean 1024, Pant Soybean 1042, Pusa 16, Pusa 20, Pusa 22, Pusa 24, Pusa 37, Shilajeet, VL soya 2, VL soya 47.

ज़मीन की तैयारी

खेत की तैयारी के समय, दो-तीन बार सुहागे से जोताई करें|

बिजाई

बिजाई का समय
सोयाबीन की बिजाई के लिए जून के पहले पखवाड़े से जुलाई के शुरू का समय उचित होता है।

फासला
बिजाई के समय पंक्ति से पंक्ति में 45 सैं.मी. और पौधे से पौधे में 4-7 सैं.मी. का फासला रखें।

बीज की गहराई
बीज को 2.5-5 सैं.मी. की गहराई में बोयें।

बिजाई का ढंग
बीजों को सीड ड्रिल की सहायता से बोयें।

बीज

बीज की मात्रा
एक एकड़ खेत में 25-30 किलोग्राम बीजों का प्रयोग करें।

बीज का उपचार
बीजों को मिट्टी से होने वाली बीमारियों से बचाव के लिए थीरम या कप्तान 3 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें।

खाद

खादें(किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
28 200 Apply if deficiency observed

 

तत्व(किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
12.5 32 यदि कमी हो तो डालें

 

बिजाई के समय गली हुई रूड़ी की खाद और गाय का  गला हुआ गोबर 4 टन और नाइट्रोजन 12.5 किलो (यूरिया 28 किलो) और फासफोरस 32 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 200 किलो) प्रति एकड़ में डालें।
अच्छे विकास और अच्छी पैदावार के लिए यूरिया 3 किलो को 150 लीटर पानी में मिलाकर बिजाई के बाद 60 वें और 75 वें दिन स्प्रे करें।
 

खरपतवार नियंत्रण

खेत को नदीन मुक्त करने के लिए, दो बार गोडाई की आवश्यकता होती है, पहली गोडाई बिजाई के 20 दिन बाद और दूसरी गोडाई बिजाई के 40 दिन बाद करें।

रासायनिक तरीके से नदीनों को रोकने के लिए, बिजाई के बाद, दो दिनो में, पैंडीमैथालीन 800 मि.ली. को 100-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

सिंचाई

फसल को कुल तीन से चार सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। फली बनने के समय सिंचाई आवश्यक है। इस समय पानी की कमी पैदावार को काफी प्रभावित करती है। बारिश की स्थिति के आधार पर सिंचाई का उपयोग करें। अच्छी वर्षा की स्थिति में सिंचाई की कोई आवश्यकता नहीं होती।

पौधे की देखभाल

सफेद मक्खी
  • हानिकारक कीट और रोकथाम

सफेद मक्खी: सफेद मक्खी की रोकथाम के लिए, थाइमैथोक्सम 40 ग्राम या ट्राइज़ोफोस 300 मि.ली की स्प्रे प्रति एकड़ में करें। यदि आवश्यकता पड़े तो पहली स्प्रे के 10 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।

तंबाकू सुंडी

तंबाकू सुंडी: यदि इस कीट का हमला दिखाई दे तो एसीफेट 57 एस पी 800 ग्राम या क्लोरपाइरीफॉस 20 ई सी को 1.5 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। यदि जरूरत पड़े तो पहली स्प्रे के 10 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।

बालों वाली सुंडी

बालों वाली सुंडी: बालों वाली सुंडी का हमला कम होने पर इसे हाथों से उठाकर या केरोसीन में डालकर खत्म कर दें । इसका हमला ज्यादा हो तो, क्विनलफॉस 300 मि.ली. या डाइक्लोरवास 200 मि.ली की प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

काली भुंडी

काली भुंडी: यह कीट फूल बनने की अवस्था में हमला करते हैं। ये फूल को खाते हैं, और कलियों में से दाने बनने से रोकते हैं।
यदि इसका हमला दिखाई दे तो, इंडोएक्साकार्ब 14.5 एस सी 200 मि.ली. या एसीफेट 75 एस सी 800 ग्राम की प्रति एकड़ में स्प्रे करें। स्प्रे शाम के समय करें और यदि जरूरत पड़े तो पहली स्प्रे के बाद 10 दिनों के अंतराल पर दूसरी स्प्रे करें।

पीला चितकबरा रोग
  • बीमारियां और रोकथाम

पीला चितकबरा रोग: यह सफेद मक्खी के कारण फैलता है। इससे अनियमित पीले, हरे धब्बे पत्तों पर नज़र आते हैं। प्रभावित पौधों पर फलियां विकसित नहीं होती।

इसकी रोकथाम के लिए पीला चितकबरा रोग की प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करें। सफेद मक्खी को रोकथाम के लिए, थाइमैथोक्सम 40 ग्राम या ट्राइज़ोफोस 400 मि.ली की स्प्रे प्रति एकड़ में करें। यदि आवश्यकता पड़े तो पहली स्प्रे के 10 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।

फसल की कटाई

जब फलियां सूख जाएं और पत्तों का रंग बदल कर पीला हो जाए और पत्ते गिर जाएं, तब फसल कटाई के लिए तैयार होती है। कटाई हाथों से या दराती से करें। कटाई के बाद, पौधों में से बीजों को निकाल लें।

कटाई के बाद

सुखाने के बाद, बीजों को अच्छी तरह साफ करें। छोटे आकार के बीजों, प्रभावित बीजों और डंठलों को निकाल दें।

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare