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आम जानकारी

यह एक बहुत प्रसिद्ध चिकित्सिक पौधा है, जो कि भारत में बहुत सारी आयुर्वेदिक दवाइयां बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है| यह मध्य- जलीय पौधा है और इसकी खेती सिल्ले और दलदली क्षेत्रों में की जाती है| यह हॉलैंड, उत्तरी अमरीका, यूरोप के बहुत सारे देशों, केन्द्री एशिया, भारत और बर्मा आदि  में पाया जाता है| भारत में यह मणिपुर, हिमालय, नागा हिल्स, झीलों और नदियों के किनारों पर पाया जाता है| इसके पत्तों का आकार तलवार जैसा और रंग पीला-हरा होता है| इस पौधे का कद 2 मीटर होता है| इसके फूल बेलनाकार आकार के और हरे-भूरे रंग के होते है| इस पौधे की गांठों का प्रयोग अनिद्रा, पेट की बिमारियों, सुगंध, कीटों, झुलस रोग, बुखार, पाचन क्रिया और कई सारी बिमारियों के इलाज के लिए किया जाता है|

जलवायु

  • Season

    Temperature

    10-38°C
  • Season

    Rainfall

    70-250 cm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-32°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20°C
  • Season

    Temperature

    10-38°C
  • Season

    Rainfall

    70-250 cm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-32°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20°C
  • Season

    Temperature

    10-38°C
  • Season

    Rainfall

    70-250 cm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-32°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20°C
  • Season

    Temperature

    10-38°C
  • Season

    Rainfall

    70-250 cm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-32°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20°C

मिट्टी

यह फसल रेतली, चिकनी और जलोढ़ मिट्टी में बढ़िया पैदावार देती है| इसके लिए मिट्टी का  pH 5-7 होना चाहिए|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Acorus calamus: यह किस्म यूरेसिया और उत्तरी अमरीका के पूर्व में पाई जाती है| इसके पत्ते 5 फीट लम्बे और इनमे 4 इंच लम्बे दीर्घ वृत्ताकार के स्पेडिक्स होते हैं| यह सदाबहार किस्म है और इसकी धरती के नीचे की जड़ें धीरे-धीरे से फैलती हैं|

Acorus calamus Variegatus: इस किस्म के पत्ते क्रीम और पीले रंग के होते है|

Acorus gramineus Argenteostriatus:  इसका मूल्य स्थान जापान है| इसके पत्ते 18 इंच लम्बे और फूल 3 इंच लम्बे होते है| इसके गुच्छे 2  फीट चौड़े और विकास दर धीरे होता है|

Acorus gramineus: यह शांत महासागर के उत्तर- पश्चिम क्षेत्रों में पाई जाने वाली सदाबाहार किस्म है|

Acorus gramineus Golden Pheasant: इस किस्म के पत्ते सुनहरी से हरे-पीले रंग के होते हैं और इसका कद 12-14 इंच लम्बा होता है|

Acorus gramineus Minimus Aureus: इस किस्म के पत्तों की बंतर बढ़िया और इसका कद 4 इंच होता है|

Acorus gramineus Ogon: इसके पत्ते रंग-बिरंगे सुनहरी और हरे रंग के होते हैं और इसका कद 10-12 इंच होता है|

Acorus gramineus Variegatus: इसके पत्ते रंग-बिरंगे सफेद और हरे रंग के होते हैं और इसका कद 8-12 इंच होता है|

Acorus gramineus Yodo-No-Yuki: इस किस्म के पत्तों का रंग हल्का हरा और कांटे पीले रंग के होते है| इसके पत्ते 12 इंच तक बढ़ते हैं|

Acorus gramineus Hakuro-nishiki: एक फसल के पत्ते पीले-हरे रंग के होते हैं|

ज़मीन की तैयारी

बच की खेती के लिए, जल-जमाव वाली ज़मीन की आवश्यकता होती है| मिट्टी को भुरभुरा बनाने के लिए, सबसे पहले खेत को पानी लगाएं और रूड़ी की खाद और हरी खाद के मिश्रण को खेत में डालें| खाद डालने के बाद 2-3 बार जोताई करें| मानसून आने से पहले ज़मीन तैयार होनी चाहिए| इसकी बिजाई का उचित समय मार्च-अप्रैल होता है|

बिजाई

बिजाई का समय
इसकी बिजाई जुलाई-अगस्त के महीने में करनी चाहिए, पर इसकी बिजाई के लिए सबसे उचित समय जून के दूसरे पखवाड़े में होता है|

फासला
पौधों के बीच का फासला 30x30 सै.मी. का रखें|

बिजाई की गहराई
बीजों को 4  सै.मी. गहराई पर बोयें|

बिजाई का ढंग
अंकुरण गांठो या बीजों की सीधी बिजाई करें|

बीज

बीज की मात्रा
इसका प्रजनन आम-तौर पर गांठों द्वारा किया जाता है| सबसे पहले गांठों को छोटे टुकड़ों में काट ले और अंकुरण गांठों को बो दें| एक एकड़ के लिए बीज की मात्रा 44400 का प्रयोग करें|
जब प्रजनन बीजों के द्वारा किया जाये तो,इनको ग्रीन हाउस में बोयें| सबसे पहले एक ट्रे जैविक मिट्टी के साथ भरे और फिर बीजों को मिट्टी में हल्का दबा दें| अंकुरण होने तक मिट्टी में नमी बरकरार रखें| अंकुरण लगभग 2 हफ्ते में हो जाता है|

पनीरी की देख-रेख और रोपण

बिजाई से पहले खेत को गीला करें| फिर बच के बीज जरूरत अनुसार गीले बैडों पर बोयें| बिजाई के बाद बैडों को गीले कपड़े से ढक दें, ताकि मिट्टी में नमी बनी रहे|

इस फसल को रोपाई के द्वारा नहीं बोया जाता, क्योंकि इसके बीजों या गांठों को सीधा ही मुख्य खेत में लगाया जाता है| गांठों या बीजों को बिजाई के समय ज्यादा ना दबाये| बीजों को हल्का दबा कर बोयें|
जब नए पौधे थोड़े कद के हो जाएं तो, सिंचाई करें और खेत में 5 सै.मी तक पानी खड़ा होना चाहिए| जब पौधा और ज्यादा कद का हो जाये तो, 10 सै.मी तक पानी खड़ा होना चाहिए|

खाद

खादें(किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
39 32 9

 

तत्व(किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
18 5 5

 

ज़मीन की तैयारी के समय, रूड़ी की खाद 60 क्विंटल प्रति एकड़ डालें और मिट्टी में अच्छी तरह से मिला दें| नाइट्रोजन 18 किलो(यूरिया 39 किलो), फासफोरस 5 किलो(सिंगल सुपर फास्फेट 32 किलो) और पोटाशियम 5 किलो(मिउरेट ऑफ़ पोटाश 9 किलो) प्रति एकड़ डालें| नाइट्रोजन का 1/3 हिस्सा, फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा शुरुआती खाद के रूप में डालें| बाकी बची हुई नाइट्रोजन बिजाई से 1 और 2 महीने के बाद डालें|

खरपतवार नियंत्रण

खेत को नदीन मुक्त रखने के लिए, पहले 4-5 महीने में एक बार गोड़ाई करनी चाहिए|

सिंचाई

बारिश की ऋतु सिंचाई नहीं करनी चाहिए| शुष्क मौसम में, सिंचाई 2 -3 दिनों के फासले पर करें| शुरुआती समय में जल-जमाव 5 सै.मी. और बाद में 10 सै.मी. बढ़ जाती है|

पौधे की देखभाल

घोंगा
  • कीट और रोकथाम

घोंगा: यह सुंडी पौधे के पत्तों पर नुकसान करती है| यह पत्तों का गुद्दा खाती है|
इसकी रोकथाम के लिए मैटाएलडीहाईड या आयरन फासफेट डालें|

मिली बग

मिली बग: यह लेपिडोस्फेल्स या सिउडोकोकस के कारण होती है| इससे पत्ते पीले पड़ने और सिकुड़ने शुरू हो जाते हैं|
इसकी रोकथाम के लिए मिथाइल पैराथियाल 10 मि.ली. या कुइनलफोस 20 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिला कर जड़ों और टहनियों पर डालें|

पत्तों पर धब्बे पड़ना
  • बीमारीयां और रोकथाम

पत्तों पर धब्बे पड़ना: इस बीमारी के साथ पत्तों पर बिरंगे फंगस के धब्बे बन जाते है|
इसकी रोकथाम के लिए कप्तान 10 ग्राम और क्लोरपाइरीफोस 20 मि.ली. प्रति 10 लीटर डालें|

फसल की कटाई

पौधे बिजाई के 6-8 महीने बाद पैदावार देना शुरू कर देते है| इसकी पुटाई पौधे के नीचे वाले पत्ते सूखने पर पीले रंग के होने पर करें, जोकि इसके पकने का संकेत होता है| पुटाई से पहले खेत आंशिक सूखा होना चाहिए, ताकि पुटाई आसानी से हो सके|

कटाई के बाद

पुटाई के बाद गांठों की सफाई की जाती है| सफाई के बाद गांठों को 5-7.5 सै.मी. आकार में काटे| फिर गांठों को हवा में सुखाएं और कूटना और मसलें| मसलने की क्रिया  2-3 बार करें| मसलने के बाद पैकिंग करें| इससे कई उत्पाद जैसे कि आरक, तेल और पाउडर आदि तैयार किये जाते हैं|

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare