पंजाबी में आलू की खेती

आम जानकारी

आलू विश्व की एक महत्तवपूर्ण सब्जियों वाली फसल है। यह एक सस्ती और आर्थिक फसल है, जिस कारण इसे गरीब आदमी का मित्र कहा जाता है। यह फसल दक्षिणी अमरीका की है और इस में कार्बोहाइड्रेट और विटामिन भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। आलू लगभग सभी राज्यों में उगाए जाते हैं। यह फसल सब्जी के लिए और चिपस बनाने के लिए प्रयोग की जाती है। यह फसल स्टार्च और शराब बनाने के लिए प्रयोग की जाती है। भारत में ज्यादातर उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, पंजाब, कर्नाटका, आसाम और मध्य प्रदेश में आलू उगाए जाते हैं। पंजाब में जालंधर, होशियारपुर, लुधियाणा और पटियाला मुख्य आलू पैदा करने वाले क्षेत्र हैं।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    14-25°C
  • Season

    Rainfall

    300-500mm
  • Season

    Sowing Temperature

    15-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    14-20°C
  • Season

    Temperature

    14-25°C
  • Season

    Rainfall

    300-500mm
  • Season

    Sowing Temperature

    15-25°C
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    Harvesting Temperature

    14-20°C
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    Temperature

    14-25°C
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    300-500mm
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    15-25°C
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    Harvesting Temperature

    14-20°C
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    Temperature

    14-25°C
  • Season

    Rainfall

    300-500mm
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    Sowing Temperature

    15-25°C
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    Harvesting Temperature

    14-20°C

मिट्टी

यह फसल बहुत तरह की मिट्टी जैसे कि रेतली, नमक वाली, दोमट और चिकनी मिट्टी में उगाई जा सकती है। अच्छे जल निकास वाली, जैविक तत्व भरपूर, रेतली से दरमियानी ज़मीन में फसल अच्छी पैदावार देती है। यह फसल नमक वाली तेजाबी ज़मीनों में भी उगाई जा सकती है पर बहुत ज्यादा पानी खड़ने वाली और खारी या नमक वाली ज़मीन इस फसल की खेती के लिए उचित नहीं होती।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Kufri Alankar: इस फसल को  पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्यों में उगाने के लिए सिफारिश की जाती है। यह लंबे कद की और मोटे तने वाली किस्म है। यह फसल मैदानी इलाकों में 75 दिनों में और पहाड़ी इलाकों में 140 दिनों में पकती है। इसके आलू गोलाकार होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 120 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Kufri Ashoka: यह लंबे कद की और मोटे तने वाली किस्म है। यह किस्म 70-80 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसके आलू बड़े, गोलाकार, सफेद और नर्म छिल्के वाले होते हैं। यह पिछेती झुलस रोग को सहने योग्य किस्म है।
 
Kufri Badshah: इसके पौधे लंबे और 4-5 तने प्रति पौधा होते हैं। इसके आलू गोल, बड़े से दरमियाने, गोलाकार और हल्के सफेद रंग के होते हैं। इसके आलू स्वाद होते हैं। यह किस्म 90-100 दिनों में पक जाती है। यह किस्म कोहरे को सहनेयोग्य है और पिछेती, अगेती झुलस रोग की प्रतिरोधक है।
 
Kufri Bahar: इस किस्म के पौधे लंबे और तने मोटे होते हैं। तनों की संख्या 4-5 प्रति पौधा होती है। इसके आलू बड़े, सफेद रंग के, गोलाकार से अंडाकार होते हैं। यह किस्म 90-100 दिनों में पक जाती है और इसकी औसतन पैदावार 100-120 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसे ज्यादा देर तक स्टोर करके रखा जा सकता है। यह पिछेती और अगेती झुलस रोग और पत्ता मरोड़ रोग की रोधक है।
 
Kufri Chamatkar: इस किस्म के पौधे दरमियाने कद के, फैलने वाले और ज्यादा तनों वाले होते हैं। यह किस्म मैदानी इलाकों में 110-120 दिनों में और पहाड़ी इलाकों में 150 दिनों में पकती है। इस किस्म के आलू गोलाकार और हल्के पीले रंग के होते हैं। मैदानी इलाकों में इसकी औसतन पैदावार 100 क्विंटल और पहाड़ी इलाकों में 30 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह पिछेती झुलस रोग, गलन रोग और सूखे की रोधक किस्म है।
 
Kufri Chipsona 2: इस किस्म के पौधे दरमियाने कद के और कम तनों वाले होते हैं। इसके पत्ते गहरे हरे और फूल सफेद रंग के होते हैं। आलू सफेद, दरमियाने आकार के, गोलाकार, अंडाकार और नर्म होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 140 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह पिछेती झुलस रोग की रोधक किस्म है। यह किस्म चिपस और फरैंच फ्राइज़ बनाने के लिए उचित है।
 
Kufri Chandramukhi:  पौधे दरमियाने कद के होते हैं आलू अंडाकार, सफेद और हल्के सफेद रंग के गुद्दे वाले होते हैं। यह किस्म अधिक समय के लिए स्टोर करके रखी जा सकती है। यह किस्म मैदानी इलाकों में 80-90 दिनों और पहाड़ी इलाकों में 120 दिनों में पकती है। मैदानी इलाकों में इसकी औसतन पैदावार 100 क्विंटल और पहाड़ी इलाकों में 30 क्विंटल प्रति एकड़ है। यह पिछेती झुलस रोग, गलन रोग और सूखे की रोधक किस्म है।
 
Kufri Jawahar:  इसके बूटे छोटे, सीधे, मोटे और कम तनों वाले होते हैं। इसके पत्ते हल्के हरे रंग के होते हैं। आलू दरमियाने आकार के, गोलाकार से अंडाकार और नर्म छिल्के वाले होते हैं यह जल्दी पकने वाली किस्म है और पकने के लिए 80-90 दिनों का समय लेती है। इसकी औसतन पैदावार 160 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह नए उत्पाद बनाने के लिए उचित किस्म नहीं है। यह पिछेती झुलस रोग की रोधक किस्म है।
 
Kufri Pukhraj: इसके बूटे लंबे और तने संख्या में कम और दरमियाने मोटे होते हैं। आलू सफेद, बड़े, गोलाकार और नर्म छिल्के वाले होते हैं यह किस्म 70-80 दिनों में पकती है। इसकी औसतन पैदावार 160 क्विंटल प्रति एकड़ है। यह अगेती झुलस रोग की रोधक किस्म है और नए उत्पाद बनाने के लिए उचित नहीं है।
 
Kufri Sutlej: इस किस्म के पौधे घने और मोटे तने वाले होते हैं। पत्ते हल्के हरे रंग के होते हैं। आलू बड़े आकार के, गोलाकार और नर्म छिल्के वाले होते हैं। यह किस्म 90-100 दिनों में पकती है। इसकी औसतन पैदावार 160 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म खाने के लिए अच्छी और स्वादिष्ट होती है। इन आलुओं को पकाना आसान होता है। यह नए उत्पाद बनाने के लिए उचित किस्म नहीं है।
 
Kufri Sindhuri: इस किस्म के पौधे लंबे और मोटे तने वाले होते हैं। आलू गोल और हल्के लाल रंग के दिखाई देते हैं। इसका गुद्दा हल्के सफेद रंग का होता हैं इसे ज्यादा देर तक स्टोर नहीं किया जा सकता। मैदानी इलाकों में यह 120 दिनों में और पहाड़ी इलाकों में 145 दिनों में पक जाती है। इसकी औसतन पैदावार 120 क्विंटल प्रति एकड़ है। यह किस्म कोहरे, पिछेती झुलस रोग, गलन रोग और सूखे की रोधक है।
 
Kufri Surya: यह किस्म गर्मियों के मौसम के प्रतिरोधक है और यह सूखे की बीमारी के प्रतिरोधक है। यह किस्म 90—100 दिनों में पक जाती है और इसकी औसतन पैदावार 100—125 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Kufri pushkar: यह मध्यम पकने वाली किस्म है जो कि 90—100 दिनों में पकती है। देरी से होने वाली सूखा इस किस्म को प्रभावित नहीं करता और इस किस्म के आलू सामान्य स्थितियों में भंडारण किए जा सकते हैं। इसकी औसतन उपज 160—170 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Kufri Jyoti: यह किस्म पिछेती अवस्था में लगने वाले सूखे के प्रतिरोधक है। इसकी औसतन उपज 80—120 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Kufri Chipsona 1: पिछेती अवस्था में लगने वाली सूखे की बीमारी इस किस्म को प्रभावित नहीं करती। इसकी औसतन उपज 170—180 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म चिप्स बनाने के लिए उपयुक्त है।
 
Kufri Chipsona 3: पिछेती अवस्था में लगने वाली सूखे की बीमारी इस किस्म को प्रभावित नहीं करती। इस किस्म में सुक्रॉस की मात्रा कम होती है। यह किस्म चिप्स बनाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन उपज 165—175 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
 
Kufri Frysona: इस किस्म के आलू 75 मि.मी. आकार के होते हैं जो कि फ्रैंच फ्राइज़ बनाने के लिए उपयुक्त है।इसकी औसतन उपज 160—170 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।  
 
दूसरे राज्यों की किस्में 
 
Kufri Giriraj, Kufri Himalini, Kufri Himsona, Kufri Giridhari, kufri Jyoit, Kufri Shailja.
 
Kufri Garima, Kufri Gaurav, Kufri Sadabahar, Kufri Surya, Kufri Khyati
 

 

ज़मीन की तैयारी

खेत को एक बार 20-25 सैं.मी. गहरा जोतकर अच्छे ढंग से बैड बनाएं। जोताई के बाद 2-3 बार तवियां फेरें और फिर 2-3 बार सुहागा फेरें। बिजाई से पहले खेत में नमी की मात्रा बनाकर रखें। बिजाई के लिए दो ढंग मुख्य तौर पर प्रयोग किए जाते हैं:

1. मेंड़ और खालियों वाला ढंग

2. समतल बैडों वाला ढंग

बिजाई

बिजाई का समय
अधिक पैदावार के लिए बिजाई सही समय पर करनी जरूरी है। बिजाई के लिए सही तापमान अधिक से अधिक 30-32° सैल्सियस और कम से कम 18-20° सैल्सियस होता है। अगेती बिजाई 25 सितंबर से 10 अक्तूबर तक, दरमियाने समय वाली बिजाई अक्तूबर के पहले से तीसरे सप्ताह तक और पिछेती बिजाई अक्तूबर के तीसरे सप्ताह से नवंबर के पहले सप्ताह तक करें। बसंत ऋतु के लिए जनवरी के दूसरे पखवाड़े बिजाई का सही समय है।
फासला
बिजाई के लिए आलुओं के बीच में 20 सैं.मी. और मेड़ में 60 सैं.मी. का फासला हाथों से या मकैनीकल तरीके से रखें। फासला आलुओं के आकार के अनुसार बदलता रहता है। यदि आलू का व्यास 2.5-3.0 सैं.मी. हो तो फासला 60x15 सैं.मी. और यदि आलू का व्यास 5-6 सैं.मी. हो तो फासला 60x40 सैं.मी. होना चाहिए।
 
बीज की गहराई
6-8 इंच गहरी खालियां बनाएं। फिर इनमें आलू रखें और थोड़ा सा ज़मीन से बाहर रहने दें।
 
बिजाई का ढंग
बिजाई के ट्रैक्टर से चलने वाली या ऑटोमैटिक बिजाई के लिए मशीन का प्रयोग करें।
 

बीज

बीज की मात्रा
बिजाई के लिए छोटे आकार के आलू 8-10 क्विंटल, दरमियाने आकार के 10-12 क्विंटल और बड़े आकार के 12-18 क्विंटल प्रति एकड़ के लिए प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
बिजाई के लिए सेहतमंद आलू ही चुने। बीज के तौर पर दरमियाने आकार वाले आलू, जिनका भार 25-125 ग्राम हो, प्रयोग करें। बिजाई से पहले आलुओं को कोल्ड स्टोर से निकालकर 1-2 सप्ताह के लिए छांव वाले स्थान पर रखें ताकि वे अंकुरित हो जायें। आलुओं के सही अंकुरन के लिए उन्हें जिबरैलिक एसिड 1 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर एक घंटे के लिए उपचार करें। फिर छांव में सुखाएं और 10 दिनों के लिए हवादार कमरे में रखें। फिर काटकर आलुओं को मैनकोजेब 0.5 प्रतिशत घोल (5 ग्राम प्रति लीटर पानी) में 10 मिनट के लिए भिगो दें। इससे आलुओं को शुरूआती समय में गलने से बचाया जा सकता है। आलुओं को गलने और जड़ों में कालापन रोग से बचाने के लिए साबुत और काटे हुए आलुओं को 6 प्रतिशत मरकरी के घोल (टैफासन) 0.25 प्रतिशत (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) में डालें।
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
165 155 40

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
75 25 25

 

बिजाई से दो सप्ताह पहले खेत की तैयारी के समय 200 क्विंटल प्रति एकड़ रूड़ी की खाद डालें। फसल की उचित वृद्धि के लिए नाइट्रोजन 75 किलो (165 किलो यूरिया), फासफोरस 25 किलो (155 किलो सिंगल सुपर फासफेट) और पोटाश 25 किलो (40 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश) की मात्रा प्रति एकड़ में डालें। बिजाई के समय नाइट्रोजन का 3/4 हिस्सा और फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा डालें। बाकी बचा हुआ नाइट्रोजन का 1/4 हिस्सा बिजाई से 30-40 दिन बाद जड़ों से मिट्टी लगाने के समय डालें। हल्की ज़मीनों में आधी मात्रा नाइट्रोजन और फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बिजाई के समय डालें और बाकी की नाइट्रोजन दो हिस्सों में जड़ों को मिट्टी लगाने के समय दो बार करके डालें।
जड़ों के साथ मिट्टी लगाना : मिट्टी में सही हवा, पानी और तापमान बनाए रखने के लिए यह काम बहुत जरूरी है ताकि फसल का विकास अच्छा हो सके। आलुओं के अच्छे विकास के लिए पौधे की जड़ों के साथ मिट्टी लगाएं। यह काम पौधों के 15-20 सैं.मी. कद होने पर करें। यदि जरूरत पड़े तो पहली बार मिट्टी लगाने के दो सप्ताह बाद दूसरी बार फिर मिट्टी लगाएं। यह काम हाथों से कही या सांचे की सहायता से किया जा सकता है।
 
पानी में घुलनशील खादें : मोटे आलुओं की पैदावार के लिए 13:0:45 की 2 किलो और मैगनीश्यिम ई डी टी ए 100 ग्राम प्रति एकड़ की स्प्रे करें। बीमारियों के हमले को रोकने के लिए फंगसनाशी प्रॉपीनेब 3 ग्राम प्रति लीटर पानी डालें। आलुओं का आकार और गिणती बढ़ाने के लिए हयूमिक एसिड (12 प्रतिशत) 3 ग्राम + एम ए पी 12:61:0 की 8 ग्राम या डी ए पी 15 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे पौधे की वृद्धि के समय करें।
 

 

 

खरपतवार नियंत्रण

आलुओं के अंकुरन से पहले मैटरीबिउज़िन 70 डब्लयु पी 200 ग्राम या एलाकलोर 2 लीटर प्रति एकड़ डालें।यदि नदीनों का हमला कम हो तो बिजाई के 25 दिन बाद मैदानी इलाकों में और 40-45 दिनों के बाद पहाड़ी इलाकों में जब फसल 8-10 सैं.मी. कद की हो जाये तो नदीनों को हाथों से उखाड़ दें। आमतौर पर आलुओं की फसल में नदीन नाशक की जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि जड़ों को मिट्टी लगाने से सारे नदीन नष्ट हो जाते हैं।
 
नदीनों के हमले को कम करने के लिए और मिट्टी की नमी को बचाने के लिए मलचिंग का तरीका भी प्रयोग किया जा सकता है, जिसमें मिट्टी पर धान की पराली और खेत के बची-कुची सामग्री बिछायी जा सकती है। बिजाई के 20-25 दिन बाद मलचिंग को हटा दें।
 

सिंचाई

खेत में नमी के अनुसार बिजाई के तुरंत बाद या 2-3 दिन बाद सिंचाई करें। सिंचाई हल्की करें, क्योंकि खुले पानी से पौधे गलने लग जाते हैं। दरमियानी से भारी ज़मीन में 3-4 सिंचाइयां और रेतली ज़मीनों में 8-12 सिंचाइयों की जरूरत पड़ती है। दूसरी सिंचाई मिट्टी की नमी के अनुसार बिजाई से 30-35 दिनों के बाद करें। बाकी की सिंचाइयां ज़मीन की नमी और फसल की जरूरत के अनुसार करें। कटाई के 10-12 दिन पहले सिंचाई करना बंद कर दें।

पौधे की देखभाल

चेपा
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
चेपा : यह कीट पौधों का रस चूसते हैं और पौधे को कमज़ोर बनाते हैं। गंभीर हमले से पौधे के पत्ते मुड़ जाते हैं और पत्तों का आकार बदल जाता है। प्रभावित हिस्सों पर काले रंग की फंगस लग जाती है।
 
चेपे के हमले को चैक करने के लिए अपने इलाके के समय अनुसार पत्तों को काट दें। यदि चेपे या तेले का हमला दिखे तो इमीडाक्लोप्रिड 50 मि.ली. या थायामैथोक्सम 40 ग्राम प्रति एकड़ 150 लीटर पानी की स्प्रे करें।
 
कुतरा सुंडी
कुतरा सुंडी : यह सुंडी पौधे को अंकुरन के समय काटकर नुकसान पहुंचाती हैं। यह रात के समय हमला करती है, इसलिए इसे रोकना मुश्किल है। इसके नुकसान को कम करने के लिए रूड़ी की खाद का प्रयोग करें। यदि इसका हमला दिखे तो क्लोरपाइरीफॉस 20 प्रतिशत ई सी 2.5 मि.ली. को प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। पौधों पर फोरेट 10 जी 4 किलो प्रति एकड़ डालें और मिट्टी से ढक दें।
 
यदि तंबाकू सुंडी का हमला दिखे तो रोकथाम के लिए क्विनलफॉस 25 ई सी 20 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी की स्प्रे करें।
 
पत्ते खाने वाली सुंडी
पत्ते खाने वाली सुंडी : यह सुंडी पत्ते खाकर फसल का नुकसान करती है।
 
यदि खेत में इसका हमला दिखे तो क्लोरपाइरीफॉस या प्रोफैनाफॉस 2 मि.ली. या लैंबडा साइहैलोथ्रिन 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
 
लाल भुंडी
लाल भुंडी : यह सुंडी और कीड़ा पत्ते खाकर फसल का नुकसान करती है।
 
इनके हमले के शुरूआती समय में इनके अंडे इक्ट्ठे करके खेत से दूर नष्ट कर दें। इसकी रोकथाम के लिए कार्बरिल 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
 
सफेद सुंडी
सफेद सुंडी : यह कीड़ा मिट्टी में रहता है और जड़ों, तनों और आलुओं को खाता है। इससे प्रभावित पौधे सूखे हुए दिखाई देते हैं और आलुओं में सुराख हो जाते हैं।
 
इसे रोकने के लिए बिजाई के समय कार्बोफिउरॉन 3 जी 12 किलो या थिमट 10 जी 7 किलो प्रति एकड़ डालें।
 
आलू का कीड़ा
आलू का कीड़ा : यह कीड़ा खेत और स्टोर में पड़े आलुओं पर हमला करता हैं यह आलुओं में छेद करके इसका गुद्दा खाता है।
 
बीज सेहतमंद और बीमारी मुक्त प्रयोग करें। पूरी तरह गली रूड़ी की खाद ही प्रयोग करें। यदि हमला दिखे तो कार्बरिल 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
 
अगेता झुलस रोग
  • बीमारीयां और रोकथाम
अगेता झुलस रोग : इससे नीचे के पत्तों पर धब्बे पड़ जाते हैं। यह बीमारी मिट्टी में स्थित फंगस के कारण आती है। कम तापमान और अधिक नमी होने के समय यह बीमारी तेजी से फैलती है।
 
खेत में एक ही फसल बार बार ना लगाएं। बदल बदल कर फसलें उगाएं। यदि हमला दिखे तो मैनकोजेब 30 ग्राम या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 30 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर बिजाई के 45 दिनों के बाद 10 दिनों के फासले पर 2-3 बार स्प्रे करें।
 
आलुओं पर काले धब्बे
आलुओं पर काले धब्बे : इस बीमारी से आलुओं पर काले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं और पौधे सूखते दिखाई देते हैं। प्रभावित आलुओं के अंकुरन के समय आंखों पर काला और भूरा रंग आ जाता है।
 
बिजाई के लिए बीमारी मुक्त बीज प्रयोग करें। बिजाई से पहले आलुओं को मरकरी के घोल से उपचार करें। एक फसल को बार बार ना उगाएं। यदि खेत को दो वर्षों के लिए खाली छोड़ दिया जाये तो बीमारी के खतरे को कम किया जा सकता है।
 
पिछेता झुलस रोग
पिछेता झुलस रोग : इस बीमारी का हमला पत्तों के शिखरों और नीचे के भाग पर देखा जा सकता है। प्रभावित पत्तों पर बेढंगे आकार के धब्बे दिखते हैं और धब्बों के आस पास सफेद पाउडर बन जाता है। ज्यादा हमले की सूरत में प्रभावित पौधों की नज़दीक की मिट्टी में सफेद पाउडर दिखाई देता है। यह बीमारी बारिश के बाद और बादलवाई वाले मौसम में अधिक फैलती है। यदि इसे ना रोका जाये तो 50 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है।
 
बिजाई के लिए सेहतमंद और बीमारी मुक्त बीज प्रयोग करें। यदि हमला दिखे तो प्रॉपीनेब 40 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी की स्प्रे करें।
 
आलुओं पर काली परत
आलुओं पर काली परत : यह बीमारी खेत और भंडारन दोनों में आती है। कम नमी वाली स्थिति में यह बीमारी तेजी से फैलती है। प्रभावित आलुओं पर हल्के भूरे से गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं।
 
खेत में सिर्फ अच्छी तरह से गली हुई रूड़ी की खाद का ही प्रयोग करें। बीमारी रहित बीजों का प्रयोग करें। बीजों को ज्यादा गहराई में ना बोयें। एक ही फसल बार बार ना उगाएं। बिजाई से पहले बीजों को एमीसन 6 के 0.25 प्रतिशत (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) घोल से 5 मिनट के लिए उपचार करें।
 
नर्म होकर गलना
नर्म होकर गलना : इस बीमारी से पौधे के नीचे के हिस्से का रंग काला और प्रभावित आलुओं का रंग भूरा हो जाता है और पौधा कांस्य रंग का नज़र आता है। ज्यादा हमले की स्थिति में पौधा सूखकर नष्ट हो जाता है। प्रभावित आलुओं पर लाल धब्बे नज़र आते हैं।
 
बिजाई के लिए सेहतमंद और बीमारी रहित बीज का प्रयोग करें। बिजाई से पहले बीजों को बोरिक एसिड 3 प्रतिशत ( 300 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) से 30 मिनट के लिए उपचार करें और छांव में सुखाएं। भंडारण से पहले एक बार फिर बोरिक एसिड से उपचार करें। बीमारी की उचित रोकथाम के लिए मैदानी इलाकों में बीजों को कार्बेनडाज़िम 1 प्रतिशत से 15 मिनट के लिए उपचार करें।
 
चितकबरा रोग
चितकबरा रोग : इससे पत्ते पीले हो जाते हैं और पौधे का विकास रूक जाता है। आलुओं का आकार और गिणती कम हो जाती है।
 
बिजाई के लिए सेहतमंद और बीमारी रहित बीज का प्रयोग करें। खेत की लगातार जांच करें और प्रभावित पौधों और हिस्सों को तुरंत नष्ट कर दें। इसकी रोकथाम के लिए मैटासिसटोक्स या रोगोर 300 मि.ली. को प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 

फसल की कटाई

डंठलों की कटाई : आलुओं को विषाणु से बचाने के लिए यह क्रिया बहुत जरूरी है और इससे आलुओं का आकार और गिणती भी बढ़ जाती है। इस क्रिया में सही समय पर पौधे को ज़मीन के नज़दीक से काट दिया जाता है। इसका समय अलग अलग स्थानों पर अलग है और चेपे की जनसंख्या पर निर्भर करता है। उत्तरी भारत में यह क्रिया दिसंबर महीने में की जाती है।
 
पत्तों के पीले होने और ज़मीन पर गिरने से फसल की पुटाई की जा सकती है। फसल को डंठलों की कटाई के 15-20 दिन बाद ज़मीन की नमी सही होने से उखाड़ लें। पुटाई ट्रैक्टर और आलू उखाड़ने वाली मशीन से या कही से की जा सकती है। पुटाई के बाद आलुओं को सुखाने के लिए ज़मीन पर बिछा दें और 10-15 दिनों तक रखें ताकि उनपर छिल्का आ सके। खराब और सड़े हुए आलुओं को बाहर निकाल दें।
 

कटाई के बाद

सब से पहले आलुओं को छांट लें और खराब आलुओं को हटा दें। आलुओं को व्यास और आकार के अनुसार बांटे। बड़े आलू चिपस बनने के कारण अधिक मांग में रहते हैं। आलुओं को 4-7 डिगरी सैल्सियस तापमान और सही नमी पर भंडारण करें।

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare