पंजाब में करेले की खेती

आम जानकारी

करेले का बोटेनीकल नाम मेमोरडिका करेंटिया है और यह कुकुरबिटेशियस परिवार से संबंधित है। इसे इसके औषधीय, पोषक, और अन्य स्वास्थ्य लाभों के कारण जाना जाता है। क्योंकि इसकी बाज़ार में बहुत अधिक मांग होती है इसलिए करेले की खेती काफी सफल है। करेले को मुख्यत: जूस बनाने के लिए और पाक उद्देश्य के लिए प्रयोग किया जाता है। यह विटामिन बी 1, बी 2 और बी 3, बिटा केरोटीन, जिंक, आयरन, फासफोरस, पोटाशियम, मैगनीज़, फोलेट और कैलशियम का उच्च स्त्रोत है। इसके काफी स्वास्थ्य लाभ हैं जैसे यह रक्त की अनियमितता को रोकता है, रक्त और लीवर को डीटॉक्सीफाई करता है, इम्यून प्रणाली को बढ़ाता है और वजन को नियंत्रित करने में मदद करता है।

मिट्टी

अच्छे जल निकास वाली रेतली दोमट मिट्टी, जिसमें जैविक तत्व उच्च मात्रा में होते हैं करेले की खेती के लिए उपयुक्त है। मिट्टी की पी एच 6.5-7.5 करेले की खेती के लिए सबसे अच्छी रहती है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Punjab Karela-15: इसके पत्ते नर्म, दाँतेदार और हरे होते हैं। इसका तना हरा और छोटे-छोटे बालों से ढका होता है, इसकी बेलें नर्म, दाँतेदार और गहरे हरे पत्तों वाली होती हैं। इस किस्म के फल मैट और गहरे हरे रंग के होते हैं। यह किस्म दरमियानी स्तर पर करेला पीला चितकबरा रोग के लिए प्रतिरोधी है। इसकी औसतन पैदावा 51 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 

Punjab Kareli-1 (2009): इस किस्म की बेलें लंबी, हरे रंग की, नर्म और दाँतेदार पत्तियों वाली होती हैं। इसके फल तीखे, लंबे और हरे रंग के होते हैं। इसके फल 66 दिनों के बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके फल का औसतन भार 50 ग्राम होता है और इसकी औसतन पैदावा 70 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 

Punjab Jhaar Karela-1 (2017): इस किस्म की मध्यम लंबी और हरे पत्तों वाली होती है जो कि दांतेदार होती हैं। इस किस्म कि फल देखने में हरे, नर्म, तीखे और खाना बनाने के दौरान काटने में बढ़िया होते हैं। यह किस्म वायरस और निमाटोड संक्रमण के लिए प्रतिरोधी है। इसकी औसतन पैदावार 35 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

पुरानी किस्में

Punjab-14 (1985): इस किस्म की बेलें छोटी होती हैं। इसके फल हल्के हरे रंग के होते हैं और इसके फल का औसतन भार 35 ग्राम होता है। यह किस्म बारिश या बसंत के मौसम में बिजाई के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 50 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

अन्य किस्में

Arka Harit: इस किस्म के फल नर्म, छोटे, तीखे, हरे रंग और हल्की कड़वाहट वाले होते है। इसकी औसतन पैदावार 48 क्विंटल प्रति एकड़ होती है और यह किस्म IIHR बैंगलोर द्वारा जारी की गई है।

Pusa Vishesh: यह किस्म IARI, नई दिल्ली, द्वारा जारी की गई है और यह किस्म गर्मी के मौसम में खेती के लिए अनुकूल मानी जाती है। इसकी बेलें छोटे कद की और झाड़ीदार होती हैं और इनका प्रबंधन करना भी आसान होता है। इसके फल आकर्षक हरे, फिऊज़ीफॉर्म आकार के होते हैं जिनकी सतह पर कई नर्म और चमकदार रेखें होती हैं। ये मध्यम लंबे और मोटे होते हैं। यह जल्दी पकने वाली किस्म है और बुआई के बाद तुड़ाई में लगभग 55 दिन का समय लेती है।

दूसरे राज्यों की किस्में

CO 1: इस किस्म के फल मध्यम आकार के होते हैं जो कि लंबे और गहरे हरे रंग के होते हैं। इसके फल का औसतन भार 100-120 ग्राम होता है। इस किस्म की औसतन पैदावार 5.8 टन प्रति एकड़ होती है और यह किस्म 115 दिनों में पक जाती है।

COBgoH 1: यह किस्म 115-120 दिनों में पक जाती है और इसकी औसतन पैदावार 20-21 टन प्रति एकड़ होती है।

MDU 1: इस किस्म  के फल की लंबाई 30-40 सैं.मी. होती है और यह 120-130 दिनों में पक जाती है। इसकी औसतन पैदावार 13-14 टन प्रति एकड़ होती है।

Preethi और Priya अन्य मुख्य उगाई जाने वाली किस्में हैं।

 

ज़मीन की तैयारी

करेले की खेती के लिए अच्छे तरह से तैयार ज़मीन की आवश्यकता होती है। मिट्टी के भुरभुरा होने तक 2-3 जोताई करें।

बिजाई

बिजाई का समय
बीज बोने के लिए फरवरी से मार्च या जून से जुलाई का समय उपयुक्त होता है।
 
फासला
1.5 मीटर चौड़े बैड के दोनों ओर बीजों को बोयें और पौधे से पौधे में 45 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
गड्ढे में 2.5-3 सैं.मी. की गहराई पर बीजों को बोयें।
 
बिजाई का ढंग
गड्ढा खोदकर बिजाई की जाती है।
 

बीज

बीज 
2.0 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
बिजाई से पहले बीज को 25-50 पी पी एम जिबरैलिक एसिड और 25 पी पी एम बोरोन में 24 घंटे के लिए भिगायें।
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
30 125 35

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASSIUM
13 20

20

 

करेले की फसल को अच्छी तरह से गली हुई रूड़ी की खाद 10-15 टन, नाइट्रोजन 13 किलो (यूरिया 30 किलो), फासफोरस 20 किलो (एस एस पी 125 किलो) और पोटाशियम 20 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 35 किलो) प्रति एकड़ में डालें। फासफोरस और पोटाशियम की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा बीज की बिजाई से पहले डालें। बाकी बची नाइट्रोजन को बिजाई के एक महीने बाद डालें।

 

 

 

सिंचाई

बिजाई के बाद पहली सिंचाई करें। गर्मियों के मौसम में प्रत्येक 6-7 दिनों के बाद सिंचाई करें और बारिश के मौसम में जरूरत पड़ने पर सिंचाई करें। इस फसल को कुल 8-9 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है।

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों की रोकथाम के लिए हाथों से गोडाई करें। 2-3 गोडाई पौधे की शुरूआती वृद्धि के समय करनी चाहिए। खादों की मात्रा डालने के समय मिट्टी में गोडाई की प्रक्रिया करें और मुख्यत: बारिश के मौसम में मिट्टी चढ़ाएं।

पौधे की देखभाल

  • बीमारियां और रोकथाम
पत्तों पर सफेद धब्बे : इससे पत्तों की ऊपरी सतह पर सफेद रंग के धब्बे पड़ जाते हैं, जिसके कारण पत्ते सूख जाते हैं।
 
कार्बेनडाज़िम 3 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 

पत्तों के निचली ओर धब्बे : यदि इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब या क्लोरथालोनिल 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर 10-12 दिनों के अंतराल पर दो बार स्प्रे करें।

  • हानिकारक कीट और रोकथाम
चेपा : ये कीट पत्तों में से रस चूसते हैं जिसके कारण पत्ते पीले पड़ जाते हैं और अंतत: गिर जाते हैं।
 
इसकी रोकथाम के लिए इमीडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
जूं : थ्रिप्स के कारण पत्ते मुड़ जाते हैं, पत्ते कप के आकार के हो जाते हैं या ऊपर से मुड़ जाते हैं।
 
इसकी रोकथाम के लिए डिकोफॉल 18.5 प्रतिशत एस सी 2.5 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
भुंडी : इसके कारण फूलों, पत्तों और तने को नुकसान पहुंचता है।
 
इसकी रोकथाम के लिए मैलाथियोन 50 ई सी 1 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 

फसल की कटाई

मौसम और फसल की किस्म के आधार पर फसल 55-60 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।  2-3 दिनों के अंतराल पर फलों की तुड़ाई करें। 

बीज उत्पादन

रोगिंग तीन बार किया जाना चाहिए पहली बानस्पतिक वृद्धि के समय, दूसरी फूल निकलने के समय और तीसरी फल निकलने के समय करनी चाहिए। करेले की अन्य किस्मों से 1000 मीटर का फासला रखें। खेत में से बीमार पौधों को निकाल दें। बीज उत्पादन के लिएए की तुड़ाई पूरी तरह पकने पर करें। सही बीज लेने के लिए खेत की तीन बार जांच आवश्यक है। तुड़ाई के बाद फलों को सूखाएं और फिर बीज निकाल लें।