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आम जानकारी

इस नसल के कुत्तों का सिर गोल, झुर्रीदार चेहरा और पूंछ मुड़ी हुई होती है। इनका रंग हल्का पीला और काले रंग का होता है। इनका शरीर छोटा, नर्म और सुंदर होता है। इस नसल के कुत्ते चंचल और वफादार होते हैं। इसका औसतन जीवनकाल 12-15 वर्ष का होता है। पग कुत्ते का औसतन भार 6-8 किलो होता है। इनकी झुर्रियों को रोज़ साफ करने की जरूरत होती है इससे इन्हें त्वचा से संबंधित संक्रमण नहीं होता। इन्हें थोड़ी सैर की आवश्यकता होती है। इस नसल के कुत्ते खर्राटे मारते हैं। इन्हें रहने के लिए अनुकूल वातावरण की आवश्यकता होती है क्योंकि इन्हें सांस की समस्या होती है। इन्हें अधिक गर्मियों में एयर कंडीशनर की आवश्यकता होती हैं। यह नसल बाहर रहने के लिए अनुकूल नहीं है।

चारा

भोजन की मात्रा और किस्म, कुत्ते की उम्र और उसकी नसल पर निर्भर करती है। छोटी नसलों को बड़ी नसल के मुकाबले भोजन की कम मात्रा की आवश्यकता होती है। भोजन उचित मात्रा में दिया जाना चाहिए नहीं तो कुत्ते सुस्त और मोटे हो जाते हैं। संतुलित आहार जिसमें कार्बोहाइड्रेट्स, फैट, प्रोटीन, विटामिन और ट्रेस तत्व शामिल हैं, पालतू जानवरों को स्वस्थ और अच्छे आकार में रखने के लिए आवश्यक होते हैं। कुत्ते को 6 आवश्यक तत्व जैसे फैट, खनिज, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट्स, पानी और प्रोटीन की आवश्यकता होती है। इसके साथ ही इन्हें सारा समय साफ पानी की आवश्यकता होती है। पिल्ले को 29 प्रतिशत प्रोटीन और प्रौढ़ कुत्ते को आहार में 18 प्रतिशत प्रोटीन की जरूरत होती है। हम उन्हें ये सारे आवश्यक तत्व उच्च गुणवत्ता वाले सूखा भोजन देकर दे सकते हैं। इन्हें दिन में दो बार ½ -1 कप उच्च गुणवत्ता वाला सूखा भोजन देना चाहिए।

सावधानियां:

भोजन जो कुत्ते को नहीं देना चाहिए:

कॉफी - यह पालतू जानवरों के लिए हानिकारक होती है क्योंकि इसके कारण कैफीन विषाक्तता होगी। इस बीमारी के लक्षण हैं तेजी से सांस लेना, बेचैनी, मांसपेशियों में झटके और घबराहट होनी।

आइस क्रीम - मानवों की तरह ही कई कुत्ते लैक्टोस को सहन नहीं करते और परिणामस्वरूप उन्हें डायबिटीज़ हो जाती है।

चॉकलेट - क्योंकि चॉकलेट में उच्च मात्रा में थियोब्रोमाइन होता है जो कि नुकसानदायक पदार्थ होता है। इसके कारण अत्याधिक प्यास लगती है, दौरे पड़ते हैं, दिल की धड़कन अनियमित हो जाती है और फिर अचानक मौत हो जाती है। 

शराब - यह कुत्ते के लीवर और दिमाग को नुकसान पहुंचाती है। इसके कारण सांस लेने में कठिनाई होती है, कुत्ते कोमा में चले जाते हैं और यहां तक कि मौत भी हो जाती है। 

च्युइंगम - यदि च्युइंगम में ज़ाइलीटॉल पदार्थ हो तो यह कुत्ते में लीवर के फेल होने का कारण बनता है।

प्याज - यह कुत्ते के लाल रक्ताणुओं को नष्ट करके उसे नुकसान पहुंचाता है।

एवोकाडो - इसमें परसिन होता है जो कि कुत्ते के पेट को खराब करता है। 

नस्ल की देख रेख

पिल्ले का चयन करते समय सावधानियां - पिल्ले का चयन आपकी जरूरत, उद्देश्य, उसके बालों की खाल, लिंग और आकार के अनुसार किया जाना चाहिए। पिल्ला वह खरीदें जो 8-12 सप्ताह का हो। पिल्ला खरीदते समय उसकी आंखे, मसूड़े, पूंछ और मुंह की जांच करें। आंखे साफ और गहरी होनी चाहिए, मसूड़े गुलाबी होने चाहिए और पूंछ तोड़ी हुई नहीं होनी चाहिए और दस्त के कोई संकेत नहीं होने चाहिए।

आश्रय - कुत्ते को रहने के लिए अच्छी तरह से हवादार, साफ और सुरक्षित वातावरण प्रदान करें। आश्रय अत्याधिक बारिश और हवा और आंधी से सुरक्षित होना चाहिए। सर्दियों में कुत्तों को ठंड के मौसम से बचाने के लिए कंबल दें और गर्मियों में छाया और ठंडे स्थानों की आवश्यकता होती है। 

पानी - कुत्ते के लिए 24 घंटे साफ पानी उपलब्ध होना चाहिए। पानी को साफ रखने के लिए प्रयोग किए जाने वाले बर्तन को आवश्यकतानुसार दिन में कम से कम दो बार या इससे अधिक समय में साफ करना चाहिए।

बालों की देख रेख - सप्ताह में दो बार बालों की देख रेख की जानी चाहिए। कंघी करने से अच्छा है प्रतिदिन ब्रशिंग करें। छोटे बालों वाली नसल के लिए सिर्फ ब्रशिंग की ही आवश्यकता होती है और लंबे बालों वाली नसल के लिए ब्रशिंग के बाद कंघी करनी चाहिए।

नहलाना - कुत्तों को 10-15 दिनों में एक बार नहलाना चाहिए। नहलाने के लिए औषधीय शैंपू की सिफारिश की जाती है।

ब्यांत समय में मादा की देखभाल - स्वस्थ पिल्लों के लिए गाभिन मादा की उचित देखभाल आवश्यक है। ब्यांत के समय या पहले उचित अंतराल पर टीकाकरण अवश्य देना चाहिए। ब्यांत का समय लगभग 55-72 दिन का होता है। उचित आहार, अच्छा वातावरण, व्यायाम और उचित जांच ब्यांत के समय के दौरान आवश्यक होती है।

नवजात पिल्लों की देखभाल - पिल्लों के जीवन के कुछ हफ्तों के लिए उनकी प्राथमिक गतिविधियों में अच्छे वातावरण, आहार और अच्छी आदतों का विकास शामिल है। कम से कम 2 महीने के नवजात पिल्ले को मां का दूध प्रदान करें और यदि मां की मृत्यु हो गई हो या किसी भी मामले में पिल्ला अपनी मां से अलग हो जाए तो शुरूआती फीड या पाउडरड दूध पिल्ले को दिया जाता है। 

चिकित्सीय देखभाल - इंसानों की तरह, कुत्ते को भी हर 6-12 महीनों के बाद दांतों की जांच के लिए पशु चिकित्सक की आवश्यकता होती है। अपने कुत्ते के दांतों को नर्म ब्रश के साथ ब्रश करें और एक ऐसे पेस्ट का चयन करें जो फ्लोराइड मुक्त हो क्योंकि फ्लोराइड कुत्तों के लिए बहुत ही जहरीला होता है।

सिफारिश किया गया टीकाकरण - पालतू जानवरों को नियमित टीकाकरण और डीवॉर्मिंग की आवश्यकता होती है ताकि उन्हें स्वास्थ्य समस्याएं ना हों।

6 सप्ताह के कुत्ते को  canine distemper, canine hepatitis, corona viral enteritis, canine parainfluenza, parvo virus infection, leptospirosis का प्राथमिक टीकाकरण दें और फिर दूसरा टीकाकरण 2-3 सप्ताह से 16 सप्ताह के कुत्ते को दें और फिर वार्षिक टीकाकरण देना चाहिए।

रेबीज़ बीमारी के लिए 3 महीने की उम्र के कुत्ते को प्राथमिक टीकाकरण दें, पहले टीके के 3 महीने बाद दूसरा टीका लगवाएं और फिर वार्षिक टीका लगवाना चाहिए।

हानिकारक परजीवियों से अपने पालतु जानवरों को बचाने के लिए डीवॉर्मिंग अवश्य करवानी चाहिए। 3 महीने और इससे कम उम्र के कुत्ते को प्रत्येक 15 दिनों के बाद डीवॉर्मिंग करवानी चाहिए। 6-12 महीने के बीच के कुत्ते को दो महीने में एक बार डीवॉर्मिंग करवानी चाहिए और फिर 1वर्ष या इससे ज्यादा उम्र के कुत्ते को प्रत्येक 3 सप्ताह बाद डीवॉर्मिंग करवानी चाहिए। डीवॉर्मिंग कुत्ते के भार के अनुसार विभिन्न होती है। 

बीमारियां और रोकथाम

 •    कैंसर - इसके लक्षण हैं सांस लेने में कठिनाई, सुस्ती, तेजी से वजन घटना, अचानक लंगड़ापन, भूख की कमी और पेशाब में कठिनाई होना। अधिक उम्र के कुत्तों में यह बीमारी ज्यादातर पायी जाती है। मुख्य रूप से बोस्टन टेरियन, गोल्डन रिटिराइवरज़ और बॉक्सरज़ नस्लें हैं जिनमें ट्यूमर विकसित होता है और ग्रेट डेन्स और सेंट बर्नार्ड नसलों में हड्डियों का कैंसर मुख्यत: पाया जाता है।

इलाज - कैंसर की किस्म और अवस्था के आधार पर इलाज करवाना चाहिए। इलाज में मुख्यत: कीमोथेरेपी, रेडिएशन, सर्जरी और इम्यूनोथेरेपी शामिल होती है।
 

•    शूगर- यह बीमारी मुख्यत: इंसुलिन हारमोन की कमी या इंसुलिन की अपर्याप्त प्रतिक्रिया के कारण होती है। इसके लक्षण हैं, सुस्ती, उल्टियां, क्रॉनिक त्वचा संक्रमण, अंधापन, डीहाइड्रेशन, भार कम होना और बार बार पेशाब आना। मुख्य रूप से यह 6-9 वर्ष के कुत्तों में शूगर के कारण होता है। पूडलज़, केज हंड, डेशुंड, और सिनाउज़र, सैमाइड, टेरिअर नस्लों में यह बीमारी मुख्यत: पायी जाती है। गोल्डन रिट्रीवर और कीशोंड्ज़ नसल में जुवेनाइल डायबिटीज़ पायी जाती है।

इलाज - उचित रक्त नियमन के लिए इंसुलिन के इंजैक्शन जरूरी होते हैं।
 

 
•    हार्टवॉर्म - इसके लक्षण हैं सांस लेने में कठिनाई, उल्टियां, खांसी होना, भार कम होना और थकान होना। यह बीमारी मुख्यत: जानवर को जानवर से मच्छरों के द्वारा फैलती है।

इलाज-  हार्टवॉर्म बीमारी के इलाज के लिए एडल्टीसाइड्ज़ नाम की दवाई कुत्ते की मांसपेशी में दी जाती है।
 

 

 

 

 •    केन्नल कफ- इसके लक्षण हैं आवाज के साथ सूखी खांसी, बुखार और नाक बहना।

इलाज - केन्नल कफ से राहत के लिए रोगाणुरोधी या खांसी कम करने वाली दवाई देने की सिफारिश की जाती है।
 

 
•   
 रेबीज़ - रेबीज़ के लक्षण हैं अतिसंवेदनशील, बुखार, भूख में कमी, कमज़ोरी, जबड़े और गले की मांसपेशियों का लकवाग्रस्त होना, अचानक मृत्यु आदि।

इलाज - कुत्ते को रेबीज़ एक बार हो जाने पर इसका कोई इलाज नहीं है। इस बीमारी के परिणामस्वरूप अचानक मृत्यु हो जाती है।
 

 

 

•    
पारवोवायरस - इसके लक्षण हैं भूख में कमी, सुस्ती, अधिक उल्टी होना, रक्त और दुर्गंध वाला डायरिया आदि।

इलाज - 6-8 सप्ताह के कुत्ते को पारवोवायरस के टीके की सिफारिश की जाती है और फिर 16-20 सप्ताह तक इसे बूस्टर के तौर पर दिया जाता है। 
 

 

 

 
•    दाद - इसके लक्षण हैं कानों, पंजों, सिर और शरीर के अगले भागों आदि पर धब्बों का पड़ना। दाद,  आकार में गोल और धब्बेदार होते हैं। कम उम्र के कुत्ते इस बीमारी से ग्रस्त होते हैं।

इलाज - दाद के इलाज के लिए चिकित्सीय शैंपू या लेप की सिफारिश की जाती है।
 

 

 

 
•    
केनिन डिस्टेम्पर - 3-6 महीने के कुत्ते इस बीमारी के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। इसके लक्षण हैं उल्टी, खांसी, डायरिया और निमोनिया।

इलाज - एंटीबायोटिक जैसे क्लोरमफेनीकोल या एम्पीसिलिन या जेंटामिसिन 5-7 दिनों के लिए दें।
रोकथाम - 7-9 सप्ताह के कुत्ते को पहला टीका लगवाना चाहिए और फिर दूसरा टीका 12-14 सप्ताह के बच्चे को लगवाना चाहिए।
 


•   लेप्टोसपिरोसिस - यह एक विषाणु रोग है जो कि लेप्टोस्पिरा केनीकोला और लेप्टोस्पिरा इक्टीरोहेमोरहाजिका   के कारण होता है। इसके लक्षण हैं शरीर के तापमान का बढ़ना, उल्टियां और यूरीमिया।