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आम जानकारी

भारत में ईमू पालन बहुत प्रसिद्ध है और अच्छा मुनाफा कमाने वाला व्यापार है। भारत में यह मुख्यत: दिल्ली, आंध्रा प्रदेश, कर्नाटक, तामिलनाडू और महाराष्ट्र में किया जाता है लेकिन केरला और उत्तर पूर्वी भारत के कुछ क्षेत्रों में भी इसका व्यापार किया जाता है। ईमू अपने वसा रहित मीट उत्पादन के लिए प्रसि़द्ध है। ईमू के मीट में उच्च मात्रा में आयरन, प्रोटीन और विटामिन सी होता है। ईमू को कुछ क्षेत्रों में इनके कीमती मीट, तेल, त्वचा और पंखों के लिए व्यापारिक तौर पर बेचा जाता है। प्रौढ़ ईमू 5-6 फीट लंबा और इसका औसतन भार 50-60 किलो होता है। मादा ईमू प्रति वर्ष 300 अंडे देती है। एक अंडे का भार लगभग 500-700 ग्राम होता है। ईमू के अंडे का आकार मुर्गी के अंडे के आकार के जैसा होता है। ईमू की उम्र लगभग 30 वर्ष होती है। भारत में व्यापारिक तौर पर ईमू पालन बहुत आसानी से किया जाता है। यदि आप ईमू पक्षी का पालन व्यापारिक तौर पर करना चाहते हैं तो आपको विस्तृत क्षेत्र और भूमि की जरूरत होती है।

चारा

आम चारा : 

पहले 9 सप्ताह में ईमू को उनके भोजन में 20 प्रतिशत प्रोटीन और चयापचय ऊर्जा की 2750 किलो कैलोरी की आवश्यकता होती है, उसके बाद 9-42 सप्ताह के ईमू को उनके भोजन में 16 प्रतिशत प्रोटीन और चयापचय ऊर्जा की 2750 किलो कैलोरी की आवश्यकता होती है और फिर 42 सप्ताह बाद ईमू को उनके भोजन में 14 प्रतिशत प्रोटीन और चयापचय ऊर्जा की 2750 किलो कैलोरी की आवश्यकता होती है। अंडे के उत्पादन के 4-5 सप्ताह पहले उनके भोजन में प्रोटीन की प्रतिशतता 21 प्रतिशत बढ़नी चाहिए और चयापचय ऊर्जा की 29000 किलो कैलोरी होनी चाहिए।

फीड की सामग्री :

भोजन में विटामिनों की उचित मात्रा जैसे विटामिन ए, विटामिन बी12, विटामिन डी, अमीनो एसिड (लाइसिन ट्रिपटोफेन), प्रोटीन, और खनिज (कैल्शियम, जिंक और आयोडीन) होनी चाहिए। यह जरूरी नहीं है कि हर ईमू की खुराक समान हो। पक्षियों में उचित भोजन की कमी के कारण बीमारियां हो जाती हैं।

बच्चों की खुराक :

0-8 सप्ताह के बच्चों को प्रतिदिन 2 पाउंड भोजन की आवश्यकता होती है और उन्हें प्रतिदिन कई बार भोजन की जरूरत पड़ती है। जब बच्चे 2 महीने से 14 महीने के हों, तो उनकी शुरूआती खुराक 20 प्रतिशत बढ़ा दें और उसके बाद इच्छानुसार खुराक दें।

प्रजनकों की खुराक :

प्रजनक, जिनकी उम्र 24 महीने या उससे ज्यादा होती है उन्हें प्रतिदिन 2 पाउंडस भोजन की आवश्यकता होती है लेकिन धीरे-धीरे उनकी खुराक 1 पाउंड पर ले आते हैं। प्रजनक ईमू को 21 प्रतिशत ईमू राशन की आवश्यकता होती है। प्रजनन से 1 महीना पहले कोशिश करें कि प्रजनक ईमू को उच्च मात्रा वाला प्रोटीन ही दें।

 

 

नस्ल की देख रेख

शेल्टर और देखभाल : व्यापारिक तौर पर ईमू पालन के लिए उपयुक्त भूमि का चयन करें। उस भूमि पर ताजे और साफ पानी की उचित उपलब्धता, अच्छा और पोषक तत्व वाला भोजन स्त्रोत, मजदूरों की उपलब्धता, आवाजाई प्रणाली, उपयुक्त मंडीकरण आदि होना चाहिए।

छोटे बच्चों की देख रेख : 1 दिन के ईमू का भार 370-450 ग्राम होता है। नए जन्में बच्चे को अच्छी तरह से सूखने के लिए 2-3 दिन के लिए इन्क्यूबेटर में रखें। उसके बाद प्रत्येक बच्चे को 3 सप्ताह के लिए 4 वर्ग फीट के ब्रूडर में रखें। पहले 10 दिनों के लिए ब्रूडिंग का तापमान 90 डिगरी फार्नाहाइट और फिर 3-4 सप्ताह के लिए हर रोज़ 5 डिगरी फार्नाहाइट कम कर दें। बच्चों की अच्छी वृद्धि और विकास के लिए उचित तापमान होना जरूरी है।

बढ़ने वाले बच्चों की देखभाल : ईमू को दौड़ने के लिए 30 फीट प्रति एकड़ खुली जगह की जरूरत होती है। इस तरह 50 बच्चों के लिए 50x30 फीट खुली जगह की आवश्यकता होती है। नर और मादा को एक दूसरे से अलग रखें।

प्रजनक की देखभाल : ईमू 18-24 महीने की उम्र में प्रौढ़ हो जाते हैं। प्रजनक ईमू को उनके भोजन में अधिक विटामिन और खनिज दें। पहले वर्ष में ईमू 15 अंडे देती हे और उसके बाद दूसरे वर्ष में अंडों का उत्पादन 30-40 अंडे प्रति वर्ष होता है।

सिफारिश किया गया टीकाकरण : समय के उचित अंतराल पर निम्नलिखित टीकाकरण की आवश्यकता होती है।

रानीखेत बीमारी से बचाव के लिए 1 सप्ताह की उम्र के पक्षी को लोसेटा स्ट्रेन टीका लगवाएं और 4 सप्ताह की उम्र के बच्चे को लोसेटा बूस्टर टीका लगवाएं।

रानीखेत बीमारी से बचाव के लिए 8,15 और 40 सप्ताह के बच्चों को मुक्तेस्वर स्ट्रेन टीका लगवाएं।

 

बीमारियां और रोकथाम

निमाटोड : इसके लक्षण हैं सिर हिलाना, गर्दन का टेढी होना, सांस लेने में परेशानी  और अचानक मौत हो जाना।

इलाज : निमाटोड से बचाव के लिए प्रत्येक महीने में एक बार आइवरमैक्टिन दवाई दें।

इक्वाइन एन्सेफलाइटिस वायरस (ई ई ई) : इस विषाणु के कारण ईमू में खूनी दस्त हो जाते हैं।

इलाज : दस्त की रोकथाम के लिए प्रोबायोटिक उपचार दें।

चांडलूरिला क्विस्ली : यह एक परजीवी बीमारी है जो काटने वाले कीड़ों के कारण होती है।

इलाज : इस बीमारी से बचाव के लिए उपयुक्त टीकाकरण करवायें या इस परजीवी संक्रमण के होने से पहले ही इसका निवारण कर लें। 

स्कोलियोसिस : यह एक परजीवी, आनुवांशिक और पोषक तत्वों से पैदा हुई बीमारी है।

इलाज : इस बीमारी से बचाव के लिए उपयुक्त टीकाकरण करवायें या इस परजीवी संक्रमण के होने से पहले ही इसका निवारण कर लें।

रानीखेत बीमारी : इसे न्यू कैस्टल बीमारी के नाम से भी जाना जाता है। यह बहुत संक्रमित बीमारी है और प्रत्येक उम्र के पक्षी में फैलती है। इसके लक्षण हैं मृत्यु दर में वृद्धि होना, सांस लेने में तकलीफ होना, टांगों और पंखों का कमज़ोर होना।

इलाज : R2B स्ट्रेन का टीका जरूर लगवायें और ईमू के 40 हफ्तों को हो जाने पर दोबारा यह टीका लगवायें।